मनीभाई के हाइकु अर्द्धशतक भाग 8
हाइकु अर्द्धशतक ३५१/ धरा की तापहरते मौन वृक्षतप करते ३५२/ झुलस जायेतन मन जीवनऐसी तपन। ३५३/ है ऐसी धुपनैन चौंधिया जायेतेजस्वरूप । ३५४/ लू की कहरखड़ी दोपहर में धीमा जहर ३५५/मेघ गरजेबिजली सी चमकेरूष्ट हो जैसे । ३५६/बादल छायाएकाकार हो गयेधरा अंबर। ३५७/मेघ ढाल सा।बिजली की कटारबूंदों की बौछार । ३५८/मेघ घुमड़ेबारिश की चादरधरती … Read more