पृथ्वी दिवस विशेष : ये धरा अपनी जन्नत है

ये धरा अपनी जन्नत है ये धरा,अपनी जन्नत है।यहाँ प्रेम,शांति,मोहब्बत है। ईश्वर से प्रदत्त , है ये जीवन।बन माली बना दें,भू को उपवन।हमें करना अब धरती का देखभाल।वरना पीढ़ी हमारी,हो जायेगी कंगाल।सब स्वस्थ रहें,सब मस्त रहें।यही “मनी” की हसरत है॥1॥ ये धरा …… चलो कम करें,प्लास्टिक का थैला।उठालें झाड़ु हाथों में,दुर करें मैला।नये पौधे लगायें, … Read more

मनखे के कोरा भक्ति पर व्यंग्य

मनखे के कोरा भक्ति पर व्यंग्य

हनुमान जंयती   “धरव -पकड़व -कुदावव”अउ सब्बो झन तोआवव।चढ़गय बेंदरा रूख म त,ढेला घलव बरसावव।अइसने करम करत हावे,आज के मनखे।मनावत हे “हनुमान जयंती”सीधवा अस बनके। सबों जीव के रखबो जीजूरमिल के मानबेंदरा घलव ल तोजानव हनुमानबड़ सुघ्घर नता हावे,बेंदरा अऊ इनसान के।बड़ भारी सेना रहिन ,श्रीराम भगवान के । हनुमान-राम के नता ल,सब्बोझन जानथे।बेंदरा तभ्भे … Read more

शौचालय विशेष छतीसगढ़ी कविता

शौचालय विशेष छतीसगढ़ी कविता सुधारू केहे-“कस रे मितान!तोला सफई के,नईये कछु भान।तोर आस-पास होवथे गंदगीइही च हावे सब्बो बीमारी के खान।” बुधारू कहे-“मय रेहेंव अनजान।लेवो पकड़त हावों मोरो दूनों कान।लेकम येकर सती, का करना चाही संगी ?अहू बात के,  कर दो बखान। सुधारू कहे-“हमर सरकार लमहतारी मोटियारी के चिंता हावे।शौचालय बना लेवो जम्मोये मे अब्बड़ … Read more

सुधारू बुधारू के गोठ -मनीभाई नवरत्न

manibhai Navratna

सुधारू बुधारू के गोठ (छत्तीसगढ़ी व्यंग्य) बुधारू ह गांव के गौंटिया के दमाद के भई के बिहाव म जाय बर फटफटी ल पोछत राहे।सुधारू ओही बखत आ धमकिस।अऊ बुधारू ल कहिस -“कइसे मितान!तोर फूफू सास के नोनी ल अमराय बर (कन्या विदाई ) जात हस का जी।”बुधारू कहिस -“लगन के तारीक ह एके ठन हे … Read more