Category: हिंदी कविता

  • वतन का नमक

    वतन का नमक

    इस जहां से सुकून,हमने कभी पाया तो है
    चमन का कोई गुल,हिस्से मेरे आया तो है


    लफ़्ज मेरे लड़खड़ाये,सामने तूफां पाकर
    फिर भी तरन्नुम में , गीत कोई गाया तो है
    तख़्त पर बैठे हमने,तपन के दिन बिताये
    जरा-सा प्रेम का,बादल कभी छाया तो है


    मंजिलों रोज ही बनते,गमों के आशियाने
    दरकते खण्डहरों को,हमनेभी ढाया तो है
    इस खुले आसमां तले,दिन क्यों गुजारूं?
    सिर छिपाने को , दरख़्तों का साया तो है


    दिल तड़फता रहा , बड़ा बेचैन-सा होकर
    बेसहारे को दुआ , ये कही  से लाया तो है
    गंवाया तो करूँ क्यों , अफ़सोस  आज मैं
    इस वतन का नमक,आज तक खाया तो है

    ✍––धर्मेन्द्र कुमार सैनी,बांदीकुई,दौसा(राज.)

  • सूनापन पर गीत

    सूनापन पर गीत

    आजाओ न तुम बिन सूना सूना लगता है
    न जाओ न तुम बिन सूना सूना लगता है
    जिसकी डाली पे हम दोनों झूला करते थे
    वो झूला वो बरगद सूना सूना लगता है
    दिन में तुम्हारा साथ रात में ख़्वाब होते थे
    बिना तुम्हारे सावन सूना सूना लगता है
    जिन आँखों में सदा तुम्हारा अक्स समाया था
    उन आँखों का काजल सूना सूना लगता है
    तेरे साथ जो जलवा जो अंदाज़ हमारा था
    अपने दिल का ही साज़ सूना सूना लगता है
    तेरे होने से हर सू एक चहल पहल सी थी
    मुझको अब ये घर बार सूना सूना लगता है
    जब तक तेरी ‘चाहत’ का अहसास नहीं भर दूँ
    हर इक ग़ज़ल हर गीत सूना सूना लगता है

    नेहा चाचरा बहल ‘चाहत’
    झाँसी

  • मोहब्बत पर गीत

    मोहब्बत पर गीत


    मोहब्बत जन्म से कुदरत के कण कण में समाई है।
    मोहब्बत  पीर  पैगम्बर  सूफियों  की  बनाई  है।।
    कोई  शक्ति  मिटा  पायी  नहीं जड़ से मोहब्बत को,
    मोहब्बत  देवताओं  से  अमर  वरदान  पाई  है।।

           मोहब्बत बहनों की राखी भाइयों की कलाई है।
           मोहब्बत बाप के आँगन से बेटी की विदाई है।।
           मोहब्बत आमिना मरियम यशोदा की दुहाई है।
           मोहब्बत  बाइबिल  कुरान  गीता  ने पढाई है।।

    मोहब्बत दो दिलों की दूरियों में भी समाई है।
    मोहब्बत नफरतों के रोगियों की भी दवाई है।।
    मोहब्बत  टूटे  सम्बंधों से जुड़ने की इकाई है।
    मोहब्बत भावनाओं का मिलन वर्ना जुदाई है।।


            मोहब्बत  झीलों  सी  गहरी  पर्वतों  की  उँचाई है।
            मोहब्बत प्रीति की दरिया को सागर से मिलाई है।
            मोहब्बत  आसमाँ  में  अनगिनत  तारों से छाई है।
            मोहब्बत  ढूँढ़कर हर स्वर्ग को धरती पर लाई है।।

    मोहब्बत  अपनों  से रूठी और गैरों से पराई है।
    मोहब्बत  आँसुओं  की  चन्द  बूँदों  से नहाई है।।
    मोहब्बत बिन गुनाहों के शरम से मुँह छिपाई है।
    कि जैसे प्यार करना प्यार से सचमुच बुराई है।।


             मोहब्बत  आधुनिक  आवारा  अँधी  आशनाई है।
             मोहब्बत  मनचली  मनहूस  मैली  बेवफाई  है।।
             मोहब्बत की ये परिभाषा जो लन्दन से मँगाई है।
             बेचारी  बेशरम  बचकानी  बुजदिल  बेहयाई है।।

    क्योंकि
      

    जहाँ भी ढूँढ़ो प्यार मोहब्बत का विकृत आकार मिले।
       फैशन  का बाजार  मिले और चेहरों का व्यापार मिले।
       प्यार  के बिगड़े  इस नक्शे में कुत्सित कुविचार मिले।
       दरिंदगी  वहशी  हैवानी  कामुकता  व्यभिचार मिले।।

    अली इलियास”–
                     प्रयागराज(उत्तर प्रदेश)

  • हम कहाँ गुम हो गये

    हम कहाँ गुम हो गये

    हम कहाँ गुम हो गये
    मोह पाश में हम बंधे,
    नयनों मे ऐसे खो गये।
    रही नहीं हमको खबर,
    हम कहाँ गुम हो गये।।
    इंद्र धनुष था आँखों में,
    रंगीन सपनों में खो गये।
    प्रेम की मूक भाषा में,
    हम कहाँ गुम हो गये।।
    कशिश उनमें थी ऐसी,
    बेबस हम तो हो  गये।
    कुछ रहा ना भान हमें,
    हम कहाँ गुम हो गये।।
    डूबे प्यार के सागर में,
    हम गहराई में खो गये।
    इस प्यारे अहसास में,
    हम कहाँ गुम हो गये।।
    दिनांक-31 जनवरी,2019
    मधु सिंघी,नागपुर(महाराष्ट्र)
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • नज़र की नज़र से

    नज़र की नज़र से

    नज़र की नज़र से मुलाक़ात होगी
    हज़ारों सवालों की बरसात होगी
    बयाँ हर सबब हिज़्र का वो करेंगे
    कि हर बेगुनाही की इस्बात होगी
    सर-ए-राह हमसे जताना न उल्फ़त
    गिरेंगे जो आँसू तो आफात होगी
    नज़र फ़ेर ली तुमसे हमने कहीं जो
    अदब पर ख़ताओं की शह-मात होगी
    अगर दिल की राहें जुदा हो गईं तो
    ख़लिश सी कहीं दिल में दिन रात होगी
    इस्बात=साबित करना
    आफात=मुसीबत
    कुसुम शर्मा अंतरा
    जम्मू कश्मीर
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद