Category: दिन विशेष कविता

  • धरती पर प्रेम का दूसरा रूप है मेरी माँ – धमेन्द्र वर्मा

    मातृपितृ पूजा दिवस भारत देश त्योहारों का देश है भारत में गणेश उत्सव, होली, दिवाली, दशहरा, जन्माष्टमी, नवदुर्गा त्योहार मनाये जाते हैं। कुछ वर्षों पूर्व मातृ पितृ पूजा दिवस प्रकाश में आया। आज यह 14 फरवरी को देश विदेश में मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ में रमन सरकार द्वारा प्रदेश भर में आधिकारिक रूप से मनाया जाता है।

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    माँ पर कविता

    धरती पर प्रेम का दूसरा रूप है मेरी

    धरती पर प्रेम का दूसरा रूप है मेरी माँ।
    इस धरती पर मेरी रोशनी है मेरी माँ।।
    ‘‘धरती पर प्रेम का दूसरा रूप है मेरी माँ’’


    इस धरती पर सूने जीवन की आशा है मेरी माँ।
    धरती पर ईश्वर का दूसरा अवतार है मेरी माँ।।
    ‘‘धरती पर प्रेम का दूसरा रूप है मेरी माँ’’


    मेरे रोशन होते चेहरे का कारण है मेरी माँ।
    मेरे घर के स्वर्ग होने का अहसास दिलाती है मेरी माँ।।
    ‘‘धरती पर प्रेम का दूसरा रूप है मेरी माँ’’


    तेरे बिना जीवन में अंधेरा ही अँधेरा है मेरी माँ।
    मेरे प्रति तेरा प्रेम अमूल्य है मेरी माँ।।
    ‘‘धरती पर प्रेम का दूसरा रूप है मेरी माँ’’


    तू है अगर जीवन में, सब मुमकिन हैं मेरी माँ।
    मुझे तूने अपने रक्त से सींचकर बनाया है मेरी माँ।।
    ‘‘धरती पर प्रेम का दूसरा रूप है मेरी माँ’’


    मुझे विश्व मे तू ंसबसे प्यारी है मेरी माँ।
    तेरे आशीर्वाद से बडे से बडे कष्ट टल जाते है मेरी माँ।।
    ‘‘धरती पर प्रेम का दूसरा रूप है मेरी माँ’’


    तू अगर साथ है, तो जीवन में उजाला है मेरी माँ।
    वो घर घर नहीं होता, जिस घर में नहीं होती है माँ।।
    ‘‘धरती पर प्रेम का दूसरा रूप है मेरी माँ’’


    जब तक मैं घर नहीं लौटता, तब तक नहीं सोती है मेरी माँ।
    तेरा प्यार ही दुनिया में सबसे निराला है मेरी माँ।।
    ‘‘धरती पर प्रेम का दूसरा रूप है मेरी माँ’’


    मुझे मेरी पहली धड़कन देती है मेरी माँ।
    तेरा प्रेम ही विश्व में सबसे उच्च प्रेम हैं मेरी प्यारी माँ।।
    ‘‘धरती पर प्रेम का दूसरा रूप है मेरी माँ’’


    जग में है अगर अधियारा, तो मेरे लिये उजाला है मेरी माँ।
    मुझे तेरे आँचल जैसा प्रेम मुझे कहीं नहीं मिलता मेरी माँ।।
    ‘‘धरती पर प्रेम का दूसरा रूप है मेरी माँ’’


    धमेन्द्र वर्मा (लेखक एवं कवि)
    जिला-आगरा, राज्य-उत्तर प्रदेश
    मोबाइल नं0-9557356773
    वाटसअप नं0-9457386364

