जलियाँवाला बाग की वेदी पर कविता
नहीं लिया हथियार हाथ में
● माखनलाल चतुर्वेदी
नहीं लिया हथियार हाथ में, नहीं किया कोई प्रतिकार,
‘अत्याचार न होने देंगे’, बस इतनी ही थी मनुहार ।
सत्याग्रह के सैनिक थे ये सब सहकर रहकर उपवास,
वास बंदियों में स्वीकृत था, हृदय-देश पर था विश्वास ।
मुरझा तन था, निश्चय मन था, जीवन ही केवल धन था,
मुसलमान हिंदूपन छोड़ा, बस निर्मल अनापन था ।
मंदिर में था चाँद चमकता, मसजिद में मुरली की तान,
मक्का हो चाले वृंदावन, होते आपस में कुरबान ।
सूखी रोटी दोनों खाते, पीते थे रावी का जल,
मानो मल धोने को पाया, उसने अहा उसी दिन बल ।
गुरु गोविंद तुम्हारे बच्चे, अब भी तन चुनवाते हैं।
पथ से विचलित न हों, मुदित, गोली से मारे जाते हैं।
गली-गली में अली-अली की गूँज मचाते हिल-मिलकर,
मारे जाते कर न उठाते, हृदय चढ़ाते खिल-खिलकर।
कहो करें क्या, बैठे हैं हम, सुनें मस्त आवाजों को,
धो लेवें रावी के जल से, हम इन ताजे घावों को ।
रामचंद्र मुखचंद्र तुम्हारा, घातक से कब कुम्हलाया,
तुमको मारा नहीं वीर, अपने को उसने मरवाया ।
जाओ – जाओ जाओ प्रभु को, पहुँचाओ स्वदेश-संदेश,
‘गोली से मारे जाते हैं भारतवासी हे सर्वेश !’
रामचंद्र तुम कर्मचंद्र सुत बनकर आ जाना सानंद,
जिससे माता के संकट के बंधन तोड़ सको स्वच्छंद ।
चिंता है होवे न कलंकित, हिंदू धर्म, पाक इसलाम,
गावें दोनों सुध-बुध खोकर या अल्ला, जय-जय घनश्याम ।
स्वागत है सब जगतीतल का, उसके अत्याचारों का,
अपनापन रखकर स्वागत है, उसकी दुर्बल मारों का ।
हिंदू-मुसलिम ऐक्य बनाया, स्वागत उन उपहारों का,
पर मिटने के दिवस रूप धर आवेंगे त्योहारों का ।
गोली को सह जाओ प्रिय अब्दुल करीम बन जाओ,
अपनी बीती खुदा तक, अपने बनकर पहुंचाओ।