Author: कविता बहार

  • विश्वकप क्रिकेट पर कविता

    विश्वकप क्रिकेट खेल का आयोजन अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) द्वारा हर चार साल में किया जाता है, जिसमें प्रारंभिक योग्यता के दौर में फ़ाइनल टूर्नामेंट तक होता है। यह टूर्नामेंट दुनिया के सबसे ज्यादा देखे जाने वाले खेल आयोजनों में से एक है और इसे आईसीसी द्वारा “अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट कैलेंडर का प्रमुख कार्यक्रम” माना जाता है।

    विश्वकप क्रिकेट पर कविता

    विश्वकप क्रिकेट पर कविता

    भारतीय क्रिकेट टीम को विश्व कप 2023 जीत के आह्वान के साथ सभी भारतीय क्रिकेट प्रशंसकों को समर्पित…..

    विश्वकप जीत के दिखला दो

    जीत के दिखला दो….,
    अब के जीत के दिखला दो…..।
    जीत के दिखला दो…..,
    विश्वकप जीत के दिखला दो…..।

    टीम रोहित के महादिग्गजों,
    क्रिकेट महासपूतों तुम ।
    बेट-बॉल का दिखा दो जलवा ,
    विश्वखेल में श्रेष्ठतम तुम ।
    भारत आयोजित विश्वकप को,
    बाहर को अब, मत जाने दो ….।
    जीत के दिखला दो….।
    अब के जीत के दिखला दो ….।

    लोहा अपना समस्त विश्व में,
    भारत का तुम मनवाओ ।
    दुनिया ने जो ,कभी ना देखा ,
    क्रिकेट ऐसा दिखलाओ ।
    विश्व ऊपर अपना ये तिरंगा ,
    क्रिकेट में भी लहरा दो …।
    जीत के दिखला दो ….

    द्रविड़ की ये ड्रीम इलेवन ,
    विश्वकप सरताज बने …।
    हार्दिक, विराहु (विराट,राहुल),
    शुभ-बुमराह(शुभमन) से ,
    अक्षर ,शमी भी यही कहे ।
    किशन-रवि(रविंद्र,किशन)
    ईशान-ठाकुर तुम ,
    सिराज-सूर्य को उजला दो …।
    जीत के दिखला दो …..

    क्वार्टर ,सेमी से बढ़कर तुमको ,
    फाइनल जीत के लाना है ।
    लक्ष्य भले कितना भी असंभव ,
    तुमको वह तो पाना है ।
    लक्ष्य को करके ‘ अजस्र ‘ विजित तुम,
    विश्वकप अब जितला दो …।
    जीत के दिखला दो….,
    अब के जीत के दिखला दो…..।
    जीत के दिखला दो…..,
    विश्वकप जीत के दिखला दो…..।

    विश्वकप क्रिकेट पर कविता
    विश्वकप क्रिकेट पर कविता
      ✍️✍️ *डी कुमार--अजस्र(दुर्गेश मेघवाल ,बून्दी(राज.)*

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  • 12 जनवरी स्वामी विवेकानन्द जयन्ती पर कविता / स्वामी विवेकानंद पर कविता

    12 जनवरी स्वामी विवेकानन्द जयन्ती पर कविता / स्वामी विवेकानंद पर कविता

    12 जनवरी स्वामी विवेकानन्द जयन्ती पर कविता: स्‍वामी विवेकानंद का जन्‍म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। भारत में उनके जनमाँ दिन को युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्वामी जी की बुद्धिमत्ता और अद्भुत उत्तर पूरी दुनिया का कायल थी। उन्होंने पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन रखा।

    स्वामी विवेकानंद
    स्वामी विवेकानंद

    स्वामी विवेकानंद पर कविता

    गेरूआ वस्त्र, उन्नत मस्तक, कांतिमय शरीर ।
    है जिनकी मर्मभेदी दृष्टि, निश्छल, दिव्य,धीर।।

    युवा के उत्थान हेतु तेरे होते अलौकिक विचार ।
    आपके विचार से चल रहा आज अखिल संसार।।

    शिकागो में पुरी दुनिया को दिया धर्म का ज्ञान।
    राजयोग और ज्ञानयोग हेतु,  किए  व्याख्यान।।

    हे नरेन्द्र, परमहंस शिष्य ,स्वामी विवेकानंद।
    आप सा युगवाहक,युगदृष्टा होते जग में चंद।।

    हे महान तपस्वी मनस्वी, राष्ट्रभक्त, हे स्वामी।
    हे दर्शनशास्री, अध्यात्म के अद्वितीय ज्ञानी।।

    सृष्टि के गूढ़ रहस्यों को  आत्मसात कर डाली।
    हे महान! तुम ब्रह्मचारी विलक्षण प्रतिभाशाली।।

    हे महामानव महात्मा,  भारत के युवा संन्यासी ।
    विश्व में जो पहचान दिलायें गर्व करे भारतवासी।।

