Author: मनीभाई नवरत्न

  • आज के दिन जन्म लिया महान बैट्समैन

    आज के दिन जन्म लिया महान बैट्समैन

    आज के दिन जन्म लिया महान बैट्समैन।
    नाम जिसका सर डोनाल्ड जॉर्ज ब्रैडमैन।।
    “द डॉन”के नाम से मशहूर वो आस्ट्रेलियन ।
    कम उम्र में बन गया वह क्रिकेटर महानतम।।
    दायां हाथ की बल्लेबाजी, गेंदबाजी लेग ब्रेक।
    तनहाई पसंद इंसान थे वे ,व्यवहार थी नेक।।
    सप्त सहस्त्र रन सौ की औसत ,पलट देते गेम ।
    शामिल उनका नाम आईसीसी हाल ऑफ फेम ।।
    क्रिकेटर प्रशंसक के तौर पे ,समर्पित की रचना।
    डॉन ब्रैडमैन बनने का, युवा क्रिकेटर का सपना।।(रचयिता:-मनीभाई,भौंरादादर,बसना,महासमुंद)

  • एक होनहार लड़का

    एक होनहार लड़का


    एक होनहार लड़का
    सच्चा,त्यागी, ईमानदार।
    उसके गुरु ने भी तालीम दी थी
    सच बोलने की
    त्याग करने की ।
    ईमान निभाने की ।
    पर सिखाना था
    दो जून की रोटी जुटाने की शिक्षा ।
    आज भी लड़का खड़ा है
    बड़ी सच्चाई से भूख-प्यास त्यागकर ।
    ईमानदारी से बेरोजगारों की कतार में।

    मनीभाई नवरत्न

  • जब तूने हमें छोड़ के दौड़ लगाई

    जब तूने हमें छोड़ के दौड़ लगाई

    जब तूने हमें छोड़ के दौड़ लगाई


    रचनाकार :मनीभाई नवरत्न
    रचनाकाल :15 नवम्बर 2020

    तू चलता है
    लोग बोलते हैं
    तू दौड़ता क्यूँ नहीं ?
    तू सबसे काबिल है।
    अब दौड़ता हूँ
    फिर लोग बोलते हैं
    गिरेगा  तभी जानेगा
    हम क्यूँ चल रहे हैं ?

    तूने फिर बातें मानी,
    लोगों की सूनी।
    फिर से चला उनके साथ
    लेकिन अबकी बार
    तेरी चाल ढीली है।

    वो बढ़ रहे हैं तुझसे आगे
    पीछे पलट तुझे देखते,
    जाने क्यूँ मुस्कुराके।
    लेकिन अब क्यूँ
    कोई कहता नहीं ?
    आ साथ चले प्रिय
    संग संग।

    ये वहीं लोग है
    जिसे तूने माना हमसफर।
    अब तू देता लाख दुहाई
    ढोल पीट पीट कर बताता
    कैसे होती बेवफाई ?

    ये सारे किस्से पुराने मैले हैं।
    दुनिया ने सबके जज्बातों से खेले हैं।
    उसे बात समझ तब आई
    जब पीछे से किसी ने कहा – “भाई !
    क्या हुआ उस रेस का?
    जब तूने हमें छोड़ के दौड़ लगाई।

    मनीभाई नवरत्न

  • क्या मैं उसे कभी जान पाया ?

    क्या मैं उसे कभी जान पाया ?

    कभी – कभी
    या बोलिये अब हर वक्त…
    मैं ढूंढता हूँ उसको
    जो मेरे अंदर पड़ा है मौन।
    कहता कुछ नहीं
    पर लगता है
    उसकी आवाज दबा दी गई हो
    कब ?
    ये भी तो मुझे मालूम नहीं ।
    लेकिन हाँ ! धीरे-धीरे…

    उसके अंदर के टीस
    मुझे जब चुभती,
    मैं उसे तब
    झूठी दिलासा देकर
    अक्सर शांत कर देता था ।
    वैसे ही जैसे नसों के दर्द को
    राहत देता है मलहम
    कुछ पलों के लिए।
    पर क्या वो यही चाहती थी?
    पुरानी घिसी-पिटी सहानुभूति
    वही बाहरी लेप मलहम।

    नहीं यह वह बच्चा नहीं
    जो झुनझुने से अपना दिल बहलाये।
    उसकी खामोशी से
    मुझे डर सा लगने लगा है
    कि उसका विश्वास
    अब मुझसे खोने लगा है I
    वो अब मौन है
    जिद भी नहीं करता।
    मुझे पता है
    उसका मौन हो जाना
    मेरी मौत है।

    अब स्वार्थवश,
    उसकी तरफ ध्यान गया है।
    पर वो मौन नहीं तोड़ता
    मुझे नहीं बताता ,
    सच्चाई मेरे जीवन की ।
    वो मेरी पुरानी आदतें
    अच्छी तरह जान गया है
    मुझसे भी बेहतर।
    पर क्या मैं उसे कभी जान पाया ?
                                        मनीभाई नवरत्न

  • स्कूल पर कविता

    स्कूल पर कविता

    चलो ऐसी शाला का निर्माण करें
    जिसका प्रकाश सबको आलोकित करें।
    इस संस्था का सदस्य बन कर
    हम स्वयं भी गौरवान्वित करें ।
    जहां गुरु शिष्य का नाता
    पिता-पुत्र से आंका जाए ।
    जहां हरेक बालों में
    बहन का रूप झांका जाए ।
    पर सगुणों को अपनाकर
    स्वदुर्गुणों को विसर्जित करें।
    ऐसी शाला का निर्माण करें
    जिसका प्रकाश सबको आलोकित करें ।
    नियमित शाला पहुंचकर
    समय का पालन करें ।
    सत्य अहिंसा के मार्ग पर
    अपना पग परिचालन करें ।
    गुरु मार्गदर्शन स्वाध्याय को अपनाकर
    भविष्य अपना सुनिश्चित करें ।
    ऐसी शाला का निर्माण करें
    जिसका प्रकाश सबको आलोकित करें
    यह दिव्य स्थान, स्वच्छता ,
    शिक्षा और मनोरंजन संयुक्त रहे।
    दुर्व्यसनों और फुहड़पन
    और अपराधों से मुक्त रहे ।
    फूल पौधे पर लगाकर
    वातावरण को सुसज्जित करें ।
    ऐसी शाला का निर्माण करें
    जिसका प्रकाश सबको आलोकित करें ।
    यहां हर कोई विद्यार्थी
    अपनी शिक्षा पर गंभीर रहे ।
    जीवन के हर संकट पर
    शूरवीर और धीर रहे ।
    एकता के सूत्र से बंध कर
    अपना देश विकसित करें
    ऐसी शाला का निर्माण करें
    जिसका प्रकाश सबको आलोकित करें ।
    अब प्रण हमें करना है कि
    यह शाला मंदिर से कम नहीं ।
    जब तक हम रहे
    कोई से नीचा दिखाए वह दम नहीं ।
    शाला को संवारने में
    मिलजुल कर सबको को प्रेरित करें।
    ऐसी शाला का निर्माण करें
    जिसका प्रकाश सबको आलोकित करें ।

    मनीभाई नवरत्न