Author: कविता बहार

  • भूख पर कविता

    भूख पर कविताएं

    भूख पर कविता

    कविता 1.

    भूख केवल रोटी और भात नहीं खाती
    वह नदियों पहाड़ों खदानों और आदमियों को भी खा जाती है
    भौतिक संसाधनों से परे
    सारे रिश्तों
    और सारी नैतिकताओं को भी बड़ी आसानी से पचा लेती है भूख।

    भूख की कोई जाति कोई धर्म नहीं होता
    वह सभी जाति सभी धर्म वालों को समान भाव से मारती है।

    जाति धर्म मान सम्मान महत्वपूर्ण होता है
    जब तक भूख नहीं होती।

    दुनिया भर के आयोजनों में
    सबसे बड़ा होता है
    रोटी का आयोजन

    सच्चा कवि वही होता है
    जो रोटी और भूख के विरह को समझ ले।

    सबसे आनंददायक होता है
    भूख का रोटी से मिलन।

    नरेंद्र कुमार कुलमित्र

    कविता 2.

    भूख !
    असीम को समेटे दामन में,
    हो गई है उच्चश्रृंखल।
    खोती जा रही अपना
    प्राकृतिक रूप।
    वास्तविक स्वरूप ।

    भूख बढ़ती चारों ओर,
    रूप बदल- बदल कर
    यहाँ -वहाँ जानें, कहाँ -कहाँ
    करने लगी है,आवारागर्दी।

    भूख होती जा रही बलशाली,
    दिन ब दिन,
    तन, मन, मस्तिष्क पर ,
    जमा रही अधिकार,
    और दे रही इंसान को पटखनी ।

    पेट की आग से भी बढ़कर,
    धधकती ज्वाला मुखी,
    लालच और वासना की भूख
    जो कभी भी ,कहीं भी ,
    फट सकती है।

    अब नहीं लगती किसी को,
    इंनसानियत ,धर्म, कर्तब्य और भाईचारे ,
    संस्कारों की भूख
    बौने होते जा रहे सब।

    दावानल लगी है, मनोमस्तिष्क में,
    विकारों में जलता मानव,
    अपनी क्षुधा तृप्ति के लिए,
    होते जा रहे हैवान ।
    और रोटी की जगह निगल रहे समूची मानवता को ।

    सुधा शर्मा
    राजिम छत्तीसगढ़

    कविता 3.

    भीख माँगने में मुझे लाज तो आती है
    पर ये जालिम भूख बड़ी सताती है।
    सुबह से शाम दर दर खाती हूँ ठोकर
    दो वक्त की रोटी मुश्किल से मिलती है।
    मैलै कुचैले वसन में बीतता है बचपन
    दिल की ख्वाहिश अधूरी ही रहती है।
    ताकि भाई खा सके पेट भर खाना
    बहाना बना पानी पी भूख सहती है।
    कहाँ आती है भूख पेट नींद भी ‘रुचि’
    आँखों से आँसू बरबस ही बहती है।

    सुकमोती चौहान रुचि
    बिछियां, महासमुन्द, छ.ग.


  • सर्वश्रेष्ठ बाल कविता

    सर्वश्रेष्ठ बाल कविता

    सर्वश्रेष्ठ बाल कविताएँ

    सर्वश्रेष्ठ बाल कविता येँ

    Hindi Poem ( KAVITA BAHAR)

    बचपन के पल

    दिन आते रहे,
    दिन जाते रहे,
    बचपन के दोस्त
    दिनोंदिन मिलते रहे,

    नटखट कारनामें
    यादों में बदलते रहे,
    वक़्त के तकाज़े से
    सभी जुदा होते रहे,
    सालोंसाल गुज़रते रहे,
    कुछ दोस्त मिलते रहे,
    कुछ दोस्त गुमशुदा
    गुमनाम होते रहे,
    काश ये बचपन के
    नायाब पल ठहर जाते !
    बचपन के दोस्त
    मुझे फिर मिल जाते।

    कवि : श्री राजशेखर सी    
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

    घंटा पर कविता

    घंटा बोला, चलो मदरसे,

    निकलो, निकलो, निकलो घर से।

    बोला, चलो मदरसे, जल्दी निकलो, अपने घर से ।

    कपड़े पहनो, बस्ता ले लो,

    जल्दी निकलो, अपने घर से ।

    जल्दी निकलो, अपने घर से,

    घंटा बोला, चलो मदरसे

    गप्पू गपोड़ पर कविता

    एक था, गप्पू गपोड़,

    उसके जैसा कोई न जोड़।

    एक दिन, खाकर बोर,

    गप्पू बोला, वो रहा मोर।

    सबने मुड़कर, देखा चाहा,

    कोई न था, कुछ न था।

    वापस मुड़कर देखा चोर,

    गप्पू भागा, लेकर बोर।

    कैसा था, गप्पू गपोड़,

    उसके जैसा कोई न जोड़।

    चीजों पर कविता

    लड्डू, लट्टू, कच्ची ईंट,

    ताला, चाबी, पक्की ईंट।

    कली, कागज और करेला,

    कच्चा मटका, गुड़ का भेला ।

    शीशी, पन्नी, चाय की छन्नी,

    पंजी, दस्सी और चवन्नी ।

    कैंची, फावड़ा, गाय का गिरमा,

    टोपी, जूता, आँख का सुरमा ।

    इब्नबतूता पर कविता

    इब्न बतूता, पहन के जूता,

    निकल पड़े, तूफान में।

    थोड़ी हवा, नाक में घुस गयी,

    घुस गयी, थोड़ी कान में।

    कभी नाक को, कभी कान को,

    मलते, इब्नबतूता ।

    इसी बीच में निकल पड़ा,

    उनके पैरों का जूता

    उड़ते-उड़ते, जूता उनका,

    जा पहुँचा, जापान में।

    इब्न बतूता, खड़े रह गए,

    मोची की, दुकान में।

    गोल वस्तु पर कविता

    गोल-गोल, गोल-गोल,

    सूरज गोल, चन्दा गोल,

    सिक्का गोल, चक्का गोल,

    और क्या-क्या, होता गोल,

    नहीं मालूम, तो घूमो गोल।

    नहीं मालूम तो घूमो गोल।

    गोल-गोल, गोल-गोल,

    अब रूक जाओ, बैठो गोल।

    गोल, गोल, गोल, गोल,

    गहरा कुँआ, गोल-गोल,

    रात का चंदा, गोल-गोल

    खिड़की, दरवाजे . . . .?

    नहीं मालूम तो धूमो गोल

    डोकरी माँ पर कविता

    डोकरी मां, डोकरी मां, …क्या करे है?

    बेटा, सुई ढूँढ हूँ।

    माँ, सुई को क्या करोगी?

    बेटा, थैली सिऊँगी।

    माँ, थैली का क्या करोगी?

    बेटा उसमें रूपये रखूँगी ।

    माँ, तू रूपयों का क्या करोगी?

    बेटा, एक भैंस खरीदूँगी।

    माँ, भैंस का क्या करोगी?

    बेटा, भैंस से दूध लगाऊँगी।

    माँ, दूध का क्या करोगी?

    बेटा, दूध से दही जमाऊँगी।

    माँ, दही का क्या करोगी?

    बेटा, बिलोकर मक्खन निकालूँगी।

    माँ, मक्खन का क्या करोगी?

    बेटा, मक्खन से घी बनाऊँगी।

    माँ, घी का क्या करोगी?

    हम सब मिलकर घी खायेंगे।

    तब तो बड़ा मजा आयेगा, हा, हा, हा।

    लालाजी पर कविता

    लालाजी, लालाजी,एक लड्डू दो।

    लड्डू जो चाहिये, तो. चार आने दो।

    लालाजी, लालाजी, पैसे नहीं ।

    पैसे नहीं हैं, तो लड्डू नहीं ।

    लालाजी, लालाजी,

    आपकी मूँछें, कितनी लम्बी हैं?

    आपकी मूँछें, कितनी प्यारी हैं?

    आपकी मूँछें, कितनी सुन्दर हैं?

