Category: दिन विशेष कविता

  • कारगिल विजय दिवस पर कविता

    कारगिल विजय दिवस पर कविता

    कारगिल विजय दिवस

    कारगिल विजय दिवस पर कविता
    कारगिल-की-वीर

    कारगिल विजय दिवस है,जीत का त्यौहार है ।
    उन  शहीदों  को  नमन  है,वंदन  बार-बार है ।।

    वीर तुम बढे चले थे,चल रही थी गोलियाँ ।
    बर्फ  की  चादरों   पे दुश्मनों की टोलीयाँ ।।
    मगर तुम रुके  नहीं,   इंच भी डिगे नहीं ।
    सर्द  थी   घाटियाँ    पर  लहुँ में  गर्मियाँ ।।
    हाथ में तिरंगा और जय हिंद की बोलियाँ ।
    दुश्मनों के टैंक को तुमने जब उडाया था ।।
    देख शौर्य सेना   का  पाक थर्राया था ।
    याद में बहने लगी आँसुओ की धार है ।।
    उन  शहीदों  को  नमन  है,वंदन  बार-बार है ।

    कितने लाल मिट गये, पुंछ गया सिंदूर था ।
    खोकर पुत्र  पिता का  ह्रदय चूर-चूर था ।।
    पूछती थी बेटियाँ की पापा  कब आएंगे ।
    फ्रॉक का किया था वादा कब हमें दिलाएंगे ।।
    चुप पड़ी थी राखियाँ सूनी थी कलाइयाँ ।
    माँ भी आखरी समय ले रही बलाईया ।।
    उठ रही थी अर्थियां गाँव उमड़ ही पड़ा ।
    देश का वो लाडला लो चला लो चला ।।
    हम सभी आज भी उनके कर्जदार है ।
    उन शहीदों को नमन है वंदन बार -बार है।।

    देश की विडंबना, ये भी कैसा दौर है ।
    लाश है शीशकटी और सब खामोश है ।।
    सेना के न हाथ बांधो एक बार खोल दो ।
    छोड़कर शान्ति के युद्ध बोल बोल दो ।।
    शान से जियेंगे या तो शान से मरेंगे हम ।
    रोज-रोज की पीड़ा अब न सहेंगे हम ।।
    ख्वाब में बिल्ली के छिछड़ो की बात है ।
    शेरो से लड़ेंगे क्या गीदड़ों की जात है ।।
    अब तो युद्ध  में केवल आर-पार  है ।
    उन शहीदों को नमन है वंदन बार -बार है ।।

                              ‘ पंकज

  • जुल्मी-अगहन

    जुल्मी-अगहन

    HINDI KAVITA || हिंदी कविता
    HINDI KAVITA || हिंदी कविता

    जुलुम ढाये री सखी,
    अलबेला अगहन!
    शीत लहर की कर के सवारी,
    इतराये चौदहों भुवन!!
    धुंध की ओढ़नी ओढ़ के धरती,
    कुसुमन सेज सजाती।
    ओस बूंद नहा किरणें उषा की,
    दिवस मिलन सकुचाती।


    विश्मय सखी शरमाये रवि- वर,
    बहियां गहे न धरा दुल्हन!!जुलूम…..
    सूझे न मारग क्षितिज व्योम-
    पथ,लथपथ पड़े कुहासा।


    प्रकृति के लब कांपे-
    न बूझे,वाणी की परिभाषा।
    मन घबराये दुर्योग न हो कोई-
      मनुज निसर्ग से अलहन!!जुलुम….


    बैरी”पेथाई”दंभी क्रूर ने-
    ऐसा कहर बरपाया।
    चहुं दिशि घुमर-घुमर-
    आफत की, बारिश है बरसाया।

    नर- नारी भये त्रस्त,मुए ने-
    लई चतुराई बल हन!! …..
    माथ धरे मोरे कृषक सखा री,
    कीट पतंगा पे रोये।


    अंकुर बचे किस विधि विधाता-
    मेड़-खार भर बोये।
    शीत चपेट पड़ जाये न पाला-
    आस फसल मोरी तिलहन!!जुलुम….
    अंखिया अरोय समय अड़गसनी,

    असवन निकली सुखाने।
    सरहद प्रहरी पिय के किंचित-
    दरश हों इसी बहाने।
    झांकती रजनी चांदनी चिलमन-
    शकुन ठिठुर गइ विरहन!!जुलुम….
     
    @शकुन शेंडे
    छत्तीसगढ़

  • वाल्मीकि जयंती पर कविता

    वाल्मीकि जयंती पर कविता: सनातन धर्म में महर्षि वाल्मिकी को प्रथम कवि मनाया गया। दूसरी ओर महान ग्रंथ रामायण की रचना थी। वाल्मिकी जयन्ती महर्षि के जन्मदिवस के रूप में मनाई जाती है।

    वाल्मीकि जयंती पर कविता

    एक भगवान् आप

    o आचार्य मायाराम ‘पतंग’

    एक भगवान् आप थे मानव महा

    मृत्तिका का ढेर अपने शीश पर कैसे सहा ?

    आह अपना तन किया तरु का तना

    चींटियों ने घर लिये जिस पर बना

    किंतु तिल भी डगमगाए तुम नहीं

    भुनभुनाए, तमतमाए तक नहीं

    हे स्थिर मना सुदृढ़ तन

    पर बहुत कोमल मन

    सहज संवेदना आपने देखा

    लगा यह बाण हरने प्राण

    हा ! उस क्रौंच को पापी बधिक ने

    दे दिया दुःख गहन बिन अपराध के

    ‘सुख न पाएगा कभी’ मन कह गया

    दुर्भाग्य के दिन आ गए उस व्याध के

    तुम कह गए या स्वयं करुणा स्रोत से तुम बह गए।

    तड़पती क्रौंचनी-सी ही प्रखर गहरी चुभन मन में उठी

    तड़पन तुम्हारे सहज मुनिवर

    और व्याकुलता हुई अभिव्यक्त रामायण रची फिर आपने

    हो गए हम आज बिलकुल शून्य ही संवेदना से हीन

    सब कुछ आज है प्रतिकूल

    होती रोज हत्या, लूट

    सबको मिल गई छूट

    पशु-पक्षी बचाए कौन ?

    गिनती मानवों की ही नहीं होती

    कि कितने मर गए? मारे गए कितने ?

    न कोई पूछता है अब कहाँ कितने लूटे ? कितने पिटे ?

    अब हर गली में ही व्याध

    प्रतिदिन कर रहे अपराध

    हम सब देखते हैं पर न कोई उठ रही संवेदना

    बस सो गया अंत:करण मृत हो गया मन

    हाय ! हे ऋषिवर हमारा !

  • रक्षाबंधन पर कविता

    रक्षाबंधन पर कविता: रक्षा बंधन, या राखी, भाई-बहनों के बीच अटूट प्यार को दर्शन देने के लिए मनाया जाता है। यह त्यौहार अप्राकृतिक श्रावण मास (सावन माह) की पूर्णिमा तिथि (पूर्णिमा दिवस) पर आधारित है। इस दिन बहन पूजा- माणिक्य वैज्ञानिकों की कलाइयों पर राखियां बांधती हैं और उनके स्वास्थ्य एवं जीवन में सफल होने की कामना करती हैं।

    रक्षाबंधन पर कविता

    प्राण वीरों भले ही गँवाना

    ● वैद्य गोपाल दत्त

    प्राण वीरों भले ही गँवाना, पर न राखी की इज्जत घटाना ।

    यह जो राखी तिरंगी हमारी, देती इज्जत इसे हिंद सारी ।

    भाई इसको न हरगिज लजाना, चाहे जाना पड़ें जेलखाना ।

    प्राण वीरो भले ही….

