Author: कविता बहार

  • अन्धविश्वास पर कविता

    अन्धविश्वास पर कविता

    तंत्र मंत्र के चक्कर की खबरे खूब आती है
    अन्धविश्वास में अक्सर जानें ही जाती है।


    सुन लो घटना हुआ जो कोरबा रामकक्षार है
    अंधभक्त पुत्र ने कर दिया खुद माँ पर वार है
    भ्रम जाल में फंसकर अपनी माँ को गंवा लिया
    लहू भी पीया उसने माँ का मांस भी खा लिया


    पड़ा रहा मति मार कर अबूझ अज्ञान गोरख में
    माँ का सर चढ़ाया देवता पर एक मूरख ने
    पूजा करते माँ को मार दिया  कुल्हाड़ी से
    मंत्र सिद्धि में ग्यारह जाने गई थी दिल्ली के बुराड़ी से


    मंत्र सिद्धि का जाल फैलाया है यहां यूँ ठगों ने
    दौड़ रहा अन्धविश्वास विद्या कुछ रगो में
    ना समझ पड़े रहते हैं क्यों झूठी सम्मोह में
    ऎसी घटनाएं हुई हमीरपुर और दमोह में


    ज्ञान विज्ञान से अज्ञानता मिलकर भगाओ जी
    अंधश्रद्धा उन्मूलन से लोगो को बचाओ जी


    राजकिशोर धिरही

  • कोशिश क्यों नही करता अपना घर बसाने को

    कोशिश क्यों नही करता अपना घर बसाने को

    ऐ पाक़!तू क्यों तना है अपना घर जलाने को।

    कोशिश क्यों नही करता अपना घर बसाने को।।

    तुम्हारे तमाम ज़ुल्मों को सीनें से लगाते रहे।

    पर गुस्सा क्यों दिलाता है हथियार उठाने को।।

    पंछी की तरह तो तुझे हम आज़ाद कर दिये थे।

    फिर क्यों चाहता है तू अपना पर कटाने को।।

    तुझे पता ही नही कि तू किस मिट्टी से पैदा हुआ।

    और ललकार रहा है यूँ बेमौत मर जाने को।।

    अपने गिरेबाँ में झाँककर जरा देख भी लो।

    फिर सीना तानकर आना हमसे नज़र मिलाने को।।

    कश्मीर की कलियों से इश्क़ लड़ाना छोड़ दो ज़नाब।

    नही तो तैयार हो जाओ अपना सर कटानें को।।

    तू ख़ुद अपनी काली करतूतों से इतना ग़मगीन है।

    कि दिलजले भी नही चाहते तेरा दिल जलाने को।।

    ख़ुद बर्बाद हजारों की ज़िन्दगी भी बर्बाद कर दी।

    अब क्या खाक़ करेगा किसी की ज़िन्दगी बनानें को।।

    पाक़ राहों से गुजरनें तुझे हम राह भी दिखाते रहे।
    “सरल” राहों में भटका क्यों अपनी मंज़िल पाने को।।


               ।।रचनाकार।।

       उमेश श्रीवास”सरल”

    पता–मु.पो.+थाना-अमलीपदर
       विकासखण्ड-मैनपुर
    जिला-गरियाबंद (छत्तीसगढ़)      
         

  • संगम नगरी प्रयागराज

    संगम नगरी प्रयागराज

    संक्रांति के पावन दिवस पर
    चलो आज हम कुंभ नहालें
    प्रयागराज के संगम तट पर
    माँ गंगे का भव्यदर्शन पा लें।।
         भव्य दिख रही संगम नगरी
         भाँति- भाँति के लोग हजार
         शाही स्नान करने को पहले
         देखो नागा की लगी कतार।।
    साधु संतकी भीड़ है उमड़ी
    नागा, जूना,जंघम, किम्बर
    डुबकी लगाकर इस संगम में
    जीवन बनाते हैं पुण्योज्वल।।
         दादा, दादी, मामा, मामी
         सभी नहाने तो आए हैं।
         पोते,पोती,नाती,नातिन
         अपने साथ जो लाएँ है ।।
    कवियों, साहित्यकारों की नगरी
    प्रयागराज बड़ा है प्यारा ।
    कुंभ स्नान कर धन्य हो गये
    कितना बड़ा सौभाग्य हमारा।।


    ✍बाँके बिहारी बरबीगहीया ✍

  • किरीट सवैया पर कविता

    किरीट सवैया पर कविता

    भारत भव्य विचार सदा शुभ, भारत सद् व्यवहार सदा शुभ
    भारत मंगल कारक है नित, भारत ही हित कारक है शुभ।
    भारत दिव्य प्रकाश सदा शुभ, भारत कर्म प्रधान सदा शुभ।
    भारत भावन भूमि महा शुचि, भारत पावन धार सदा शुभ।

    पुष्पाशर्मा”कुसुम”

  • समर शेष है रुको नहीं

    समर शेष है रुको नहीं

    समर शेष है रुको नहीं
    अब करो जीत की तैयारी
    आने वाले भारत की
    बाधाएँ होंगी खंडित सारी ,
    राजद्रोह की बात करे जो
    उसे मसल कर रख देना
    देशभक्ति का हो मशाल जो
    उसे शीश पर धर लेना,
    रुको नहीं तुम झुको नहीं


    अब मानवता की है बारी
    सुस्त पड़े सब शीर्ष पहरुए
    जनमानस दण्डित सारी,
    कालचक्र जो दिखलाए तुम
    उसे बदलकर रख देना
    कठिन नहीं है कोई चुनौती
    दृढ़ निश्चय तुम कर लेना,
    तोड़ो भी सारे कुचक्र तुम
    आदर्शवाद को तज देना
    नयी सुबह में नयी क्रांति का
    गीत वरण तुम कर लेना ।

    राजेश पाण्डेय अब्र
       अम्बिकापुर