    बेटा जी, बेटाजी, इधर आओ।

    चार लड्डू चाहिये तो, चार लड्डू लो ।

    रेलगाड़ी पर कविता

    छुक छुक छुक छुक गाड़ी आई,

    आगे से हट जाना भाई।

    हट जाना भाई, बच जाना भाई,

    छुक छुक छुक छुक गाड़ी आई।

    काला काला धुआँ उड़ाती,

    फक फक फक फक शोर मचाती।

    गाड़ी आई गाड़ी आई,

    आगे से हट जाना भाई।

    कुत्ता पर कविता

    कुत्ता इक रोटी को पाकर,

    खाने चला गाँव से बाहर।

    नदी राह में उसके आई,

    पानी में देखी परछाईं।

    लिये है रोटी कुत्ता दूजा,

    डराके छीनू, उसने सोचा।

    लेकिन उसकी किस्मत खोटी,

    भौंका ज्यों ही, गिर गई रोटी।

    नींद पर कविता

    मैं तो सो रही थी, मुझे मुर्गे ने जगाया,

    बोला कुकहूँ कूँ कूँ हूँ।

    मैं तो सो रही थी,

    मुझे बिल्ली ने जगाया,

    बोली-म्याऊँ म्याऊँ म्याऊँ ।

    मैं तो सो रही थी,

    मुझे मोटर ने जगाया,

    बोली -पो पों पों।

    मैं तो सो रही थी,

    मुझे अम्मा ने जगाया,

    बोली- उठ उठ उठ |

     छोटे बच्चे पर कविता

    छोटे बच्चे नाचें-गाएँ,

    गाल बजाये टेसूरा।

    छोटे बच्चे खेलें-खाएँ,

    तोंद फुलाये टेसूरा।

    छोटे बच्चे शोर मचायें,

    रो-रो आये टेसूरा।

    छोटे बच्चे पढ़े-पढ़ायें,

    मौज उड़ाये टेसूरा।

    छोटे बच्चे नाचें- गाएँ,

    गाल बजाये टेसूरा।

    फौजों पर बाल कविता

    पी पी पी पी डर डर डम,

    नन्हें मुन्ने सैनिक हम।

    सी है फौज हमारी,

    पर उसमें है ताकत भारी ।

    बड़ी-बड़ी फौजें झुक जाती,

    जब ये अपना जोर दिखाती।

    पी पी पी पी डर डर डम,

    नन्हें मुन्ने सैनिक हम।

    मुर्गा पर कविता

    मुर्गा बोला कुक्कडू कूं,

    चल मेरे भैया रूकता क्यूँ ।

    कुत्ता भौंके, भों-भों-भों,

    अटकी गाड़ी पौं- पौं-पौं।

    बकरी आई, बिल्ली आई,

    मैं-मैं आई, म्याऊँ – म्याऊँ आई।

    धक्की गाड़ी धौं-धौं-धौं,

    चल दी गाड़ी पौं- पौं-पौं।

    बैलों की गाड़ी पर कविता

    एक चली बैलों की गाड़ी,

    जुते हुए दो बैल अगाडी,

    बैठी थी कुल तीन सवारी,

    चार बजे से की तैयारी,

    पाँच मील पर लगा है मेला,

    छ दिन से है रेलम पेला,

    सात गाँव के लोग हैं आते,

    आठ दिनों तक धूम मचाते,

    नौ दिन तक मेला चलता,

    दसवें दिन फिर कुछ नहीं मिलता।

    गुड़िया पर कविता

    बाल कविता 1

    डाक्टर देखो भली प्रकार,

    मेरी गुड़िया है बीमार ।

    कल था बरसा छम-छम पानी,

    भीगी उसमें गुड़िया रानी।

    गीले कपड़े दिए उतार,

    फिर भी गुड़िया है बीमार

    उसे लगाना थर्मामीटर,

    ओ हो इतना तेज बुखार ।

    सौ से भी ऊपर है चार,

    देता हूँ मैं इसको पुड़िया

    डाक्टर ले ली मैंने पुड़िया,

    ले जाती मैं अपनी गुड़िया।

    बाल कविता 2

    गुड़िया मेरी रानी है,बन्नो बड़ी सयानी है।

    गुन-गुन गाना गाती है, ताथई नाच दिखाती है।

    हँसती रहती है दिन रात, करती है वह मीठी बात।

    ठुमक ठुमक कर आती है. कंधे पर चढ़ जाती है।

    झंडा मुझे बना देना, तीन रंगों से सजा देना।

    लाल किले पर जाऊँगा,जयहिन्द जयहिन्द गाऊँगा।

    तितली पर कविता

    रंग-बिरंगे पंख तुम्हारे, सबके मन को भाते हैं।

    कलियाँ देख तुम्हें खुश होतीं फूल देख मुसकाते हैं ।।

    रंग-बिरंगे पंख तुम्हारे, सबका मन ललचाते हैं।

    तितली रानी, तितली रानी, यह कह सभी बुलाते हैं ।।

    पास नहीं क्यों आती तितली, दूर-दूर क्यों रहती हो?

    फूल-फूल के कानों में जा धीरे-से क्या कहती हो?

    सुंदर-सुंदर प्यारी तितली, आँखों को तुम भाती हो।

    इतनी बात बता दो हमको हाथ नहीं क्यों आती हो?

    इस डाली से उस डाली पर उड़-उड़कर क्यों जाती हो?

    फूल-फूल का रस लेती हो, हमसे क्यों शरमाती हो?

    – नर्मदाप्रसाद खरे

    कबूतर पर बाल कविता

    गुटरूँ-गूँ

    उड़ा कबूतर फर-फर-फर,
    बैठा जाकर उस छत पर।
    बोल रहा है गुटरूँ-गूँ,
    दाने खाता चुन चुन कर

    कबूतर / सोहनलाल द्विवेदी

    कबूतर
    भोले-भाले बहुत कबूतर
    मैंने पाले बहुत कबूतर
    ढंग ढंग के बहुत कबूतर
    रंग रंग के बहुत कबूतर
    कुछ उजले कुछ लाल कबूतर
    चलते छम छम चाल कबूतर
    कुछ नीले बैंजनी कबूतर
    पहने हैं पैंजनी कबूतर
    करते मुझको प्यार कबूतर
    करते बड़ा दुलार कबूतर
    आ उंगली पर झूम कबूतर
    लेते हैं मुंह चूम कबूतर
    रखते रेशम बाल कबूतर
    चलते रुनझुन चाल कबूतर
    गुटर गुटर गूँ बोल कबूतर
    देते मिश्री घोल कबूतर।

    सोहनलाल द्विवेदी

    चंदा मामा पर कविता

    चन्दा मामा चन्दा मामा,
    करते हो तुम कैसा ड्रामा।
    कभी सामने आते हो,
    कभी छुप छुप जाते हो।

    छुप छुप कर मुझे देखते,
    बादलों की चादर ओढ़े।
    सितारों के मध्य चलकर,
    मुझको बड़ा खिजाते हो।

    आओ लुका छिपी खेलें,
    बादलों के पीछे मिलें।
    मुझे ढूंढो मैं तुम्हें ढूंढू,
    क्यों रूठ जाते हो?

