Author: कविता बहार

  • खादीधारी पर कविता

    खादीधारी पर कविता

    समय-समय पर
    पनप जाते हैं
    नए-नए नाम से
    नए-नए वायरस
    जो करते हैं संक्रमित
    इंसानों को
    बिना जाति-धर्म का
    भेदभाव किए
    ढूंढ़ा जाता है उपचार
    इन वायरस का

    संसद-विधानसभाओं में
    चौकड़ी मारे बैठे वायरस
    जाति-धर्म के नाम पर
    करते हैं संक्रमित
    मानवता को
    नहीं हुआ आज तक
    कोई अनुसंधान
    इनके उपचार के लिए
    सर्वाधिक खतरनाक हैं
    ये खादीधारी वायरस
    दिन प्रतिदिन इनका प्रकोप
    बढ़ता ही जा रहा है

    -विनोद सिल्ला©

  • कोरोना वायरस को दूर भगाएंगे

    कोरोना वायरस को दूर भगाएंगे

    Corona rescue related ||कोरोना बचाव सम्बंधित
    Corona rescue related ||कोरोना बचाव सम्बंधित

    भीड़ भाड़ में न जाएंगे,
    हाथ किसी से न मिलाएंगे।
    सबको यह बताएंगे,
    कोरोना वायरस को दूर भगाएंगे।

    कच्चा मांस न खाएंगे,
    खूब उसे पकाएंगे।
    सबको यह बताएंगे ,
    कोरोना वायरस को दूर भगाएंगे।

    कोरोना लक्षण दिखे तो,
    तुरंत जांच कराएंगे ।
    सबको यह बताएंगे ,
    कोरोना वायरस को दूर भगाएंगे।

    साबुन से हाथ धोएंगे,
    मास्क हम लगाएंगे।
    सबको यह बताएंगे,
    कोरोना वायरस को दूर भगाएंगे।
    ~~~~~~~~~~~~~~~~
    डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”
    पीपरभावना (छत्तीसगढ़)
    मो. 8120587822

  • कर्ज पर कविता

    कर्ज पर कविता

    कर्ज था

    कर्ज था
    कर्ज ही
    उस किसान का
    मर्ज था
    कह गया अलविदा
    जहान को

    कर्ज था
    कर्ज ही
    उस पूंजीपति का
    मर्ज था
    कह गया अलविदा
    भारत को

    कर्ज था
    कर्ज ही
    उस बैंक का
    मर्ज था
    कह गया अलविदा
    अस्तित्व को

    -विनोद सिल्ला©

  • याराना पर कविता

    याराना पर कविता

    प्रेमी युगल
    प्रेमी युगल

    साहिल पर आना मेरे यार मुझे तेरी याद सताती है
    तेरी बातें मुझे बीते कल की याद दिलाती हैं
    साहिल पर आना मेरे यार मुझे तेरी याद सताती है।
    1)जब तू मुझे कभी बुलाता है
    यादों की सेज पर सुलाता है
    वो प्रेम भरी शय्या मुझको जल्दी सुलाती है
    साहिल पर आना———————-॥

    2)जब तू मुझे कभी भी मिलता है
    यादों का गुलाब सा खिलता है
    खुशबू वही मुझे तेरी बातों में मिल जाती है
    साहिल पर आना ———————॥

    3)जब मैं तेरी बातें दोहराता हूँ
    तुझे मेरे पास ही पाता हूँ
    मुरझाई हुई वो कुसुम कली फिर से खिल जाती है
    साहिल पर आना ———————॥

    4)तेरी वाणी नरम स्वभाव मृदुल
    मुझे दे शिक्षा हर क्षण हर पल
    ये बातें तेरे जीवन की मुझे ,सब राह दिखाती हैं
    साहिल पर आना ———————॥

    5)मन तुझसे मिलना चाहता है
    टूटे दिल सिलना चाहता है
    यादें वही टूटी थी जो फिर से जुड जाती है
    साहिल पर आना ———————॥

    6)तेरा मन मुझसे तो सुंदर है
    मैं बाहर तू मन के अंदर है
    ये बातें तेरे दिल की मुझको पल पल तडपाती हैं
    साहिल पर आना ——————–॥

    7) वो बचपन बडा निराला था
    दिल में हरदम उजाला था
    यही रीत है प्रकृति की ,फिर अंधेरा दिखाती है
    साहिल पर आना ——————–॥

    8)कभी कभी मुलाकातेंं होती हैं
    उजाले के बाद रातें होती हैं
    अंधेरे में भी मुझे तेरी अनुपम छवि मिल जाती है
    साहिल पर आना ——————–॥

    9)ना कपट दिल में ,न छल था
    जो आज नहीं बेशक कल था
    ये खोई हुई मीठी यादें भावुक कर जाती हैं
    साहिल पर आना ——————–॥

    10)अब ना कभी मिलना भी हो
    तो दिल को दिल से मिला लेंगे
    हँसी के आँसुओं के भी बिना
    यादों के फूल खिला लेंगे।।

    ये सब मुसीबतें जीवन के मूल मंत्र सिखाती हैं
    साहिल पर आना मेरे यार मुझे तेरी याद सताती है
    तेरी बातें मुझे बीते कल की याद दिलाती है
    साहिल पर आना मेरे यार मुझे तेरी याद सताती है॥

  • मेरा परिचय पर कविता-विनोद सिल्ला

    मेरा परिचय पर कविता -विनोद सिल्ला

    चौबीस मई तारीख भई,
    उन्नीस सौ सत्ततर सन।
    सन्तरो देवी की कोख से
    विनोद सिल्ला हुआ उत्पन्न।।

    माणक राम दादा का लाडला,
    उमेद सिंह सिल्ला का पूत।
    भाटोल जाटान में पैदा हुआ,
    क्रियाकलाप नाम अनुरूप।।

    सन् उन्नीस सौ बानवे में ,
    हो गया दसवीं पास।
    सादा भोला स्वभाव है,
    उन्नति करने की आस।।

    कक्षा बारहवीं पास कर,
    जे०बी०टी० में लिया प्रवेश।
    मन में थी उत्कांक्षा,
    कि करूंगा कुछ विशेष।।

    तेईस फरवरी तारीख भई,
    उन्नीस सौ निन्यानवे सन।
    शिक्षक की मिली नौकरी,
    सिल्ला परिवार हुआ प्रसन्न।।

    बाईस मार्च तारीख भई,
    सन था दो हज़ार चार।
    विनोद सिल्ला दुल्हा बना,
    बारात पहुँची हिसार।।

    धर्म सिंह जी की सुपुत्री,
    मीना रानी का मिला साथ।
    जिसने महकाया जीवन वो,
    ले के आई नई प्रभात।।

    इक्कीस जुलाई तारीख भई,
    दो हज़ार पांच था सन।
    पुत्र रत्न के रूप में घर,
    अनमोल सिंह हुआ उत्पन्न।।

    बारह जून दो हज़ार सात को,
    चली हवा बङी सुहानी।
    विनोद सिल्ला के घर में,
    जन्मी बेटी लाक्षा रानी।।

    सात जनवरी तारीख भई,
    दो हजार ग्यारह था सन।
    एस एस मास्टर बन गया,
    महका मन का उपवन।।

    बीस अप्रेल तारीख भई,
    दो हजार ग्यारह था सन।
    मेरी धर्मपत्नी मीना रानी,
    गई गणित अध्यापिका बन।।

    -विनोद सिल्ला