Category: अन्य काव्य शैली

  • न करना कृष्ण सी यारी- बाबू लाल शर्मा “बौहरा”

    न करना कृष्ण सी यारी



    न करना कृष्ण सी यारी,
    सुदामा को न तड़पाना,
    खिलौने आप मिट्टी के,
    उसी मे खाक मिल जाना।

    दोस्ती करना सखे तो ,राम या सुग्रीव सी,
    जरूरते पूरी भली हो ,बात यह सब जानते।
    दोस्ती करनी तो हीरे से, या सोने से,
    मिट्टी से करें यारी,अपने ही पसीने से।

    जो टूट कर भी दूर न हो अपने सीने से कभी,
    करो यारी सदा प्यारे उस उत्तम से नगीने से।

    मिले गर कर्ण सा याराँ, तो सीने से लगा लेना,
    जाति व धर्म देखे बिन, उसे अपना बना लेना।

    भूल संगी जख्म अपने,
    घाव भरता मीत के,
    त्याग अपने स्वार्थ सपने,
    काज सरता मीत के।
    जमाने में अगर जीना,
    कभी मितघात न करना
    यार के स्वेद के संगत,
    कभी दो बात न करना।

    दोस्ती पालनी तुमको तो,
    खुद ही कर्ण बन जाना,
    जमाने की नजर लगती,
    सुयोधन साथ लग जाना।

    दोस्ती कृष्ण से करना न सुदामा ही कभी बनना,
    बड़े अनमेल सौदे है , जमाने संग रंगना है।

    भला इससे तो अच्छा है,
    कि झाला मान बन जाना।
    बनो राणा तो कीका सा,
    या चेतक अश्व बन जाना।

    वतन से प्यार करलो यार,
    इसी के काम आ जाना,
    खिलौने आप माटी के
    उसी में खाक मिल जाना।
    न करना कृष्ण सी यारी
    सुदामा को न तड़पाना,
    खिलौने आप मिट्टी के,
    उसी में खाक मिल जाना।

    यारी दु:ख से कर लेना,जन्म भर ये निभाएंगे।
    कहाँ है मीत सुख साथी,यही तो साथ जाएंगे।
    .
    बाबू लाल शर्मा “बौहरा”

  • ख्वाहिशें हमसे न पूछो-बाबू लाल शर्मा “बौहरा”

    ख्वाहिशें हमसे न पूछो-बाबू लाल शर्मा “बौहरा”


    ख्वाहिशें हमसे न पूछो,
    ख्वाहिशों का जोर है,
    तान सीना जो अड़े है,
    वे बहुत कमजोर हैं।
    आज जो बनते फिरे वे ,
    शाह पक्के चोर हैं,
    ख्वाहिशें हमसे न पूछो,
    ख्वाहिशों का जोर है।

    ख्वाहिशें सैनिक दबाए,
    जो बड़ा बेजार है,
    जूझ सीमा पर रहा जो,
    मौत का बाजार है।
    राज के आदेश बिन ही,
    वह निरा कमजोर है,
    ख्वाहिशें हमसे न पूछो,
    ख्वाहिशों का जोर है।

    ख्वाहिशें कृषकों से पूछो,
    स्वप्न जिनके चूर हैं
    जय किसान के नारे गाते,
    कर देते मशहूर है।
    नंग बदन अन्न का दाता,
    आज भी कमजोर है,
    ख्वाहिशें हमसे न पूछो,
    ख्वाहिशों का जोर है।

    ख्वाहिशें बच्चों से पूछो,
    छिन गये बचपन कभी,
    रोजगार के सपने देखें,
    लगे न पूरे हुएँ कभी।
    आरक्षण है भूल भुलैया,
    बेकामी घनघोर है,
    ख्वाहिशें हमसे न पूछो,
    ख्वाहिशों का जोर है।

    ख्वाहिशें गुरुजन से पूछो,
    मान व सम्मान की,
    संतती हित जो समर्पित,
    भग्न मन अरमान की।
    मनात्माएँ जीर्ण होते,
    व्याधियाँ पुर जोर है,
    ख्वाहिशें हमसे न पूछो,
    ख्वाहिशों का जोर है।

    ख्वाहिशें जनता से पूछो,
    वोट देने की जलालत,
    चोर सीना जोर होते,
    रोटियाँ ही कयामत।
    देशहित जो ये चुने थे,
    भ्रष्ट रिश्वत खोर हैं,
    ख्वाहिशें हमसे न पूछो, एक जी
    ख्वाहिशों का जोर है।

    ख्वाहिशें बिटिया से पूछो,
    जन्म लगते भार है,
    हर कदम बंदिश लगी है,
    खत्म जीवन सार है।
    अगले जन्म बेटी न कीजै,
    हरजहाँ यह शोर है
    ख्वाहिशें हमसे न पूछो,
    ख्वाहिशों का जोर है।
    . ————
    बाबू लाल शर्मा “बौहरा”

  • वतन है जान से प्यारा -बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ

    वतन है जान से प्यारा -बाबूलाल शर्मा बौहरा विज्ञ


    सितारे साथ होते तो,
    बताओ क्या फिजां होती।
    सभी विपरीत ग्रह बैठे,
    मगर मय शान जिन्दा हूँ।

    गिराया आसमां से हूँ,
    जमीं ने बोझ झेला है।
    मिली है जो रियायत भी,
    नहीं,खुद से सुनिन्दा हूँ।

    न भाई बंधु मिलते है,
    सगे सम्बन्ध मेरे तो,
    न पुख्ता नीड़ बन पाया,
    वही बेघर परिन्दा हूँ।

    किया जाने कभी कोई,
    सखे सद कर्म मैने भी।
    हवा विपरीत मे भी तो
    मै सरकारी करिंदा हूँ।

    न मेरे ठाठ ऊँचे है,
    न मेरी राह टेढी है।
    न धन का दास हूँ यारों,
    गरीबों में चुनिंदा हूँ।

    सभी तो रुष्ट हैं मुझसे,
    भला राजी किसे रखता।
    सभी सज्जन हमारे प्रिय
    असंतो हित दरिंदा हूँ।

    न बातों में सियासत है,
    न सीखी ही नफ़ासत है।
    न तन मन में नज़ाकत है,
    असल गाँवइ वशिन्दा हूँ।

    नहीं विद्वान भाषा का,
    न परिभाषा कभी जानी।
    बड़े अरमान कब सींचे,
    विकारों का पुलिन्दा हूँ।

    सभी कमियाँ बतादी हैं,
    मगर कुछ बात है मुझमें।
    कि जैसा भी जहाँ भी हूँ,
    वतन का ही रहिन्दा हूँ।

    हमारे देश की माटी,
    शहीदी शान परिपाटी।
    सपूतों की विरासत हूँ,
    तभी तो आज जिन्दा हूँ।

    मरे ये देश के दुश्मन
    हमारे भी पराये भी।
    वतन पर घात जो करते,
    उन्हीं हित लोक निन्दा हूँ।

    मुझे क्या जाति से मेरी,
    न मजहब से किनारा है।
    पथी विश्वास से हटकर,
    विरागी मीत बंदा हूँ।

    वतन है जान से प्यारा
    हिफ़ाजत की तमन्ना हूँ।
    करे जो देश से धोखा
    उन्हें,फाँसी व फंदा हूँ।

    समझ लेना नहीं कोई
    वतन को तोड़ देने की।
    वतन मजबूत है मेरा,
    नुमाइंदा व जिन्दा हूँ।
    —————–
    बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ

  • प्रीत पुरानी-बाबू लाल शर्मा

    प्रीत पुरानी


    १६ मात्रिक मुक्तक

    थके नैन रजनी भर जगते,
    रात दिवस तुमको है तकते
    चैन बिगाड़ा, विवश शरीरी,
    विकल नयन खोजे से भगते।

    नेह हमारी जीवन धारा।
    तुम्हे मेघ मय नेह निहारा।
    वर्षा भू सम प्रीत अनोखी,
    मन इन्द्रेशी मोर पुकारा।

    पंथ जोहते बीते हर दिन,
    तड़पें तेरी यादें गिन गिन।
    साँझ ढले मैं याद करूँ,तो,
    वही पुरानी आदत तुम बिन।

    यूँ ही परखे समय काल गति।
    रात दिवस नयनों की अवनति।
    तुम्ही हृदय हर श्वाँस हमारी,
    आजा वर्षा मत कर भव क्षति।

    बैरिन रैन कटे बिन सोये।
    जागत सपने देखे खोये।
    इन्तजार के इम्तिहान में,
    कितने हँसते,कितने रोये।

    प्रातः फिर अपने अवलेखूँ।
    रात दिवस भव सपने देखूँ।
    आजा अब तो निँदिया वर्षा,
    तेरी यादें निरखूँ बिलखूँ।

    धरा प्राण दे वर्षा रानी।
    जीव त्राण दे हे दीवानी।
    प्रीत पुरानी, यादें वादे,
    पूरे करिये मन मस्तानी।

    जग जानी पहचानी,धानी।
    वही वही भू बिरखा रानी।
    तुम मन दीवानी,अलबेली,
    तो हम भी जन रेगिस्तानी।
    ————-
    बाबू लाल शर्मा,बौहरा,’विज्ञ’

  • विश्व कविता दिवस – बाबू लाल शर्मा

    विश्व कविता दिवस (अंग्रेजी: World Poetry Day) प्रतिवर्ष २१ मार्च को मनाया जाता है। यूनेस्को ने इस दिन को विश्व कविता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा वर्ष 1999में की थी जिसका उद्देश्य को कवियों और कविता की सृजनात्मक महिमा को सम्मान देने के लिए था।

    21 मार्च विश्व कविता दिवस 21 March World Poetry Day
    21 मार्च विश्व कविता दिवस 21 March World Poetry Day

    कलम चले कालचक्र सी



    . (१६मात्रिक)
    कलम चले यह कालचक्र सी,
    लिखती नई इबारत सारी।
    इतिहासों को कब भूलें है,
    लिखना देव इबादत जारी।

    घड़ी सुई या चलित लेखनी,
    पहिया कालचक्र अविनाशी।
    चलते लिखते घूम घूम कर,
    वर्तमान- आगे – इतिहासी।

    मिटते नहीं कलम के लेखे,
    जैसे विधना लेख अटल है।
    हम तो बस कठपुतली जैसे,
    नाचे नश्वर जगत पटल है।

    शक्ति लेखनी जग पहचाने,
    क्रांति कथानक,सत्ताधारी।
    गोली , तोप, तीर , तलवारे,
    बारूदी सत्ता से भारी।

    कलमकार सिर कलम हुए है,
    जब जब सत्ताधीशों से।
    नई क्रांति से कलम मिलाती,
    कुचली सत्ता नर शीशो से।

    कूँची कलमशक्ति हथिया के,
    नई व्यवस्था सत्ता करती।
    कलमवीर सिरकलमी न हो,
    ऐसी सोच व्यवस्था करती।

    कलम रचाती क्रांति नवेली
    नवाचार हर क्षेत्र करेगी।
    पौधे कलम नस्ल बीजों से,
    हरित क्रांति कर खेत बरेगी।

    सत्य छाँटती, सतत लेखनी,
    ज्यों दर्पण को कलम काटती।
    सामाजिक सद्भाव पिरो कर,
    ऊँच नीच मतभेद पाटती।
    ……
    कलम अजर है कलम अमर है
    कलम विजय है सर्व समर में।
    कलमकार तन वस्त्र बदलते,
    कलम बचे जग ढहे सगर में।

    वेदों से ले संविधान तक,
    रामायण ईसा कुरान तक।
    कलम कालगति चलते रहती,
    सृष्टिसृजन से प्रलयगान तक।
    … ……..

    बाबू लाल शर्मा