
धूप की ओट में बैठा क्षितिज / निमाई प्रधान’क्षितिज’
धूप की ओट में बैठा क्षितिज /निमाई प्रधान’क्षितिज’ रवि-रश्मियाँ-रजत-धवल पसरीं वर्षान्त की दुपहरी मैना की चिंचिंयाँ-चिंयाँ से शहर न लगता था शहरी वहीं महाविद्यालय-प्रांगण में प्राध्यापकों की बसी सभा थी किंतु परे ‘वह’ एक-अकेला छांव पकड़ना सीख रहा था !…