    बाँके बिहारी बरबीगहीया

    स्वामी विवेकानंद जी पर कविता

    विश्व गुरु का पद पाकर भी,
    नहीं कभी अभिमानी थे।
    संत विवेकानंद जगत में ,
    वेदांतो के ज्ञानी थे।।
    //१//
    सूक्ष्म तत्व का ज्ञान जिन्हें था,
    मानव जन्म प्रवर्तक थे।
    दिन दुखी निर्धन पिछड़ो का,
    यह तो परम समर्थक थे।
    धरती से अम्बर तक जिसनें,
    पावन ध्वज फहराया था।
    प्रेम-भाव के रीति धर्म का,
    जग को मर्म बताया था।
    तपते रेगिस्तानों में जो,
    आशाओं के पानी थे।
    संत विवेकानंद जगत में ,
    वेदांतो के ज्ञानी थे।।
    //२//
    नहीं झुके थे,नहीं रूके थे,
    आगे कदम बढ़ाते थे।
    मानवता के मर्म भेद को,
    जग को सदा पढ़ाते थे।
    किया पल्लवित मन बागों को,
    लेप लगाकर घावों में।
    प्रखर ओज शुचिता भरते थे,
    बूझ रहें मनभावों में।
    ज्ञान दान करने के पथ में,
    सबसे बढ़कर दानी थे।
    संत विवेकानंद जगत में ,
    वेदांतो के ज्ञानी थे।।
    //३//
    विपदाओं को दूर करें जो,
    लक्ष्य वही थे कर्मो में।
    भेद नहीं करते थे स्वामी,
    कभी किसी के धर्मो में।
    भगवा पट धारणकर हम भी,
    जग में अलख जगाएंगे।
    “कोहिनूर”अब विश्व गुरु के,
    पग में सुमन चढ़ाएंगे।
    जीवन की परिभाषाओं में,
    जिनसे पुण्य कहानी थे।
    संत विवेकानंद जगत में ,
    वेदांतो के ज्ञानी थे।।

    डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”

    विवेकानंद जी को शब्दांजलि-बाबू लाल शर्मा

    विभा—
    विभा नित्य रवि से लिए, धरा चंद्र बहु पिण्ड!
    ज्ञान मान अरु दान दो, रवि सम रहें प्रचंड!!

    विभा विवेकानंद की, विश्व विजेत समान!
    सभा शिकागो में उदय, हिंद धर्म विज्ञान!!

    चंद्र लिए रवि से विभा, करे धरा उजियार!
    ज्ञानी कवि शिक्षक करे, शशिसम ज्ञान प्रसार!!

    विभात—-
    रवि रथ गये विभावरी, नूतन मान विभात!
    संत मनुज गति धर्मपथ, ध्रुवसम विभा प्रपात!!

    रात बीत फिर रवि उदय, ढले सुहानी शाम!
    होता नित्य विभात है, विधि से विधि के काम!!

    विभूति–
    रामकृष्ण थे संतवर, परमहंस गुण छंद!
    पूजित महा विभूति गुरु, शिष्य विवेकानन्द!!

    संत विवेकानंद जी, ज्ञानी महा विभूति!
    गृहण युवा आदर्श कर, माँ यश पूत प्रसूति!!

    शर्मा बाबू लाल मैं, लिख कर दोहे अष्ट!
    हे विभूति शुभकामना, मिटे देश भू कष्ट!!


    © बाबू लाल शर्मा,बौहरा,विज्ञ

    वही विवेकानंद बने

    कलुष कर्म मानव जीवन में,
    नहीं गले का फंद बने।
    जो मन साधन करे योग का,
    वहीं विवेकानंद बने।
    उठो जागकर बढ़ो निरंतर,
    जब तक लक्ष्य नहीं मिलता।
    ज्ञान नीर बिन मन बागों में,

    सुरभित पुहुप नहीं खिलता।
    कर्म योग अरु ज्ञान योग बिन।
    जीवन यह अंधेरा है,
    जब प्रकाश ही नहीं रहे तो,
    क्या तेरा क्या मेरा है।
    परम ज्ञान के पुंज है स्वामी,

    पुण्य परम् मकरंद बने।
    जो मन साधन करे योग का,
    वहीं विवेकानंद बने।।
    धर्म ध्वजा को हाथ थाम कर,
    जग को पाठ पढ़ाया है।

    भारत भू का धर्म सभा में,
    जिसने मान बढ़ाया है।
    मानवता की सेवा करके,
    जिसने जन्म गुजार दिया।
    जन जन के निज प्रखर ज्ञान से
    खुशियों का संसार दिया।

    स्वामी जी की शुभ विचार को,
    धार मनोज मकरंद बने ।
    जो मन साधन करें योग का ,
    वही विवेकानंद बने ।।
    दीक्षा लेकर परमहंस से ,
    चले सदा बन अनुगामी ।

    भले उम्र छोटी थी लेकिन,
    बने रहे जग के स्वामी ।
    जिसने जग को दिव्य ज्ञान से ,
    समझाई थी परिभाषा ।
    जो पढ़ ले इसके जीवन को ,

    पूर्ण करें मन अभिलाषा ।
    कोहिनूर ने जब कोशिश की ,
    तब यह अनुपम छंद बने ।
    जो मन साधन करें योग का ,
    वही विवेकानंद बने।।

    डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”
    छत्तीसगढ़(भारत)

    भारत की पावन माटी में

    o राजेन्द्र राजा

    भारत की पावन माटी में अनगिन संतों ने जनम लिया।

    अपने दर्शन की भाषा में मानवता का संदेश दिया ।

    ऐसे संतों में एक संत जैसे अंबर में ध्रुवतारा ।

    जिसके चरणों की रज लेने आतुर था भूमंडल सारा ॥

    इस भोगवाद के जीवन को उसने जाने रख दिया कहाँ ?

