ये धरा,अपनी जन्नत है। यहाँ प्रेम,शांति,मोहब्बत है।
ईश्वर से प्रदत्त , है ये जीवन। बन माली बना दें,भू को उपवन। हमें करना अब धरती का देखभाल। वरना पीढ़ी हमारी,हो जायेगी कंगाल। सब स्वस्थ रहें,सब मस्त रहें। यही “मनी” की हसरत है॥1॥
ये धरा ……
चलो कम करें,प्लास्टिक का थैला। उठालें झाड़ु हाथों में,दुर करें मैला। नये पौधे लगायें, ऊर्जा बचायें। रहन-सहन बदल के, पर्यावरण सजायें। खुद जीयें और जीने दें। यही तो खुदा की बरकत हैं॥2॥
ये धरा…..
आज विकट संकट है प्रकट हुआ। ओजोन छतरी में काला चोट हुआ। ताप बढ़ रही,नदियाँ घट रहीं। भोग विलास के साधन में,वन चौपट हुआ। हरा-नीला धरा,श्वेत-श्याम हो रहीं। इंसान तेरी ही ये हरकत है॥3॥
तुम-सा वीर विद्वान पाके, भारत है धनी। हे भारत विधि विधाता! हम तेरे हैं ऋणी।
घनघोर निरक्षरता की अंधेरा था काल बना समक्ष खड़ा। ज्ञान की मशाल लिए भीम तू, निडर निष्पक्ष हो के, आगे बढ़ा। तेरी कर्मठता से आधुनिक भारत है बनी । हे संविधान निर्माता ! हम तेरे हैं ऋणी।
मानवता हमसे हो रही थी , ऊँच-नीच से कोसों दूर। जात-पाँत और कर्मकांड में, फंस गये थे होके मजबूर । भीम कहे, अब हमें अन्याय नहीं सहनी । हे दलित कष्टहर्ता! हम तेरे हैं ऋणी ।
करके तुने अस्पृश्यता का अंत, दिलाई हमें धार्मिक स्वतंत्रता । महिला विशेषाधिकार दिलाई, उन्मूलन की आर्थिक असमानता । हम दलितों के लिए तू, प्रेम-वत्सला जननी। हे आडम्बर मुक्तिदाता! हम तेरे हैं ऋणी । ।
अंधविश्वास की तोड़ रस्में , विज्ञानवाद का सहारा लिया । पंचशील,अनीश्वरवाद दर्शन से पहले भारतीय बनने का नारा दिया। हे महामानव!अनुसरण करें तेरा ये”मनी”। हे विधिवेत्ता ! हम तेरे हैं ऋणी । -मनीभाई नवरत्न
बुधारू ह गांव के गौंटिया के दमाद के भई के बिहाव म जाय बर फटफटी ल पोछत राहे।सुधारू ओही बखत आ धमकिस। अऊ बुधारू ल कहिस -“कइसे मितान!तोर फूफू सास के नोनी ल अमराय बर (कन्या विदाई ) जात हस का जी।” बुधारू कहिस -“लगन के तारीक ह एके ठन हे मितान ।फुफा के समधी ह सादा व्यवस्था करे हे अऊ गौंटिया के दमाद ह आज रंगीन व्यवस्था करे हे।अऊ बिहाव म मोला रोना-धोना बिलकुल पसंद नईये।तिकर पाय आज रंगीन प्रोग्राम बन गय हावे “ बुधारू के गोठ सुनके सुधारू ह असल बात ल समझ गय रहिस कि आजकल रिश्ता-नता के अहमियत ले जादा बिहाव म खानापीना के व्यवस्था म वजन रईथे ।