किसी भी राष्ट्र के सर्वतोमुखी विकास के लिए विद्या और शक्ति दोनों देवियों की आराधना और उपासना आवश्यक है। जिस प्रकार विद्या की देवी सरस्वती है, उसी प्रकार शक्ति की देवी दुर्गा है। विजया दशमी दुर्गा देवी की आराधना का पर्व है, जो शक्ति और साहस प्रदान करती है। यह पर्व आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। विजया दशमी का पर्व दस दिनों तक (प्रति पदा से दशमी तक) धूमधाम से मनाया जाता है। इसमें कई प्रकार की पूजा होती है। नवरात्र पूजा, दुर्गा पूजा, शस्त्र पूजा सभी शक्ति की प्रतीक दुर्गा माता की आराधना और उपासना है। अतीत में इस देवी ने दुष्ट दानवों का वध करके सामान्य जन और धरती को अधर्मियों से मुक्त किया था।
अब तो मन का रावण मारें
बहुत जलाए पुतले मिलकर,
अब तो मन का रावण मारे।
जन्म लिये तब लगे राम से,
खेले कृष्ण कन्हैया लगते।
जल्दी ही वे लाड़ गये सब,
विद्यालय में पढ़ने भगते।
मिल के पढ़ते पाठ विहँसते,
खेले भी हम साँझ सकारे।
मन का मैं अब लगा सताने,
अब तो मन का रावण मारें।
होते युवा विपुल भ्रम पाले,
खोया समय सनेह खोजते।
रोजी रोटी और गृहस्थी,
कर्तव्यों के सुफल सोचते।
अपना और पराया समझे,
सहते करते मन तकरारें।
बढ़ते मन के कलुष ईर्ष्या,
अब तो मन के रावण मारें।
हारे विवश जवानी जी कर,
नील कंठ खुद ही बन बैठे।
जरासंधि फिर देख बुढ़ापा,
जाने समझे फिर भी ऐंठे।
दसचिंता दसदिशि दसबाधा,
दस कंधे मानेे मन हारे,
बचे नही दस दंत मुखों में,
अब तो मन के रावण मारें।
जाने कितनी गई पीढ़ियाँ,
सुने राम रावण की बातें।
सीता का भी हरण हो रहा,
रावण से मन वे सब घातें।
अब तो मन के राम जगालें,
अंतर मन के कपट संहारें।
कब तक पुतले दहन करेंगे,
अब तो मन के रावण मारें।
रावण अंश वंश कब बीते,
रोज नवीन सिकंदर आते।
मन में रावण सब के जिंदे,
मानो राम, आज पछताते।
लगता इतने पुतले जलते,
हम हों राम, राम हों हारे।
देश धरा मानवता हित में,
अब तो मन के रावण मारें।
बहुत जलाए पुतले मिलकर,
अब तो मन के रावण मारें।
बाबू लाल शर्मा, बौहरा
सिकंदरा,303326
दौसा,राजस्थान,9782924479