    हम न भूले हैं जलियाँवाला, जहाँ पे डायर से पड़ा पाला ।

    पेट के बल था उसने रेंगाया, देश की लाज सब बहा आया ।

    अब की ऐसा न आएं जमाना, चाहे जाना पड़ें जेलखाना।

    प्राण वीरो भले ही….

    है वह स्वराज्य मंदिर हमारा, जहाँ पे बैठा है गांधी सितारा।

    वहाँ पर पहुँचे हैं हजारों भाई और बहिनों की भी माँग आई।

    अब तो वहीं है सबका ठिकाना, आओ सारे चलें जेलखाना।

    प्राण वीरो भले ही….

    याद रखना पेशावर की गोली, खेलना हिंद में वह ही होली ।

    जिससे माथा हो ऊँचा हमारा, और आजाद हो हिंद प्यारा।

    बात अपनी न नीची कराना, चाहे जाना पड़ें जेलखाना

    प्राण वीरो भले ही….

    दक्षिणा बस यही है तुम्हारी, लाज राखी की रखना हमारी।

    चाहे डंडे पड़ें तुमको खाना, पैर हरगिज न पीछे हटाना ।

    या तो गोली को सीने पै खाना, या कि सीधे चलो जेलखाना ।

    प्राण वीरो भले ही…

  • 23 मार्च सरदार भगतसिंह बलिदान दिवस पर कविता

    भगतसिंह बलिदान दिवस पर कविता: इस दिन को बेहद विचित्र दिन के रूप में याद किया जाता है। वहीं 23 मार्च को भगत सिंह (भगत सिंह), राजगुरु (राजगुरु) और सुखदेव (सुखदेव) को फाँसी दे दी गई थी। इसलिए 23 मार्च को अमर शहीद के बलिदान को याद करके शहीद दिवस मनाया जाता है। इस दिन इन शहीद को रक्षाबंधन की शुभकामनाएं दी जाती हैं

    23 मार्च सरदार भगतसिंह बलिदान दिवस पर कविता

    o आचार्य मायाराम ‘पतंग”

    जो जन्म भू पर हो गया बलिदान बंधुओ !

    अंत:करण स कीजिए सम्मान बंधुओ !!

    तेईस वर्ष की उम्र का वह नौजवान था।

    था वीरता की मूर्ति वह भारत की शान था।

    सबके लिए थी प्रेरणा जन-जन का प्राण था ।

    गौरव समस्त देश का साहस की खान था ।

    सरदार भगत सिंह था युग मान बंधुओ !

    अंतः करण से कीजिए सम्मान बंधुओ !!

    बम तो प्रतीक मात्र था, मन की मशाल का ।

    आकंठ देशप्रेम के उठते उबाल का ।

    भीतर धधकती क्रांति की उस उग्र ज्वाल का ।

    वह था जवाब सामयिक जलते सवाल का ।

    मिल-जुल शहीद का करें यशगान बंधुओ!

    अंत:करण से कीजिए सम्मान बंधुओ !!

    भागा नहीं वह सिंह-सा जमकर यों खड़ा था ।

    पर्वत किसी तूफान के आगे ज्यों अड़ा था।

    हँस के जवान मौत के सीने पे चढ़ा था।

    माँ के मुकुट में कीमती मोती-सा जड़ा था।

    मलयज भी उसका कर रहा गुणगान बंधुओ !

    अंतःकरण से कीजिए सम्मान बंधुओ !!

    फाँसी का फंदा चूमके, चंदा से जा मिला।

    बगिया धरा की छोड़ के आकाश में खिला ।

    हँस के परंतु कह गया मुझको नहीं गिला ।

    बलिदान मातृभूमि हित जनमों का सिलसिला

    भारत महान् पर हमें अभिमान बंधुओ !

    अंत:करण से कीजिए सम्मान बंधुओ !!