Category: हिंदी कविता

  • गिरिराज हिमालय

    गिरिराज हिमालय

        
    भारत का हिमगिरि प्रहरी है
    रजतमयी  अनमोल  ताज।
    युग- युग तक  कृतज्ञ  रहेगा,
    भरतखण्ड का  महा राज।
    अहो भाग्य है  इस भारत के,
    जहां हिमालय अडिग खडा।
    शीश  उठाये गिरवर निर्भय,
    स्वाभिमामान से धीर लडा़।
    गंगा  उद् गम गिरिवर से है,
    मूल दिव्य  औषधियों का।
    इसके अंक में पुरी विशाला,
    आराध्य देव है मुनियों का।
    अभेघ्य दुर्ग  है महा हिमाल़य,
    सदियों  से  रक्षा     करता।
    कोई दुश्मन  बढ़े  न  आगे,
    बार  – बार  है यह  कहता।
    हर मानव  को इस पर गौरव,
    निःसन्देह भारत की शान।
    अणुताकत भी भेद न पाए
    जग ऐसा गिरिराज  महान।
    कहो कहें क्या इस गिरिवर को,
    तसवीर कहें  या  हीर    कहें।
    रत्नाकर   अनुपम  भारत  का,
    रक्षक   सह   तकदीर   कहे।
    प्रफुल्लित मन से करे अर्चना
    मिल जुल कर इस हिमधर की।
    विराट  रूप  देवाधिदेव  का,
    भारत  रक्षक  हिम गिरि  की।


    ✍कालिका   प्रसाद  सेमवाल
           मानस सदन अपर बाजार
          रूद्रप्रयाग (उत्तराखंड)
          मोबाइल नंबर
            9410782566
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  • सिंगार भजन /केवरा यदु “मीरा “

    सिंगार भजन /केवरा यदु “मीरा “

    दुर्गा या आदिशक्ति हिन्दुओं की प्रमुख देवी मानी जाती हैं जिन्हें माता, देवीशक्ति, आध्या शक्ति, भगवती, माता रानी, जगत जननी जग्दम्बा, परमेश्वरी, परम सनातनी देवी आदि नामों से भी जाना जाता हैं।शाक्त सम्प्रदाय की वह मुख्य देवी हैं। दुर्गा को आदि शक्ति, परम भगवती परब्रह्म बताया गया है।

    सिंगार भजन /केवरा यदु “मीरा “

    Maa Durga photo
    Maa Durga photo

    सिंगार भजन

    सिंगार माता दुर्गा करन लागे हो ।
    सिंगार माता दुर्गा करन लागे हो ।
    मोहिनी मुरतिया लाल चुनरिया होऽऽऽ
    मोहिनी मुरतिया लाल चुनरिया नैनन भावे हो ।
    सिंगार माता दुर्गा करन लागे हो ।


    सिर सोने के क्षत्र बिराजे माथे सोहे बिंदिया ।
    माथे सोहे बिंदिया  भवानी माथे सोहे बिंदिया ।
    लाल कमल दल होठ भवानी हो  —-
    लाल कमल दल होठ भवानी नैनन भावे हो ।
    सिंगार माता दुर्गा करन लागे हो ।


    कानों में कुन्डलिया सोहे नाक में सोहे नथनिया ।
    नाक में सोहे नथनिया भवानी नाक में सोहे नथनिया ।
    नव लखा हार गले में दमके हो–
    नव लखा हार गले में दमके हो नैनन भावे हो ।
    सिंगार माता दुर्गा करन लागे हो ।


    बाँहों में बाजूबँद दमके खन खन खनके कँगना ।
    खन खन खनके कँगना भवानी खन खन खनके कँगना ।
    हरि हरि चूड़ियाँ हाथ में खनके हो—-
    हरि हरि चूड़ियाँ हाथ में खनके नैनन भावे हो ।
    सिंगार माता दुर्गा करन लागे हो ।


    लाली लाली लुगरा पहिरे ओढ़े लाल चुनरिया ।
    ओढ़े लाल चुनरिया भवानी ओढ़े लाल चुनरिया ।
    कमर में करधनिया सोहे हो—
    कमर में करधनिया सोहे नैनन भावे हो ।


    सिंगार माता दुर्गा करन लागे हो ।
    पाँव में माँ के पायल छनके सोहे लाल माहुरिया ।
    सोहे लाल माहुरिया भवानी सोहे लाल माहुरिया ।
    चुटुक चुटुक माँ के बिछिया बाजे हो—
    चुटुक चुटुक माँ के बिछिया बाजे नैनन भावे हो ।
    सिंगार माता दुर्गा करन लागे हो ।