  • पुलवामा पर कविता

    पुलवामा पर कविता

    प्रेम दिवस पर पुलवामा में,
    परवानों को प्यार हुआ।
    आज गीदड़ों के हाथों,
    था शेरों का संहार हुआ।।
    कट गई,फट गई,बंट गई वो,
    फिर भी उसको हमदर्दी थी।
    सहज सहेजे थी अब तक,
    वो खून में भीगी वर्दी थी।।
    सिसका सिंदूर, रोई राखी,
    माता जी सांसे भूल गई।
    भाई,बाप और बच्चों की,
    जिंदगी अधर में झूल गई।।
    इंच इंच नापा था सबको,
    जब बेटे हमने सौंपे थे।
    लौटाये तब टुकड़ों में,
    वो कौन से मंजर थौंपे थे।।
    बेशक थे वो टुकड़ों में,
    पर लिपट तिरंगे आए थे।
    अमिट निशानी बनकर वो,
    अब आसमान पर छाये थे।।

    धन्य हुई भारत माता,
    नम नैनों से सत्कार किया।
    लुटा के बेटे माँओं ने,
    भारत मां पर उपकार किया।।

    शिवराज चौहान नांधा, रेवाड़ी (हरियाणा)

  • 7 दिसंबर अंतर्राष्ट्रीय नागर विमानन दिवस पर लेख

    7 दिसंबर अंतर्राष्ट्रीय नागर विमानन दिवस पर लेख

    अंतर्राष्ट्रीय नागर विमानन दिवस अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन के महत्व के बारे में जागरूकता को बढ़ाता है । यह खास दिन विश्व भर में सामाजिक और आर्थिक विकास के नागरिक उड्डयन के महत्व के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए मनाया जाता है । इसका उद्देश्य वायु परिवहन में सुरक्षा और दक्षता को बढ़ाना भी है। नागरिक हवाई परिवहन किसी भी देश के बुनियादी ढांचे और परिवहन व्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा है। आज के दिन को अपनी नागरिक उड्डयन प्रणाली की सराहना और प्रशंसा करते हुए कार्यक्रम आयोजित करते हैं।

    अंतर्राष्ट्रीय नागर विमानन संगठन की स्थापना 7 दिसंबर 1944 को की गई थी। सन 1944 में इस संगठन में अपनी 50 वीं वर्षगांठ के अवसर पर पहले अंतरराष्ट्रीय नागर विमानन दिवस का आयोजन किया। सन् 1966 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव पारित कर 7 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मान्यता दे दी।

  • ऊर्जा संरक्षण पर कविता-महदीप जंघेल

    ऊर्जा संरक्षण पर कविता – महदीप जंघेल

    आओ मिलकर ऊर्जा दिवस मनाएँ।
    ऊर्जा की बचत का महत्व समझाएँ।।

    टीवी,पंखा,कूलर,बल्ब में ऊर्जा बचाएँ।
    आवश्यकता हो तभी, इसे उपयोग में लाएँ।।

    कच्चे तेल,कोयला,गैस की ,
    मांग निरन्तर बढ़ रही है।
    अंधाधुंध उपभोग से ,
    प्राकृतिक संसाधन घट रही है।

    ऊर्जा उपयोग कम करने का,
    लाभ जन-जन को बतलाएँ।
    भविष्य में उपयोग कैसे हो,
    महत्व इसका समझाएँ।।

    वर्तमान में ऊर्जा बचाकर ,
    इसमें ही जीवन चलाएँगे।
    भविष्य में नौनिहालों का ,
    जीवन खुशहाल बनाएँगे।

    ऊर्जा संरक्षण में सभी मिलकर,
    करें कुछ अच्छे काम।
    करें प्रेरित सबको बचत ऊर्जा का,
    हो अपने देश का रौशन नाम।।

    आओ मिलकर ऊर्जा दिवस मनाएँ।
    ऊर्जा संरक्षण में जनजागरूकता लाएँ।

    सन्देश- ऊर्जा की बचत करें,
    एवं दूसरों को प्रेरित करें।

    ✍️रचनाकार – महदीप जंघेल
    निवास ग्राम- खमतराई
    तहसील- खैरागढ़
    जिला-राजनांदगांव(छ.ग)

