Category: अन्य काव्य शैली

  • मनीभाई के हाइकु अर्द्धशतक भाग 8

    मनीभाई के हाइकु अर्द्धशतक भाग 8

    हाइकु

    हाइकु अर्द्धशतक

    ३५१/ धरा की ताप
    हरते मौन वृक्ष
    तप करते

    ३५२/ झुलस जाये
    तन मन जीवन
    ऐसी तपन।


    ३५३/ है ऐसी धुप
    नैन चौंधिया जाये
    तेजस्वरूप ।


    ३५४/   लू की कहर
    खड़ी दोपहर में
      धीमा जहर


    ३५५/
    मेघ गरजे
    बिजली सी चमके
    रूष्ट हो जैसे ।


    ३५६/
    बादल छाया
    एकाकार हो गये
    धरा अंबर।


    ३५७/
    मेघ ढाल सा।
    बिजली की कटार
    बूंदों की बौछार ।


    ३५८/
    मेघ घुमड़े
    बारिश की चादर
    धरती ओढ़े ।

    ३५९/
    गिरते मोती
    बादल बनी सीपी
    अमूल्य निधि ।


    ३६०/ प्रेम की पाती
    मेघ बना है दूत
    जाये पी घर।


    ३६१/ सांध्य का तारा
    शुक्र बन अगुआ
    लड़े अंधेरा ।


    ३६२/ तरू की मुट्ठी
    धंस चली धरा में
    बचाने पृथ्वी ।

    ३६३/
    सौर मंडल
    बुध लगे अनुज।
    गुरू अग्रज।


    ३६४/
    बने नौ ग्रह
    हुआ महाविस्फोट
    सृष्टि कोख में ।


    ३६५/ पूर्णिमा रात
    प्रतिशोध में केतु,
    लगाये घात।


    ३६६/
    अमावस में
    राहू बैरभाव से
    है तलाश में ।

    ३६७/
    जन विस्फोट
    पृथ्वी हांफती लदी
    मंगल आश।


    ३६८/ अनोखा शनि
    नजारा है सुंदर
    नजर बुरी।


    ३६९/ आषाढ़ मास
    मानसून की आंधी
    बेहद खास।

    ३७०/
    रेतीली आंधी
    बनाती है थार में
    बालू की ढेरी।


    ३७१/ चले तूफान
    ना डर , ऐ जिंदगी !
    खिले मुस्कान ।


    ३७२/
    घास की छत
    मशरूम कप सी
    बहे बाढ़ में ।


    ३७३/
    भूकंप आया
    सृष्टि बनी कहर
    मातम छाया ।


    ३७४/
    धरा बेहाल
    जल अमृत बिन
    हुआ अकाल।

    ३७५/ आई सुनामी
    मानव तेरे प्राण
    क्षणभंगुर ।


    ३७६/ घाटी चौकन्नी
    भूस्खलन का भय
    पग पग में ।


    ३७७/
    नेत्र है लाली
    फूटती ज्वालामुखी
    प्रचण्ड काली।


    ३७८/ प्रलय घड़ी
    धैर्य की हो परीक्षा
    मुश्किल बड़ी ।


    ३७९/ आंवला वृक्ष
    अश्विनी का प्रतीक
    अश्व पुरूष ।


    ३८०/
    यम का व्रत
    भरणी में पूजन
    युग्म वृक्ष के ।


    ३८१/ दक्ष की पुत्री
    कार्तिकेय की धातृ
    नाम कृतिका।


    ३८२/
    विशाल नैन
    रोहिणी है सुंदर
    चंद्र की चैन।