    जो कभी ‘नरेंद्र’ कहाता था बन गया विवेकानंद यहाँ ।।

    संयम का अर्थ बताने को पहना उसने भगवा बाना ।

    हिंदुत्व भावना के ध्वज को फहराने निकला दीवाना ।।

    पुरवा के झोंके ने जाकर पछुवा का रंग बदल डाला।

    जब उच्छृंखलता ने झुककर संयम को पहनाई माला ॥

    वह गया शिकागो तक दौड़ा भारत की महिमा गाने को ।

    भारत है सबका धर्मगुरु दुनिया को सच बतलाने को ।

    बचपन के खेल खिलौने तज वह पीड़ाओं से खेला था।

    वह मनुज नहीं था साधारण बजरंगबली का चेला था।

    उसकी तेजस्वी आभा से सूरज भी शरमा जाता था ।

    उसकी ओजस्वी वाणी से हिम तक भी गरमा जाता था ।

    अध्यात्मवाद की गंगा को वह भूमंडल पर लाया था।

    अद्वैतवाद की महिमा को जाकर सबको समझाया था ॥

    पुरुषार्थ, त्याग का मूर्तरूप या स्वयं धर्म की परिभाषा ।

    सहचर था वह हर पीड़ित का था दीन-दुःखी जन की आशा ॥

    जैसे चंदन बिखराता है अपने तन से चहुँ ओर गंध ।

    ऐसे ही बिखराने आया वह महामानव अपनी सुगंध ॥

    हर हिंदू से वह कहता था ‘हिंदू’ होने पर गर्व करो ।

    भारत माँ को माँ कहने में ना कहीं किसी से कभी डरो।।

    रोम्या रोलाँ तक ने जिसको अपने घर में सम्मान दिया।

    सबने भारत के बेटे को युग का प्रवर्तक मान लिया ।।

    झुक गया गगन भी धरती पर सुनने संन्यासी की वाणी।

    हर्षित होकर पग धोने को मचला था सागर का पानी ।।

    वह देश नहीं रहता जीवित जिसकी भाषा मर जाती है।

    भाषा है निज माँ की बोली जग में पहचान कराती है।

    उस महापुरुष के चरणों में करता हूँ शत-शत बार नमन ! ऐसे ही पुष्पों से मेरे भारत का खिलता रहे चमन ॥

    भारत की गुरुता का जिसने

    ० धनंजय ‘धीरज’

    भारत की गुरुता का जिसने,

    इस धरती पर ध्वज फहराया।

    संत विवेकानंद, विश्व को

    करके विजय, लौटकर आया ॥

    भारतीय संस्कृति का गौरव,

    मान गई मानवता सारी।

    आत्म और अध्यात्म ज्ञान में,

    भारत सम्मुख, विश्व भिखारी ॥

    समझ गए थे संत, विश्व का

    भारत ही कल्याण करेगा।

    आत्म ज्ञान की, भूख जगत् की,

    और न कोई शांत करेगा ।

    ईश्वर दर्शन किया उन्होंने,

    सेवा करने में जन-जन की।

    सेवा पथ, हम भी अपनाएँ,

    अभिलाषा है, अपने मन की ॥

  • भारत माता पर कविता / भारत पर कविता

    भारत माँ पर कविता : भारत को मातृदेवी के रूप में चित्रित करके भारत माता या ‘भारतम्बा’ कहा जाता है। भारतमाता को प्राय नारंगी रंग की साड़ी पहने, हाथ में तिरंगा ध्वज लिये हुए चित्रित किया जाता है तथा साथ में सिंह होता है।

    bharatmata
    भारत माता

    भारत माता पर कविता

    भारत माता ओढ़ तिरंगा
    आज स्वप्न में आई थी
    नीर भरा आँखों में मुख पर
    गहन उदासी छाई थी
    मैंने पूछा हम हुए स्वतन्त्र
    क्यों मैला वेश बनाया है
    आँखों की दृष्टि हुई क्षीण
    क्यों दुर्बल हो गयी काया है

    माँ फूट पड़ी फिर बिलख उठी
    तब अपने जख्म दिखाए हैं
    मैं रही युवा परपीड़ सह
    बन दासी न धैर्य कभी टूटा
    पर आज जख्म गम्भीर बने
    निज सन्तानों ने है लूटा
    ये कैसा शासन बना आज
    मेरे बच्चों को बाँट रहा
    जाति धर्म के नाम पर देखो

    मेरी शाखायें काट रहा
    सुरसा सा मुँह फैला करके
    सब कुछ ही हजम कर जाएगा
    कर दिया विषैला जन मन को
    बन सहस फणी डस जाएगा
    अब नहीं शेष क्षमता इतनी
    पीड़ा और सहूँ कैसे?
    अब सांस उखड़ती है मेरी
    बोलो खुशहाल रहूँ कैसे?
    मैंने निःस्वास भरी बोली
    माँ शपथ तुम्हें दिलवाती हूँ।

    गरज ओज हुँकार भरी
    निज कलम असि को चलाती हूँ।
    बन मलंग खँजड़ी हाथ पकड़
    जनओज की अलख जगाती हूँ।
    ये कलम करेगी वार बड़े
    हर बला की नींव हिला देगी।
    मरहम बनकर माता तेरे
    सारे सन्ताप मिटा देगी।

    वन्दना शर्मा
    अजमेर।

    भारत पर कविता

    भारत में पूर्ण सत्य
    कोई नहीं लिखता
    अगर कभी किसी ने लिख दिया
    तो कहीं भी उसका
    प्रकाशन नहीं दिखता

    यदि पूर्ण सत्य को प्रकाशित करने की
    हो गई किसी की हिम्मत
    तो लोगों से बर्दाश्त नहीं होता
    और फिर चुकानी पड़ती है लेखक को
    सच लिखने की कीमत

    भारतीयों को मिथ्या प्रशंसा
    अत्यंत है भाता
    आख़िर करें क्या लेखक भी
    यहां पुत्र कुपुत्र होते सर्वथा
    माता नहीं कुमाता

    :- आलोक कौशिक

    माँ ने हमें पुकारा है


    वीर सपूतो! देशवासियो ! माँ ने हमें पुकारा है।
    माता ने हमें पुकारा है, यह हिंन्दुस्तान हमारा है।

    जागो अपनी संस्कृति, अपने पूज्य राष्ट्र से प्रेम करो,
    इसके गत वैभव से अपने, युग का थोड़ा मेल करो।
    सोचो क्या यह वही प्रेम से, पूरित राष्ट्र हमारा है। वीर…

    राम यहीं पर कृष्ण यहीं पर और यहीं पर बुद्ध हुए।
    सीता-सावित्री-चेनम्मा, और यहीं पर पुरु हुए।
    गीता मानस और वेद की, बहती पावन धारा है। वीर…

    ध्यान करो उनका जो हर पल, सीमा पर हैं डटे हुए।
    मातृभूमि की रक्षा में हैं, सीना ताने खड़े हुए।
    सोचो किनके वंशज हैं हम, क्या इतिहास हमारा है।

    वीर सपूतो देशवासियो माँ ने हमें पुकारा है। माता ने….

    भारत का जग पर कविता

    इस खेल खेल में
    धुलता है मन का मैल
    जीने का तरीका है ये,
    तू खेलभावना से खेल।
    खेल महज मनोरंजन नहीं
    एक जरिया है ,सद्भावना की।
    जग में मित्रता की ,
    आपसी सहयोग नाता की ।।

    खेल से स्वस्थ तन मन रहे ,
    भावनाओं में रहे संतुलन।
    जब तक मानव जीवन रहे ,
    खेलने का बना रहे प्रचलन ।
    जब जब देश खेलता है ,
    देश की बढ़ती एकता है ।
    जो भी डटकर खेलता है ,
    इतिहास में नाम करता है ।

    आज जरूरत बन पड़ी है,
    हमको फिर से खेल की,
    बच्चों को गैजेट से पहले,
    बात करें हम खेल की।
    देश की आबादी बढ़ रही
    पर नहीं बढ़ती हैं तमगे।
    चलो मिशन बनाएं खेल में
    नाम हो भारत का जग में।

    भारत का सोना

    ओलंपिक में फिर चमका एक सितारा,
    लोगों के जुबां पे था जय हिंद का नारा।
    मनाओ खुशी किस बात का है रोना,
    नीरज चोपड़ा है, भारत का सोना।

    हिन्द के पानीपत का ऐसा था तस्वीर,
    जन्म लिया नीरज चोपड़ा जैसे वीर।
    आनंदित है देश का कोना – कोना,
    नीरज चोपड़ा है, भारत का सोना।

    अंतर्राष्ट्रीय खेलों में कर विजय,
    भाला फेंक में बन गया अजय।
    बल – खेल भावना है उसमें अपार,
    भारत ने दिया है अर्जुन पुरस्कार।
    ऐसे खिलाड़ी को अब नहीं है खोना,
    नीरज चोपड़ा है, भारत का सोना।

    देशप्रेम से भरपूर और वफादार,
    सेना में देश के लिए हैं सूबेदार।
    टोक्यो ओलंपिक में जीता स्वर्ण,
    खुश हुए भारत के नागरिक गण।
    भाला फेंक है नीरज का खिलौना,
    नीरज चोपड़ा है, भारत का सोना।

    एक स्वर्ण दो रजत और जीते चार कांस्य,
    भारत के शेरों ने प्रतिद्वंदी को दिया फांस।
    एथलेटिक्स में खत्म हुई पराजय की कहानी,
    फेंका भला ऐसा की प्रतिद्वंदी भी मांगा पानी।
    जीत का बीज भारतीयों को है बोना,
    नीरज चोपड़ा है, भारत का सोना।

    भाला से जिसने कर दिया कमाल,
    नीरज जी हैं सच्चे भारत के लाल।
    कांटो में खिलते हैं खुशबूदार फूल,
    नीरज जी को कभी न जाना भूल।
    अब भारतीयों से कोई नहीं लेगा पंगा,
    ओलंपिक में लहराया शान से तिरंगा।
    भारत का खिलाड़ी है सुंदर सलोना,
    नीरज चोपड़ा है, भारत का सोना।

    अकिल खान रायगढ़ जिला-रायगढ़

  • प्यार पर कविता / वेलेंटाइन दिवस पर कविता

    प्यार पर कविता / वेलेंटाइन दिवस पर कविता

    प्यार पर कविता

    प्रेम

    प्यार है जीवन का आधार

    एक सत्य जीवन का, प्रेम जीवन का आधार।
    स्नेह प्रेम की भाषा समझे, ये सारा संसार ।

    एक उत्तम फूल धरा पर, जो खिल सकता,वो है प्रेम का फूल।
    मानव हृदय में प्रस्फुटित होता, प्रेम में क्षमा हो जाती हर भूल।

    प्रेम पूर्णिमा के चांदनी जैसी, करती शीतलता प्रदान।
    कभी सूर्य की किरणों सम, तेज ताप कर देती महान।

    प्रेम में सहनशीलता ,प्रेम में समर्पण का भाव।
    प्रेम पिता का प्यार है ,औैर प्रेम ममता की छांव ।

    प्रेम के फूल से महक सकता है, ये सारा संसार।
    प्रेम मिटाए नफरत को औैर मिटाए बैर की दीवार।

    मानव मानसिकता में परिवर्तन, प्रेम से ही संभव है।
    मानवता का आधार प्रेम है, जहां प्रेम वहां मानव है।

    प्रेम परोपकार भाव से,मानवता की ओर ले जाए।
    पाशविक वृत्ति से दूर निकाले , सच्चा मानव हमें बनाए।

    अतिशयोक्ति नहीं है ये सब , पूर्ण सत्य है प्यार।
    प्रेम ही तो होता है , हम सब का जीवन आधार ।

    इश्क समर्पण पर कविता

    मन मयूरा थिरकता है
    संग तेरे प्रियतम
    ढूंढता है हर गली
    हर मोड़ पर प्रियतम