    मेरे घर कभी आओ ना,
    खुश हो जाएगी मेरी माँ।
    हलवा पूड़ी संग संग खाएंगे,
    हर दिन मुझे रिझाते हो।

    मैं बादलों के पार जाऊँ,
    तुमको अनेक खेल बताऊँ।
    पर तुम तक पहुँचूँ कैसे,
    राह नहीं बताते हो।

    साधना मिश्रा, रायगढ़, छत्तीसगढ़

    चंदा मामा दूर के
    चंदा मामा दूर के

    पुए पकाये बूर के |
    आप खाएँ थाली में।
    मुन्नी को दें प्याली में ॥
    प्याली गयी टूट
    मुन्नी गयी रूठ॥
    चंदा के घर जाएँगे।
    लाएँगे नई प्यालियाँ ॥
    मुन्नी को मनाएँगे।
    बजा बजा कर तालियाँ ॥

    कुत्ता पर बाल कविता

    लालची कुत्ता

    कुत्ता इक रोटी को पाकर,
    खाने चला गाँव से बाहर।
    नदी राह में उसके आई,
    पानी में देखी परछाई।
    लिये है रोटी कुत्ता दूजा,
    डराके छीनू, उसने सोचा।
    लेकिन उसकी किस्मत खोटी,
    भौका ज्यों ही गिर गई रोटी।

    गुड़िया पर बाल कविता

    गुड़िया मेरी रानी है,
    बन्नो बड़ी सयानी है।
    गुन-गुन गाना गाती है,
    ता-थई नाच दिखाती है।
    हँसती रहती है दिन रात,
    करती है वह मीठी बात।
    ठुमक ठुमक कर आती है,
    कंधे पर चढ़ जाती है।

    कविता 1

    वह देखो वह आता चूहा,
    आँखों को चमकाता चूहा
    मूँछों से मुस्काता चूहा,
    लंबी पूँछ हिलाता चूहा
    मक्खन रोटी खाता चूहा,
    बिल्ली से डर जाता चूहा

    कविता 2

    आज मंगलवार है
    चूहे को बुखार है
    चूहा गया डॉक्टर के पास
    डॉक्टर ने लगाई सुई….
    चूहा बोला उई उई ……

    कविता 3

    एक था चूहा,फुदकते रेंगते

    उसे मिली चिन्दी,चिन्दी लेकर वो गया

    धोबी दादा के पास,उससे कहा धोबी दादा.धोबी दादा

    मेरी चिन्दी को धो दो,उसने कहा मैं नी धोता .

    चूहा बोला – चावडी में जाऊँगा,चार सिपाही लाऊँगा

    तुझको मार पीटवाऊँगा,और मैं तमाशा देखूँगा

    धोबी दादा घबराया,उसने उसकी चिन्दी धो दी.

    चिन्दी लेकर वो गया,रंगरेज के यहाँ

    रंगरेज दादा ..रंगरेज दादा

    मेरी चिन्दी को रंग दो, उसने कहा – मैं नी रंगता

    चूहा बोला चावडी में जाऊँगा,चार सिपाही लाऊँगा

    तुझको मार पीटवाऊँगा,और मैं तमाशा देखूँगा

    रंगरेज घबराया,उसने फट से उसकी चिन्दी रंग दी.

    बाद में वो गया दरजी दादा के पास,दरजी दादा .दरजी दादा

    मेरी चिन्दी को सी दो,उसने कहा – मै नी सीता

    चूहा फिर बोला – चावडी में जाऊँगा

    चार सिपाही लाऊँगा,तुझको मार पीटवाऊँगा

    और मै तमाशा देखूँगा,दरजी घबराया उसने टोपी सिल दी.

    टोपी लेकर वो गया गोटे दादा के पास

    गोटे दादा गोटे दादा,मेरी टोपी को गोटा लगा दो

    गोटे दादा तुरन्त बोला,मै नी लगाता

    चूहे ने फट से कहा – चावडी में जाऊँगा

    चार सिपाही लाऊँगा,तुझको मार पीटवाऊँगा

    और मै तमाशा देखूँगा,गोटे दादा घबराया

    उसने टोपी को तुरन्त गोटा लगा दिया.

