Author: कविता बहार

  • मुलाकात पर कविता

    मुलाकात पर कविता

    मैं जब भी
    फरोलता हूँ
    अलमारी में रखे
    अपने जरूरी कागजात
    तो सामने आ ही जाती है
    एक चिट्ठी
    जो भेजी थी
    वर्षों पहले
    मेरे दिल के
    महरम ने
    भले ही उससे
    मुलाकात हुए
    हो गए वर्षों
    पर चिट्ठी
    करा देती है अहसास
    एक नई मुलाकात का

    -विनोद सिल्ला©

  • जन अदालत लघु कथा

    जन अदालत लघु कथा

    बचाओ बचाओ बचाओ की आवाज सुन दद्दू झोपडी से बाहर झाँका तो सन्न रह गया।गाँव के पटवारी को वर्दीधारी नक्सली घसीटते हुए ले जा रहे थे।दद्दू को समझते देर न लगी आज फिर हत्या कर दी जाएगी।फिर कानो में आवाज सुनाई दी,”गाँव वालो घर से बाहर निकलो जनअदालत है।”छत्तीसगढ़ के घूर नक्सल क्षेत्रो में यह घटना होते रहता है ग्राम वासी पीपल चौक में एकत्रित हो चुके थे।दद्दू के हाथ पैर काँप रहे थे,धड़कन तेजी थी,हिम्मत करके दद्दू ने फोन लगाया थानेदार ने कहा-“हलो कौन?दद्दू ने काँपते जुबान से कहा-“साहब बछेली से बोल रहा हूँ,जल्दी आओ जन अदालत लग रहा है,इतना कहकर दद्दू ने फोन काट दिया।फिर कानो में आवाज सुनाई दी।गाँव वालो घर से बाहर निकलो,दद्दू अपने झोपडी से बाहर निकला,पग बढाता हुआ पीपल चौक में पहुँच गया।पटवारी के हाथ पैर को बाँधकर पीपल के शाखा में उल्टा लटका दिया गया था।पटवारी का सर नीचे पैर ऊपर था।नक्सलियों के सरदार ने कहा-“बताओ ये पटवारी रिश्वत लेता है या नहीं?,डरे सहमे कुछ लोग कहने लगे-“रिश्वत लेता है साहब।पटवारी के चेहरे से रंग उड़ गया था,वह विनती करने लगा-“मुझे छोड़ दो कभी किसी से रिश्वत नहीं लूँगा मुझे माफ कर दो।नक्सलियों के सरदार ने आदेश दिया इसकी गर्दन काट दी जाए।एक नक्सली अपने हाथों में कुल्हाड़ी रखकर आगे बढ़ने लगा।दद्दू प्राथना करने लगा-“पुलिस वालो जल्दी आओ! तभी दद्दू ने हिम्मत करके कहा-“रुको।’ ये पटवारी मेरे नामांतरण पर मुझसे एक रुपिया नहीं लिया था।पुस्तिका भी बना कर दिया था।कुल्हाड़ी वाला रुक गया।यह बात सुन कर पटवारी सोचने लगा,ये झूठ क्यों बोल रहा है,इससे तो मैं मोटी रकम लिया था।दद्दू नक्सलियों को अपने बातो में उलझा कर समय बढ़ा रहा था।कुछ समय बाद पुलिस गाड़ी की सायरन सुनाई दी।नक्सली जन अदालत छोड़ कर भाग खड़े हुए।पुलिस वाले पटवारी को नीचे उतारे रस्सी खोल कर बोले-“आज तुम बच गए।”पटवारी कुछ न बोल सका मन ही मन दद्दू को शुक्रिया बोल कर पुलिस वालो के साथ चला गया।

    राजकिशोर धिरही
    तिलई,जांजगीर

  • चटनी पर कविता

    चटनी पर कविता

    चटनी लहसुन पीसना,लेना इसका स्वाद।
    डाल टमाटर मिर्च को,धनिया रखना याद।।

    अदरक चटनी रोज ले,भागे दूर जुकाम।
    खाँसी सत्यानाश हो,करते रहना काम।।

    चटनी खाना आम की,मिलकर के परिवार।
    उँगली अपनी चाट ले,मुँह में आवे लार।।

    चंद करेला पीसकर,खाना इसको शूर।
    गुणकारी यह पेट का,रोग रहे सब दूर।।

    इमली चटनी भात में,खाते मानव लोग।
    दूर करे यह कब्ज को,भागे पाचन रोग।।

    चटनी खाना नारियल,हड्डी खूब विकास।
    पानी बढ़िया काम का,हो दूर जलन प्यास।।

    पीस करौंदा चाट ले,दूर करे मधुमेह।
    गुर्दे पथरी ठीक हो,अच्छा हरदम देह।।

    नींबू रस खट्टा लगे,चटनी इसकी खास।
    पेट दर्द आराम हो,सबको आवे रास।।

    राजकिशोर धिरही

  • कोरोना पर दोहे

    कोरोना पर दोहे

    विद्यालय सब बंद है,कोरोना का घात।
    नर नारी सब मास्क पर,कहते डर की बात।।

    हाथ विचारे देख के,रहते हैं चुपचाप।
    नहीं बताते कुछ हमें,कोरोना पर आप।।

    कोरोना के काट का,खोज करो सब आज।
    मरे नहीं कोई यहाँ,होवे खूब इलाज।।

    आवत रोगी देख के,काँपे सबके हाथ।
    डॉक्टर परिजन सब डरे,असली रिश्ते साथ।।

    धोते रहना हाथ को,मास्क रहे मुँह नाक।
    भीड़ भाड़ से दूर हो,कोरोना तब खाक।।

    राजकिशोर धिरही

  • कवि पर कविता

    कवि पर कविता

    kalam

    साहित्य के चूल्हे पर
    शब्दों का तवा चढ़ा
    वैचारिकता की लकड़ी में
    भावनाओं की आग जलाकर
    कलम की चिमटी से
    मैं कविताओं की रोटियां सेंकता हूँ
    हाँ! मैं कवि हूँ।

    ©तिलसमानी_KYS