Author: मनीभाई नवरत्न

  • आओं खेलें सब खेल

    आओं खेलें सब खेल

    आओं खेलें सब खेल
    poem on kids game

    आओं खेलें सब खेल ।
    बन जाओ सब रेल।
    छुक छुक करते जाओ ।
    सवारी लेते जाओ ।
    कोई छुट  ना जाए ।
    हमसे रूठ ना जाए ।
    सबको ले जाना जरूरी ।
    तय करनी लम्बी दूरी ।
    सबको मंजिल पहुंचायेंगे ।
    घुम फिरकर घर आयेंगे ।

    मनीभाई नवरत्न

  • शहीद दिवस विशेष कविता

    शहीद दिवस विशेष कविता

    March 23 Martyrs Day
    March 23 Martyrs Day

    क्या शहीद दिवस मना लेना;
    इस पर कोई कविता बना लेना;
    तस्वीर स्मारक में फूल चढ़ा देना;
    बच्चों को उनके बारे में पढ़ा देना;
    सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है?

    क्या आज जरूरत नहीं हमें,
    भगत,सुखदेव,राजगुरू बनने की;
    भारतमाँ के लिये सर्वस्व लुटाने की;
    उनके विचारों को अमल में लाने की;
    उनके सपनों के भारत बनाने की ?

    हम चाहते तो हैं देश आगे बढ़े;
    हम चाहते तो हैं दुश्मनों से लड़ें;
    हम चाहते तो हैं इतिहास  गढ़े,
    जिसे बच्चा बूढ़ा जवान फिर से पढ़े।

    पर क्या हम चाहते हैं तकलीफें उठाना;
    वतन के लिये अपना सर्वस्व लुटाना ?
    हमें अपने कामों से फुरसत कहाँ ?
    शहीदों सा देश के लिये मुहब्बत कहाँ?

    अरे मनी! छोटा-सा घर से बाहर निकल।
    और देख जरा ! एक बड़ा घर “देश”,
    जहाँ मनती है धूमधाम से दीवाली और ईद।
    जिसके खातिर फाँसी चूमें अपने वीर शहीद।

    (रचयिता:- मनी भाई )

  • हे नारी तू खास है

    चोका:- नारी तू खास है
    ★★★★★

    हर युद्ध का
    जो कारण बनता
    लोभ, लालच
    काम ,मोह स्त्री हेतु
    पतनोन्मुख
    इतिहास गवाह
    स्त्री के सम्मुख
    धाराशायी हो जाता
    बड़ा साम्राज्य
    शक्ति का अवतार
    नारी सबला।
    स्त्री चीर हरण से
    कौरव नाश
    महाभारत काल
    रावण अंत
    सीता हरण कर
    स्त्री अपमान
    हर युग का अंत।
    आज का दौर
    नारी सब पे भारी
    गर ठान ले
    दिशा मोड़े जग का
    सहनशील
    प्रेम त्याग की देवी
    धैर्य की धागा
    बांधकर रखती
    देवों का वास
    तेरे आस पास है।
    हे नारी तू खास है।

    ✍मनीभाई”नवरत्न”

  • पृथ्वी दिवस विशेष : ये धरा अपनी जन्नत है

    ये धरा अपनी जन्नत है

    ये धरा,अपनी जन्नत है।
    यहाँ प्रेम,शांति,मोहब्बत है।

    ईश्वर से प्रदत्त , है ये जीवन।
    बन माली बना दें,भू को उपवन।
    हमें करना अब धरती का देखभाल।
    वरना पीढ़ी हमारी,हो जायेगी कंगाल।
    सब स्वस्थ रहें,सब मस्त रहें।
    यही “मनी” की हसरत है॥1॥


    ये धरा ……

    चलो कम करें,प्लास्टिक का थैला।
    उठालें झाड़ु हाथों में,दुर करें मैला।
    नये पौधे लगायें, ऊर्जा बचायें।
    रहन-सहन बदल के, पर्यावरण सजायें।
    खुद जीयें और जीने दें।
    यही तो खुदा की बरकत हैं॥2॥

    ये धरा…..

    आज विकट संकट है प्रकट हुआ।
    ओजोन छतरी में काला चोट हुआ।
    ताप बढ़ रही,नदियाँ घट रहीं।
    भोग विलास के साधन में,वन चौपट हुआ।
    हरा-नीला धरा,श्वेत-श्याम हो रहीं।
    इंसान तेरी ही ये हरकत है॥3॥


    ये धरा…..

  • गरमी महीना छत्तीसगढ़ कविता

    गरमी महीना छत्तीसगढ़ कविता

    किंदर किंदर के आवथें बड़ेर,
    “धुर्रा-माटी-पैरा-पान” सकेल।
    खुसर जाय कुरिया कोती अन,
    लकर-लकर फेरका ल धकेल।
    हव! आगे ने दिन बिन-बूता पसीना के।
    ए जम्मो चिन्हा हावे गरमी महीना के।।


    डम-डम डमरू बजावत,आवत हे ठेलावाला।
    रिंगी-चिंगी चुसकी धरे,दिखत हे भोलाभाला।
    लईका कूदे देखके ओला।
    पईसा दे दाई जल्दी से मोला।
    अऊ दाई देय चाउर,भर-भर गीना के।
    ए जम्मो चिन्हा हावे गरमी महीना के।।

    सुटूर-साटर घूमत घामत,
    लईका कहत आथें-“ए माँ!”
    सील-लोड़हा म नून-मिरचा पीसदे
    कुचरके खाहा कइचा आमा।
    अऊ ताश खेले मंझनिया पहाये।
    तरिया म डुबकत संझा नहाये।
    नोनी-बाबू के सुध नईये खाना-पीना के।
    ए जम्मो चिन्हा हावे गरमी महीना के।।

    मोहरी बाजत हे कनहू कोती,
    अऊ डीजे म छत्तीसगढ़ी गाना।
    बर-बिहा के सीजन आगिस
    मौजमस्ती म बेरा पहाना।
    गंवई घूमे बर नवा कुरता सिलात हें।
    घाम बाँचे बर टोपी-चसमा बिसात हें।
    फैन्सी समान के गादा होगे हसीना के।
    ए जम्मो चिन्हा हावे गरमी महीना के।।

    (रचयिता :-मनी भाई,
    भौंरादादर,बसना,महासमुन्द)