    टोपी पहनकर चूहा,जा बैठा ऊँचे पेड़ पर

    वहाँ से निकली राजा की स्वारी

    वह देख चूहा बोला –

    राजा – – – – – -राजा उपर ,छोटे – – – – -छोटे नीचे

    सुनकर राजा को आया गुस्सा

    चूहे को देख वह बोला,मुझे छोटा बोलता है

    सिपाहियों से कहा – जाओ उसकी टोपी ले आओ

    सिपाही टोपी ले आया

    चूहा तुरंत बोला – राजा भिखारी

    हमारी टोपी ले ली,राजा को फिर आया क्रोध

    उसने टोपी फेंक दी,टोपी उठाकर चूहा फिर बोला –

    राजा हमसे डर गया – – – – –

    हमारी टोपी दे दी .

    कविता 4

    चूहे चाचा

    चूहे चाचा पहन पजामा,
    दावत खाने आए।

    साथ में चुहिया चाची को भी,
    सैर कराने लाए।

    दावत में कपड़ों की कतरन,
    कुतर-कुतर कर खाएँ।

    चूहे चाचा कूद-कूद कर
    ढम ढम ढोल बजाएँ।

    डाकिया पर बाल कविता

    देखो एक डाकिया आया,
    साथ में अपना थैला लाया।
    खाकी टोपी खाकी वर्दी,
    आकर उसने चिट्ठी फेंकी।
    संदेशा शादी का लाया,
    शादी पर हम भी जाएँगे।
    खूब मिठाई खाएँगे ॥

    पतंग पर बाल कविता

    सर-सर-सर-सर उड़ी पतंग
    फर-फर-फर-फर उड़ी पतंग ॥
    इसको काटा,
    उसको काटा।
    खूब लगाया,
    सैर-सपाटा।
    अब लड़ने में जुटी पतंग

    बिल्ली पर बाल कविता

    मेरी बिल्ली, काली-पीली।
    पानी से वह हो गई गीली ॥
    गीली होकर लगी कॉपने।
    आँछी-आँछी लगी छींकते ॥
    मैं फिर बोली कुछ तो सीख
    बिन रूमाल के कभी न छींक।

    मछली पर बाल कविता

    मछली रानी, मछली रानी,
    बोल, नदी में कितना पानी।
    थोड़ा भी है, ज्यादा भी है,
    मैं कितना बतलाऊँ पानी।
    मुझको तो है थोड़ा पानी,
    पर तुमको है ज्यादा पानी।

    मुर्गा पर बाल कविता

    मुर्गा बोला कुकड़ू, कूँ,
    चल मेरे भैया रूकता क्यूँ
    कुत्ता भौके, भौ-भौं-भौं,
    अटकी गाड़ी पौं- पौं-पौ।
    बकेरी आई, बिल्ली आई,
    मैं-मैं आई, म्याऊँ म्याऊँ आई
    धक्की गाड़ी धौं-धौं-धौं,
    चल दी गाड़ी पौ-पौं-पौ।

    मुर्गी की शादी

    दम दम दम दम ढोल बजाता कूद-कूद कर बंदर
    राम-राम पुंगरू बाँध नाचता भालू मस्त कलन्दर॥
    कुहू कुहू कू कोयल गाती मीठा-मीठा गाना।
    मुर्गी की शादी में है बस दिन भर मीज उड़ाना ॥

  • देश पर कविता

     दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। भारत भौगोलिक दृष्टि से विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा देश है, जबकि जनसंख्या के दृष्टिकोण से चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश है।

    भारत

    हमारा देश

    किसानों का देश,
    अरमानों का देश,
    गरीबी से त्रस्त
    जवानों का देश,
    बेरोजगारी सुरसा
    है मुह बाये,
    हुक्मरानों को
    कौन बताये,
    सेना की भर्तियों में

    जाते हैं ग़रीब,
    कब कहां सेना में
    जाते हैं अमीर,
    किसी ने कभी देखा है,
    या किसी ने सुना है,
    क्या कभी किसी नेता
    की औलादें गयी
    सेना में,

    फिर क्यों जाये ?
    या क्या कभी कोई
    नेता मरा है दंगों में,
    ऐसा कभी नही होता,
    अकाल मौत को हम
    गरीब बनें हैं,
    ये सब तो सुख
    सुविधाओं में
    सनें हैं,

    दंगों की,
    आतंकी हमलों की
    ख़ुराक सिर्फ हम
    ग़रीब बने हैं,
    ये बेशर्म हमारी
    लाशों पर भी
    राजनीतिक रोटियां
    सेंकते हैं,

    हमें जाति धर्म भाषा
    क्षेत्रवाद में बांटते हैं,
    अपनी सत्ता के लिए
    हमें जलती आग में
    झोंकते हैं,
    ये सदियों से चला
    आरहा है,

    अभी और कब तक
    चलेगा,
    हमारा देश आखिर
    कब तक पुलवामा
    जैसी घटनाओं में
    जलेगा,

    आओ अपने बीच
    छिपे गद्दारों दलालों
    का पर्दाफाश करें,
    मानवता का
    साथ दें,

    देश हित का
    शिलान्यास
    करें।।।।
    भावुक
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • पाँच दिवसीय दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ

    पाँच दिवसीय दीपावली: अंतर्गत कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तक लगातार पांच पर्व होते हैं इन पांच दिनों को यम पंचक कहा गया है। इन पांच दिनों में यमराज, वैद्यराज धन्वंतरि, लक्ष्मी-गणेश, हनुमान, काली और गोवर्धन पूजा का विधान है।

    दीपावली

    पाँच दिवसीय दीपावली

    दोहावली–

    1.