  • उपन्यास कैसे लिखें

    उपन्यास कैसे लिखें

    उपन्यास गद्य कथा की एक काल्पनिक कृति होती है। अच्छे उपन्यासों में वास्तविकता पर प्रकाश डाला जाता है, जिससे कि पाठक पूरी तरह से काल्पनिक दुनिया में सत्य और मानवता की खोज कर सकता है। 

    उपन्यास लिखना एक रचनात्मक प्रक्रिया है, और आप नहीं जानते हैं कि कब कोई बढ़िया विचार आपके मन में आ जाएगा। इसलिए, आप जहां भी जाइए अपने साथ एक नोट बुक तथा कलम लेकर जाइए, ताकि विचार आने पर आप उन्हें लिख सकें। 

    अपनी नोट बुक का उपयोग छोटे छोटे अंश, अनुच्छेद, अथवा वाक्यों को लिखने में करिए, जो बाद में एक सम्पूर्ण कहानी का भाग बन जाएँगे।

     अपने जीवन के संबंध में ऐसा कुछ सोचिए जिसने आपको प्रेरित, परेशान, या चकित किया हो – और देखिये कि आप किस प्रकार इस विषय को एक उपन्यास के रूप में ला सकते हैं?

    आप चाहे जिस शैली के उपन्यास पर भी एकाग्रचित्त होना चाहें, यदि आपने पहले से पढ़ नहीं रखे हैं, तो उस शैली के, जितने संभव हों, उतने उपन्यास पढ़ डालिए। इससे आपको, आप जिस परंपरा पर काम करने जा रहे हैं, उसकी बेहतर समझ प्राप्त होगी – तथा यह भी, कि आप कैसे उस परंपरा को और समृद्ध कर पाएंगे, या चुनौती दे पाएंगे।

    जब आपने किसी शैली (या शैलियों) का निर्धारण कर लिया हो, जिसके अंतर्गत आपको लिखना है, तब अपने उपन्यास के लिए परिस्थिति की कल्पना करना शुरू करिए।

    यह आवश्यक नहीं है कि नायक सदैव पसंद किए जाने योग्य ही हो, परंतु आमतौर से, वे ऐसे होने चाहिए, जिनसे पाठक जुड़ सकें, तथा उनकी रुचि कहानी में बनी रहे। काल्पनिक कथाएँ पढ़ने का एक आनंद यह होता है कि आप उसमें स्वयं को पहचान पाते हैं, और जीवंत रूप से आप स्वयं को अपने प्रिय चरित्र के स्थान पर जीता हुआ पाते हैं।

    आपके उपन्यास को साफ़ सुथरे तरीक़े से संघर्ष का “समाधान” करने की आवश्यकता नहीं है। कुछ मामले अनसुलझे छोड़ देना भी ठीक ही है – यदि आपके पाठकों को आपका उपन्यास पसंद आता है, तो वे उन अनसुलझे सूत्रों को स्वयं सुलझाने में आनंद लेंगे 

    यदि आप उपन्यास लिखना चाहते हैं तो शैली, कथानक, चरित्र, तथा स्थितियों के बारे में सोचकर शुरू करना अच्छी बात है, परंतु शुरुआत में ही इन सब चीज़ों से विह्वल हो जाना उचित नहीं है। आप किसी सीधी सादी चीज़ से प्रेरित हो सकते हैं – कोई ऐतिहासिक पल, दुकान में सुना गया कोई छोटा सा बातों का टुकड़ा, या कोई ऐसी कहानी जो आपने बचपन में दादी माँ से सुनी हो। ये सब लिखना शुरू करने के लिए, तथा जो भी आपको पता है, उससे कुछ रचने के लिए पर्याप्त हैं।

     रूपरेखा बनाने से आपको अपने विचार एक जगह रखने, तथा जब आप एक मुख्य उद्देश्य, अर्थात सम्पूर्ण पुस्तक लिखने की राह में चल रहे हों, तब प्राप्त करने के लिए छोटे छोटे लक्ष्य भी मिल जाते हैं। परंतु यदि आप बिना सोचे समझे लिखते हैं, और आपके पास पूरा विवरण – या थोड़ा भी – अभी तक उपलब्ध नहीं है, तब, जब तक कि आपको वास्तव में कोई ऐसी चीज़ न मिल जाये जो आपको मोह ले, केवल अपने को प्रेरित होकर जो भी सही लगे, वही लिखते रहने दीजिये।

