Category: हिंदी कविता

  • कृष्ण रासलीला

    कृष्ण रासलीला

    shri Krishna
    Shri Krishna

    कृष्ण रासलीला

    लीला राधे कृष्ण सम,आँख उठा के देख।
    लाख कोटि महा शंख में,लख लीला है एक।।

    सब देवों की नारियाँ,कर नित साज सिंगार।
    गमन करें शुचि रास में ,बन ठन हो तैयार।।

    कृष्णप्रेम विह्वल शम्भु,निज मन कियो विचार।
    राधे कृष्ण प्रेम परम ,जा देखूँ इक बार।।

    शिव गौरा से जा तभी,कहने लगे सकुचाय।
    रास लखन मै भी चलूँ ,सुन गौरा मुसकाय।।

    कैसे जा सकते वहाँ , लिए गले में शेष।
    लीला में वर्जित सदा, पुरूषों का प्रवेश।।

    ऐसा क्यों कहती सती ,अतुल शक्ति ले पास।
    कर यत्न ले चलो मुझे ,देखन लीला रास।।

    शिवअडिग लालसा लखी,कह गौरा समझाय।
    भेष बदल नारी बनों , यहीं है इक उपाय।।

    नार नवेली बन गये , रूप रंग चटकार।
    पहुँच गये गौरा संग में ,कृष्ण रास दरबार।।

    कृष्ण पारखी नजर से ,शिवजी गयो लखाय।
    पानी हो शिव शरमसे,निज मुख लियो छुपाय।।

    हँस पड़ी सभी गोपियाँ ,हँसते कृष्ण मुरार।
    प्रेम सिंधु में डूब शिव , लूटत रास बहार।।

    “”””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””
    बाबूराम सिंह कवि
    बडका खुटहाँ,विजयीपुर

    गोपालगंज (बिहार)841508

  • गोवर्धन कर धरते हो/ प्रवीण त्रिपाठी

    गोवर्धन कर धरते हो/ प्रवीण त्रिपाठी

    गोवर्धन कर धरते हो/ प्रवीण त्रिपाठी

    गोवर्धन कर धरते हो/ प्रवीण त्रिपाठी

    नटवर नागर प्यारे कान्हा, गोवर्धन कर धरते हो।
    इंद्र देव का माधव मोहन, सर्व दर्प तुम हरते हो।

    ब्रज मंडल के सब नर-नारी, इंद्र पूजते सदियों से।
    लीलाधारी कृष्ण चन्द्र को, कभी न भाया अँखियों से।
    उनके कहने पर ब्रजवासी, लगे पूजने गोवर्धन।
    देवराज का दम्भ तोडने, लीलाएँ नव करते हो।1

    गोवर्धन का अन्य पक्ष है, रक्षा गौ की नित करना।
    इनके वंशों का वर्धन हो, भाव सभी के मन भरना।
    देख-भाल हो उचित ढंग से, फिरें न मारी-मारी वो।
    धेनु चरा कर उन्हें प्यार कर, धर्म मार्ग पर चलते हो।2

    गिरि को धारण करके तुमने,एक नया संदेश दिया।
    सदा प्रकृति की रक्षा करना, कठिन काम यह हाथ लिया।
    पर्यावरण सुरक्षित रखना, हर युग की थी मांग बड़ी।
    सही राह जो दिखलाई थी, उसी राह तुम चलते हो।3

    नटवर नागर प्यारे कान्हा, गोवर्धन कर धरते हो।
    इंद्र देव का माधव मोहन, सर्व दर्प तुम हरते हो।

    प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, 28 अक्टूबर 2019
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  • कृष्ण रंग रंगी मीरा /अर्चना पाठक

    कृष्ण रंग रंगी मीरा /अर्चना पाठक

    कृष्ण रंग रंगी मीरा/ अर्चना पाठक

    shri Krishna
    Shri Krishna

    तज महल अटारी ,कर सितार लिये

    गली गली श्याम संग घूमी मीरा ।

    वीणा के तार कृष्ण दास हुये

    भक्ति के रंग में रंगी मीरा ।

    पराधीनता की गहरी टीस लिये।

    विरक्ति के गीत में रमी मीरा।

    परिजनों के क्रोध और विद्रोह सहे।

    सदा कृष्ण भक्ति में लीन मीरा।

    मर्यादा तोड़ने के लाँछन  लगे।

    फिर भी नारी चरित्र में कुलीन हीरा ।

    सदा कृष्ण भक्ति में लीन मीरा…

    अर्चना पाठक
    अम्बिकापुर

  • गिरिराज गोवर्धन की महिमा

    गिरिराज गोवर्धन की महिमा

    गिरिराज गोवर्धन की महिमा

    shri Krishna
    Shri Krishna

    संसार में भक्ति प्रेम अनुरक्ति से मिलता छप्पर फाड़।
    ब्रज वासियों की रक्षा में उठाये कृष्ण गोवर्धन पहाड़।

    द्वापर युग की बात,क्यों पूजन करें हम इंद्र देवता को।
    जब गिरि गोवर्धन चारा दें,सिचिंत करें धरती मात को।
    जिनसे हम ब्रज वासियों को,मिलता है लाभ साक्षात।
    पूजन करें गिरि गोवर्धन की,सह लेंगें इंद्र के ताप को।
    जब पूजित सुन्दर घनश्याम थे,ब्रज रक्षक ब्रज बाड़।1।

    संसार में भक्ति………………………..