    पखवाड़ा है कार्तिकी , कृष्णपक्ष गतिशील।
    लाई है दीपावली , दीपों के कंदील।।

    2.
    प्रगट हुए धन्वंतरी , सागर मन्थन बाद।
    इक दुर्लभ संजीवनी , बाँटीं रूप प्रसाद।।

    3.
    किया चतुर्दश कृष्ण ने , नरकासुर संहार।
    मुक्त हुईं कन्या सभीं , करतीं जय-जयकार।।

    4.
    मन्थन हुआ समुद्र का ,तिथि अमावसी खास।
    प्रकटीं लक्ष्मी मात तब , धन की लेकर रास।।

    5.
    बरस बिता चौदह चले , कर रावण वध राम।
    उल्लासित हो जल उठे, दीप अयोध्या धाम।।

    6.
    रात अमावस की गहन , चन्दा भी उस पार।
    दीपमालिका की छटा , ले आयी उजियार।।

    7.
    अति उदार बलि आचरण,धन कुपात्र के हाथ।
    देख विष्णु भगवन् चले , लिये योजना साथ।।

    8.
    शुक्ल कार्तिकी प्रतिपदा, ले वामन अवतार।
    विष्णु कृपा, बलि से मिली, भूमि त्रिपद अनुसार।।

    9.
    दूज कार्तिकी शुक्ल की, यम-यमुना का नेह।
    मिला निमंत्रण भोज का , चले बहन के गेह।।

    10.
    तिलक और मिष्ठान्न से , कर यम का सत्कार।
    यमुना माँगे भ्रात हित , दीर्घ आयु उपहार।।

    11.
    अँगनाई गोबर लिपी , पानी की बौछार।
    भित्तिचित्र , ऐपन कला , मोहक दीप कतार।।

    12.
    वृद्ध, युवक, बालक सजें , रमणी करें सिंगार।
    धूप , अगर , कर्पूर से , महकी चले बयार।।

    13.
    आम्र- पर्ण गेंदा सहित , चौखट बंदनवार।
    दीप-शिखाएँ कर रहीं , आलोकित हर द्वार।।

    14.
    दिवस पाँच दीपावली , भक्ति भाव चहुँओर।
    आस्था सह सद्भावना , लगे सुखद हर भोर।।

    15.
    ज्योत जलाकर नेह की, करें मन-तिमिर नाश।
    दीप-पर्व सार्थक तभी,जब हो आत्म- प्रकाश।।
    ~~~~
    ©सुधा राठौर

  • दीपावली के 5 दिन पर कविता Poem on 5 days of Diwali

    दीपावली के 5 दिन पर कविता Poem on 5 days of Diwali

    दीपावली के 5 दिन पर कविता: अंतर्गत कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तक लगातार पांच पर्व होते हैं इन पांच दिनों को यम पंचक कहा गया है। इन पांच दिनों में यमराज, वैद्यराज धन्वंतरि, लक्ष्मी-गणेश, हनुमान, काली और गोवर्धन पूजा का विधान है।

    jai laxmi maata

    दीपावली के 5 दिन पर कविता में से एक धनतेरस पर कविता

    कविता 1.

    दीप जले दीवाली आई
    खुशियों की सौगाती।
    सुख दुख बाँटो मिलकर ऐसे,
    जैसे दीया बाती।

    धनतेरस जन्म धनवंतरी,
    अमृत औषधी लाये।
    जिनकी कृपा प्रसादी मानव
    स्वस्थ धनी हो पाये।

    औषध धन है,सुधा रोग में,
    मानवता के हित में।
    सभी निरोगी समृद्ध होवे,
    करें कामना चित में।

    दीन हीन दुर्बल जन मन को,
    आओ धीर बँधाए।
    बिना औषधी कोई प्राणी,
    जीवन नहीं गँवाए।

    एक दीप यदि मन से रखलें,
    धनतेरस मन जाए।
    मनो भावना शुद्ध रखें सब,
    ज्ञान गंध महकाए।

    स्वस्थ शरीर बड़ा धन समझो,
    धन से भी स्वास्थ्य मिले।
    धन काया में रहे संतुलन,
    हर जन को पथ्य मिले।

    बाबू लाल शर्मा, बौहरा , विज्ञ

    कविता 2.