    फूल संग इतराएं कलियां
    भौंरे की गुनगुन
    मन की वीणा पर बजे बस
    तेरी धुन प्रियतम

    सज के आया चांद नभ में
    तारों की रुनझुन
    मै निहारूं चांद में बस
    तेरी छवि प्रियतम

    क्षितिज में वो लाल सूरज
    किरने हैं मद्धम
    दूर है कितना वो
    कितने पास तुम प्रियतम

    बरसे सावन की घटा जब
    छा के अम्बर पर
    छलकती हैं मेरी अंखियां
    तेरे बिन प्रियतम

    ताप भीषण हो गया तम
    उमड़े काले घन
    दाह लगाए बिरहा तेरी
    मुझको ओ प्रियतम

    उमड़ पहाड़ों से ये नदिया
    चली झूम कलकल
    तुमसे मिलने के जुनून में
    जैसे मैं प्रियतम

    पल्लवों पर शबनम, किरने
    थिरके झिलमिल कर
    मेरे अश्कों में छलकते
    तुम मेरे प्रियतम

    लीन तपस्या में कोई मुनि
    अर्पित करता है तनमन
    करूं समर्पण तप सारा
    तुम पर मेरे प्रियतम।।

    शची श्रीवास्तव

    इश्क बिना जीवन में रस नहीं

    प्रेम बिना जीवन में रस नहीं।
    प्रेम करना पर अपने बस में नहीं।
    किसी की आंखों में खो जाता है।
    बस ऐसे ही प्रेम हो जाता है।

    रहता नहीं खुद पर जोर।
    मन भागता है हर ओर।
    पर मिल जाता है मन का मीत
    तब हो जाती है उससे प्रीत।

    लिखते प्रेमी उस पर कविता
    मन रहता जिस पर रीता।
    हृदय बहती प्रेम की सरिता।
    मन की रेखा से प्रेम पत्र लिख जाते ।

    कितने प्रेम ग्रंथ लिख जाते,
    पाकर प्रीतम की एक छवि।
    जैसे ईश्वर को बिन देखे भी
    उनके चित्र बनाते कलाकार। होकर भक्ति में लीन वैसे ही प्रेमी

    बनाते हृदय अपने प्रिय की तस्वीर
    कल्पनाओं को करते साकार। पूजते प्रिय को ईश के समान ।
    इसी लिए कहते जग में सारे । दिल है मंदिर प्रेम है इबादत।

    सरिता सिंह गोरखपुर उत्तर प्रदेश

    उसके नखरे सहे हजार

    वह खुश रहती मेरे साथ,
    और करती है मुझसे बात।
    उसके लिए मैं प्यारा,
    मुझको वो प्यारी।
    उसकी सूरत इस ,
    संसार में सबसे न्यारी।
    आज वो करने लगी,
    मुझसे जान से ज्यादा प्यार।
    क्योंकि मैंने ही अकेले,
    उसके नखरे सहे हजार।

    मेरे लिए वो सजती-संवरती,
    फिर मेरे करीब आती है।
    धीरे से मेरे अधरों पर,
    चुम्बन वो कर जाती है।
    आज भी मेरे लिए वो,
    होकर आती है तैयार।
    क्योंकि मैंने ही अकेले,
    उसके नखरे सहे हजार।।

    कवि विशाल श्रीवास्तव फर्रूखाबादी।

    प्रेम ही जीवन है

    हे प्रिय मैं तुमसे कुछ कहता हूँ
    हाँ आज फिर कुछ लिखता हूँ
    हाँ आज फिर कुछ लिखता हूँ।
    एक तड़प रहती है मिलन की
    तो एक तड़प रहती है जुदाई की
    दोनों के बीच में मैं पिसता हूँ
    हाँ आज फिर कुछ लिखता हूँ।


    तुम हो तो जीवन है
    तुम हो तो है रवानी
    तुम हो तो प्यार है
    तुम हो तो है जिंदगानी
    तुमसे हर दिन हमारा वैलेनटाइन है
    है हर साँस तुम्हारा हमारा
    तुम हमारे दिल में हो
    उम्मीद करू कि मैं भी तुम्हारे दिल में रहता हूं
    हां आज फिर कुछ लिखता हूँ।


    हर दिन अपना वसन्त हो
    हर रात हो अपनी होली
    हर नर नारी के दिल में एक ऐसी आग हो
    जो वतन के लिए खेल दें खूनों की होली
    हे प्रिय मैं हर देशवासी को ये संदेशा कहता हूँ
    हाँ मैं आज फिर कुछ लिखता हूँ ।।

    पवन मिश्र

    कविता के बहाने

    आ गया हूं मैं तेरे पास,
    अपना गीत गुनगुनाने।
    प्रेमी हूं मैं ,
    प्रेम की कविता सुनाने।
    कहना है आई लव यू,
    कविता के बहाने।

    तेरे बिन सूनी है,
    मेरी ये जवानी।
    कैसे बढ़ेगी आगे,
    तेरी मेरी कहानी।
    अब तो चल साथ मेरे,
    आया हूं मैं बुलाने।
    कहना है आई लव यू,
    कविता के बहाने।

    ह्रदय की धड़कन बढ़ रही है,
    तेरी सूरत मेरी आंखों में चढ़ रही है।
    मैंने खत तेरे लिए जो भेजा,
    आज वही आज तू पढ़ रही है।
    आया हूं मैं तेरे प्रति,
    अपना प्रेम जताने।
    कहना है आई लव यू,
    कविता के बहाने।।

    कवि विशाल श्रीवास्तव फर्रूखाबादी

    जो मेरे द्वारे तू आए

    प्राण मरुस्थल खिल-खिल जाए
    साँस-डाल भी हिल-हिल गाए
    छोड़ झरोखे राज महल के
    जो मेरे द्वारे तू आए ।

