चमचा गिरि नही करूंगा
जो लिखुंगा सत्य लिखुंगा
चमचा गिरी नही करूंगा।
कवि हूं कविता लिखुंगा
राजनेता से नहीं बिकुंगा।।
चापलुसी चमचा गिरी तो
किसी कवि का धर्म नहीं।
अत्याचार मै नहीं सहूंगा।
जो लिखुंगा सत्य लिखुंगा ।
राज नेता से नहीं बिकुंगा ।
कवि हूं मैं, कविता लिखुंगा।।
कवि धर्म कभी कहता नहीं
अतिशयोक्ति काब्य लिखुंगा।
जो सच्चाई है वहीं लिखुंगा।
राजनेता से नहीं बिकुंगा।।
चमचा गिरी नही करूंगा
चाहे भले ही मर मिटुंगा।
कवि हूं कविता लिखुंगा।
राजनेता से नहीं बिकुंगा।।
मैं भारत मां का पुत सपुत
एक सनातनी कट्टर हिन्दू हूं।
देश द्रोही सनातन विरोधी से
जीवन पर्यन्त नहीं झुकुंगा।।
चाहे प्राण भले जायें मेरा
पर चमचा गिरि नही करूंगा।
श्रीराम कृष्ण का अनुयायी है एक सनातनी कट्टर हिन्दू हूं।।
वेद पुराण का पढ़ने वाला
सत्य दया प्रेम क्षमा सिंद्धू हूं
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
अमोदी आरंग ज़िला रायपुर
छत्तीसगढ़
Category: हिंदी कविता
चमचा गिरि नही करूंगा
गंगा की पुकार
गंगा की पुकार
गंगा घलो रोवत हे,देख पापी अत्याचार।
रिस्तेदारी नइये ठिकाना,बढ़गे ब्यभीचार।।
कलयुग ऊपर दोष मढत हे,
खुद करम में नहीं ठिकाना।
कइसे करही का करही एमन
ओ नरक बर करही रवाना।।
स्वार्थ के डगर अब भारी होगे
अनर्थ होत हे प्यार।
प्यार अंदर अब नफरत हवय
बढे हवय अत्याचार।।
प्यार नाम अब धोखा हवे
सुन लौ जी संत समाज।
हृदय काकरो स्वच्छ नहीं
जहर भरे हवय आज।।
जहरीला हवय तन हा भाई
मन हवय गंदा।
कलयुगी पापी देख देख,
रोवत हवे माई गंगा ।।
लोगन कइथे सभ्य जमाना
अनपढ़ रिहिस नादान।
कवि विजय के कहना हवय
अनपढ़ रिहिस भगवान।।
नता गोता ला खुब मानय
गांव बसेरू परिवार।
सबके बेटी,सब कोई मानय
हृदय बसाय सत्कार।।
, डॉ विजय कुमार कन्नौजे छत्तीसगढ़ रायपुरतृषित है मन सबका!
तृषित है मन सबका!
***
शंकर ने, विष पान किया,
तब नील कण्ठ कहलाए,
व्याघ्र चर्म का, वसन पहनकर,
मंद मंद मुसकाए!
विष धर को, गलहार बनाया,
नंदी पीठ बिरजाए,
चंद्र शीश पर रखकर, शिव जी,
चंद्रमौली कहलाए!
पर्वत पर आशियां बनाया,
डमरू हाथ बजाए,
कंद मूल खाकर ही जिसने,
ताण्डव नृत्य सिखाए!
प्रतीकात्मक ही इसे मानकर,
स्तुति करते आए,
मन है तृषित, आज हम सबका,
दुनिया में भरमाए!
कहे कबीरा संतन जन को,
न्याय वही दे पाए,
जिसने कष्ट सहे जीवन में,
महा काल बन जाए!
***
पद्म मुख पंडा ग्राम महा पल्ली पोस्ट लोइंग
जिला रायगढ़ छत्तीसगढ़नव वर्ष पर कविता
नव वर्ष
आ गया नववर्ष,क्या संदेह,क्या संभावना है?
शेष कुछ सुकुमार सपने,और भूखी भावना है।
हैं विगत के घाव कुछ,जो और गहरे हो रहे हैं,
बात चिकनी और चुपड़ी,सभ्यता या यातना है!
ओढ़कर बाजार को,घर घुट रहा है लुट रहा है,
ग्लानि की अनुभूति दे जाती कटुक,शुभकामना है।
नींद उनको फूल की शैय्या मेंं भी आती नहीं है,
किन्तु पर्यक वंचितों का,कंटकों से ही बना है।
शुद्धता हो रंग मेंं ये ध्यान रख पाते कदाचित!
ज्ञात होता रंग किन निर्दोष रक्तों से सना है !!
और कब तक मैं हँसू,होकर प्रताड़ित भाग्य बोलो,
पत्थरों के देवता के सामने रोना मना है।
धूप,दीपक,गंध,पूजा,अर्चना वह क्या करेगा!
श्रम करे तो साधना है,प्रेम ही आराधना है।
नव्यता की भ्राँति है,नववर्ष यदि मन जीर्ण हो तो,
वस्तुतः नववर्ष जीवन हर्ष की शुभ सर्जना है।
हो सुसंस्कृतियाँ प्रवाहित,लोकमंगल भाव लेकर,
पर्व तो कल्याण की नव प्राण की अभ्यर्थना है।
रेखराम साहू(बिटकुला/बिलासपुर)नया साल का स्वागत – विजय कन्नौज
नया साल का स्वागत – विजय कन्नौज
आही आही कुछ देके जाही
नया साल कुछ ले के आही।।
जय गंगान
नवा पुराना मा काहे भेद।
अपन करनी अपन मा देख
ऊपर निंधा तरी छेद,
जय गंगान
जइसन करनी तइसन भेद।
कहे कवि विजय के लेख
कुछ करनी कुछ हे भेष
जय गंगान
सुख सुख ल भोगहू मितान
दुख मां झन देहू ध्यान
निज करनी अपन देख
जय गंगान
जउन जयइसन करनी करही
ओ वइसन जगा मा परही
नवा बच्छर के नवा अंजोर
जिनगी के नइये,ओर छोर
जय गंगान
जुन्ना बच्छर के कर विदाई
आपस में झन लड़व भाई
मनखे मनखे एक समान
जय गंगान
जुन जैसन करही,फल उंहे ले पाही
आही आही कुछ कुछ लेके आही।
नया बच्छर हा कुछ लेके आही
जय गंगान