    अमृत कलश के धारक,सागर मंथन से निकले।
    सुख समृद्धि स्वास्थ्य के,देव आर्युवेद के विरले।
    चार भुजा शंख चक्र,औषध अमृत कलश धारी।
    विष्णु के अवतार हैं देव,करें कमल पर सवारी।
    आयुर्वेद के जनक धन्वंतरि,हैं आरोग्य के देवता।
    कार्तिक त्रयोदशी जन्म हुआ,कृपा करें धनदेवता।
    पीतल कलश शुभ संकेत,देते हैं यश वैभव भंडार।
    आर्युवेद की औषध खोज,किया जगत का उद्धार।
    धनतेरस को यम देवता की पूजा कर 13 दीये जलाएं।
    धन्वंतरि जी कृपा करेंगे,यश सुख समृद्धि स्वास्थ्य पाएं।

    सुन्दर लाल डडसेना”मधुर”

    कविता 3.

    सजा धजा बाजार, चहल पहल मची भारी
    धनतेरस का वार,करें सब खरीद दारी।
    जगमग होती शाम,दीप दर दर है जलते।
    लिए पटाखे हाथ,सभी बच्चे खुश लगते।
    खुशियाँ भर लें जिंदगी,सबको है शुभकामना।
    रुचि अंतस का तम मिटे,जगे हृदय सद्भावना।

    ✍ सुकमोती चौहान “रुचि”

    कविता 4.

    धनतेरस पर कीजिए ,
                       धन लक्ष्मी का मान ।
    पूजित हैं इस दिवस पर ,
                         धन्वंतरि भगवान ।।
    धन्वंतरि भगवान , 
            शल्य के जनक चिकित्सक ।
    महा वैद्य हे देव ,
                   निरोगी काया चिंतक ।।
    कह ननकी कवि तुच्छ ,
                  निरामय तन मन दे रस ।
    आवाहन स्थान ,
                      पधारो घर धनतेरस ।।

          ~ रामनाथ साहू ” ननकी “

    कविता 5.

    धन की वर्षा हो सदा,हो मन में उल्लास

    तन स्वथ्य हो आपका,खुशियों का हो वास

    जीवन में लाये सदा,नित नव खुशी अपार
    धनतेरस के पर्व पर,धन की हो बौछार

    सुख समृद्धि शांति मिले,फैले कारोबार
    रोशनी से रहे भरा,धनतेरस त्यौहार

    झालर दीप प्रज्ज्वलित,रोशन हैं घर द्वार
    परिवार में सबके लिए,आये नए उपहार

    माटी के दीपक जला,रखिये श्रम का मान

    @संतोष नेमा “संतोष”

    कविता 6.

    धनतेरस का पुण्य दिन, जग में बड़ा अनूप।
    रत्न चतुर्दश थे मिले, वैभव के प्रतिरूप।।

    आज दिवस धनवंतरी, लाए अमृत साथ।
    रोग विपद को टालते, सर पे जिसके हाथ।।

    देव दनुज सागर मथे, बना वासुकी डोर।
    मँदराचल थामे प्रभू, कच्छप बन अति घोर।।

    प्रगटी माता लक्षमी, सागर मन्थन बाद।
    धन दौलत की दायनी, करे भक्त नित याद।।

    शीतल शशि उस में मिला, शंभु धरे वह माथ।
    धन्वन्तरि थे अंत में, अमिय कुम्भ ले हाथ।।

    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’

    कविता 7. माँ लक्ष्मी वंदना

    चाँदी जैसी चमके काया, रूप निराला सोने सा।
    धन की देवी माँ लक्ष्मी का, ताज चमकता हीरे सा।

    जिस प्राणी पर कृपा बरसती, वैभव जीवन में पाये।
    तर जाते जो भजते माँ को, सुख समृद्धि घर पर आये।

    पावन यह उत्सव दीपों का,करते ध्यान सदा तेरा।
    धनतेरस से पूजा करके, सब चाहे तेरा डेरा।

    जगमग जब दीवाली आये,जीवन को चहकाती है।
    माँ लक्ष्मी के शुभ कदमों से, आँगन को महकाती है

    तेरे साये में सुख सारे, बिन तेरे अँधियारा है।
    सुख-सुविधा की ठंडी छाया, लगता जीवन प्यारा है।

    गोद सदा तेरी चाहें हम, वन्दन तुमको करते हैं।
    कृपादायिनी सुखप्रदायिनी,शुचिता रूप निरखते हैं।

    भाई दूज पर कविताएँ

    डॉ.सुचिता अग्रवाल”सुचिसंदीप”

    नरक चतुर्दशी नाम है

    नरक चतुर्दशी नाम है
    सुख समृद्धि का त्यौहार
    रूप चौदस कहते इसे
    सुहागने करती श्रंगार

    यम का दीप जलाया जाता
    सद्भाव प्रेम जगाया जाता
    बड़े बुजुर्गों के चरण छू कर
    खूब आशीष पाया जाता