    जुड़े सभा सपनों की आकर
    आंखों की सूनी जाजम पर
    खेल न पाएँ बूँदें खारी
    पलकों की अरुणिम चादर पर

    चहल-पहल हो मेलों जैसी
    गुमसुम अधरों पर गीतों की
    फुल उदासी झड़े धूल-सी
    खिले जवानी नभ दीपों-सी

    उमर चाल छिपते सूरज-सी
    घबराकर पीली पड़ जाए ।
    छोड़ झरोखे राज महल के
    जो मेरे द्वारे तू आए ।

    शुष्क मरुस्थल-सी सूखी देह से
    फूट पड़ें अमृत के धारे
    दीपदान करने को दौड़ें
    खुशियाँ मुझे जिया के द्वारे

    संगीतमयी संध्या-सी हों
    डूबी-सी धड़कन की रातें
    मानस की चौपाई जैसे
    महकें अलसायी-सी बातें

    झरे मालती रोम-रोम से
    कस्तूरी गंध बदन छाए
    छोड़ झरोखे राज महल के
    जो मेरे द्वारे तू आए ।

    उतर चाँदनी नील गगन से
    पूरे चौका मन आँगन में
    चुनचुन मोती जड़ें रातभर
    सितारे फकीरी दामन में

    थपकी दे अरमान उनींदे
    अंक सुलाए रजनीगंधा
    भर-भर प्याली स्वपन सुधा की
    चितवन से छलकाए चंपा

    भोर भए पंछी-बिस्मिल्लाह
    शहनाई ले रस बरसाए ।
    छोड़ झरोखे राज महल के
    जो मेरे द्वारे तू आए ।

    अशोक दीप

    प्रेम सबको होता है

    प्रेम सबको होता है,
    प्रेम सबको होता है।


    यह लड़की को होता है,
    यह लड़के को होता है।
    प्रेम सबको होता है,
    प्रेम सबको होता है।


    किसी को कम होता है,
    किसी को ज्यादा होता है।
    प्रेम सबको होता है,
    प्रेम सबको होता है।


    कोई मुझसे कहे न ये,
    प्रेम हमको न होता है।
    प्रेम सबको होता है,
    प्रेम सबको होता है।


    किसी को इंसान से होता है,
    किसी को भगवान से होता है।
    किसी को शिक्षक से होता है,
    किसी को शिक्षा से होता है।
    प्रेम सबको होता है,
    प्रेम सबको होता है।


    प्रेम जिसको न होता है,
    वो सारी उम्र रोता है।
    प्रेम न करने वाला ही,
    अपना सबकुछ खोता है।
    प्रेम सबको होता है,
    प्रेम सबको होता है।

    प्रेम अमर रत्न की

    प्रेम अमर रत्न की ,
    वो एक मुस्कुराहट है ,
    जिस रत्न से हम सराबोर है ,
    नभ की अभिकल्पनाओं में ,
    जीवन तरंगित हुआ ,

    मन पुलकित हुआ ,
    मन द्रुम्लित हुआ ,
    नेह नयनों की आभा ,
    प्यार के फुल मे ,
    दिल विस्मित हुआ !

    निकिता कुमारी

    कुछ तो है तेरे मेरे बीच

    कुछ तो है 
    तेरे मेरे बीच 
    जो मैं कह नहीं सकता .
    और तुम सुन नहीं सकते.
    इस कुछ को खोज रहा हूँ .
    जो मिले तुम्हें बता देना.
    आखिर तुम कह सकते हो.
    और मैं सुन लूँगा.

    मैं पूछता मेरे ख्यालों से दिन रात
    क्यूँ सिर उठाते हैं देखकर तुम्हें
    दिल के सारे जज्बात.
    तुम अपने तो नहीं 
    ना कभी होगे.
    पर गैरों सा ये मन 
    तुम्हें अपना लेना चाहता है
    जो भी मिला अब तक ज़िन्दगी में
    वो सब देना चाहता है.

    इसलिए नहीं कि
    हासिल करना हैं तुम्हें.
    इसीलिए भी नहीं कि,
    काबिल हूँ मैं तेरे लिए.
    पर फिर भी….

    कुछ और सोचूं इस खातिर
    बोल उठती है मेरी चेतना.
    ठहर जाओ!
    इसे रहने दो अनाम .
    जो तेरा हो नहीं सकता,
    उसे मत करो बदनाम.

    पर
    कुछ तो है 
    तेरे मेरे बीच 
    जो मैं कह नहीं सकता .
    और तुम सुन नहीं सकते.
    लेकिन हाँ ! जी जरुर सकते हैं .