    सिंगार माता दुर्गा करन लागे हो ।
    मोहिनी मुरतिया लाल चुनरिया होऽऽऽ
    मोहिनी मुरतिया लाल चुनरिया नैनन भावे हो ।
    सिंगार माता-


    केवरा यदु “मीरा “
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  • दीपक की ख्वाहिश

    दीपक की ख्वाहिश

    दीपक की ख्वाहिश
    मिट्टी से बना हूँ मैं तो,
    मिट्टी में मिल जाऊँगा।
    जब तक हूँ अस्तित्व में,
    रौशनी कर जाऊँगा ।।
    तमस छाया हर तरफ,
    सात्विकता  बढ़ाऊंगा।
    विवेक को जगाकर मैं,
    रौशनी कर जाऊँगा ।।
    धैर्य की बाती लगाकर,
    विनय से तेल बनाऊंगा।
    सतत ज्ञान बढ़ाकर मैं,
    रौशनी कर जाऊँगा ।।
    उत्साह मेरे है अंदर,
    सभी में भर जाऊँगा।
    ख्वाहिश एक ही बस,
    रौशनी कर जाऊँगा ।।
    मधु सिंघी, नागपुर(महाराष्ट्र)
    मो..9422101963
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  • अब तो खुलकर बोल

    अब तो खुलकर बोल*


    शर्मिलापन दूर भगाकर,घूँघट के पट खोल!
    बोल बावरी कलम कामिनी,अब तो खुल कर बोल!!
    जीवन की अल्हड़ता देखी,खुशियाँ थी अनमोल!
    दुख को देखा इन नैनों से,तर्क तराजू तोल!
    ऊंच नीच की गलियाँ देखी,अक्षर अक्षर बोल!
    बोल बावरी कलम कामिनी,अब तो खुलकर बोल!!…………..(१)


    राजनिती में दल दल देखा,नेताओं का शौर!
    डाकू बनगये आज धुरंधर,सच्चे नेता चोर!
    गिरेबाँन गँदा है सबका,खोले खुद की पोल!
    बोल बावरी कलम कामिनी,अब तो खुलकर बोल!!………..(२)


    भारत को बेपर्दा देखा,नया नवेला वेश!
    औछे कपड़े,ऊंची सैंडिल,सिर के खुले केश!
    बालाएँ ठगती ही देखी,कहुँ बजंता ढ़ोल!
    बोल बावरी कलम कामिनी,अब तो खुलकर बोल!!…………..(३)


    रिश्तों को रिस रिस कर मरते, देखा ऐसा हाल!
    बेटों की चाहत में अब भी,बेटी होय हलाल!
    सास कभी थी बेटी किसकी,मनको जरा टटोल!
    बोल बावरी कलम कामिनी,अब तो खुलकर बोल!!………(४)


    बेकारी सुरसा सी बढ़ती,भटके आज जवान!
    भ्रष्ट आचरण डस गया मुल्य,पंगू बना विधान!
    खींचातान बढ़ी है भारी,सत्ता डाँवांडोल!
    बोल बावरी कलम कामिनी,अब तो खुलकर बोल!!…………..(५)
    ~~~~


    ~~~~भवानीसिंह राठौड़ ‘भावुक’

  • जीना अब आसान नहीं है

    जीना अब आसान नहीं है

    जग में सब का मान नहीं है,
    हीरों की अब खान नहीं है।।

    पहले सा अब  काम नहीं है,
    इतनी भी पहचान  नहीं है।।

    अपने ही रखते हैं  खंजर,
    जीना अब आसान नहीं है।।

    खूब मिलावट करते हैं क्यों?
    अब अच्छा सामान नहीं है।।

    जिसको हमने मान दिया था,
    करता वह सम्मान नहीं है ।।

    रोज  यहाँ  बीमारी  होती,
    पहले सा जल-पान नहीं है।।

    जो करता है दगा सभी से,
    देखो  वह  इंसान नहीं है।।

    भ्रम की इस दुनिया में हमको,
    असली की पहचान नहीं है।।

    झूठ बोलता हर मानव अब,
    सच की रही जबान नहीं हैं ।।

    झूठ मिले हर चौराहे पर
    सच की कोई दुकान नहीं है।।

    कलयुग में भगवान भी बिकते
    राम भगत हनुमान नहीं  है।।

    कलियुग में लगता  है ऐसा,
    राम नहीं, रहमान नहीं  है।।

    “राज” देश का किसको सौंपे,
    लायक कोई  प्रधान नहीं है।।

    *कवि कृष्ण कुमार सैनी “राज”,दौसा,राजस्थान