Category हिंदी कविता

धरती हमको रही पुकार

धरती हम को रही पुकार । समझाती हमको हर बार ।। काहे जंगल काट रहे हो ।मानवता को बाँट रहे हो ।इससे ही हम सबका जीवन,करें सदा हम इससे प्यार ।। धरती हमको रही पुकार ।। बढ़ा प्रदूषण नगर नगर…

विनाश की ओर कदम

विनाश की ओर कदम नदी ताल में  कम  हो  रहा  जलऔर हम पानी यूँ ही बहा  रहे हैं।ग्लेशियर पिघल रहे  और  समुन्द्रतल   यूँ ही  बढ़ते  ही जा रहे  हैं।।काट कर सारे वन  कंक्रीट के कईजंगल  बसा    दिये    विकास   ने।अनायस ही…

कर डरेन हम ठुक-ठुक ले

कर डरेन हम ठुक- ठुक ले पुरखा के रोपे रूख राईकर डरेन हम ठुक-ठुक  ले.. ……नोहर होगे तेंदू चार बर..जिवरा कईसे करे मुच-मुच ले… ताते तात के जेवन जेवईया ,अब ताते तात हवा खावत हन ..अपन सुवारथ के चक्कर म,रूख…

धरती के श्रृंगार

धरती के श्रृंगार वृक्ष हमारी प्राकृतिक सम्पदा,धरती के श्रृंगार हैं!प्राणवायु देते हैं हमको,ऐसे परम उदार हैं!!वृक्ष हमें देते हैं ईंधन,और रसीले फल हैं देते!बचाते मिट्टी के कटाव को,वर्षा पर हैं नियंत्रण करते!!वृक्ष औषधियाँ प्रदान कर,जीवन सम्भव बनाते हैं!औरों की खातिर…

वृक्ष कोई मत काटे

वृक्ष कोई मत काटे काटे जब हम पेड़ को,कैसे पावे छाँव।कब्र दिखे अपनी धरा,उजड़े उजड़े गाँव।।उजड़े उजड़े गाँव,दूर हरियाली भागे।पर्यावरण खराब,देख मानव कब जागे।।उपवन को मत काट,कमी को हम मिल पाटे।ऑक्सीजन से जान,वृक्ष कोई मत काटे।। देते ठंडक जो हमे,करते…

प्रकृति मातृ नमन तुम्हें

प्रकृति मातृ नमन तुम्हें हे! जगत जननी,             हे! भू वर्णी….हे! आदि-अनंत,            हे! जीव धर्णी।हे! प्रकृति मातृ नमन तुम्हेंहे! थलाकृति…हे! जलाकृति,हे! पाताल करणी,हे! नभ गढ़णी।हे! विशाल पर्वत,हे! हिमाकरणी,हे! मातृ जीव प्रवाह वायु भरणी।हे! प्रकृति मातृ नमन तुम्हेतू धानी है,वरदानी है..तुझे ही…

कुछ तोड़ें कुछ जोड़ें

कुछ तोड़ें कुछ जोड़ें चलोआज कुछरिश्ते तोड़ें,चलोंआज कुछरिश्तें जोड़ें…..!प्लास्टिक,पॉलीथीनबने अंग जो जीवन केइनसे नाता तोड़ें,जहाँ-तहाँकचरा फेंकना,नदियों का पानीदूषित करनाइस आदत को भी छोड़ें…!!अलग-अलग हो कचराजैविक और अजैविकहर घर में खुदाएक गड्ढा होसब गीला कचराउसमें पड़ता होउससे जैविक खाद बनायेंजैविक खाद…

गर्मी बनी बड़ी दुखदाई

गर्मी बनी बड़ी दुखदाई ताल-तलैया नदियाँ झरनें,कुँआ बावली सब सूख गए।महि अंबर पर त्राहिमाम है,जीवन संकट अब विकट भए ।। तपती धरती कहती हमको,अतिशय दोहन अब बंद करो।हरा-भरा आच्छादित वन हो,तुम ऐसा उचित प्रबंध करो ।। ~कविता बहार से जुड़ने…

पेड़ धरा का हरा सोना है

पेड़ धरा का हरा सोना है  ये कैसा कलयुग आया हैअपने स्वार्थ के खातिरइंसान जो पेड़ काट रहा हैअपने ही पैर में कुल्हाड़ी मार रहा हैबढते ताप में स्वयं नादान जल रहा हैबढ़ रही है गर्मी,कट रहे हैं पेड़या कट…

मैं छोटी सी टिवंकल

मैं छोटी सी टिवंकल मैं छोटी सी टिवंकल,क्या बताऊ क्या भोगा,आदमी के रूप में,राक्षस है ये लोगा ।मैं तो समझी उसको चाचा,मैं मुनियाँ छोटी सी,मैंने नही उसको बाँचा,गोद में बैठ चली गई,उस दरिंदे से छली गई ,दो उस कुत्तेको बद्दुआउस…