गीत नवगीत लिखें
ग़ज़ल रुबाई या फिर कविता, भले गीत नवगीत लिखें।
मन के भाव पिरोते जायें, जैसा करें प्रतीत लिखें।
देख बदलते अंबर के रँग, काव्य तूलिका सदा चले।
छाया से सागर रँग बदले, लहरें तट से मिलें गले।
लाल गुलाबी श्वेत श्याम या, नीला धानी पीत लिखें।
ग़ज़ल रुबाई या फिर कविता, भले गीत नवगीत लिखें।
सरगम को कलरव में खोजें, अमराई की गंध मिले।
गेंदा बेला चंपा जूही, कमल गुलाबी नीर खिले।
प्रकृति रंग को हृदय बसा कर, वसुधा के सँग प्रीत लिखें।
ग़ज़ल रुबाई या फिर कविता, भले गीत नवगीत लिखें।
प्रियतम के भावों को पढ़कर, प्यारे कोमल शब्द चुनें।
जीवन मधुमय रहे हमेशा, श्रृंगारिक से स्वप्न बुनें।
उम्मीदों से दिल बहलाकर, पीड़ाओं के गीत लिखें।
ग़ज़ल रुबाई या फिर कविता, भले गीत नवगीत लिखें।
मूँगफली लोहड़ी में खाएं, धूम मचायें नृत्य करें।
खिचड़ी खा संक्रांति मनायें, सूर्य देव को नमन करें।
सावन भादों सर्दी गर्मी, मौसम की ही जीत लिखें।
ग़ज़ल रुबाई या फिर कविता, भले गीत नवगीत लिखें।
खुल कर जी लें आज ज़िन्दगी, कठिनाई से नहीं डरें।
कठिन समय का सदा सामना, हिम्मत के सँग वहीं करें।
काल खंड की सच्चाई को, बिना हुए भयभीत लिखें।
ग़ज़ल रुबाई या फिर कविता, भले गीत नवगीत लिखें।
बिंब उभरते जिनमें नूतन, ऐसे गीत अगीत लिखें।
ग़ज़ल रुबाई या फिर कविता, भले गीत नवगीत लिखें।
प्रवीण त्रिपाठी, नई दिल्ली, 29 जनवरी 2019