सायली विधा में रचना – मधुमिता घोष
बचपन
बीत गया
आई है जवानी
उम्मीदें बढ़ी
सबकी.
चलो
उम्मीदों के
पंख लगा कर
छू लें
आसमाँ.
आँखें
भीगी आज
यादों में तेरी
खो गये
सपने.
सपने
खो गये
इन आँखों के
बिखर गई
आशायें.
मधुमिता घोष “प्रिणा”
चलो आज गुजार लेते हैं कुछ
खुशी के लमहे,
बन जाते हैं एक बार फिर
सिर्फ इंसान,और चलते हैं वहाँ
उसी मैदान में जहाँ,
राम और रहीम एक साथ खेलते हैं।
चढ़ाते हैं उस माटी का एक ही रंग
चलते हैं उस मंदिर और मस्जिद के
विवाद की भूमि पर
दोनों मिलकर बोएँगे प्रेम के बीज
चल आज उस बंजर भूमि पर
करते हैं इंसानियत की खेती
जहाँ सूरज ,हवा,पानी,माटी भी
चंदा, रात,दिन भी सब हम दोनों का है
न वे हिंदू हैं न मुसलमान
न सिख्ख ,न ईसाई
चल बढ़ चल मेरे भाई।
स्वरचित
वन्दना शर्मा
अजमेर।
हमको, हमीं से मिलाता है आईना.
इस दिल के जज्बात बताता है आईना.
हुआ किसी पे फिदा ,ये बताता है आईना.
संवरनें की चाह जगाता है आईना.
उम्र के तजुर्बों को बताता है आईना.
चेहरे की लकीरों को दिखाता है आईना
बालों की सफेदी को बताता ये आईना
श्रृंगार से हो प्यार , सिखाता है आईना
कुमुद श्रीवास्तव वर्मा
सही तो है हार कर भी,
मैं जीत रही हूं,
तुम्हारे लिए कभी बच्चों,
के लिए कभी परिवार ,
के लिए मैं हार कर भी जीत ,
रही हूं,
क्या हुआ अगर मेरे आत्मसम्मान पर
चोट लगती,
है मेरे आंसुओं से क्या फर्क,
पड़ता है ,बात तो ठहर
जाती है ना, सबकी बात
रह तो जाती है ना,
मैं भी नदियों की तरह,
हर बुराईयों को ,
ईंट पत्थर कचरा गंदगी,
और बहुत सी अच्छी ,
बुरी बातों को समेटते हुए,
आगे निकल जाती हूं,
क्योंकि मुझे खुश रहना है,
हार कर भी जीतना है,
हां जब मैं तुम्हारे साथ,
रहती हूं तुम्हारे प्यार के ,
आगे सब भूल जाती हूं,
आंखों की गहराई में ,
सच का साथ लिए डूब जाती हूं,
आंखें बयां कर देती है,
जैसे तुमने संभाल लिया,
शायद औरत का हारना,
उसकी जीत है ,
क्योंकि उसकी हार में ,
सारे रिश्ते सुरक्षित है,
समाज परिवार दोस्त,
यार सभी ,
किसी का दिल ना टूटे
मैं हार कर भी जीत रही हूं.
श्रीमती पूनम दुबे अम्बिकापुर छत्तीसगढ़
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मुझे अकेला छोड़कर कहाँ जाओगे तुम,
इन्हीं राहों में खड़ी हुँ कभी तो मिलोगे तुम।
छोटी सी बात पर आंख फेर ली तुमने,
कब तक यूँ मुझसे रूठे ही रहोगे तुम।
रात भर जागती रही आंखे मेरी यहाँ,
सपनों में न आकर मुझे सताओगे तुम।
मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रही हूँ,
ये तो बताओ आखिर कब आओगे तुम।
मेरी जिंदगी यूँ ही तन्हाइयों में गुजरी हैं,
अब मिले हो तो क्या ऐसे रुलाओगे तुम।
रश्मि शर्मा ‘इन्दु’
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