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उपन्यास कैसे लिखें

उपन्यास कैसे लिखें

उपन्यास गद्य कथा की एक काल्पनिक कृति होती है। अच्छे उपन्यासों में वास्तविकता पर प्रकाश डाला जाता है, जिससे कि पाठक पूरी तरह से काल्पनिक दुनिया में सत्य और मानवता की खोज कर सकता है। 

उपन्यास लिखना एक रचनात्मक प्रक्रिया है, और आप नहीं जानते हैं कि कब कोई बढ़िया विचार आपके मन में आ जाएगा। इसलिए, आप जहां भी जाइए अपने साथ एक नोट बुक तथा कलम लेकर जाइए, ताकि विचार आने पर आप उन्हें लिख सकें। 

अपनी नोट बुक का उपयोग छोटे छोटे अंश, अनुच्छेद, अथवा वाक्यों को लिखने में करिए, जो बाद में एक सम्पूर्ण कहानी का भाग बन जाएँगे।

 अपने जीवन के संबंध में ऐसा कुछ सोचिए जिसने आपको प्रेरित, परेशान, या चकित किया हो – और देखिये कि आप किस प्रकार इस विषय को एक उपन्यास के रूप में ला सकते हैं?

आप चाहे जिस शैली के उपन्यास पर भी एकाग्रचित्त होना चाहें, यदि आपने पहले से पढ़ नहीं रखे हैं, तो उस शैली के, जितने संभव हों, उतने उपन्यास पढ़ डालिए। इससे आपको, आप जिस परंपरा पर काम करने जा रहे हैं, उसकी बेहतर समझ प्राप्त होगी – तथा यह भी, कि आप कैसे उस परंपरा को और समृद्ध कर पाएंगे, या चुनौती दे पाएंगे।

जब आपने किसी शैली (या शैलियों) का निर्धारण कर लिया हो, जिसके अंतर्गत आपको लिखना है, तब अपने उपन्यास के लिए परिस्थिति की कल्पना करना शुरू करिए।

यह आवश्यक नहीं है कि नायक सदैव पसंद किए जाने योग्य ही हो, परंतु आमतौर से, वे ऐसे होने चाहिए, जिनसे पाठक जुड़ सकें, तथा उनकी रुचि कहानी में बनी रहे। काल्पनिक कथाएँ पढ़ने का एक आनंद यह होता है कि आप उसमें स्वयं को पहचान पाते हैं, और जीवंत रूप से आप स्वयं को अपने प्रिय चरित्र के स्थान पर जीता हुआ पाते हैं।

आपके उपन्यास को साफ़ सुथरे तरीक़े से संघर्ष का “समाधान” करने की आवश्यकता नहीं है। कुछ मामले अनसुलझे छोड़ देना भी ठीक ही है – यदि आपके पाठकों को आपका उपन्यास पसंद आता है, तो वे उन अनसुलझे सूत्रों को स्वयं सुलझाने में आनंद लेंगे 

यदि आप उपन्यास लिखना चाहते हैं तो शैली, कथानक, चरित्र, तथा स्थितियों के बारे में सोचकर शुरू करना अच्छी बात है, परंतु शुरुआत में ही इन सब चीज़ों से विह्वल हो जाना उचित नहीं है। आप किसी सीधी सादी चीज़ से प्रेरित हो सकते हैं – कोई ऐतिहासिक पल, दुकान में सुना गया कोई छोटा सा बातों का टुकड़ा, या कोई ऐसी कहानी जो आपने बचपन में दादी माँ से सुनी हो। ये सब लिखना शुरू करने के लिए, तथा जो भी आपको पता है, उससे कुछ रचने के लिए पर्याप्त हैं।

