* मेरे आँगन का उजियारा था माँ बाप के आँख का तारा था सीमा पर तुझको भेजा था पत्थर का बना कलेजा था पर मैने यह नहीं सोचा था। तू मुझे छोड़ कर जायेगा माँ बाप को रुलवायेगा । क्यों पुलवामा में सो गये । लाल तुम कहाँ गये ।
कहता था ब्याह रचाऊँगा प्यारी सी बहू मैं लाऊँगा फिर झूले में तुझे झुलाऊँगा खाना माँ तुम्हे खिलाऊँगा कैसे सपने दिखा चले गये लाल तुम कहाँ गये । बूढ़ी आँखे अब रोती है हरपल आँचल को भिगोती है खो गई आँख की ज्योति है बेटा तू हीरा मोती है । बिन कहे कुछ क्यों चले गये । लाल तुम कहाँ गये । पापा का तू ही सहारा था तू मेरा राज दुलारा था बहनों का भाई प्यारा था बस्ती वालों का रखवारा था । क्यों मुझे तड़पते छोड गये लाल तुम कहाँ गये । लाल तुम कहाँ गये । केवरा यदु “मीरा “ राजिम कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद
“मीरा की कविता ‘मैया की लाली है सिंगार’ में माता के प्रति भक्ति और प्रेम का गहरा भाव है। इस रचना में मीरा अपनी माँ की सुन्दरता और भक्ति को बयां करती हैं, जो भावनाओं और आस्था से भरपूर है। यह कविता मातृ प्रेम और भारतीय संस्कृति की अद्भुत परंपरा को दर्शाती है।”
मैया की लाली है सिंगार/केवरा यदु “मीरा
मेरी लाली लाली मैंया की लाली है सिंगार । लाली बिंदिया लाली सिंदूर होंठ कमल दल लाल।।
मेरी लाली लाली – मेरी लाली लाली मैंया की– लाल साड़ी लहरे माँ के पवन झकोरा आये। लाली चोली चम चम चमके लाली मोती जड़ाये। सिर पर माँ की लाल चुनरिया हो—— सिर पर माँ की लाल चुनरिया शोभा कहि नहि जाय ।। मेरी लाली लाली — मेरी लाली लाली मैं या की लाली है सिंगार ।।
लाली चूड़ी लाली कंगना लाली लाल मुंदरिया। लाल रतन बाजूबंद सोहे मोतियन से करधनिया । कान में बाली लाली लाली हो—– कान में बाली लाली लाली शोभा कहि नहि जाय।। मोर लाली लाली – मोर लाली लाली मैंया की लाली है सिंगार ।।
मोतियन लाल लगे बिछुवा मे पाँव चलत झन्नाय । लाल रतन के पाँव में पायल छम छम बाजत जाय। मोती लाल नाक के नथनी हो— मोती लाल नाक के नथनी चंदा सुरज लजाय।। मेरी लाली लाली- मेरी लाली लाली मैंया की लाली है सिंगार ।।
लाल सुपारी लाल नारियल ध्वजा लाल लहराय। लाल है चंदन लाल है रोली लाल गुलाल उड़ाय । माँ के भक्तन द्वारे आके हो— माँ भक्तन द्वारे आके आके लाल फूल बरसाय। मेरी लाली लाली – मेरी लाली लाली मैंया की लाली है सिंगार ।।
लाल ढोलक लाल है मांदर ड़फली भी है लाल । सिर पर माँ की लाल चुनरिया लहर लहर लहराय। लाली लाली माँ को देख के हो– लाली लाली माँ को देख के ” मीरा ” हो गई लाल ।।
लाली बिंदिया लाली सिंदूर होंठ कमल दल लाल । मेरी लाली लाली – मेरी लाली लाली मैंया की लाली है सिंगार । मेरी लाली लाली मैंया की लाली है सिंगार ।
जहाँ बहरी सियासत है, जहाँ कानून है अंधा। करें किसपे भरोसा तब, जहाँ पे झूठ है धँधा। विचारों पे लगा पहरा,बड़ा ये ज़ख्म है गहरा, भला क्या देश का होगा,सियासी रंग है गन्दा।।
मुनाफ़े का बड़ा धंधा, कभी होता नहीं मंदा। सियासी वस्त्र है ऐसा, कभी होता नहीं गंदा। सफेदी में छिपा लेता, सभी गुनाह ये अपना, सदा झोली भरी होती,सभी से मांग के चंदा।।
सियासी खेल है ऐसा,विवादों को रखे जिंदा विवादों से सियासत है,करे कोई भले निंदा। मवाली भी बना बैठा,हमारा आज का नेता, जमीरों का करे सौदा, कभी होता न शर्मिंदा।।
भोर की बेला हुई, दिनकर की पलकें खुली। इंतज़ार ख़त्म हुआ, सौगात लेकर आई नयी सुबह।। धीरे धीरे आँखे खोल रहा,स्वर्ण किरणें बिखेर रहा। नयी सुबह प्रारंभ हुई, रात्रि निशा विभोर हुई।।
कल जो जा रहा पश्चिम में था,आज फिर पूरब में है। नयी रोशनी नयी किरण आज हमारे जीवन में है।। दे रहा संकेत हमें, रोज नयी सुबह जीवन की करो। रोज जियो रोज मरो ,जीवन का पूरा आनंद लो।।
दोपहर हुई सूरज चढ़ा, तेज को श्रृंगार कर। यौवन आया अभिमान बरसे,जीवन के सच को भुलाकर।। साँझ हुई सूरज ढला, बुढ़ापे का पश्चाताप क्यों। जवानी के कर्मों का, आंसूओं से हिसाब दो।।
यौवन हमारा ढल जायेगा, सूरज के नित ताप सा। करते रहेंगे बुढ़ापे में, सिर धुन पश्चाताप हम।। प्रकृति हमें सिखाती है, सीख लेना चाहिए। जीवन के शाश्वत सत्य को मान ही लेना चाहिए।।
सोचा कुछहो जाता कुछ है मन के ही सब सोच मन को बांध सका न कोई मन खोजे सब कोय।। ⭕ हल्के मन से काम करो तो सफल रहे वो काम बाधा अगर कोई आ जाये बाधित हो हर काम।। ⭕ मन गिरे तन मुरझाये वैद्य काम नही आये गाँठे मन गर कोई खोले सच्चा गुरु वो कहाये।। ⭕ मन के ही उद्गम स्रोत से उपजे सुख व दुख पाप पुण्य मन की कमाई देख दर्प अब मुख।। ⭕ अंतर्जगत पहुँच सके पकड़ो मन जी डोर सच्चा झूठा बतला देता वो तू रिश्ता रूह से जोड़।।