    ३८३/
    खैर के वृक्ष
    मृगशिरा प्रतीक
    मंगल स्वामी ।

    ३८४/ वर्षा आरंभ
    आर्द्रा में है आर्द्रता
    छठा नक्षत्र ।


    ३८५/
    बांस की झाड़ी
    पुनर्वसु प्रतीक
    अदिति देव।


    ३८६/ पुष्य पोषक
    गोरस सा सरीखा
    नक्षत्र माता।


    ३८७/
    सर्प का व्रत
    अश्लेषा में पूजित
    नागकेशर।


    ३८८/ मघा बरसे
    ज्यों माता के परोसे
    संतृप्त मन।


    ३८९/
    पूर्वा फाल्गुनी
    स्वामी शुक्र से बैर
    अधिक दशा ।


    ३९०/
    शय्याकार में
    है उत्तरा फाल्गुनी
    सूर्य है स्वामी ।


    ३९१/
    हाथ का पंजा
    परोपकारी हस्त
    चंद्र देवता।


    ३९२/
    उग्र स्वभाव
    चित्रा महत्वाकांक्षी
    शुभ नक्षत्र ।


    ३९३/
    स्वाति नक्षत्र
    सीपी में ओस बूंद
    हो गये मोती।


    ३९४/
    इन्द्राग्नि देव
    विभाजित शाखा है
    विशाखा अर्थ।


    ३९५/
    अधिदेवता
    अनुराधा में मित्र
    दे सफलता।


    ३९६/
    ज्येष्ठा नक्षत्र
    इन्द्र व्रत पूजन
    चीड़ प्रतीक।


    ३९७/
    मूल नक्षत्र
    साल वृक्ष है शुभ
    राक्षस व्रत।


    ३९८/
    धनु है राशि
    शुक्र स्वामी जिसका
    है पूर्वाषाढ़ा।


    ३९९/
    उत्तराषाढ़ा
    कटहल रोपित
    गृह है शुभ।


    ४००/
    शुभ श्रवण
    गृह सौदा के लिए
    देवता चंद्र ।

  • मनीभाई के हाइकु अर्द्धशतक भाग 7

    मनीभाई के हाइकु अर्द्धशतक भाग 7

    हाइकु

    हाइकु अर्द्धशतक

    ३०१/
    आज के नेता
    है जनप्रतिनिधि
    नहीं सेवक।


    ३०२/
    है तू आजाद
    बचा नहीं बहाना
    तू आगे बढ़।

    ३०३/.
    मित्र में खुदा
    करे निस्वार्थ प्रेम
    रिश्ता है जुदा।

    ३०४/ छाया अकाल
    जल अमृत बिन
    धरा बेहाल।

    ३०५/ सांध्य सितारा
    शुक्र बन अगुआ
    लड़े अंधेरा।

    ३०६/ स्वाभिमान ही
    सबसे बड़ी पूंजी
    जीवन कुंजी।


    ३०७/ बानी हो मीठी
    चुम्बकीय खिचाव
    शीतल छांव।

    ३०८/ प्रेरणा पथ
    खुला पग पग में
    परख चल।


    ३०९/
    अच्छे करम
    परलोक संपत्ति
    जीवन बीमा।


    ३१०/ एक जिन्दगी
    लाख सपने बुनें
    कैसी बंदगी?

    ३११/
    फल की खोज
    बिन कर्म फूल के
    होती बेमानी।

    ३१२/ माया का फंदा
    फैला कर है रखा
    ढोंगी का धंधा।


    ३१३/
    रक्षाबंधन
    बहन असुरक्षित
    भाई तू कहाँ?