    -मनीभाई नवरत्न

    सबको चांद का दीदार चाहिए…

    मुझे तो मेरा चांद पास मिला है।
    ये वो  नहीं जो आसमान का है…
    ये नक्षत्र तो मेरे दिल में खिला है।
    तू चांद देख जानम..और अपना व्रत तोड़ ले।
    मैं ना छोड़ूँ  ये व्रत , चाहे सारा जग छोड़ दे।
    तेरे साथ रहना माहिया
    बस यही कहना माहिया
    तेरे साथ रहना..।
    तेरे संग चलना माहिया
    बस यही कहना माहिया
    तेरे साथ रहना..।
    इस दुपट्टे की लाल में प्यार की गहराई है।
    माथे के सिन्दूरी में  यादों की शहनाई है।
    गले में ये मंगलसूत्र रिश्तों की पूजा है।
    तुमसे बढ़के मेरा यहाँ कोई ना दूजा है ।
    मैं ना बिकूंगा तुझे चोट देने के लिए
    कोई मुझे चाहे लाख करोड़ दें।
    मैं ना छोड़ूँ ये व्रत , चाहे सारा जग छोड़ दे।
    तेरे साथ रहना माहिया
    बस यही कहना माहिया
    तेरे साथ रहना..।
    तेरे संग चलना माहिया
    बस यही कहना माहिया
    तेरे साथ रहना..।
    शाम की इन हवाओं में रंगीनी छाई है।
    जैसे समां ने खुशी से मेंहदी रचाई  है।
    हर पति खुशकिस्मत है चेहरे में साज है।
    आज अपने पत्नी पे उसे गर्व और नाज़ है।
    करवाचौथ का त्यौहार हम सबके लिये
    रिश्तों में खुशहाली मोड़ दें।
    मैं ना छोड़ूँ  ये व्रत , चाहे सारा जग छोड़ दे।
    तेरे साथ रहना माहिया
    बस यही कहना माहिया
    तेरे साथ रहना..।
    तेरे संग चलना माहिया
    बस यही कहना माहिया
    तेरे साथ रहना..।

    प्रेम पत्र पर कविता

    पत्र लिख लिख के फाड़े
    भू को अम्बर भेज न पाए।
    भेद मिला यह मेघ श्याम को
    ओस कणों ने तरु बहकाए।।

    मौन प्रीत मुखरित कब होती
    धरती का मन अम्बर जाने
    पावस की वर्षा में जन मन
    दादुर की भाषा पहचाने

    मोर नाचते संग मोरनी
    पपिहा हर तरुवर पर गाए।
    प्रेम पत्र ……………….।।

    तरुवर ने संदेशे भेजे
    बूढ़े पीले पत्तों संगत
    पुरवाई मधुमास बुलाए
    चाहत फूल कली की पंगत

    ऋतु बसंत ने बीन बजाई
    कोयल प्रेम गीत दुहराये।
    प्रेम पत्र………………..।।

    शशि के पत्र चंद्रिका लाई
    सागर जल मिलने को मचला
    लहर लहर में यौवन छाया
    ज्वार उठा जल मिलने उछला

    अनपाए पत्रों को पढ़ कर
    धरती का कण कण हरषाया।
    प्रेम पत्र…………………….।।

    बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*

    वेलेन्टाइन डे की कहानी”

    दिन,महिना,साल भूल के,
    अब मंथ,ईयर व डे हैं कहाये जाते ।
    साल के तीन सौ पैंसठ दिन में,
    कुछ न कुछ डे तो मनाये जाते ॥
    इन्हीं डे में वेलेन्टाइन डे,
    जो प्रेमी जोडे़ हैं मनाया करते ।
    इस दिन सब कुछ भुल-भाल के,
    बस प्यार का पाठ पढ़ाया करते ॥
    जिस किसी को प्यार किसी से,
    वो इजहार प्यार का किया करते ।
    इक-दूजे को भेंट मे कुछ तो,
    प्यार का उपहार दिया करते ॥
    वेलेंटाइन डे की भी कहानी मित्रों,
    अपनी जुबा से सुनाता हूं ।
    सेंट वेलेंटाइन डे का किस्सा,
    जो सुना है मै दुहराता हूं ॥
    रोम देश मे एक इसाई,
    जिसका नाम सेंट वेलेन्टाइन था ।
    वहां की राजा की बेटी से,
    भरपूर प्यार भी उसको था ॥
    बिना शादी के लड़का-लड़की,
    सारे रिश्ते कर सकते हैं ।
    पति-पत्नी नही तो क्या,
    वे प्रेमी जोड़े बन कर रह सकते हैं ॥
    ये बात उसने राजा से,
    बड़ी निडरता से कह डाला ।
    लाल रंग के दिल को उसने,
    राजकुमारी की झोली मे डाला ॥
    उसकी गुस्ताखी देख के राजा,
    उसे फासी की सजा है सुनवाया ।
    चौदह फरवरी के दिन ही उसको,
    सजाए मौत है दिलवाया ॥
    इसी दिन को याद करके प्रेमी,
    अपने प्यार को खुब रिझाते हैं ।
    प्यार-मुहब्बत करके वे,
    वेलेन्टाइन डे को मनाते हैं ॥
    पर पश्चिमी सभ्यता का अंधाधुंध अनुकरण मित्रों,
    वर्तमान मे लग रहा होगा अच्छा ।
    पर इसका दुष्परिणाम भयंकर होगा,
    ये बात भी मित्रों है सच्चा ॥
    पर इसका दुष्परिणाम भयंकर होगा,
    ये बात भी मित्रों है सच्चा ……..

    मोहन श्रीवास्तव

    फरवरी महिना पर कविता

    लोग कहते हैं इश्क़ कमीना है
    हम कहते हुस्न का नगीना है।
    देखो चली है मस्त हवा कैसी
    आ रहा मुहब्बत का महीना है।

    जनवरी संग गुजर गयी सर्दी
    प्यार का ये फरवरी महीना है।
    वेलेंटाइन तो पश्चिमी खिलौना
    यहां तो सदियों से ही मनता
    रहा मदनोत्सव का महीना है।

    सोलहो श्रृंगार कर रही सजनी
    आ रहा उसका जो सजना है।
    यमुनातट आया कृष्ण कन्हैया
    संग राधा नाचती ता-ता थैया है।
    मुरली के धुन पर गोपियां क्या?
    वृंदावन की नाची सारी गैया है।

    फूलों की सुगंध देखो मकरंद
    कैसा उड़ता फिरता बौराया है।
    बागों में लगे है फूलों के झूले
    झूलती सजनी संग सजना है।
    धरा पे पुष्पों सजा ये गहना है
    आया मुहब्बत का ये महीना है।

    वंसतोत्सव में झूमता सदियों से
    आर्यावर्त का नाता ये पुराना है
    प्रेम की हम करते हैं इबादत
    नही वासना का झूठा बहाना है।

    कृष्ण राधा का मीरा का माधव
    रति कामदेव का ही ये महीना है
    आया मुहब्बत का ये महीना है
    इश्क़ वाला ये फरवरी महीना है।   

    पंकज भूषण पाठक “प्रियम”

    वो प्यार जो हकीकत में प्यार होता है – मधुमिता घोष

    वो प्यार जो हकीकत में प्यार होता है,
    उसमें न कोई जीत,न कोई हार होता है,
    न होता है भाव अहम का,
    न होता है शब्द रहम का,
    बस एक -दूजे की खुशी में सारा संसार होता है।
    वो प्यार…………………….

