आओं खेलें सब खेल
आओं खेलें सब खेल ।
बन जाओ सब रेल।
छुक छुक करते जाओ ।
सवारी लेते जाओ ।
कोई छुट ना जाए ।
हमसे रूठ ना जाए ।
सबको ले जाना जरूरी ।
तय करनी लम्बी दूरी ।
सबको मंजिल पहुंचायेंगे ।
घुम फिरकर घर आयेंगे ।
मनीभाई नवरत्न
क्या शहीद दिवस मना लेना;
इस पर कोई कविता बना लेना;
तस्वीर स्मारक में फूल चढ़ा देना;
बच्चों को उनके बारे में पढ़ा देना;
सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है?
क्या आज जरूरत नहीं हमें,
भगत,सुखदेव,राजगुरू बनने की;
भारतमाँ के लिये सर्वस्व लुटाने की;
उनके विचारों को अमल में लाने की;
उनके सपनों के भारत बनाने की ?
हम चाहते तो हैं देश आगे बढ़े;
हम चाहते तो हैं दुश्मनों से लड़ें;
हम चाहते तो हैं इतिहास गढ़े,
जिसे बच्चा बूढ़ा जवान फिर से पढ़े।
पर क्या हम चाहते हैं तकलीफें उठाना;
वतन के लिये अपना सर्वस्व लुटाना ?
हमें अपने कामों से फुरसत कहाँ ?
शहीदों सा देश के लिये मुहब्बत कहाँ?
अरे मनी! छोटा-सा घर से बाहर निकल।
और देख जरा ! एक बड़ा घर “देश”,
जहाँ मनती है धूमधाम से दीवाली और ईद।
जिसके खातिर फाँसी चूमें अपने वीर शहीद।
(रचयिता:- मनी भाई )
हर युद्ध का
जो कारण बनता
लोभ, लालच
काम ,मोह स्त्री हेतु
पतनोन्मुख
इतिहास गवाह
स्त्री के सम्मुख
धाराशायी हो जाता
बड़ा साम्राज्य
शक्ति का अवतार
नारी सबला।
स्त्री चीर हरण से
कौरव नाश
महाभारत काल
रावण अंत
सीता हरण कर
स्त्री अपमान
हर युग का अंत।
आज का दौर
नारी सब पे भारी
गर ठान ले
दिशा मोड़े जग का
सहनशील
प्रेम त्याग की देवी
धैर्य की धागा
बांधकर रखती
देवों का वास
तेरे आस पास है।
हे नारी तू खास है।
✍मनीभाई”नवरत्न”
ये धरा,अपनी जन्नत है।
यहाँ प्रेम,शांति,मोहब्बत है।
ईश्वर से प्रदत्त , है ये जीवन।
बन माली बना दें,भू को उपवन।
हमें करना अब धरती का देखभाल।
वरना पीढ़ी हमारी,हो जायेगी कंगाल।
सब स्वस्थ रहें,सब मस्त रहें।
यही “मनी” की हसरत है॥1॥
ये धरा ……
चलो कम करें,प्लास्टिक का थैला।
उठालें झाड़ु हाथों में,दुर करें मैला।
नये पौधे लगायें, ऊर्जा बचायें।
रहन-सहन बदल के, पर्यावरण सजायें।
खुद जीयें और जीने दें।
यही तो खुदा की बरकत हैं॥2॥
ये धरा…..
आज विकट संकट है प्रकट हुआ।
ओजोन छतरी में काला चोट हुआ।
ताप बढ़ रही,नदियाँ घट रहीं।
भोग विलास के साधन में,वन चौपट हुआ।
हरा-नीला धरा,श्वेत-श्याम हो रहीं।
इंसान तेरी ही ये हरकत है॥3॥
ये धरा…..