Category: हिंदी बाल कविता

  • शुभ दीपावली / डॉ. मनोरमा चन्द्रा ‘रमा


    शुभ दीपावली

    शुभ दीपावली आई है,
    मिलकर दीप जलाएँ।
    सजे द्वार हरदम चमके,
    घर आँगन महकाएँ।।

    अंतर्मन भरे रोशनी,
    छल, द्वेष, अहम मिट जाए।
    आत्मसात कर सद्गुणों का,
    तन-मन शुद्ध बनाएँ।।

    रघुवर जैसे चरित बने,
    हम शीलवान बन जाएँ।
    सदा निश्चल भाव भरे मन,
    श्री राम की महिमा गाएँ।।

    प्रीत बंध मर्यादा से,
    जीवन को चलो सजाएँ।
    दीपों का उत्सव मनभावन,
    खुशियाँ बाँटें, पाएँ।।

    साफ करें हम दुर्गुणों को,
    तभी जीवन में उजाला है।
    क्षण भंगुर इस दुनिया में,
    जिधर देखो सब काला है।।

    करें संकल्प इस पर्व पर,
    घर संग चरित महकाना है।
    उज्जवल रंगोली जीवन रंगे,
    खुशियों का दीप जलाना है।।

    पूजन कर माँ लक्ष्मी,
    कृपा सुखद पा जाएँ।
    रिद्धि-सिद्धि धन संपदा,
    सबके घर में आएँ।।


                    *~ डॉ. मनोरमा चन्द्रा ‘रमा’*
                             *रायपुर (छ.ग.)*

  • तन्नक सुपारी हमें दैयो

    तन्नक सुपारी हमें दैयो

    तन्नक सुपारी हमें दैयो

    तन्नक सुपारी हमें दैयो ओ मोरे लाल ,
    बढई भैया मित्र हमारे-(२)
    खेरे का डंडा मंगाय दैयो ओ मोरे लाल -(२)
    तन्नक सुपारी हमें दैयो ओ मोरे लाल..

    लोहार भैया मित्र हमारे-(२)
    खेरे का डंडा में लोहे का कुंडा लगाय दैयो ओ मोरे लाल -(२)
    तन्नक सुपारी हमें दैयो ओ मोरे लाल..

    कसार भैया मित्र हमारे-(२)
    खेरे का डंडा में लोहे का कुंडा में पीतल के घुँघरू लगाय दैयो ओ मोरे लाल -(२)
    तन्नक सुपारी हमें दैयो ओ मोरे लाल..

    सुनार भैया मित्र हमारे-(२)
    खेरे का डंडा में लोहे का कुंडा में पीतल के घुँघरू में सोने की लड़ियाँ लगाय दैयो ओ मोरे लाल -(२)
    तन्नक सुपारी हमें दैयो ओ मोरे लाल..

    जोहरी भैया मित्र हमारे-(२)
    खेरे का डंडा में लोहे का कुंडा में पीतल के घुँघरू में सोने की लड़ियों में हीरे और मोती लगाय दैयो ओ मोरे लाल -(२)
    तन्नक सुपारी हमें दैयो ओ मोरे लाल..