    ३१४/ आज की पीढ़ी
    दुर्व्यसनी हो, चढ़े
    मौत की सीढ़ी।

    ३१५/.
    होती बेटियाँ
    रिश्तों की है कड़ियाँ
    मोती लड़ियाँ।


    ३१६/ नन्हीं चिड़िया
    छोड़ चली आशियाँ
    पाके आसमां।

    ३१७/ बना बंजारा
    सारी दुनिया घर
    आसमां छत।


    ३१८/ पी का दीदार
    बजती हर बार
    दिल सितार।  

    ३१९/ चांद तुकड़ा
    लगती प्यारी बेटी
    फूल मुखड़ा।

    ३२०/ टेढ़ी मुस्कान
    हृदयाघात करे
    तीर कमान।

    ३२१/ हिन्दी दिवस
    एक संकल्प दिन
    हिन्दी के लिए।

    ३२२/ बाती हिन्दी की
    जलती रहे सदा
    पीढ़ी को दे लौ।

    ३२३/ मां, बापू, गुरू
    नमस्ते, शुभ दिन
    सबमें हिन्दी।

    ३२४/ आज ये हिन्दी
    घर में ना हो बंदी
    आ हिन्दी बनें।


    ३२५/ जीवन विद्या
    एक जीवन शैली
    आज की मांग।

    ३२६/ आज के नेता
    है जनप्रतिनिधि
    नहीं सेवक।  

    ३२७/ कर्म ही पूजा
    परिवार मंदिर
    बच्चे देवता।


    ३२८/ भूमि खजाना
    अन्न ,जल ,आश्रय
    अस्तित्व मेरा।

    ३२९/ जीवन मेरी
    हवा आवागमन
    मैं कुछ नहीं।


    ३३०/ माटी पुतले
    टुटते बिखरते
    माटी में मिले।

    ३३१/ छांव,शीतल~
    शहर से है दूर
    गांव, पीपल


    ३३२/ अवैध कब्जा~
    इंसानों से बेबस
    जंगल राजा।

    ३३३/ ताश का घर~
    हवा का झोंका आया
    गयी बिखर।


    ३३४/ विज्ञान पढ़ा~
    कबाड़ से जुगाड़
    जिसने गढ़ा।  

    ३३५/ नभ में चांद ~
    कोयले की खान में
    चमके हीरा।


    ३३६/ आंखे छलकी~
    बोझिल सी जिन्दगी
    हो गई हल्की।

    ३३७/
    प्रेम दर्दीला,
    प्रेम बड़ा बेढब ,
    फिर भी प्रेम ।

    ३३८/
    उधारी मोल,
    कल की सौदेबाज़ी,
    जी का जंजाल ।

    ३३९/
    नारी जीवन,
    आभूषण प्रियता,
    पर है टिकी ।

    ३४०/
    कवि से बचो
    कहीं कैद करले
    कविता में ही।

    ३४१/
    प्रेरणा-पथ
    हर पग पग में
    परख चल।

    ३४२/ कलमकार,
    समाज को दिशा दे,
    तू कर्णधार ।  

    ३४३/ रचनाकार,
    नवनिर्माण करे
    बन आधार ।

    ३४४/ जो चाटुकार,
    झूठी शान से जीये
    होके लाचार ।

    ३४५/ ओ मेरे यार
    तू ही जीवन मेरा
    बाकी बेकार ।

    ३४६/ पहरेदार ,
    तू जगे हम सोये
    है उपकार।

    ३४७/ तू सरकार
    एकता तेरी बल,
    होती अपार।

    ३४८/ हाईकूकार
    चंद शब्दों में रचे
    असरदार ।

    ३४९/ धुप में छाया
    होता अमृत तुल्य
    हरा हो काया ।


    ३५०/ गर्मी की मार
    दो धारी तलवार
    हुए लाचार ।  

  • मनीभाई के हाइकु अर्द्धशतक भाग 6

    मनीभाई के हाइकु अर्द्धशतक भाग 6

    हाइकु

    हाइकु अर्द्धशतक


    २५१/ रात की सब्जी~
    जय वीरू की जोड़ी
    आलू बैंगन।


    २५२/ पंचफोरन~
    बैंगन की कलौंजी
    प्लेट में सजा।


    २५३/ बाजार सजा~
    डलिया में बैंगन
    इतरा रहा।

    २५४/ सब्जी का राजा~(बैंगन)
    ताज भांति सिर में
    डंठल सजा।  

    २५५/ रात की सब्जी~
    जय वीरू की जोड़ी
    आलू बैंगन।


    २५६/ पंचफोरन~
    बैंगन की कलौंजी
    प्लेट में सजा।


    २५७/ विषम दशा~
    साहसी नागफनी
    जीके दिखाता।


    २५८/ जुदा कुरूप~
    गमला में सजता
    मैं नागफनी।


