Author: कविता बहार

  • वरिष्ठ नागरिक दिवस पर कविता

    एक निवासी व्यक्ति जो पिछले वर्ष के दौरान आयु में 60 या उससे अधिक हो गये हैँ, उन्हें वरिष्ठ नागरिक माना जाता है.

    विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस देश के वरिष्ठ नागरिकों द्वारा समाज के उत्थान और सीखने के लिए बहुत सारा ज्ञान लाने में किए गए प्रयासों और योगदान का सम्मान करने के लिए मनाया जाता है। हर साल विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।

    इस वर्ष 2023, अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस की थीम ” वृद्ध व्यक्तियों के लिए मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के वादों को पूरा करना: पीढ़ियों तक ” है, जो विश्व स्तर पर वृद्ध लोगों की उनके अधिकारों के संदर्भ में अद्वितीय जरूरतों पर ध्यान आकर्षित करने का एक आह्वान है।

    वरिष्ठ नागरिक दिवस पर कविता

    वरिष्ठ नागरिक दिवस पर कविता

    करे सम्मान वरिष्ठ नागरिकों का,
    करे उनका हम सब ध्यान।
    मिलेगा उनका आशीष तुमको,
    और मिलेगा उनका तुमको ज्ञान।।

    धरोहर हैं वे हम सबकी,
    और तुम्हारी वे पहचान।
    एक दिन तुम भी बनोगे,
    उनकी अद्भुत अनोखी शान।।

    निवेदन है अपनी सरकार से,
    करे वरिष्ठ नागरिकों का ध्यान
    आय कर से उन्हें मुक्त करे,
    और करे उनका कल्याण।।

    एक दिन तुम भी बनोगे,
    करना इसका भी ध्यान
    ऐसी परंपरा डाल दो तुम
    होता रहे सबका कल्याण।।

    ये कार्य क्रम चलता रहे,
    ऐसा करे हम सब प्रयास।
    मानव सबका सेवा धर्म है,
    विश्व करता रहे सदा विकास।

    आर के रस्तोगी
    गुरुग्राम

  • तुलसी जयंती पर कविता

    तुलसी जयंती पर कविता: सावन माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को तुलसीदास जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष तुलसीदास जयंती 23 अगस्त यानि आज है। तुलसीदास जी ने हिंदू महाकाव्य रामचरितमानस, हनुमान चालीसा सहित ग्रंथ ग्रंथों की रचनाएं और अपना पुरा जीवन श्रीराम की भक्ति और साधना में उपदेश दिया

    तुलसी जयंती पर कविता

    पूज्य गोस्वामी तुम्हारी लेखनी को

    o आचार्य मायाराम ‘पतंग’

    पूज्य गोस्वामी तुम्हारी लेखनी को शत नमन ।

    रक्त देकर धर्म संस्कृति का खिलाया है चमन ॥

    थी अजब गहरी उदासी वृक्ष तक सूखे जहाँ ।

    शेष पत्ती तक नहीं थी, फूल फल और रस कहाँ ?

    सींचकर मानस सलिल से कर दिए कुसुमित सुमन ।

    पूज्य गोस्वामी तुम्हारी लेखनी को शत नमन ।।

    धर्म पर छाई मलिनता हर कदम पाखंड थे

    बोलियाँ सबकी अलग थी शाख पर खगवृंद थे।

    कर दिया सब का समन्वय संप्रदायों का मिलन ।

    पूज्य गोस्वामी तुम्हारी लेखनी को शत नमन ।।

    थीं सिसकती आस्थाएँ जब कला दम तोड़ती।

    तब लिखी श्रीराम गाथा सुखद कड़ियाँ जोड़ती ।

    हर समस्या का दिया हल, हर दिशा चमकी किरण ।

    पूज्य गोस्वामी तुम्हारी लेखनी को शत नमन |

    देव भाषा की जगह जन भाव जन भाषा चुनी ।

    सोरठों चौपाइयों दोहों सुछंदों में बुनी ।

    लोक मर्यादा सँवारी गा अलौकिक आचरण ।

    पूज्य गोस्वामी तुम्हारी लेखनी को शत नमन ॥

    शत युगों तक भी नहीं तुलसी भुलाए जाएँगे।

    रामजी जब तक रहेंगे याद तुलसी आएँगे ।

    भक्त का भगवान् से ऐसा अमर अनुपम मिलन।

    पूज्य गोस्वामी तुम्हारो लेखनी को शत नमन ॥

  • छठ दिवस पर कविता

    छठ दिवस पर कविता

    छठ दिवस पर कविता

    छठ दिवस पर कविता

    उदय- अस्त दोनों समय,
    नित्य नियम से सात।
    सूर्य परिक्रमा के कहें,
    अन्तर्मन की बात।।