    आपको लेखन के कार्य को वास्तविक कार्य ही समझना होगा तथा एक नियमित दिनचर्या पर टिकना पड़ेगा, चाहे आपका किसी दिन लिखने का “मन हो”, या न हो।

    • पुस्तकालय का उपयोग करिए: आपको जितनी भी जानकारी चाहिए, वह आपको स्थानीय पुस्तकालय में मिल सकती है, तथा पुस्तकालय लिखने के लिए बढ़िया जगहें भी होती हैं।
    • लोगों का साक्षात्कार करिए। यदि आप निश्चित नहीं हैं कि आप जिस विषय पर लिख रहे हैं, उसमें सत्यता लगती है, तब किसी ऐसे व्यक्ति को खोज निकालिए जिसे उस विषय की व्यक्तिगत जानकारी हो, तथा उससे ढेरों सवाल पूछिए।
    • प्रतिबद्ध हो जाइए तथा प्रतिदिन लिखिए – या जब जब लिख सकें। आपको यह समझ लेना है कि आप क्या बोझ उठाने जा रहे हैं। अनेक लेखकों पर न तो लोगों का ध्यान जाता है, और न ही लोग उन्हें पढ़ पाते हैं क्योंकि उनके आधे अधूरे उपन्यास उनके घर पर ही पड़े रहते हैं।
    • छोटे छोटे लक्ष्य निर्धारित करिए – एक अध्याय, कुछ पृष्ठ, या प्रतिदिन कुछ शब्द लिख डालिए – स्वयं को प्रेरित रखने के लिए।
    • आप दीर्घावधि लक्ष्य भी निर्धारित कर सकते हैं – मान लीजिये, कि आपने तय किया है कि उपन्यास का प्रथम प्रारूप एक वर्ष, या कहिए, कि छह महीने में पूरा कर लेंगे। तब एक “अंतिम तिथि” चुनिये और उस पर टिके रहिए।
    • अपने उपन्यास को छाप कर सस्वर पढ़िये। जो भी चीज़ सुनने में सही न लगे, उसे काट दीजिये या संशोधित कर दीजिये।
    • अपने लेखन से बहुत मोह न बढ़ाइए, जैसे कि, किसी अनुच्छेद विशेष से, जिससे कि कहानी आगे बढ़ ही न रही हो। स्वयं को सही निर्णय लेने की चुनौती दीजिये। आप सदैव ही इन अनुच्छेदों का उपयोग किसी और लेख में कर सकते हैं।
    •  शुरुआत किसी ऐसे व्यक्ति से करिए, जिस पर आपको पूरा भरोसा हो, ताकि आप इस भावना के आदी हो जाएँ, कि दूसरे आपकी कृतियाँ पढ़ते हैं। चूंकि, उन लोगों से, जो आपसे प्रेम करते हैं, तथा आपकी भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाना चाहते, ईमानदारी से फ़ीडबैक प्राप्त करना कठिन होता है
    • अनेक ऐसे उपन्यासकार, जो पहली बार लिख रहे हों, अपने प्रथम लेखन को एक प्रशिक्षण अनुभव समझते हैं, जिससे कि वे भविष्य में सशक्त लेखन कर सकें; परंतु यदि आपको अपने उपन्यास के बारे में पूर्ण विश्वास हो, तथा आप उसको किसी प्रकाशक के पास ले जाने का प्रयास करना चाहते हों, तब आप कई रास्ते चुन सकते हैं। आप पारंपरिक पुस्तक प्रकाशन गृह का चयन कर सकते हैं, या ऑनलाइन ई प्रकाशक का, या स्वप्रकाशन का।