 रूपरेखा बनाने से आपको अपने विचार एक जगह रखने, तथा जब आप एक मुख्य उद्देश्य, अर्थात सम्पूर्ण पुस्तक लिखने की राह में चल रहे हों, तब प्राप्त करने के लिए छोटे छोटे लक्ष्य भी मिल जाते हैं। परंतु यदि आप बिना सोचे समझे लिखते हैं, और आपके पास पूरा विवरण – या थोड़ा भी – अभी तक उपलब्ध नहीं है, तब, जब तक कि आपको वास्तव में कोई ऐसी चीज़ न मिल जाये जो आपको मोह ले, केवल अपने को प्रेरित होकर जो भी सही लगे, वही लिखते रहने दीजिये।

आपको लेखन के कार्य को वास्तविक कार्य ही समझना होगा तथा एक नियमित दिनचर्या पर टिकना पड़ेगा, चाहे आपका किसी दिन लिखने का “मन हो”, या न हो।

  • पुस्तकालय का उपयोग करिए: आपको जितनी भी जानकारी चाहिए, वह आपको स्थानीय पुस्तकालय में मिल सकती है, तथा पुस्तकालय लिखने के लिए बढ़िया जगहें भी होती हैं।
  • लोगों का साक्षात्कार करिए। यदि आप निश्चित नहीं हैं कि आप जिस विषय पर लिख रहे हैं, उसमें सत्यता लगती है, तब किसी ऐसे व्यक्ति को खोज निकालिए जिसे उस विषय की व्यक्तिगत जानकारी हो, तथा उससे ढेरों सवाल पूछिए।
  • प्रतिबद्ध हो जाइए तथा प्रतिदिन लिखिए – या जब जब लिख सकें। आपको यह समझ लेना है कि आप क्या बोझ उठाने जा रहे हैं। अनेक लेखकों पर न तो लोगों का ध्यान जाता है, और न ही लोग उन्हें पढ़ पाते हैं क्योंकि उनके आधे अधूरे उपन्यास उनके घर पर ही पड़े रहते हैं।
  • छोटे छोटे लक्ष्य निर्धारित करिए – एक अध्याय, कुछ पृष्ठ, या प्रतिदिन कुछ शब्द लिख डालिए – स्वयं को प्रेरित रखने के लिए।
  • आप दीर्घावधि लक्ष्य भी निर्धारित कर सकते हैं – मान लीजिये, कि आपने तय किया है कि उपन्यास का प्रथम प्रारूप एक वर्ष, या कहिए, कि छह महीने में पूरा कर लेंगे। तब एक “अंतिम तिथि” चुनिये और उस पर टिके रहिए।
  • अपने उपन्यास को छाप कर सस्वर पढ़िये। जो भी चीज़ सुनने में सही न लगे, उसे काट दीजिये या संशोधित कर दीजिये।
  • अपने लेखन से बहुत मोह न बढ़ाइए, जैसे कि, किसी अनुच्छेद विशेष से, जिससे कि कहानी आगे बढ़ ही न रही हो। स्वयं को सही निर्णय लेने की चुनौती दीजिये। आप सदैव ही इन अनुच्छेदों का उपयोग किसी और लेख में कर सकते हैं।
  •  शुरुआत किसी ऐसे व्यक्ति से करिए, जिस पर आपको पूरा भरोसा हो, ताकि आप इस भावना के आदी हो जाएँ, कि दूसरे आपकी कृतियाँ पढ़ते हैं। चूंकि, उन लोगों से, जो आपसे प्रेम करते हैं, तथा आपकी भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाना चाहते, ईमानदारी से फ़ीडबैक प्राप्त करना कठिन होता है
  • अनेक ऐसे उपन्यासकार, जो पहली बार लिख रहे हों, अपने प्रथम लेखन को एक प्रशिक्षण अनुभव समझते हैं, जिससे कि वे भविष्य में सशक्त लेखन कर सकें; परंतु यदि आपको अपने उपन्यास के बारे में पूर्ण विश्वास हो, तथा आप उसको किसी प्रकाशक के पास ले जाने का प्रयास करना चाहते हों, तब आप कई रास्ते चुन सकते हैं। आप पारंपरिक पुस्तक प्रकाशन गृह का चयन कर सकते हैं, या ऑनलाइन ई प्रकाशक का, या स्वप्रकाशन का।

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