Author: मनीभाई नवरत्न

  • पृथ्वी दिवस विशेष : ये धरा अपनी जन्नत है

    ये धरा अपनी जन्नत है

    ये धरा,अपनी जन्नत है।
    यहाँ प्रेम,शांति,मोहब्बत है।

    ईश्वर से प्रदत्त , है ये जीवन।
    बन माली बना दें,भू को उपवन।
    हमें करना अब धरती का देखभाल।
    वरना पीढ़ी हमारी,हो जायेगी कंगाल।
    सब स्वस्थ रहें,सब मस्त रहें।
    यही “मनी” की हसरत है॥1॥


    ये धरा ……

    चलो कम करें,प्लास्टिक का थैला।
    उठालें झाड़ु हाथों में,दुर करें मैला।
    नये पौधे लगायें, ऊर्जा बचायें।
    रहन-सहन बदल के, पर्यावरण सजायें।
    खुद जीयें और जीने दें।
    यही तो खुदा की बरकत हैं॥2॥

    ये धरा…..

    आज विकट संकट है प्रकट हुआ।
    ओजोन छतरी में काला चोट हुआ।
    ताप बढ़ रही,नदियाँ घट रहीं।
    भोग विलास के साधन में,वन चौपट हुआ।
    हरा-नीला धरा,श्वेत-श्याम हो रहीं।
    इंसान तेरी ही ये हरकत है॥3॥


    ये धरा…..

  • मनखे के कोरा भक्ति पर व्यंग्य

    मनखे के कोरा भक्ति पर व्यंग्य

    हनुमान जंयती

    मनखे के कोरा भक्ति पर व्यंग्य

      “धरव -पकड़व -कुदावव”
    अउ सब्बो झन तोआवव।
    चढ़गय बेंदरा रूख म त,
    ढेला घलव बरसावव।
    अइसने करम करत हावे,
    आज के मनखे।
    मनावत हे “हनुमान जयंती”
    सीधवा अस बनके।


    सबों जीव के रखबो जी
    जूरमिल के मान
    बेंदरा घलव ल तो
    जानव हनुमान
    बड़ सुघ्घर नता हावे,
    बेंदरा अऊ इनसान के।
    बड़ भारी सेना रहिन ,
    श्रीराम भगवान के ।


    हनुमान-राम के नता ल,
    सब्बोझन जानथे।
    बेंदरा तभ्भे मनखे ल,
    अपन राम मानथे
    फेर बेंदरा ल हनुमान
    मनखे कहाँ मानथे
    वाह – वाह रे मनखे
    बेंदरा के चीरफाड़,
    परयोग बर करथे
    अउ कोनो दूसर नही
    हमरे संही मनखे।
    मनावत हे “हनुमान जयंती”
    सीधवा अस बनके।

    मनीभाई नवरत्न

  • शौचालय विशेष छतीसगढ़ी कविता

    शौचालय विशेष छतीसगढ़ी कविता

    सुधारू केहे-“कस रे मितान!
    तोला सफई के,नईये कछु भान।
    तोर आस-पास होवथे गंदगी
    इही च हावे सब्बो बीमारी के खान।”

    बुधारू कहे-“मय रेहेंव अनजान।
    लेवो पकड़त हावों मोरो दूनों कान।
    लेकम येकर सती, का करना चाही संगी ?
    अहू बात के,  कर दो बखान।

    सुधारू कहे-“हमर सरकार ल
    महतारी मोटियारी के चिंता हावे।
    शौचालय बना लेवो जम्मो
    ये मे अब्बड़ सुभीता हावे ।


    रात-बिकाल के संशो नी,बिछी-कुछी के डर।
    सफ्फा रेहे हामर घर, अऊ सफ्फा रेहे डहर।
    बीमारी होही अब्बड़ दूर ,खुसियाली छाही।
    देस-बिदेस म हामर गाँ भी प्रसिद्धि पाही।”

    सुधारू के कहे म बुधारू
    एक चीज मन म पालय हे।
    अऊ चीज हावे रे संगी
    “जहाँ सोच हे वहाँ शौचालय हे।”

    manibhainavratna
    manibhai navratna

    (रचयिता:- मनी भाई)

