Category: हिंदी कविता

  • ठंडी का मौसम -अंजनी कुमार शर्मा

    ठंडी का मौसम -अंजनी कुमार शर्मा

    ठंडी का मौसम –अंजनी कुमार शर्मा

    moon

    आया है ठंडी का मौसम
    सूरज का बल हुआ है कम
    ओढे़ कोहरे की चादर
    गाँव-गाँव और नगर-नगर
    स्वेटर पहने जन पडे़ दिखाई
    ओढे़ कंबल और रजाई
    काँप रहा है कलुआ कुत्ता
    खलिहान में पडा़ है दुबका
    ठंडी के आगे सब हारे
    छिप गये हैं चाँद और तारे
    बर्फीली हवाएँ जब चलती
    तन-मन में तब सिहरन उठती
    और फिर कूछ नहीं सूझता
    अलाव का सहारा दिखता
    ठंडी जब-जब आती है
    सच में, बहुत सताती है।

    अंजनी कुमार शर्मा

  • गुलाब पर कविता/ माला पहल

    गुलाब पर कविता/ माला पहल

    गुलाब पर कविता

    गुलाब पर कविता/ माला पहल
    gulab par kavita

    गुलाब- गुल की आभा

    मैं हूँ अलबेला गुलाब,
    नहीं झुकता आए सैलाब।
    आँधी या हो तूफान,
    या तपे सूरज घमासान।
    कांटो को लपेटे बनाए परिधान,
    यही तो है मेरी पहचान।
    मुझसे पूछो कैसे पाएँ पहचान,
    मुस्कुराकर ले सबसे अपना सम्मान।
    चुभ जाऊँ अगर मैं भूलकर,
    फिर भी चूमा जाऊँ झुककर।
    सजूँ सजाऊँ हर मौके पर,
    यही तो ईश कृपा है मुझपर।
    मुरझा कर सुगंध दे जाऊँ,
    हर पल परिसर को महकाऊँ।
    अपने नाम का अर्थ बताऊँ,
    गुल से फूल और आब से आभा बन जाऊँ।
    तभी तो हूँ मैं परिपूर्ण,
    मेरे अस्तित्व के बिना उपवन अपूर्ण।
    हाँ मैं ही तो हूँ अलबेला गुलाब,
    फूलों का सरताज जनाब!!

    माला पहल ‘मुंबई’

  • उषाकाल पर कविता /नीलम

    उषाकाल पर कविता /नीलम

    उषाकाल पर कविता / नीलम

    jivan doha

    उषा के आगमन से रूठकर
    निज तिमिर विभा समेटकर
    ह्रदय मुकुल अपना सहेजकर
    माधवी निशा कित ओर चली•••

    सज सँवर वह दमक-दमक कर
    तीखी नयन वह चहक-चहक कर
    सुरभि का देखो सौरभ खींच कर
    मादक सी चुनर ओढ़ चली•••

    मंद-मंद मधु अधरों की लाली
    अलसित देह अमि की प्याली
    छोड़ विगत घाट पर अलबेली
    बहती निर्झर वह चितचोर चली•••

    प्राची का सूर्य खड़ा समीप
    मृदुल किरणों का लेकर दीप
    सहज सरल गुमसुम सरिता सी
    अविरल आसव वह खोज चली•••

    जीवन का वह संदेश सुनाती
    आशा तृषा की बात बताती
    स्व के अहं का अवरोध हटाती
    नित नई नूतनता की ओर चली••••                     

     नीलम ✍

  • इंद्रधनुष के रंग उड़े हैं/ बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*

    इंद्रधनुष के रंग उड़े हैं/ बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*

    इंद्रधनुष के रंग उड़े हैं/ बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*

    इंद्रधनुष के रंग उड़े हैं/ बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*


    इन्द्र धनुष के रंग उड़े हैं
    . देख धरा की तरुणाई।
    छीन लिए हाथों के कंगन
    . धूम्र रेख नभ में छाई।।

    सुंदर सूरत का अपराधी
    . मूरत सुंदर गढ़ता है
    कौंध दामिनी ताक ताक पथ
    . चन्दा नभ में चढ़ता है
    . नारी का शृंगार लुटेरा
    पाहन लगता सुखदाई।
    इन्द्रधनुष…………..।।

    यौवन किया तिरोहित नभ पर
    . भू को गौतम शाप मिले
    . बने छली शशि इंद्र विधाता
    भग्न हृदय को कौन सिले
    . छंद लिखे मन गीत चितेरे
    पाहन पवनी चतुराई।
    इन्द्र…………………।।

    रेत करे आराधन घन का
    . खजुराहो पथ मेघ चले
    . भूल चकोरी का प्रण चंदा
    . छिपे नयन की छाँव तले
    . पुरवाई की बाट निहारे
    . सागर चाहे ठकुराई।
    इन्द्र धनुष के रंग उड़े हैं
    देख ..धरा की तरुणाई।।


    बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*
    बौहरा-भवन ३०३३२७
    सिकंदरा,दौसा, राजस्थान

  • गौरी के लाला गनराज

    गौरी के लाला गनराज

    गणपति को विघ्ननाशक, बुद्धिदाता माना जाता है। कोई भी कार्य ठीक ढंग से सम्पन्न करने के लिए उसके प्रारम्भ में गणपति का पूजन किया जाता है।

    भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का दिन “गणेश चतुर्थी” के नाम से जाना जाता हैं। इसे “विनायक चतुर्थी” भी कहते हैं । महाराष्ट्र में यह उत्सव सर्वाधिक लोक प्रिय हैं। घर-घर में लोग गणपति की मूर्ति लाकर उसकी पूजा करते हैं।

    ganesh
    गणेश वंदना

    गौरी के लाला गनराज

    पहिली सुमरनी हे, हाथ जोड़ बिनती हे |
    गौरी के लाला गनराज ला….

    1. विघन विनाशन नाम हे ओखर |
      दुख हरना शुभ काम हे ओखर ||
      मन मा बसाले गा, तन मा रमाले ना…
      गौरी के लाला गनराज ला…..
    2. लंबोदर हाबय जी गजानन |
      भइया हाबय उँखर षडानन ||
      फूल पान चढ़ा ले रे, लाड़ू के भोग लगाले ना….
      गोरी के लाला गनराज ला……..
    3. मुसवा के ओ करथे सवारी |
      पिता हाबय ओखर त्रिपुरारी ||
      एकदंत कहिथे जी, दयावंत कहिथे ना…..
      गौरी के लाला गनराज ला…..
      पहिली सुमरनी हे….
      हाथ जोड़ बिनती हे……
      गौरी के लाला गनराज ला……

    दिलीप टिकरिहा “छत्तीसगढ़िया”