    २५९/ कंटीला बन
    वजूद से लड़ता
    ज्यों नागफनी।

    २६०/ जालिका वस्त्र~
    शूल बना श्रृंगार
    नागफनी की।


    २६१/ हाथ बढ़ाता~
    डसता नागफनी
    उठाके फन ।


    २६२/ किसान खु्श~
    निकले फूलझड़ी
    बाजरा बाली।

    २६३/ बाजरा खड़ी~
    पोषण भरपूर
    पके खिचड़ी।


    २६४/ पोषण भरी~
    बाजरे की रोटियां
    कैल्शियम से।


    २६५/ दर्द उत्पत्ति~
    रेत मोती में ढले
    अद्भुत सीप।

    २६६/ बादल सीप~
    तेज आंधी के साथ
    गिराये मोती।


    २६७/ सो जा मनुवा
    ये रात्रि बेला तेरी
    तेरी ख्वाब की।


    २६८/ महके मिट्टी~
    धधकती धरा पे
    पहली वर्षा।


    २६९/ घास पे बुंदे~
    बिछी मोती जड़ित
    हरी चुनर।


    २७०/ टूटे हैं तना~
    आंधी ने उसे तोड़ा
    जो है तना।  

    २७१/ चीटीं चलती
    अथक अविराम~
    जीवन सीख।

    २७२/ छत पे दाना~
    चुग गई गौरेया
    अपना खाना।

    २७३/ खेल तमाशा~
    खिलौने का संसार
    मीना बाजार।

    २७४/ झींगुर शोर~
    खामोशी से सुनती
    मेरी तन्हाई।


    २७५/ घर महके~
    गृह लक्ष्मी आने के
    संकेत मिले।

    २७६/  रिश्तों का जाल~
    खाट का ताना बाना
    उलझा सिरा।


    २७७/ फूलों की माला~
    दादा की तस्वीर पे
    यादों की पीर।


    २७८/ घूमर,पर्दे …..~
    दीदी जोड़ी हरेक
    घर का कोना ।  

    २७९/ घर से दूर~
    याद आये भुख में
    मां की रोटियां।

    २८०/
    मां का आंचल~
    जेठ दुपहरी में
    छाये बादल।

    २८१/ अनाथ बच्चे
    अचरच तांकते~
    खिलौने जिद्द।

    २८२/ वट पूजन ~
    परिक्रमा करें स्त्री
    बन सावित्री।

    २८३/ सूत के धागे~
    पति दीर्घायु भव
    स्त्री की कामना।

    २८४/ ज्येष्ठ तेरस~
    वट सावित्री व्रत
    हिंदू संस्कृति।

    २८५/ व्रत पूजन~
    सत्यवान की कथा
    वट के तले।

    २८६/ दिल आईना
    टूट बिखर गया~
    शोर हुई ना।  

    २८७/ सूखा दरिया~

    हो रहे हैं बर्बाद

    कृषि जरिया।


    २८८/ विलासी युग

    शांत न कर सके~

    मानव भूख।

    २८९/  टार्च कटारी

    चक्रव्यूह भेदती~

    तम पे भारी।

    २९०/ हिलती रही

    रात भर किवाड़~

    जगती रही।

    २९१/ बसंत ऋतु

    कोयल की पुकार

    उमड़े प्यार।

    २९२/ ग्रीष्म की ऋतु

    सूर्य तेज तर्रार

    गर्मी की मार।

    २९३/ वर्षा की ऋतु

    धरा करे श्रृंगार

    लाये बहार।

    २९४/ हेमंत ऋतु

    लाये तिज त्यौहार

    हरेक द्वार।

    २९५/ शिशिर ऋतु

    खिले फूल मदार

    लगे अंगार।

    २९६/
    कलमकार
    सबको राह दिखा
    तू कर्णधार।

    २९७/ धरा की ताप
    हरते मौन वृक्ष
    तप करते।

    २९८/ पिता के बीज
    मां की कोख है धरा
    प्रेम से सींच।

    २९९/ माटी पुतले
    टुटते बिखरते
    माटी में मिले।

    ३००/ शरद ऋतु
    अमृत की फुहार
    भीगे संसार।

  • मनीभाई के हाइकु अर्द्धशतक भाग 5

    मनीभाई के हाइकु अर्द्धशतक भाग 5

    हाइकु अर्द्धशतक

    हाइकु

    २०१/ प्रभात बेला~  

    शहर में सजती

    रंगीन मेला।

    २०२/ हिलते पात~

    दिवस सुधि लेते

    आई प्रभात।

    २०३/ खनिज खान~
    पठार की जमीन
    चौड़ा सपाट।

    २०४/
    रूई बिछौना~
