बसंत बहार

बसंत बहार शरद फुहार जाने लगीबसंती बहार आने लगी !कोयल की कूक गुंजे चहुँ ओरधीरे – धीरे धूप तेज कदम नेंबाग में आम बौराने लगी! शाम ढ़ले चहचहाते पक्षियोंघोसला को लौटने झुंड में,पेड़ों को पत्ते पीला होकरएक – एक कर झड़ने लगी!खेत खलिहान मे पुआलगाय बकरी सुबह शाम तकनिश्चिंत हो चरने लगी! आया बसंत बहारलाया … Read more

भोर का दिनकर

” भोर का दिनकर “ पश्चिम के सूर्य की तरहदुनियाँ भी ….मुझे झूठी लगीमानवता काएक भी पदचिन्हअब तो दिखाई नहीं देताजागती आँखों केसपनों की तरहअन्तःस्थल कीभावनाएँ भीखण्डित होती हैंतब ..जीवन काकोई मधुर गानसुनाई नहीं देताफिर भी ….सफेदपोश चेहरों कोबेनकाब करते हुएएक नई उम्मीद कादमखम भरते हुएसुनहले फसलों कोप्राणदान देते हुएइस विश्वरूपी भुवन की ओरधीमे कदमों … Read more

लकड़ियों पर कविता

लकड़ियों पर कविता              चिता की लकड़ियाँ,ठहाके लगा रही थीं,शक्तिशाली मानव को,निःशब्द जला रही थीं!मैं सिसकती रही,जब तू सताता था,कुल्हाड़ी लिए हाथ में,ताकत पर इतराता था!भूल जाता बचपन में,खिलौना बन रिझाती रही,थक जाता जब खेलकर,पालने में झुलाती रही!देख समय का चक्र,कैसे बदलता है,जो जलाता है वो,कभी खुद जलता है!मेरी चेतावनी है,अब मुझे पलने दे,पुष्पित,पल्लवित,होकर फलने … Read more

बोल रहे पाषाण

बोल रहे पाषाण बोल रहे पाषाण अबव्यक्ति खड़ा मौन है,छोड़ा खुद को तराशनापत्थरों पर ही जोर है।कभी घर की दीवारेंकभी आँगन-गलियारे,रखना खुद को सजाकररंग -रौगन का दौर है।घर के महंगे शो पीसबुलाते चारों ओर हैं  ,मनुज को समय नहींअब चुप्पी का दौर है।दिखावे की है दुनियाकलाकारी सब ओर है,असली चेहरा छुपा लेनाअब मुखौटों का दौर … Read more

आया बसंत

“आया बसंत” नव पल्लव नव रंग लिए,नव नवल पुष्प का गंध लिए।सरसों की पीली चुनरी ओढ़े, टेशू के सुन्दर रंग लिए। खेतों और खलिहानों में, बागों और कछारों में। जंगल और पहाड़ों में, रंग बसंती संग लिए। उलट-पुलट चल रही बयारें, दिशा दिशा सब झूम रहे।नव चेतन का गुँजार लिए, चहुंओर निराली सी लगती।नभ में उज्जवल … Read more