    • संकलित
  • दीदी की डायरी पर कविता/ जानसी पटेल

    दीदी की डायरी पर कविता/ जानसी पटेल

    दीदी की डायरी पर कविता/ जानसी पटेल

    दीदी की डायरी में, अनगिनत कहानियाँ,
    सपनों की बातें और बचपन की नादानियाँ।

    रंग-बिरंगे पन्ने, सजी यादों से प्यारे,
    सुख-दुःख के पल, हर पन्ने में गुज़ारे।

    पहला प्यार, पहली दोस्ती की कहानी,
    स्कूल के दिन, और परीक्षा की निशानी।

    माँ की डाँट, पापा का प्यार भरा पत्र,
    हर पन्ना बोले, जैसे हो कोई मंत्र।

    आँखों में सपने, भविष्य की उड़ान,
    दीदी की डायरी में, सजी हर एक जान।

    रात की खामोशी में, जब सब सो जाते,
    दीदी की डायरी, मेरे संग परह जाते।

    भावनाओं का दरिया, उसमें बहता,
    हर पन्ना जैसे, जीवन का रहस्य कहता।

    दीदी की डायरी, अनमोल धरोहर,
    स्मृतियों का खजाना, सजीव चित्रों का सफर।

  • तितली पर बाल कविता / पद्म मुख पंडा

    तितली पर बाल कविता / पद्म मुख पंडा

    तितली पर बाल कविता / पद्म मुख पंडा


    रंग बिरंगी तितली रानी
    आई हमरे द्वार
    मधुलिका ने उसको देखा,
    उमड़ पड़ा था प्यार!
    गोंदा के कुछ फूल बिछाकर,
    स्वागत किया सुहाना,
    तितली रानी, तितली रानी!

    तितली पर बाल कविता / पद्म मुख पंडा

    मधुर कंठ से गाना!
    तेरा मेरा नाता तो है,
    बरसों कई पुराना!
    आई हो अभ्यागत बनकर,
    अभी नहीं तुम जाना,
    शहद और गुलकंद रखा है,
    बड़े मज़े से ख़ाना!
    घर में तुम्हें खोजते होंगे,
    जाकर, कल फ़िर आना!

    स्वरचित एवम् मौलिक
    पद्म मुख पंडा ग्राम महा पल्ली जिला रायगढ़ छत्तीसगढ़

  • सर्वश्रेष्ठ बाल कविता

    सर्वश्रेष्ठ बाल कविता

    सर्वश्रेष्ठ बाल कविताएँ

    सर्वश्रेष्ठ बाल कविता येँ

    Hindi Poem ( KAVITA BAHAR)

    बचपन के पल

    दिन आते रहे,
    दिन जाते रहे,
    बचपन के दोस्त
    दिनोंदिन मिलते रहे,

    नटखट कारनामें
    यादों में बदलते रहे,
    वक़्त के तकाज़े से
    सभी जुदा होते रहे,
    सालोंसाल गुज़रते रहे,
    कुछ दोस्त मिलते रहे,
    कुछ दोस्त गुमशुदा
    गुमनाम होते रहे,
    काश ये बचपन के
    नायाब पल ठहर जाते !
    बचपन के दोस्त
    मुझे फिर मिल जाते।

    कवि : श्री राजशेखर सी    
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

    घंटा पर कविता

    घंटा बोला, चलो मदरसे,

    निकलो, निकलो, निकलो घर से।

    बोला, चलो मदरसे, जल्दी निकलो, अपने घर से ।

    कपड़े पहनो, बस्ता ले लो,

    जल्दी निकलो, अपने घर से ।

    जल्दी निकलो, अपने घर से,

    घंटा बोला, चलो मदरसे

    गप्पू गपोड़ पर कविता

    एक था, गप्पू गपोड़,

    उसके जैसा कोई न जोड़।

    एक दिन, खाकर बोर,

    गप्पू बोला, वो रहा मोर।

    सबने मुड़कर, देखा चाहा,

    कोई न था, कुछ न था।

    वापस मुड़कर देखा चोर,

    गप्पू भागा, लेकर बोर।

    कैसा था, गप्पू गपोड़,

    उसके जैसा कोई न जोड़।

    चीजों पर कविता

    लड्डू, लट्टू, कच्ची ईंट,

    ताला, चाबी, पक्की ईंट।

    कली, कागज और करेला,

    कच्चा मटका, गुड़ का भेला ।

    शीशी, पन्नी, चाय की छन्नी,

    पंजी, दस्सी और चवन्नी ।

    कैंची, फावड़ा, गाय का गिरमा,

    टोपी, जूता, आँख का सुरमा ।

    इब्नबतूता पर कविता

    इब्न बतूता, पहन के जूता,

    निकल पड़े, तूफान में।

    थोड़ी हवा, नाक में घुस गयी,

    घुस गयी, थोड़ी कान में।

    कभी नाक को, कभी कान को,

    मलते, इब्नबतूता ।

    इसी बीच में निकल पड़ा,

    उनके पैरों का जूता

    उड़ते-उड़ते, जूता उनका,

    जा पहुँचा, जापान में।

    इब्न बतूता, खड़े रह गए,

    मोची की, दुकान में।

    गोल वस्तु पर कविता

    गोल-गोल, गोल-गोल,

    सूरज गोल, चन्दा गोल,

    सिक्का गोल, चक्का गोल,

    और क्या-क्या, होता गोल,

    नहीं मालूम, तो घूमो गोल।

    नहीं मालूम तो घूमो गोल।

    गोल-गोल, गोल-गोल,

    अब रूक जाओ, बैठो गोल।

    गोल, गोल, गोल, गोल,

    गहरा कुँआ, गोल-गोल,

    रात का चंदा, गोल-गोल

    खिड़की, दरवाजे . . . .?