    प्रतिदिन दर्शन दे रहे,
    सूर्य देव भगवान।
    छठ पूजा का है बना ,
    जग मे उचित विधान।।


    सूर्य भक्त क कठिन व्रत,
    करते उन्हें प्रसन्न।
    प्रभु पूषा भी भक्त की,
    हरते दुख -आसन्न।।


    गतियों से ऋतुएँ बनी,
    पावस -गर्मी-शीत।
    मानव का सब डर हरें,
    बनकर उनका मीत।।


    देव-दनुज-मानव सभी,
    आराधन की रीत।
    मना सदा पूजा करें,

    छठ का दिवस पुनीत ।।

    एन्०पी०विश्वकर्मा, रायपुर

    छठ दिवस पर कविता

    छठ पूजा की कविता 2

    सूर्य की पूजा है …..छठ पूजा,
    यह आस्था विश्वास का है नाम दूजा।
    यह है प्रकृति की पूजा,
    नदी ,चन्द्रमा,और सूर्य की पूजा।

    यह है स्वच्छता का महान उत्सव,
    समाजिक परिदृश्य का महापर्व।
    साफ-सूथरा घर आँगन,
    यह पर्व है बड़ा ही पावन।

    सजे हुए हैं नदी,पोखर,तलाब,
    दीपों से जगमग रौशन घाट।
    हवन से सुगंधित वातावरण,
    सात्विक विचारों का अनुकरण।

    सुचितापूर्ण जीवन का संगीत,
    धार्मिक परम्पराओं का प्रतीक।
    सुमधुर छठ का लोक गीत,
    दिल में भरे अपनत्व और प्रीत।

    भक्ति और अध्यात्म से युक्त,
    तन मन निर्मल और शुद्ध।
    स्वच्छ सकारात्मक व्यवहार,
    समाज के उन्नति का आधार।

    भोजन के साथ सुख शैया का त्याग
    व्रती करते हैं कठिन तपस्या।
    निर्जला निराहार होता यह व्रत
    व्रती पहनते नुतन वस्त्र।

    उगते,डूबते सूर्य को देते अर्ध्य
    ठेकुआ, कसाढ़, फल,फूल करते अर्पण।
    जीवन का भरपूर मिठास
    रस,गुड़,चावल,गेहूँ से निर्मित प्रसाद।

    हमारी समस्त शक्ति और उर्जा का स्त्रोत,
    समाजिक सौहाद्र से ओतप्रोत।
    धर्म अध्यात्म से परिपूर्ण
    छठ पूजा सबसे महत्वपूर्ण।