    पामीर के पठार
    संसार छत।

    २०५/ फंसा पतंगा

    फूल की लालच में

    लोभ है जाल।

    २०६/ पिरो के रखा~  

    एकता के सूत्र में

    अंतरजाल।  

    २०७/ बारिश बूंदें~
    उगी है मशरूम
    छतरी ताने।

    २०८/
    राजसी शान~
    मशरूम आसन
    बैठा मेढ़क।

    २०९/ ताजगी देता~
    अदरक की चाय
    मन को भाय।

    २१०/ खांसी की दवा~
    अदरक का काढ़ा
    भगाये जाड़ा।

    २११/ बांस सी पत्ती
    हल्दी सा तना शल्क
    है अदरक।

    २१२/ फल आम के,
    बरगद के पत्ते।
    रूप आक के~

    २१३/ मात्रा का फेर~
    उचित मात्रा दवा
    आक  विषैला।

    २१४/ अंतर लाल
    श्वेत कटोरी फूल~
    रक्तार्क आक।

    २१५/ एकता सूत्र~
    मुण्डक पुष्पक्रम
    गेंदा का फूल।

    २१६/ नभ के तारे~
    धरती में खिले हैं
    गेंदा बन के।

    २१७/ जीवन  छीना~
    तड़प रही मीन
    जल के बिना।

    २१८/ माया का जाल ~
    निगली  बंशी कांटा
    लाचार मीन।

    २१९/ विद्रोही बन~
    ना हो द्रोहभावना
    किसी के प्रति।

    २२०/ भम्र का भूत~
    संबंधों में दरार
    तोड़ता प्यार।

    २२१/ नवजीवन~
    अण्डा पड़े दरार
    निकला चूजा।

    २२२/ जल संकट~
    जमीन में दरार
    छाया अकाल।  

    २२३/ भूमि स्खलन
    झुर्रीदार दीवार
    पड़ी दरार।

    २२४/ सुखते ताल
    पड़ गई दरार
    पानी की मार।

    २२५/ वो घुंघट में~
    कलसी पानी भरे
    पनघट में।

    २२६/ जल जीवन~
    पनघट है दूर
    जाना जरूर।

    २२७/ मिली आजादी~
    जाती हैं पनघट
    हाल सुनाती।

    २२८/ वो घुंघट में~
    कलसी पानी भरे
    पनघट में।

    २२९/ जल जीवन~
    पनघट है दूर
    जाना जरूर।

    २३०/ मिली आजादी~
    जाती हैं पनघट
    हाल सुनाती।

    २३१/ देश की शान~
    सीढ़िया नुमा खेत
    चाय बागान ।

    २३२/ सेब बागान~
    हिमाचल गोद में
    रत्नों की खान।

    २३३/ आंतकी वृद्धि~
    विस्तृत जलकुंभी
    संपूर्ण ताल।

    २३४/ घड़ा सा तना~
    जलरागी पादप
    है जलकुंभी।

    २३५/ जल खतरा~
    बंगाल का आतंक
    है जलकुंभी।

    २३६/ औषधालय~
    संजीवनी पाकर
    मन हर्षाये।

    २३७/ औषधालय~
    डाक्टर की पर्ची में
    दलाली बंधा।

    २३८/ भटका नाव~
    रहस्यमयी टापू
    पास बुलाये।

    २३९/ सृष्टि का अंत~
    विनाश संकेतक
    डुबता टापू ।

    २४०/ दूर सितारे~
    हमारी करतूत
    वो देख रहा।

    २४१/ पिया लजाई~
    चमकते प्रेम से
    नैन सितारे।

    २४२/ हरी चादर~
    शैवाल ने घोला है
    अपना रंग।

    २४३/ लहर उठी~
    फट गया शैवाल
    भय खाकर।

    २४४/ पौष्टिक खाना~
    समुद्री चारागाह
    बना शैवाल।

    २४५/ अनभिज्ञता~
    औंधे मुंह गिराया
    शैवाल श्लेष्मा।

    २४६/ हर सफर~
    बनके परछाई
    चलना सखि।

    २४७/ शुभ विवाह~
    मंडप परछाई
    हल्दी निखरा।

    २४८/ भीषण गर्मी~
    पीपल परछाई
    गंगा की घाट।

    २४९/ चंद्र ग्रहण~
    परछाई धरा की
    केतु है माया।

    २५०/ सूर्य ग्रहण~
    परछाई धरा की
    राहू की साया।

  • मनीभाई के हाइकु अर्द्धशतक भाग 4

    मनीभाई के हाइकु अर्द्धशतक भाग 4

    हाइकु

    हाइकु अर्द्धशतक

    १५१/ शांत तालाब
    पाहन की चोट से
    बिखर चला।