  • हे भारत विधि विधाता /मनीभाई नवरत्न

    हे भारत विधि विधाता /मनीभाई नवरत्न

    14 अप्रैल बाबा साहब भीमराव अंबेडकर जयंती विशेष कविता-भीमराव रामजी आम्बेडकर (14 अप्रैल1891 – 6 दिसंबर1956), डॉ॰ बाबासाहब आम्बेडकर नाम से लोकप्रिय, भारतीय बहुज्ञविधिवेत्ताअर्थशास्त्रीराजनीतिज्ञ, और समाजसुधारक थे।[1] उन्होंने दलित बौद्ध आंदोलन को प्रेरित किया और अछूतों (दलितों) से सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध अभियान चलाया था। श्रमिकों, किसानों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन भी किया था। वे स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मन्त्रीभारतीय संविधान के जनक एवं भारत गणराज्य के निर्माताओं में से एक थे।

    dr bhimrao ambedkar
    महान व्यक्तित्व पर हिन्दी कविता

    हे भारत विधि विधाता /मनीभाई नवरत्न

    तुम-सा वीर विद्वान पाके, भारत है धनी।
    हे भारत विधि विधाता! हम तेरे  हैं ऋणी।

    घनघोर निरक्षरता की अंधेरा
    था काल बना समक्ष खड़ा।
    ज्ञान की मशाल लिए भीम तू,
    निडर निष्पक्ष  हो के, आगे बढ़ा।
    तेरी कर्मठता से आधुनिक भारत है बनी ।
    हे संविधान निर्माता ! हम तेरे हैं  ऋणी।

    मानवता हमसे  हो रही थी ,
    ऊँच-नीच से कोसों दूर।
    जात-पाँत और कर्मकांड में,
    फंस गये थे होके मजबूर ।
    भीम कहे, अब हमें अन्याय नहीं सहनी ।
    हे दलित कष्टहर्ता! हम तेरे हैं  ऋणी ।

    करके तुने अस्पृश्यता का अंत,
    दिलाई हमें धार्मिक स्वतंत्रता ।
    महिला विशेषाधिकार दिलाई,
    उन्मूलन की आर्थिक असमानता ।
    हम दलितों के लिए तू, प्रेम-वत्सला जननी।
    हे आडम्बर मुक्तिदाता! हम तेरे हैं  ऋणी । ।

    अंधविश्वास  की तोड़ रस्में ,
    विज्ञानवाद का सहारा लिया ।
    पंचशील,अनीश्वरवाद दर्शन से
    पहले भारतीय बनने का नारा दिया।
    हे महामानव!अनुसरण करें तेरा ये”मनी”।
    हे विधिवेत्ता !  हम तेरे हैं  ऋणी ।
    -मनीभाई नवरत्न

  • सुधारू बुधारू के गोठ -मनीभाई नवरत्न

    सुधारू बुधारू के गोठ -मनीभाई नवरत्न

    सुधारू बुधारू के गोठ (छत्तीसगढ़ी व्यंग्य)

    manibhai Navratna
    मनीभाई पटेल नवरत्न

    बुधारू ह गांव के गौंटिया के दमाद के भई के बिहाव म जाय बर फटफटी ल पोछत राहे।सुधारू ओही बखत आ धमकिस।
    अऊ बुधारू ल कहिस -“कइसे मितान!तोर फूफू सास के नोनी ल अमराय बर (कन्या विदाई ) जात हस का जी।”
    बुधारू कहिस -“लगन के तारीक ह एके ठन हे मितान ।फुफा के समधी ह सादा व्यवस्था करे हे अऊ गौंटिया के दमाद ह आज रंगीन व्यवस्था करे हे।अऊ बिहाव म मोला रोना-धोना बिलकुल पसंद नईये।तिकर पाय आज रंगीन प्रोग्राम बन  गय हावे “
    बुधारू के  गोठ सुनके सुधारू ह असल बात ल समझ गय रहिस कि आजकल रिश्ता-नता के अहमियत ले जादा बिहाव म खानापीना के व्यवस्था म वजन रईथे ।


    (लिखैय्या :- मनी भाई )