    नहीं मालूम तो धूमो गोल

    डोकरी माँ पर कविता

    डोकरी मां, डोकरी मां, …क्या करे है?

    बेटा, सुई ढूँढ हूँ।

    माँ, सुई को क्या करोगी?

    बेटा, थैली सिऊँगी।

    माँ, थैली का क्या करोगी?

    बेटा उसमें रूपये रखूँगी ।

    माँ, तू रूपयों का क्या करोगी?

    बेटा, एक भैंस खरीदूँगी।

    माँ, भैंस का क्या करोगी?

    बेटा, भैंस से दूध लगाऊँगी।

    माँ, दूध का क्या करोगी?

    बेटा, दूध से दही जमाऊँगी।

    माँ, दही का क्या करोगी?

    बेटा, बिलोकर मक्खन निकालूँगी।

    माँ, मक्खन का क्या करोगी?

    बेटा, मक्खन से घी बनाऊँगी।

    माँ, घी का क्या करोगी?

    हम सब मिलकर घी खायेंगे।

    तब तो बड़ा मजा आयेगा, हा, हा, हा।

    लालाजी पर कविता

    लालाजी, लालाजी,एक लड्डू दो।

    लड्डू जो चाहिये, तो. चार आने दो।

    लालाजी, लालाजी, पैसे नहीं ।

    पैसे नहीं हैं, तो लड्डू नहीं ।

    लालाजी, लालाजी,

    आपकी मूँछें, कितनी लम्बी हैं?

    आपकी मूँछें, कितनी प्यारी हैं?

    आपकी मूँछें, कितनी सुन्दर हैं?