    ब्रज वासियों के गोवर्धन पूजा से,इंद्र ने मूसलाधार वर्षा किया।
    ब्रज की रक्षा को कृष्ण ने गिरिराज को उंगली पर उठा लिया।
    अपने मन से कोई भी महान नहीं होता,जग को ये बता दिया।
    अंत में इंद्र ने ब्रज जाकर श्रीकृष्ण से अपनी गलती जता दिया।
    परोपकार ही सबसे बड़ा धन जग पूजेगा गोवर्धन पहाड़।2।

    संसार में भक्ति………………….

    ब्रज की धरती में बिराजे शिलापति गिरिराज गोवर्धन महाराज।
    चहुँदिसि सरोवर,तरुवर,उपवन,लता सघन सुहावन गिरिराज।
    दीवाली के अगले दिन करते अन्नकूट(गोवर्धन पूजा)का काज।
    चलो मिलके पूजन करें हम सभी,कृपा करेंगें श्रीकृष्ण महाराज।
    श्रीकृष्ण जी बड़े दयालु कृपालु देते हैं सबको छप्पर फाड़।3।

    संसार में भक्ति………………………

  • श्रीकृष्ण पर कविता – रेखराम साहू

    श्रीकृष्ण पर कविता – रेखराम साहू

    श्रीकृष्ण पर कविता – रेखराम साहू

    shri Krishna
    Shri Krishna

    महाव्याधि है मानवता पर, धरा-धेनु गुहराते हैं।
    आरत भारत के जन-गण,हे कान्हा! टेरते लगाते हैं।।

    चित्त भ्रमित संकीर्ण हुआ है,
    हृदय हताहत जीर्ण हुआ है।
    धर्मभूमि च्युतधर्म-कर्म क्यों,
    अघ अधर्म अवतीर्ण हुआ है ।।
    संस्कृति के शुभ सुमन सुगंधित शोकाकुल झर जताते हैं।
    महाव्याधि मानवता पर है,धरा- धेनु गुहराते हैं।।

    काल,काल-कटु कंस हुआ है,
    तम-त्रिशूल विध्वंस हुआ है।
    बंदी हैं वसुदेव,देवकी,
    भय-भुजंग-विष-दंश हुआ है।।
    त्राहि-त्राहि!त्रिपुरारि!याचना के स्वर व्यथा सुनाते हैं।
    महाव्याधि मानवता पर है,धरा-धेनु गुहराते हैं।।

    हर पद,हर-हरि भाद्रपदी हो,
    शक्ति-भक्ति संयुक्त सदी हो।
    पतित-पावनी,पाप-मोचिनी,
    प्रेम-प्रीति की पुण्य नदी हो।।
    जन्माष्टमी,यमी के तट,फिर-फिर हे कृष्ण!बुलाते हैं।
    महाव्याधि मानवता पर है,धरा-धेनु गुहराते हैं।।

    वज्रायुध टंकार रहे हैं,
    प्रलय-मेघ ललकार रहे हैं ।
    गिरधर!मीरा,गोपी राधा,
    व्रज के प्राण पुकार रहे हैं ।।
    तेरी वंशी के स्वर से ही प्रलय,सृजन बन जाते हैं ।
    महाव्याधि मानवता पर है,धरा-धेनु गुहराते हैं।।

    कृष्णवंत यौवन कर जाओ,
    भीमार्जुनवत् मन कर जाओ।
    पञ्चजन्य-गीता अनुनादित,
    धरती-दिशा-गगन कर जाओ।।
    युधिष्ठिर हो राष्ट्र-प्रेम- प्रण आराधन कर जाते हैं।
    महाव्याधि मानवता पर है,धरा-धेनु गुहराते हैं।।

    कर्मवीर,श्रमवीर यहाँ हों,
    मृत्युञ्जय रणधीर यहाँ हों ।
    ज्योति और ज्वाला नयनों में,
    चिन्गारी हो नीर यहाँ हो ।।
    कान्हा आना इन सब में,तेरे ये रूप सुहाते हैं ।
    महाव्याधि मानवता पर है,धरा-धेनु गुहराते हैं ।।



    रेखराम साहू (बिटकुला बिलासपुर छग )