    — लक्ष्मी सिंह

  • 7 दिसम्बर झण्डा दिवस पर कविता/ झण्डा दिवस पर हिंदी कविता

    झण्डा दिवस पर कविता

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा

    ● रामदयाल पाण्डेय

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा, ऊंचा सदा रहेगा।

    हिंद देश का प्यारा झण्डा ऊंचा सदा रहेगा।

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा।

    तूफानों से और बादलों से भी नहीं झुकेगा,

    नहीं झुकेगा, नहीं झुकेगा, झण्डा नहीं झुकेगा।

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा।

    केसरिया बल भरने वाला, सादा है सच्चाई,

    हरा रंग है हरी हमारी धरती की अंगड़ाई ।

    और चक्र कहता कि हमारा, कदम कभी न रुकेगा ।

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा।

    शान हमारी ये झण्डा है, ये अरमान हमारा,

    ये बल पौरुष है सदियों का, ये बलिदान हमारा।

    जीवन-दीप बनेगा, ये अंधियारा दूर करेगा ।

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा।

    आसमान में लहराएं ये, बादल में लहराएं,

    जहां-जहां, जाए ये झण्डा ये सन्देश सुनाएं।

    है आजाद हिंद, ये दुनिया को आजाद करेगा।

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा।

    नहीं चाहते हम दुनिया को, अपना दास बनाना,

    नहीं चाहते औरों के मुंह की रोटी खा जाना ।

    सत्य-न्याय के लिए हमारा लहू सदा बहेगा।

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा।

    हम कितने सुख सपने लेकर, इसको फहराते हैं,

    इस झण्डे पर मर मिटने की, कसम सभी खाते हैं।

    हिन्द देश का है ये झण्डा, घर-घर में लहरेगा।

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा।

    झण्डा वंदन

    एक हमारा ऊँचा झण्डा, एक हमारा देश !

    इस झण्डे के नीचे निश्चित एक अमिट उद्देश्य !

    हमारा एक अमिट उद्देश्य ।

    देखा जागृति के प्रभात में एक स्वतंत्र प्रकाश,

    फैला है सब ओर एक-सा अतुल उल्लास |

    कोटि-कोटि कंठों से कूजित एक विजय- विश्वास,

    मुक्त पवन में उड़ उठने की एक अमर अभिलाषा ।

    सबका सुहित, सुमंगल सबका, नहीं वैर-विद्वेष,

    एक हमारा ऊँचा झण्डा, एक हमारा देश ॥

    कितने वीरों ने कर-करके प्राणों का बलिदान,

    मरते-मरते भी गाया है इस झण्डे का गान ।

    रक्खेंगे ऊँचे उठ हम भी अक्षय इसकी आन,

    चक्खेंगे इसकी छाया में रस-विष एक समान ।

    एक हमारी सुख-सुविधा है, एक हमारा क्लेश,

    एक हमारा ऊँचा झण्डा, एक हमारा देश ।।

    मातृभूमि की मानवता का जागृत जय-जयकार,

    फहर उठे ऊँचे से ऊँचा यह अविरोध उदार ।

    साहस, अभय और पौरुष का यह अजीब संचार,

    लहर उठें जन-जन के मन में सत्य-अहिंसा-प्यार ।

    अगणित धाराओं का संगम मिलन-तीर्थ संदेश,

    एक हमारा ऊँचा झण्डा, एक हमारा देश ॥

    सुनें सब – – एक हमारा देश ।’

    झण्डा ऊँचा रहें हमारा

    ● श्यामलाल गुप्त पार्षद

    विजयी विश्व तिरंगा प्यारा

    झण्डा ऊँचा रहें हमारा

    सदा शक्ति दरसाने वाला

    प्रेम सुधा बरसाने वाला

    वीरों को हरषाने वाला

    मातृभूमि का तन-मन सारा ।

    झण्डा ऊँचा रहें हमारा ॥

    स्वतंत्रता के भीषण रण में,

    लख कर जोश बढ़े क्षण-क्षण में ।

    काँपें शत्रु देख कर मन में,

    मिट जाएं भय संकट सारा ।

    झण्डा ऊँचा रहें हमारा ॥

    इसकी शान न जाने पावें

    चाहे जान भले ही जावें

    विश्व विजय करके दिखलावें

    तब होवें प्रण पूर्ण हमारा।

    झण्डा ऊँचा रहें हमारा ॥

    आओ प्यारे वीरों आओ

    देश धरम पर बलि – बलि जाओ

    एक साथ सब मिलकर गाओ

    प्यारा भारत देश हमारा।

    झण्डा ऊँचा रहे हमारा ||.

    जय राष्ट्रीय निशान

    जय राष्ट्रीय निशान !

    जय राष्ट्रीय निशान !

    जय राष्ट्रीय निशान !

    लहर-लहर तू मलय पवन में,

    फहर-फहर तू नीलगगन में,

    छहर-छहर जग के आँगन में,

    सबसे उच्च महान् !

    सबसे उच्च महान् !

    जय राष्ट्रीय निशान |

    बढ़े शूरवीरों की टोली,

    खेलें आज मरण की होली,

    बूढ़े और जवान !