    बेटा जी, बेटाजी, इधर आओ।

    चार लड्डू चाहिये तो, चार लड्डू लो ।

    रेलगाड़ी पर कविता

    छुक छुक छुक छुक गाड़ी आई,

    आगे से हट जाना भाई।

    हट जाना भाई, बच जाना भाई,

    छुक छुक छुक छुक गाड़ी आई।

    काला काला धुआँ उड़ाती,

    फक फक फक फक शोर मचाती।

    गाड़ी आई गाड़ी आई,

    आगे से हट जाना भाई।

    कुत्ता पर कविता

    कुत्ता इक रोटी को पाकर,

    खाने चला गाँव से बाहर।

    नदी राह में उसके आई,

    पानी में देखी परछाईं।

    लिये है रोटी कुत्ता दूजा,

    डराके छीनू, उसने सोचा।

    लेकिन उसकी किस्मत खोटी,

    भौंका ज्यों ही, गिर गई रोटी।

    नींद पर कविता

    मैं तो सो रही थी, मुझे मुर्गे ने जगाया,

    बोला कुकहूँ कूँ कूँ हूँ।

    मैं तो सो रही थी,

    मुझे बिल्ली ने जगाया,

    बोली-म्याऊँ म्याऊँ म्याऊँ ।

    मैं तो सो रही थी,

    मुझे मोटर ने जगाया,

    बोली -पो पों पों।

    मैं तो सो रही थी,

    मुझे अम्मा ने जगाया,

    बोली- उठ उठ उठ |

     छोटे बच्चे पर कविता

    छोटे बच्चे नाचें-गाएँ,

    गाल बजाये टेसूरा।

    छोटे बच्चे खेलें-खाएँ,

    तोंद फुलाये टेसूरा।

    छोटे बच्चे शोर मचायें,

    रो-रो आये टेसूरा।

    छोटे बच्चे पढ़े-पढ़ायें,

    मौज उड़ाये टेसूरा।

    छोटे बच्चे नाचें- गाएँ,

    गाल बजाये टेसूरा।

    फौजों पर बाल कविता

    पी पी पी पी डर डर डम,

    नन्हें मुन्ने सैनिक हम।

    सी है फौज हमारी,

    पर उसमें है ताकत भारी ।

    बड़ी-बड़ी फौजें झुक जाती,

    जब ये अपना जोर दिखाती।

    पी पी पी पी डर डर डम,

    नन्हें मुन्ने सैनिक हम।

    मुर्गा पर कविता

    मुर्गा बोला कुक्कडू कूं,

    चल मेरे भैया रूकता क्यूँ ।

    कुत्ता भौंके, भों-भों-भों,

    अटकी गाड़ी पौं- पौं-पौं।

    बकरी आई, बिल्ली आई,

    मैं-मैं आई, म्याऊँ – म्याऊँ आई।

    धक्की गाड़ी धौं-धौं-धौं,

    चल दी गाड़ी पौं- पौं-पौं।

    बैलों की गाड़ी पर कविता

    एक चली बैलों की गाड़ी,

    जुते हुए दो बैल अगाडी,

    बैठी थी कुल तीन सवारी,

    चार बजे से की तैयारी,

    पाँच मील पर लगा है मेला,

    छ दिन से है रेलम पेला,

    सात गाँव के लोग हैं आते,

    आठ दिनों तक धूम मचाते,

    नौ दिन तक मेला चलता,

    दसवें दिन फिर कुछ नहीं मिलता।

    गुड़िया पर कविता

    बाल कविता 1

    डाक्टर देखो भली प्रकार,

    मेरी गुड़िया है बीमार ।

    कल था बरसा छम-छम पानी,

    भीगी उसमें गुड़िया रानी।

    गीले कपड़े दिए उतार,

    फिर भी गुड़िया है बीमार

    उसे लगाना थर्मामीटर,

    ओ हो इतना तेज बुखार ।

    सौ से भी ऊपर है चार,

    देता हूँ मैं इसको पुड़िया

    डाक्टर ले ली मैंने पुड़िया,

    ले जाती मैं अपनी गुड़िया।

    बाल कविता 2

    गुड़िया मेरी रानी है,बन्नो बड़ी सयानी है।

    गुन-गुन गाना गाती है, ताथई नाच दिखाती है।

    हँसती रहती है दिन रात, करती है वह मीठी बात।

    ठुमक ठुमक कर आती है. कंधे पर चढ़ जाती है।

    झंडा मुझे बना देना, तीन रंगों से सजा देना।

    लाल किले पर जाऊँगा,जयहिन्द जयहिन्द गाऊँगा।

    तितली पर कविता

    रंग-बिरंगे पंख तुम्हारे, सबके मन को भाते हैं।

    कलियाँ देख तुम्हें खुश होतीं फूल देख मुसकाते हैं ।।

    रंग-बिरंगे पंख तुम्हारे, सबका मन ललचाते हैं।

    तितली रानी, तितली रानी, यह कह सभी बुलाते हैं ।।

    पास नहीं क्यों आती तितली, दूर-दूर क्यों रहती हो?

    फूल-फूल के कानों में जा धीरे-से क्या कहती हो?

    सुंदर-सुंदर प्यारी तितली, आँखों को तुम भाती हो।

    इतनी बात बता दो हमको हाथ नहीं क्यों आती हो?

    इस डाली से उस डाली पर उड़-उड़कर क्यों जाती हो?

    फूल-फूल का रस लेती हो, हमसे क्यों शरमाती हो?

    – नर्मदाप्रसाद खरे

    कबूतर पर बाल कविता

    गुटरूँ-गूँ

    उड़ा कबूतर फर-फर-फर,
    बैठा जाकर उस छत पर।
    बोल रहा है गुटरूँ-गूँ,
    दाने खाता चुन चुन कर

    कबूतर / सोहनलाल द्विवेदी

    कबूतर
    भोले-भाले बहुत कबूतर
    मैंने पाले बहुत कबूतर
    ढंग ढंग के बहुत कबूतर
    रंग रंग के बहुत कबूतर
    कुछ उजले कुछ लाल कबूतर
    चलते छम छम चाल कबूतर
    कुछ नीले बैंजनी कबूतर
    पहने हैं पैंजनी कबूतर
    करते मुझको प्यार कबूतर
    करते बड़ा दुलार कबूतर
    आ उंगली पर झूम कबूतर
    लेते हैं मुंह चूम कबूतर
    रखते रेशम बाल कबूतर
    चलते रुनझुन चाल कबूतर
    गुटर गुटर गूँ बोल कबूतर
    देते मिश्री घोल कबूतर।