    छोटी दिवाली का रुप होती
    रोशनी अनूप होती
    सजावट से रौनक बाजार
    दीपो की छटा सरुप होती

    खुशियों का त्योहार है
    दीपों की बहार है
    गणेश लक्ष्मी पूजन में
    सज रहे घर बार है

    कवि : रमाकांत सोनी
    नवलगढ़ जिला झुंझुनू

    सारथी बन कृष्ण

    सारथी बन कृष्ण ने चलाया था रथ
    सत्यभामा ने सहत्र द्रौपदी की लाज हेतु उठाया था शस्त्र
    नरकासुर को प्राप्त था वर
    होगा किसी स्त्री के हाथों ही उसका वध
    माता भूदेवी का था प्रण
    पुत्र नरकासुर की मृत्यु के दिन
    मनाया जाएगा पर्व
    देव यम को भी पूजते आज
    रहे स्वस्थ एवं दीर्घायु हम सब
    आप सभी को मंगलमय हो नरक चतुर्दशी का यह पर्व….

    नरकासुर मार श्याम जब आये

    नरकासुर मार श्याम जब आये।
    घर घर मंगल दीप जले तब, नरकचतुर्दश ये कहलाये।।

    भूप प्रागज्योतिषपुर का वह, चुरा अदिति के कुण्डल लाया,
    सौलह दश-शत नार रूपमति, कारागृह में लाय बिठाया,
    साथ सत्यभामा को ले हरि, दुष्ट असुर के वध को धाये।
    नरकासुर मार श्याम जब आये।।

    पक्षी राज गरुड़ वाहन था, बनी सारथी वह प्रिय रानी,
    घोर युद्ध में उसका वध कर, उसकी मेटी सब मनमानी,
    नार मुक्त की कारागृह से, तब से जग ये पर्व मनाये।
    नरकासुर मार श्याम जब आये।।

    स्नान करें प्रातः बेला में , अर्घ्य सूर्य को करें समर्पित,
    दीप-दान सन्ध्या को देवें, मृत्यु देव यम को कर पूजित,
    नरक-पाश का भय विलुप्त कर, प्राणी सुख की वेणु बजाये।
    नरकासुर मार श्याम जब आये।।

    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया

    भाई-बहन का रिश्ता न्यारा- दीप्ता नीमा

    भाई-बहन का रिश्ता न्यारा
    लगता है हम सबको प्यारा
    भाई बहन सदा रहे पास
    रहती है हम सभी की ये आस
    इस प्यार के बंधन पर सभी को नाज़।।1।।

    भाई बहन को बहुत तंग करता है
    पर प्यार भी बहुत उसी से करता है
    बहन से प्यारा कोई दोस्त हो नहीं सकता
    इतना प्यारा कोई बंधन हो नहीं सकता
    इस प्यार के बंधन पर सभी को नाज़।।2।।

    बहन की दुआ में भाई शामिल होता है
    तभी तो ये पाक रिश्ता मुकम्मिल होता है
    अक्सर याद आता है वो जमाना
    रिश्ता बचपन का वो हमारा पुराना
    इस प्यार के बंधन पर सभी को नाज़।।3।।

    वो हमारा लड़ना और झगड़ना
    वो रूठना और फिर मनाना
    एक साथ अचानक खिलखिलाना
    फिर मिलकर गाना नया कोई तराना
    इस प्यार के बंधन पर सभी को नाज़।।4।।

    अपनी मस्ती के किस्से एक दूजे को सुनाना
    माँ-पापा की डांट से एक दूजे को बचाना
    सबसे छुपा कर एक दूजे को खाना खिलाना
    बहुत खास होता है भाई-बहन का ये याराना
    इस प्यार के बंधन पर सभी को नाज़।।5।।

    दीप्ता नीमा

    भाई दूज पर कविता

    मैं डटा हूँ सीमा पर
    बनकर पहरेदार।
    कैसे आऊँ प्यारी बहना
    मनाने त्यौहार।
    याद आ रहा है बचपन
    परिवार का अपनापन।
    दीपों का वो उत्सव
    मनाते थे शानदार।
    भाई दूज पर मस्तक टीका
    रोली चंदन वंदन।हम
    इंतजार तुम्हें रहता था
    मैं लाऊँ क्या उपहार?
    प्यारी बहना मायूस न होना
    देश को मेरी है जरूरत।
    हम साथ जरूर होंगे
    भाई दूज पर अगली बार।
    कविता पढ़कर भर आयी
    बहना तेरी अखियाँ।
    रोना नहीं तुम पर
    करता हूँ खबरदार।
    चलो अब सो जाओ
    करो नहीं खुद से तकरार।
    सपना देखो, ख्वाब बुनो
    सबेरा लेकर आयेगा शुभ समाचार ।

    अनिता मंदिलवार सपना
    अंबिकापुर सरगुजा छतीस