Category: हिंदी कविता

  • अब गरल है जिंदगी

    अब गरल है जिंदगी.

    शौक कहाँ साहेब,तब जरूरतें होती थीं,
    रुपया बड़ा,आदमी छोटा,
    पूरी न होने वाली हसरतें होती थीं!
    मिठाइयों से तब सजते नहीं थे बाज़ार,
    आये जब कोई,पर्व-त्योहार,
    पकवानों से महकता घर,
    भरा होता माँ का प्यार!

    तब आसमान में जहाज देख
    आँगन में सब दौड़ आते ,
    आज हर बच्चा उड़ रहा है,
    पानी में कागज की नाँव?
    अचरज कर रहा है!

    क्या क्या याद करें,
    कविता लम्बी हो जायेगी,
    अब समय कहाँ पढ़े कोई,
    सीधे डस्टबीन में जायेगी!

    ज़िंदगी नर्तकी सी
    उंगलियों पर नाच रही है,
    छलावा है सबकुछ,
    कहीं भी सच नहीं है,
    इमोजी भेजते हैं,
    हंसने-मुस्कुराने का,
    आंसू पोछने वाला भी
    अब कहीं नहीं है!

    बस!मुखौटे की तरह,
    हो गई है ज़िंदगी,
    तब सरल थी,
    अब गरल है जिंदगी…….!!!

  • हरियाली पर कविता

    हरियाली पर कविता

    HINDI KAVITA || हिंदी कविता
    HINDI KAVITA || हिंदी कविता

    एक वृक्ष सौ पुत्र समान|
    जंगल वसुधा की शान||
    पर्यावरण सुरक्षित कर |
    धरती का रखें सम्मान||

    स्वच्छ परिवेश बनाना है|
    पेड़ अधिक लगाना है ||
    हरितमा बनीं धरा को |
    धानीं चुनर पहनानाहै||

    हरियाली चहुं ओर आयी|
    ठंडी हवा बही सुखदायी||
    धरा बनीं है आज दुल्हन|
    कारी बदरी गगन पर छायी||

    पंछी उड़े उन्नत गगन |
    जैसे पायल की छनछन||
    पंखो को फैलाये उड़ते|
    मस्त मयूर करे नर्तन||

    हरा भरा संसार है सारा|
    जीवन का आधार हमारा |
    जय जवान  जय किसान|
    प्यारा हिन्दूस्तान हमारा ||

    कुमुद श्रीवास्तव वर्मा.

  • नमन तुम्हें है राष्ट्रभाषा

    नमन तुम्हें है राष्ट्रभाषा

    नमन तुम्हें है राष्ट्रभाषा
    नमन तुम्हें से मातृभाषा
    जीवंत तुम्हें अब रहना है
    पुष्पों के जैसे खिलना है।

    अंग्रेजों ने था अस्तित्व मिटाया
    हिन्दी भाषा को मृत बनाया
    अपनी भाषा का परचम लहराया
    हमारी भाषा को हमसे किया पराया।

    आजा़दी के बाद भी हिन्दी
    संविधान में मौन पड़ी है
    द्वितीय भाषा का कलंक झेलती
    अंग्रेजी प्रथम स्थान पर खड़ी है।

    राष्ट्र भाषा है नाम की हिन्दी
    आज मेरे परिवेश में
    हिन्दी की क्या दशा हो गई
    गांधी तेरे देश में।

    तुलसी,सूर,रहीम ने
    हिन्दी का किया वंदन ।
    जिस देश की भाषा हिन्दी है
    उस देश की माटी है चंदन।

    आज हर क्षेत्र में आवश्यक अंग्रेजी
    हिन्दी को फिर भी नहीं मरने देंगे
    बिन निज भाषा के मातृभूमि हो
    माँ को नहीं लुटने देंगे।

    बहुत हो चुकी भाषा की गुलामी
    नव प्रभात अब लाना है
    हिन्द देश के अंबर पर
    हिन्दी का ध्वज फहराना है।

    हिन्द देश की वासी हूँ मैं
    हिन्दी मेरी पहचान है
    कहती आज कलम कुसुम की
    हिन्दी मेरा स्वाभिमान है।

    हिन्दी ही है पूजा मेरी
    हिन्दी की बात सुनाती हूँ
    हिन्दी ही है रोटी मेरी
    हिन्दी के ही गुण गाती हूँ।

    कुसुमलता पुंडोरा

    नई दिल्ली

  • निराला प्रकृति- कुंडलिया छंद

    निराला प्रकृति

    निराला रूप प्रकृति का , लगता है चितचोर।
    भाये मन को ये सदा , करता भाव विभोर।।
    करता भाव विभोर , सभी को खूब लुभाता।
    फैला चारों ओर , मनुज दोहन करवाता ।।
    रखना ‘मधु’ यह ध्यान , बनें हम नहीं निवाला।
    प्रकृति का रहे साथ , करें कुछ काम निराला।।

    मधुसिंघी
    नागपुर (महाराष्ट्र)

  • हिन्दी का शृंगार

    हिन्दी का शृंगार


    आ सजनी संग बैठ
    आज तुझे शृंगार दूँ
    मेरी प्रिय सखी हिंदी
    मैं तुझको संवार दूँ ।

    कुंतिल अलकों के बीच
    ऊषा की सजा कर लालिमा,
    मुकलित कलियों की वेणी
    जूड़े के ऊपर टांग दूँ।
    आ सजनी..।

    ईश वंदन बेंदी शीशफूल
    पावन स्तुतियों के कर्ण फूल,
    अरुण बिंदु सजा भाल
    गहन तम का अंजन सार दूँ।
    आ सजनी..।
    नथनी पे सजा दूँ तेरे
    सद्भावों के सुन्दर मोती,
    अधरों की सुन्दर लाली
    को
    स्वर की मधुर झनकार दूँ।
    आ सजनी…।
    सुन्दर कण्ठहार सजा
    मातृभूमि यशगान,
    बाहों का भूषण बन जाये
    वीरों के शौर्य का बखान।
    छापे तेरे शुभ्र वस्त्र पर
    अरिरक्त के छाप दूँ।
    आ सजनी …।
    अनुपम सजीला हार
    बन जाये शृंगार  रस,
    संयोग वियोग के भावों
    से सज जाये  आभूषण
    प्रेम की अनोखी राह
    के  राज सारे खोल दूँ।
    आ सजनी..।

    कोमल भावों के कंगन
    किंकणी की शोभा संवार,
    पद नूपुर से बज जाये
    प्यार की मधुर झंकार।
    मैं न्यौछावर तेरा यश गूँजे
    तन मन तुझ पर वार दूँ।

    पुष्पा शर्मा”कुसुम”