    बूढ़े और जवान !

    जय राष्ट्रीय निशान !

    मन में दीन-दुखी की ममता,

    हममें हो मरने की क्षमता,

    मानव-मानव में हो समता,

    धनी गरीब समान !

    गूँजें नभ में तान !

    जय राष्ट्रीय निशान !

    तेरा मेरुदण्ड ही कर में,

    स्वतंत्रता के महासमर में,

    वज्रशक्ति बन व्यापें उर में,


    दे दें जीवन-प्राण !

    दे दें जीवन-प्राण !

    जय राष्ट्रीय निशान |.

    जय हे राष्ट्र निशान |.

    ० श्री हरि

    जय, जय, जय हे अमर तिरंगे, जय हे राष्ट्र-निशान !

    ‘सन् सत्तावन’ की अंगड़ाई,

    ‘नौ अगस्त’ की तू तरुणाई,

    तुझमें कोटि-कोटि वीरों का प्रतिबिम्बित बलिदान ।

    मूर्त शक्ति तू मूर्त त्याग तू,

    विश्वशान्ति का अमर राग तू,

    तुझमें कोटि-कोटि प्राणों के गुम्फित हैं अरमान।

    दिशि दिशि में अवनी अम्बर पर,

    तू अपनी आभा प्रसरित कर,

    पारतन्त्र्य-तम चीर ला रहा है स्वातन्त्र्य-विहान ।

    ज्वालाओं में जलते मन-सा,

    तप-तप कर निखरा कंचन-सा,

    तुझ पर सौ-सौ बार निछावर सारा हिन्दुस्तान ।

    विश्व – विजय करने की क्षमता,

    बने सदा मानव की ममता,

    तेरे तार-तार में मुखरित, मानवता के गान।

    हम निज तन देंगे, मन देंगे,

    तेरे हित जीवन दे देंगे,

    प्राण गंवाकर भी रख लेंगे, हम तेरा सम्मान।

    शीश कटें, घर-द्वार छिनें

    शीश करें, घर-द्वार छिनें,

    औ’ उजड़ें चाह भारत सारा ।

    लाठी चलें, गोलियाँ बरसें,

    प्रलय मचें, भर जावें कारा ॥

    वज्र गिरें, तलवारें चमकें,

    चाहे बहे रक्त की धारा ।

    झुकें नहीं यह ध्वजा, गगन में

    चमकें बनकर शक्ति-सितारा ॥

    जो इसकी छाया में आवें,

    महाकाल से भी भिड़ जावें ।

    तुंग हिमालय से भारत के,

    महासिंधु तक यह फहरावें ।

    सागर पर हो राज हमारा,

    अंबर पर अधिकार हमारा ।

    वायुयान और जलयानों पर,

    लहराएं यह तिरंगा प्यारा ॥

    नव-प्रभात हो, भारत भर में,

    हो ऐसा अनुपम उजियारा।

    अंधकार मिट जाएं, मुक्ति के

    गीतों से गूँजें नभ सारा ॥

    भारत के कोने-कोने में,

    झंडा फहरे आज हमारा।

    उठ जाएं तूफान देश में,

    कर दें जिस दिन एक इशारा ॥

    नगाधिराज शृंग पर

    नगाधिराज शृंग पर खड़ी हुई,

    समुद्र की तरंग पर अड़ी हुई,

    स्वदेश में जगह-जगह गड़ी हुई,

    अटल ध्वजा हरी, सफेद, केशरी !

    न साम-दाम के समक्ष यह रुकी,

    न दंड-भेद के समक्ष यह झुकी,

    सगर्व आज शत्रु- शीश पर ठुकी,

    निडर ध्वजा हरी, सफेद, केशरी !

    चलो, उसे सलाम आज सब करें,

    चलो, उसे प्रणाम आज सब करें,

    अमर सदा इसे लिये

    अजय ध्वजा

    हुए हरी, सफेद, केशरी !