    न बीते दिनों की सच्चाई जुदा करती है,
    न अकेले में तन्हाई जुदा करती है,
    बस आँखों में प्यार का महल होता है,
    दिल में प्यार का सम्बल होता है, अपने प्यार की खुशी में ही संसार होता है।
    वो प्यार…………………………..

    न बारिश में वो भीगता है,
    न पतझड़ में वो सूखता है,
    हर मौसम में जिस पर,
    यौवन का खुमार होता है,
    अपने प्यार की एक मुस्कुराहट के लिए जो न्यौछावर बार-बार होता है।
    वो प्यार………………………..

    आँखों का समंदर जब,
    उसकी यादों में फूटता है,
    दिल न जाने इस दरमियाँ,
    कितनी बार टूटता है,
    फिर भी मन में उम्मीदों का आसार होता है।
    वो प्यार……………….….

    मधुमिता घोष

    तुम्हारी यही बातें मुझे अच्छी लगतीं हैं

    तुम्हारी यही बातें मुझे अच्छी लगतीं हैं
    गुज़रे यादों में जो रातें मुझे अच्छी लगतीं हैं


    तुम्हें न देखूँ तो दिल को न मेरे चैन मिलता है
    छुप छुप के मुलाकातें मुझे अच्छी लगतीं हैं
    दिल में दबा के रखते हो तुम जिन अरमानो को
    वो छुपी छुपी तेरी चाहतें मुझे अच्छी लगतीं हैं


    सुना है प्यार करने वाले हिम्मत वाले होते हैं
    ये रंज और ये आफतें मुझे अच्छी लगतीं हैं
    तुम ये रोज़ लिख लिख कर जो मुझको भेजते हो
    ये ख़त में प्रेम सौगातें मुझे अच्छी लगतीं हैं

    निशां उल्फ़त का दामन से सुनो रह रह के जाता है
    चुनरिया तुम जो रंग जाते मुझे अच्छी लगतीं हैं
    तेरी ‘चाहत’ है वो ख़ुशबू बिखरी मेरे तन मन पे
    निगाहों की करामातें मुझे अच्छी लगतीं हैं


    नेहा चाचरा बहल ‘चाहत’
    झाँसी

  • भगवान पर कविता

    भगवान पर कविता: किसी भी धर्म में खास कर के हिन्दू धर्म में भगवानो पर बढ़ी आस्था रखी जाती है और इन भगवानो पर वे बहुत ज्यदा विस्वास रखते है और इस आस्था को बनाये रखे कविता बहार आप के लिए कुछ कविताएँ बताती है जो इस प्रकार है.

    भगवान पर कविता

    शब्दों से परे है वह

    भावों के सर्गों में स्पंदित
    परमाणुओं का लय है !
    शब्दों से परे है वह…
    किंतु अर्थों का अवयव है !!

    पंचभूतों के परम-मिलन से
    पल्लवित होते नव कोंपल
    पालन करती प्रकृति उन्हें
    निज आँचल में प्रतिपल
    पुष्पित होते फिर फल देते
    तना तानकर गर्वित होते
    फिर धीरे-धीरे उनके सारे
    पीत-पर्ण झरते जाते हैं
    पंचभूतों में मिलने का वे
    रहस्य यही बतलाते हैं..
    कि सृष्टि-चक्र की शाश्वतता में
    यहीं सृजन है,यहीं विलय है !!

    शब्दों से परे है वह…
    किंतु अर्थों का अवयव है !!

    रंग-रंग के रंगों से रंगी,
    रंगरेज़ों की दुनिया में…
    मन को हरते सतरंग हैं यहाँ
    कुछ फीके और कुछ गहरे ,
    पनघट-पनघट रूनझुन-रूनझुन
    हैं लालिमा लिये क्षितिज पर ठहरे
    वहीं कमलिनी-कमल जल में…
    खिलने को हैं आतुर मानो
    परंतु प्रतीक्षा में पनिहारन-से
    ताकें अधडूबा-अधनिकला सूरज
    जो क्षितिज-पट से झांकता कहता
    मुझे भी प्रातः ओ’सांझ का संशय है !!

    शब्दों से परे है वह…
    किंतु अर्थों का अवयव है !!

    निमाई प्रधान ‘क्षितिज’

    जो भी चाहा ख़ुदा से मिला ही नहीं

    _ज़िंदगी से कोई अब गिला ही नहीं,_
    _जो भी चाहा ख़ुदा से मिला ही नहीं_

    _इक दफा बेवफा ने जो लूटा चमन,_
    _प्यार का फूल फिर से खिला ही नहीं_

    _चल सके जो कई मील सबके लिये,_
    _अब ज़माने में वो काफ़िला ही नहीं_

    _लोग अपना कहें और धोखा न दे,_
    _दोस्ती का वो अब सिलसिला ही नहीं_

    _फिर से मिलने का वादा किया था जहाँ,_
    _आज तक मैं वहाँ से हिला ही नहीं_

    *चन्द्रभान पटेल*