    १५२/ मुस्कुरा गई
    नव वधु के लब
    मैका आते ही।


    १५३/ बच्चे मायुस
    बिजली आते उठी
    खुशी लहर।

    १५४/ अपनी सीमा
    कमजोरी तो नहीं
    प्रभाव जमा।

    १५५/ बाल संवारे
    दीदी आज भाई का
    सहज प्रेम

    १५६/ भूले बिसरे
    यादों में झिलमिल
    असल पूंजी।

    १५७/ आकाश गंगा
    तारों की टिमटिम
    तम की आस।

    १५८/ भीषण शीत
    लब गुंजित करे
    शास्त्रीय गीत।

    १५९/ मुड़ा भास्कर
    उत्तरायण गति 
    हुई संक्रांति।

    १६०/ उत्तरायणी
    हो चला दिनकर
    राशि मकर।


    १६१/ किया तर्पण
    भगीरथ गंगा से
    संक्रांति दिन।


    १६२/ संक्रांति तिथि
    शरीर परित्याग
    महान  भीष्म।

    १६३/ ये तो खराबी~
    औंधे मुंह राह पे
    गिरा शराबी।


    १६४/ जानो, ना मानो
    खुदा को पहचानो
    जग सयानो।


    १६५/ रजत वर्षा
    बिखरे धरा पर
    प्रभात काल


    १६६/ पीले व धानी
    वस्त्र ओढ़ है सजी
    बसंती रानी ।

    १६७/  बाल संवारे~
    कांधे लटका थैला
    स्कूल को चलें।

    १६८/ दीपक की लौ
    जलती रात भर
    तम में आस।

    १६९/ पिय के बिन
    अधुरी है पूनम
    तन्हा है चांद।

    १७०/ कैसा आलाप!
    झरना झर रहे
    वन विलाप….

    १७१/ बूंद टपका
    नेत्र बना झरना
    धुलता मन।


    १७२/  नैनों ने जाना
    धडकनों ने माना
    हो गया प्यार।

    १७३/ शांत वन में~
    बहे अशांत होके
    निर्झर गाथा।

    १७४/ खिले सुमन
    बिखरते सौरभ
    उड़े तितली।

    १७५/ झोपड़ी तांके
    महल की ऊंचाई
    देख ना पाये।


    १७६/ मेघ गरजे~
    अटल महीधर
    शांत व स्थिर


    १७७/  मेघ गरजे~
    अटल महीधर
    सहता रहा।


    १७८/ उड़ता धुंआ
    जलते महीधर
    पतझड़ में।


    १७९/  दूर क्षितिज
    रंगीन नभ बीच
    बुझता रवि।


    १८०/ नभ सागर
    गोता लगाये रवि
    पूर्व पश्चिम।

    १८१/ तन घोंसला
    उड़ जाये रे पंछी
    कौन सा देश?

    १८२/ निभाता फर्ज~
    बुनता है मुखिया
    प्यारा घोंसला।

    १८३/ वजूद खोती
    कदमों के निशान
    सागर तट।


    १८४/ उठा सुनामी~
    सागर हुआ भूखा
    खाये किनारा।

    १८५/ उथला टापू~
    बेबस दिख रहा
    सागर बीच।

    १८६/ दूर सागर~
    दिखता दिनकर
    सिंदूरी लाल।


    १८७/  हवा हिलोरे
    हिले पुष्प डालियां
    महके वादी।


    १८८/ टूट चुका है
    जड़ के धंसते ही
    रूखा चट्टान।

    १८९/ टूट जाता है~
    चट्टान का दिल भी
    व्यंग्यकारों से।


    १९०/ हर कदम
    आशीष हो गुरू का
    शुभ जीवन ।  

    १९१/ छुपा के रखे~
    चट्टान सा पुरूष
    नरम दिल।


    १९२/ खुशी व गम~
    प्रतीक्षा है करता
    खेल मैदान।

    १९३/ खेल मैदान~
    सबक है सिखाता
    जीवन अंग।


    १९४/ प्रौढ़ जीवन~
    डाल में लटकी है
    वो लाल बेर।

    १९५/ अतुल्य प्रेम~
    बेर चख शबरी
    भोग लगाये।


    १९६/ बारिश बूंदें~
    उगी है मशरूम
    छतरी ताने।


    १९७/ राजसी शान~
    मशरूम आसन
    बैठा मेढ़क।

    १९८/ कैद हो गया~
    मेरा गेहूँ का दाना
    बारदाने में।

    १९९/ धरती सजी~
    गेहूं का आभूषण
    स्वर्ण जड़ित।


    २००/ गेहूं के खेत~
    कंचन बिछा रखा
    आ मिलो प्रिये।