    राष्ट्र-ध्वज तना रहे

    ● ताराचन्द पाल ‘बेकल’

    ज्योति नग बना रहे।

    राष्ट्रध्वज तना रहे ॥

    वीर हर जवान हो,

    सिंह के समान हो,

    कार्यक्रम- देश के,

    देश के संदेश के,

    हो सफल प्रत्येक पल,

    राष्ट्र कार्य में अटल,

    चेतना नवीन हो,

    हर कोई प्रवीण हो,

    वक्ष तान-तान कर,

    वायु समान स्वर,

    जय कहें स्वदेश की,

    देश के संदेश की,

    सत्य पथ प्रयाण हो,

    भव्य भावना रहे।

    ज्योति नग बना रहे।

    राष्ट्र-ध्वज तना रहे ॥

    कर्म के संकेत पर,

    छाए खेत-खेत पर,

    शस्य की विभा नयी,

    स्वर्ण-सी प्रभा नयी,

    प्राण में पुलक भरे,

    एक नव झलक भरे,

    मंजिलों के गीत हों,

    प्रेरणा-संगीत हो,

    शान से बड़े चलो,

    गिरि-शिखर चढ़े चलो,

    काफिला रुके नहीं,

    और ध्वज झुके नहीं,

    शक्ति-साधना रहे।

    नव्य कामना रहे॥

    ज्योति-नग बना रहे।

    राष्ट्र-ध्वज तना रहे ॥

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा

    रामदयाल पाण्डेय

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा, ऊंचा सदा रहेगा।

    हिंद देश का प्यारा झण्डा ऊंचा सदा रहेगा।

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा।

    तूफानों से और बादलों से भी नहीं झुकेगा,

    नहीं झुकेगा, नहीं झुकेगा, झण्डा नहीं झुकेगा।

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा।

    केसरिया बल भरने वाला, सादा है सच्चाई,

    हरा रंग है हरी हमारी धरती की अंगड़ाई ।

    और चक्र कहता कि हमारा, कदम कभी न रुकेगा ।

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा।

    शान हमारी ये झण्डा है, ये अरमान हमारा,

    ये बल पौरुष है सदियों का, ये बलिदान हमारा।

    जीवन-दीप बनेगा, ये अंधियारा दूर करेगा।

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा।

    आसमान में लहराएं ये, बादल में लहराएं,

    जहां-जहां, जाए ये झण्डा ये सन्देश सुनाएं।

    है आजाद हिंद, ये दुनिया को आजाद करेगा।

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा।

    नहीं चाहते हम दुनिया को, अपना दास बनाना,

    नहीं चाहते औरों के मुंह की रोटी खा जाना ।

    सत्य-न्याय के लिए हमारा लहू सदा बहेगा।

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा।

    हम कितने सुख सपने लेकर, इसको फहराते हैं,

    इस झण्डे पर मर मिटने की, कसम सभी खाते हैं।

    हिन्द देश का है ये झण्डा, घर-घर में लहरेगा।

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा।

    झण्डा वंदन

    एक हमारा ऊँचा झण्डा, एक हमारा देश !

    इस झण्डे के नीचे निश्चित एक अमिट उद्देश्य !

    हमारा एक अमिट उद्देश्य ।

    देखा जागृति के प्रभात में एक स्वतंत्र प्रकाश,

    फैला है सब ओर एक-सा अतुल उल्लास ।

    कोटि-कोटि कंठों से कूजित एक विजय – विश्वास,

    मुक्त पवन में उड़ उठने की एक अमर अभिलाषा ।

    सबका सुहित, सुमंगल सबका, नहीं वैर-विद्वेष,

    एक हमारा ऊँचा झण्डा, एक हमारा देश ।।

    कितने वीरों ने कर-करके प्राणों का बलिदान,

    मरते-मरते भी गाया है इस झण्डे का गान ।

    रक्खेंगे ऊँचे उठ हम भी अक्षय इसकी आन,

    चक्खेंगे इसकी छाया में रस-विष एक समान ।

    एक हमारी सुख-सुविधा है, एक हमारा क्लेश,

    एक हमारा ऊँचा झण्डा, एक हमारा देश ॥

    मातृभूमि की मानवता का जागृत जय-जयकार,

    फहर उठे ऊँचे से ऊँचा यह अविरोध उदार ।

    साहस, अभय और पौरुष का यह अजीब संचार,

    लहर उठें जन-जन के मन में सत्य-अहिंसा प्यार ।

    अगणित धाराओं का संगम मिलन – तीर्थ- संदेश,

    एक हमारा ऊँचा झण्डा, एक हमारा देश ||

    सुनें सब- एक हमारा देश ।’