    सोहनलाल द्विवेदी

    चंदा मामा पर कविता

    चन्दा मामा चन्दा मामा,
    करते हो तुम कैसा ड्रामा।
    कभी सामने आते हो,
    कभी छुप छुप जाते हो।

    छुप छुप कर मुझे देखते,
    बादलों की चादर ओढ़े।
    सितारों के मध्य चलकर,
    मुझको बड़ा खिजाते हो।

    आओ लुका छिपी खेलें,
    बादलों के पीछे मिलें।
    मुझे ढूंढो मैं तुम्हें ढूंढू,
    क्यों रूठ जाते हो?

    मेरे घर कभी आओ ना,
    खुश हो जाएगी मेरी माँ।
    हलवा पूड़ी संग संग खाएंगे,
    हर दिन मुझे रिझाते हो।

    मैं बादलों के पार जाऊँ,
    तुमको अनेक खेल बताऊँ।
    पर तुम तक पहुँचूँ कैसे,
    राह नहीं बताते हो।

    साधना मिश्रा, रायगढ़, छत्तीसगढ़

    चंदा मामा दूर के
    चंदा मामा दूर के

    पुए पकाये बूर के |
    आप खाएँ थाली में।
    मुन्नी को दें प्याली में ॥
    प्याली गयी टूट
    मुन्नी गयी रूठ॥
    चंदा के घर जाएँगे।
    लाएँगे नई प्यालियाँ ॥
    मुन्नी को मनाएँगे।
    बजा बजा कर तालियाँ ॥

    कुत्ता पर बाल कविता

    लालची कुत्ता

    कुत्ता इक रोटी को पाकर,
    खाने चला गाँव से बाहर।
    नदी राह में उसके आई,
    पानी में देखी परछाई।
    लिये है रोटी कुत्ता दूजा,
    डराके छीनू, उसने सोचा।
    लेकिन उसकी किस्मत खोटी,
    भौका ज्यों ही गिर गई रोटी।

    गुड़िया पर बाल कविता

    गुड़िया मेरी रानी है,
    बन्नो बड़ी सयानी है।
    गुन-गुन गाना गाती है,
    ता-थई नाच दिखाती है।
    हँसती रहती है दिन रात,
    करती है वह मीठी बात।
    ठुमक ठुमक कर आती है,
    कंधे पर चढ़ जाती है।

    कविता 1

    वह देखो वह आता चूहा,
    आँखों को चमकाता चूहा
    मूँछों से मुस्काता चूहा,
    लंबी पूँछ हिलाता चूहा
    मक्खन रोटी खाता चूहा,
    बिल्ली से डर जाता चूहा

    कविता 2

    आज मंगलवार है
    चूहे को बुखार है
    चूहा गया डॉक्टर के पास
    डॉक्टर ने लगाई सुई….
    चूहा बोला उई उई ……

    कविता 3

    एक था चूहा,फुदकते रेंगते

    उसे मिली चिन्दी,चिन्दी लेकर वो गया

    धोबी दादा के पास,उससे कहा धोबी दादा.धोबी दादा

    मेरी चिन्दी को धो दो,उसने कहा मैं नी धोता .

    चूहा बोला – चावडी में जाऊँगा,चार सिपाही लाऊँगा

    तुझको मार पीटवाऊँगा,और मैं तमाशा देखूँगा

    धोबी दादा घबराया,उसने उसकी चिन्दी धो दी.

    चिन्दी लेकर वो गया,रंगरेज के यहाँ

    रंगरेज दादा ..रंगरेज दादा

    मेरी चिन्दी को रंग दो, उसने कहा – मैं नी रंगता

    चूहा बोला चावडी में जाऊँगा,चार सिपाही लाऊँगा

    तुझको मार पीटवाऊँगा,और मैं तमाशा देखूँगा

    रंगरेज घबराया,उसने फट से उसकी चिन्दी रंग दी.

