कारगिल विजय दिवस
कारगिल विजय दिवस है,जीत का त्यौहार है ।
उन शहीदों को नमन है,वंदन बार-बार है ।।
वीर तुम बढे चले थे,चल रही थी गोलियाँ ।
बर्फ की चादरों पे दुश्मनों की टोलीयाँ ।।
मगर तुम रुके नहीं, इंच भी डिगे नहीं ।
सर्द थी घाटियाँ पर लहुँ में गर्मियाँ ।।
हाथ में तिरंगा और जय हिंद की बोलियाँ ।
दुश्मनों के टैंक को तुमने जब उडाया था ।।
देख शौर्य सेना का पाक थर्राया था ।
याद में बहने लगी आँसुओ की धार है ।।
उन शहीदों को नमन है,वंदन बार-बार है ।
कितने लाल मिट गये, पुंछ गया सिंदूर था ।
खोकर पुत्र पिता का ह्रदय चूर-चूर था ।।
पूछती थी बेटियाँ की पापा कब आएंगे ।
फ्रॉक का किया था वादा कब हमें दिलाएंगे ।।
चुप पड़ी थी राखियाँ सूनी थी कलाइयाँ ।
माँ भी आखरी समय ले रही बलाईया ।।
उठ रही थी अर्थियां गाँव उमड़ ही पड़ा ।
देश का वो लाडला लो चला लो चला ।।
हम सभी आज भी उनके कर्जदार है ।
उन शहीदों को नमन है वंदन बार -बार है।।
देश की विडंबना, ये भी कैसा दौर है ।
लाश है शीशकटी और सब खामोश है ।।
सेना के न हाथ बांधो एक बार खोल दो ।
छोड़कर शान्ति के युद्ध बोल बोल दो ।।
शान से जियेंगे या तो शान से मरेंगे हम ।
रोज-रोज की पीड़ा अब न सहेंगे हम ।।
ख्वाब में बिल्ली के छिछड़ो की बात है ।
शेरो से लड़ेंगे क्या गीदड़ों की जात है ।।
अब तो युद्ध में केवल आर-पार है ।
उन शहीदों को नमन है वंदन बार -बार है ।।
‘ पंकज‘