    झण्डा ऊँचा रहें हमारा

    श्यामलाल गुप्त पार्षद

    विजयी विश्व तिरंगा प्यारा

    झण्डा ऊँचा रहें हमारा

    सदा शक्ति दरसाने वाला

    प्रेम सुधा बरसाने वाला

    वीरों को हरषाने वाला

    मातृभूमि का तन-मन सारा ।

    झण्डा ऊँचा रहे हमारा ॥

    स्वतंत्रता के भीषण रण में,

    लख कर जोश बढ़े क्षण-क्षण में ।

    काँपें शत्रु देख कर मन में,

    मिट जाएं भय संकट सारा ।

    झण्डा ऊँचा रहें हमारा ॥

    इसकी शान न जाने पावें

    चाहे जान भले ही जावें

    विश्व विजय करके दिखलावें

    तब होवें प्रण पूर्ण हमारा।

    झण्डा ऊँचा रहे हमारा ॥

    आओ प्यारे वीरों आओ

    देश धरम पर बलि – बलि जाओ

    एक साथ सब मिलकर गाओ

    प्यारा भारत देश हमारा।

    झण्डा ऊँचा रहें हमारा ॥

    जय राष्ट्रीय निशान

    जय राष्ट्रीय निशान !

    जय राष्ट्रीय निशान !

    जय राष्ट्रीय निशान !

    लहर-लहर तू मलय पवन में,

    फहर- फहर तू नीलगगन में,

    छहर-छहर जग के आँगन में,

    सबसे उच्च महान् !

    सबसे उच्च महान् !

    जय राष्ट्रीय निशान !

    बढ़े शूरवीरों की टोली,

    खेलें आज मरण की होली,

    बूढ़े और जवान !

    बूढ़े और जवान !

    जय राष्ट्रीय निशान !

    मन में दीन-दुखी की ममता,

    हममें हो मरने की क्षमता,

    मानव-मानव में हो समता,

    धनी गरीब समान !

    गूँजें नभ में तान !

    जय राष्ट्रीय निशान !

    तेरा मेरुदण्ड ही कर में,

    स्वतंत्रता के महासमर में,

    वज्रशक्ति बन व्यापें उर में,

    दे दें जीवन प्राण !

    दे दें जीवन प्राण !

    जय राष्ट्रीय निशान ।

    जय हे राष्ट्र- निशान !

    श्री हरि

    जय, जय, जय हे अमर तिरंगे, जय हे राष्ट्र-निशान !