    बाद में वो गया दरजी दादा के पास,दरजी दादा .दरजी दादा

    मेरी चिन्दी को सी दो,उसने कहा – मै नी सीता

    चूहा फिर बोला – चावडी में जाऊँगा

    चार सिपाही लाऊँगा,तुझको मार पीटवाऊँगा

    और मै तमाशा देखूँगा,दरजी घबराया उसने टोपी सिल दी.

    टोपी लेकर वो गया गोटे दादा के पास

    गोटे दादा गोटे दादा,मेरी टोपी को गोटा लगा दो

    गोटे दादा तुरन्त बोला,मै नी लगाता

    चूहे ने फट से कहा – चावडी में जाऊँगा

    चार सिपाही लाऊँगा,तुझको मार पीटवाऊँगा

    और मै तमाशा देखूँगा,गोटे दादा घबराया

    उसने टोपी को तुरन्त गोटा लगा दिया.

    टोपी पहनकर चूहा,जा बैठा ऊँचे पेड़ पर

    वहाँ से निकली राजा की स्वारी

    वह देख चूहा बोला –

    राजा – – – – – -राजा उपर ,छोटे – – – – -छोटे नीचे

    सुनकर राजा को आया गुस्सा

    चूहे को देख वह बोला,मुझे छोटा बोलता है

    सिपाहियों से कहा – जाओ उसकी टोपी ले आओ

    सिपाही टोपी ले आया

    चूहा तुरंत बोला – राजा भिखारी

    हमारी टोपी ले ली,राजा को फिर आया क्रोध

    उसने टोपी फेंक दी,टोपी उठाकर चूहा फिर बोला –

    राजा हमसे डर गया – – – – –

    हमारी टोपी दे दी .

    कविता 4

    चूहे चाचा

    चूहे चाचा पहन पजामा,
    दावत खाने आए।

    साथ में चुहिया चाची को भी,
    सैर कराने लाए।

    दावत में कपड़ों की कतरन,
    कुतर-कुतर कर खाएँ।

    चूहे चाचा कूद-कूद कर
    ढम ढम ढोल बजाएँ।

    डाकिया पर बाल कविता

    देखो एक डाकिया आया,
    साथ में अपना थैला लाया।
    खाकी टोपी खाकी वर्दी,
    आकर उसने चिट्ठी फेंकी।
    संदेशा शादी का लाया,
    शादी पर हम भी जाएँगे।
    खूब मिठाई खाएँगे ॥

    पतंग पर बाल कविता

    सर-सर-सर-सर उड़ी पतंग
    फर-फर-फर-फर उड़ी पतंग ॥
    इसको काटा,
    उसको काटा।
    खूब लगाया,
    सैर-सपाटा।
    अब लड़ने में जुटी पतंग

    बिल्ली पर बाल कविता

    मेरी बिल्ली, काली-पीली।
    पानी से वह हो गई गीली ॥
    गीली होकर लगी कॉपने।
    आँछी-आँछी लगी छींकते ॥
    मैं फिर बोली कुछ तो सीख
    बिन रूमाल के कभी न छींक।

    मछली पर बाल कविता

    मछली रानी, मछली रानी,
    बोल, नदी में कितना पानी।
    थोड़ा भी है, ज्यादा भी है,
    मैं कितना बतलाऊँ पानी।
    मुझको तो है थोड़ा पानी,
    पर तुमको है ज्यादा पानी।

    मुर्गा पर बाल कविता

    मुर्गा बोला कुकड़ू, कूँ,
    चल मेरे भैया रूकता क्यूँ
    कुत्ता भौके, भौ-भौं-भौं,
    अटकी गाड़ी पौं- पौं-पौ।
    बकेरी आई, बिल्ली आई,
    मैं-मैं आई, म्याऊँ म्याऊँ आई
    धक्की गाड़ी धौं-धौं-धौं,
    चल दी गाड़ी पौ-पौं-पौ।

    मुर्गी की शादी

    दम दम दम दम ढोल बजाता कूद-कूद कर बंदर
    राम-राम पुंगरू बाँध नाचता भालू मस्त कलन्दर॥
    कुहू कुहू कू कोयल गाती मीठा-मीठा गाना।
    मुर्गी की शादी में है बस दिन भर मीज उड़ाना ॥