Category हिंदी कविता

भारत माता रोती है -हृषिकेश प्रधान “ऋषि”

         भारत माता रोती है जब-जब सीमा पर अपना,वीर सपूत खोती है ।तब भारत माता रोती है,तब भारत माता रोती है ।। सीने से लगाकर मां जिसको दूध पिलाती ।गोद में बिठाकर मां जिसको रोटी खिलाती ।छाती में लिटाकर  मां…

स्वरोजगार तुमको ढूंढना हैं/डीजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”

“डीजेन्द्र कुर्रे की कविता ‘स्वरोजगार तुमको ढूंढना है’ में स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता की प्रेरणा दी गई है। यह कविता युवाओं को स्वरोजगार के महत्व को समझाते हुए उन्हें प्रेरित करती है कि वे अपने सपनों को पूरा करने के लिए…

पिता होने की जिम्मेदारी – नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

पिता होने की जिम्मेदारी दो बच्चों का पिता हूँ मेरे बच्चे अक्सर रात मेंओढ़ाए हुए चादर फेंक देते हैओढ़ाता हूँ फिर-फिरवे फिर-फिर फेंकते जाते हैं उन्हें ओढ़ाए बिना… मानता ही नहीं मेरा मन वे होते है गहरी नींद मेंउनके लिए अक्सर…

पितृ पक्ष का सच्चा श्राद्ध-धनंजय सिते(राही)

पितृ पक्ष का सच्चा श्राद्ध ‘ आजका बच्चा कलका यूवाऔर परसो बुढ़ा होना है!ये प्रकृती का नियम है सबकोएक दिन इससे गुजरना है!!                  २आजकी बेटी कल पत्नी मातापरसो वह भी बनेगी सास!बेटा…

इंतज़ार आँखे में

इंतज़ार आँखे में इंतज़ार करती है आँखेहर उस शक्श की, जिसकी जेब भरी हो,किस्मत मरी हो, लूट सके जिसे,छल सके जिसे, इंतज़ार करती है आँखे। इंतज़ार करती है आँखेहर उस बीमार की, जो जूझ रहा है मर्ज में,औंधे पड़ा है फर्श में, कर सके…

village based Poem

मेरे गांव का बरगद – नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

मेरे गांव का बरगद  मेरे गाँव का बरगदआज भी वैसे ही खड़ा हैजैसे बचपन में देखा करता थाजब से मैंने होश संभाला हैअविचलवैसे ही पाया है हम बचपन में उनकी लटों से झूला करते थेउनकी मोटी-मोटी शाखाओंके इर्द-गिर्द छुप जाया करते थेधूप हो…

जीवन रुपी रेलगाड़ी – सावित्री मिश्रा

जीवन रुपी रेलगाड़ी कभी लगता है जीवन एक खेल है,कभी लगता है जीवन एक जेल है।पर  मुझे लगता है कि ये जीवनदो पटरियों पर दौड़ती रेल है।भगवान ने जीवन रुपी रेल काजितनी साँसों का टिकट दिया है,उससे आगे किसी ने…

तुम्हारे होने का अहसास

तुम्हारे होने का अहसास तुम आसपास नहीं होतेमगर आसपास होते हैंतम्हारे होने का अहसासमन -मस्तिष्क में संचिततुम्हारी आवाजतुम्हारी छविअक़्सरहूबहूवैसी-हीबाहर सुनाई देती हैदिखाई देती हैतत्क्षणतुम्हारे होने के अहसास से भर जाता हूँधड़क जाता हूँकई बार खिड़की के पर्दे हटाकरबाहर देखने लग जाता हूँयह सच…

हाइकु

सुकमोती चौहान के हाइकु

सुकमोती चौहान के हाइकु पितर पाख~पति की तस्वीर मेंफूलों की माला। पूस की रात~भुट्टे भून रही हैअलाव में माँ। श्मशान घाट~कुत्ते के भौंकने सेसहमा रामू। श्रृंगार पेटी~गौरैया नोंचे देखशीशा में छवि। गौरैया झुँड़चुग रहे हैं दाने~धूप सुगंध। पीपल पातखा रही…

बेटी की पुकार

      बेटी की पुकार पिता का मैं ख्याल रखूंगीतेरे कहे अनुसार मैं चलूंगीरूखी सूखी ही मैं खा लूंगीमत मार मुझे सुन मेरी मांमुझे धरा पर आने तो दे।।बोझ मैं तुमपर नहीं बनूंगीपढ़ लिख कर बड़ा बनूंगीतेरा मैं नाम…