    ‘सन् सत्तावन’ की अंगड़ाई,

    ‘नौ अगस्त’ की तू तरुणाई,

    तुझमें कोटि-कोटि वीरों का प्रतिबिम्बित बलिदान ।

    मूर्त शक्ति तू मूर्त त्याग तू,

    विश्वशान्ति का अमर राग तू,

    तुझमें कोटि-कोटि प्राणों के गुम्फित हैं अरमान ।

    दिशि दिशि में अवनी अम्बर पर,

    तू अपनी आभा प्रसरित कर,

    पारतन्त्र्य-तम चीर ला रहा है स्वातन्त्र्य – विहान ।

    ज्वालाओं में जलते मन-सा,

    तप तप कर निखरा कंचन-सा,

    तुझ पर सौ-सौ बार निछावर सारा हिन्दुस्तान ।

    विश्व – विजय करने की क्षमता,

    बने सदा मानव की ममता,

    तेरे तार-तार में मुखरित, मानवता के गान।

    हम निज तन देंगे, मन देंगे,

    तेरे हित जीवन दे देंगे,

    प्राण गंवाकर भी रख लेंगे, हम तेरा सम्मान।

    शीश कटें, घर-द्वार छिनें

    हरिकृष्ण प्रेमी

    शीश करें, घर-द्वार छिर्ने,

    औ’ उजड़ें चाह भारत सारा।

    लाठी चलें, गोलियाँ बरसें,

    प्रलय मर्चे, भर जावें कारा ॥

    वज्र गिरें, तलवारें चमकें,

    चाहे बहे रक्त की धारा ।

    झुकें नहीं यह ध्वजा, गगन में

    चमकें बनकर शक्ति-सितारा ॥

    जो इसकी छाया में आवें,

    महाकाल से भी भिड़ जावें ।

    तुंग हिमालय से भारत के,

    महासिंधु तक यह फहरावें ॥।

    सागर पर हो राज हमारा,

    अंबर पर अधिकार हमारा।

    वायुयान और जलयानों पर,

    लहराएं यह तिरंगा प्यारा ॥

    नव-प्रभात हो, भारत भर में,

    हो ऐसा अनुपम उजियारा ।

    अंधकार मिट जाएं, मुक्ति के

    गीतों से गूँजें नभ सारा ॥

    भारत के कोने-कोने में,

    झंडा फहरे आज हमारा।

    उठ जाएं तूफान देश में,

    कर दें जिस दिन एक इशारा ॥

    नगाधिराज शृंग पर

    हरिवंशराय ‘बच्चन’

    नगाधिराज श्रृंग पर खड़ी हुई,

    समुद्र की तरंग पर अड़ी हुई,

    स्वदेश में जगह-जगह गड़ी हुई,

    अटल ध्वजा

    हरी, सफेद, केशरी !

    न साम-दाम के समक्ष यह रुकी,

    न दंड-भेद के समक्ष यह झुकी,

    सगर्व आज शत्रु- शीश पर ठुकी,

    निडर ध्वजा

    हरी, सफेद, केशरी !

    चलो, उसे सलाम आज सब करें,

    चलो, उसे प्रणाम आज सब करें,

    अमर सदा इसे लिये हुए मरें,

    अजय ध्वजा हरी, सफेद, केशरी !

    राष्ट्र-ध्वज तना रहे

    ताराचन्द पाल ‘बेकल’

    ज्योति नग बना रहे।

    राष्ट्र-ध्वज तना रहे।

    वीर हर जवान हो,

    सिंह के समान हो,

    कार्यक्रम देश के,

    देश के संदेश के,

    हो सफल प्रत्येक पल,

    राष्ट्र कार्य में अटल,

    चेतना नवीन हो,

    हर कोई प्रवीण हो,

    वक्ष तान-तान कर,

    वायु के समान स्वर,

    जय कहें स्वदेश की,

    देश के संदेश की,

    सत्य पथ प्रयाण हो,

    भव्य भावना रहे।

    ज्योति – नग बना रहे।

    राष्ट्र-ध्वज तना रहे ।

    कर्म के संकेत पर,

    छाए खेत-खेत पर,

    शस्य की विभा नयी,

    स्वर्ण-सी प्रभा नयी,

    प्राण में पुलक भरे,

    एक नव झलक भरे,

    मंजिलों के गीत हों,

    प्रेरणा-संगीत हो,

    शान से बड़े चलो,

    गिरि – शिखर चढ़े चलो,

    काफिला रुके नहीं,

    और ध्वज झुके नहीं,

    शक्ति-साधना रहे।

    नव्य कामना रहे ।

    ज्योति- -नग बना रहे।

    राष्ट्र ध्वज तना रहे ।

  • दीपमाला -कवि सचिन चतुर्वेदी ‘अनुराग्यम्’

    दीपमाला

    जहाँ जन्म हुआ श्री राम का,
    वेशभूषा वो ही भारत की।
    राम शिला रखी आज जाएगी,
    शान यही भारत की॥


    आओ सुनाता हूँ तुम को,
    राम नाम की कहानी।
    वन वन काटों से पूरी भरी,
    राहें बीती थी पुरानी॥


    सूने सूने थे घर घर,
    हर ओर अँधेरा कैसा छाया।
    राम नाम खुशियाँ,
    चौदह बरसों तक मुरझाया॥


    दीपमाला से सजी,
    हर घर हुए सुगंध्दित।
    राम आय वनवास से,
    दीप हुए प्रज्वलित॥

    © कवि सचिन चतुर्वेदी ‘अनुराग्यम्’