Category: अन्य काव्य शैली

  • साहस पर कहानी

    साहस पर कहानी

    प्रीति अपने बच्चों के साथ एयरपोर्ट पर अपने पति को छोड़ने गई थी।प्रीति ने अपने पति से कहा-“संजय जल्दी आना।संजय-“हाँ प्रीति मीटिंग के बाद आ जाऊँगा,घूमने नहीं जा रहा हूँ।
    फ्लाईट आधे घण्टे बाद अमेरिका के लिए उड़ान भरने वाली थी।संजय की फ्लाइट गंतव्य की ओर उड़ान भर चुकी थी।प्रीति अपने बच्चों को लेकर घर जाने के लिए निकल पड़ी,रास्ते में रात का खाना होटल में खा लिए। रात के ग्यारह बज रहे थे,सड़कों में गाड़ियों के लाइट से प्रकाश फैला हुआ था,स्ट्रीट लाइट भी शहर को रोशन कर रहा था।प्रीति अपने खुद के बंगले के पास पहुँच चुकी थी।प्रीति ने घर का दरवाजा खोला,थोड़ी देर बाद वाश रूम से फ्रेस होने के बाद बच्चों के साथ सीधे बेड रूम में सोने चली गई।गहरी नींद लगने के बाद गुलदस्ता गिरने की आवाज सुन कर प्रीति जाग गई।मोबाइल चेक की,रात के दो बज रहे थे,सोची बिल्ली होगी पर ऐसा लगा घर के अंदर कोई है समझ नहीं आया क्या करे किसे फोन करे,सीढ़ियों से किसी के चढ़ने की आवाज आई,वह बहाना कर लेटी रही।थोड़ी देर में समय ने करवट ली फिर आलमारी तोड़ने की आवाज आई।प्रीति हिम्मत कर के खाँसने की आवाज की चोर दुबक गया।प्रीति किचन की ओर गई,डिब्बा खोला मिर्ची पावडर हाथों में लेकर आलमारी की ओर गई,मून लाइट की रोशनी में एक आदमी चाकू लहराता हुआ प्रीति की ओर आने लगा।प्रीति उस आदमी का अपने पास आने का इंतजार कर रही थी चोर के पास आते ही मिर्ची पावडर उसके आँखों में दे मारी।मिर्ची पावडर लगते ही चोर दीवार से जा टकराया,प्रीति ने उसको धक्का दिया चोर किचन के अंदर आ गया।प्रीति बाहर से दरवाजा लगा कर पुलिस को फोन कर सूचना दी।आधे घण्टे में पुलिस आने के बाद किचन का दरवाजा खोल कर पुलिस वाले चोर को धुनते हुए थाने ले जाने लगे।पुलिस वालों ने कहा-आपके साहस के वजह से यह शातिर चोर आज पकड़ा गया।प्रीति ने कहा-आप लोगो का धन्यवाद।पुलिस चोर को ले जा चुके थे,प्रीति राहत की साँस लेकर बिस्तर में लेट गई।

    राजकिशोर धिरही
    तिलई जांजगीर छत्तीसगढ़

  • कोरोना पर हास्य लेख

    कोरोना पर हास्य लेख   (13.04.2020)

    Corona rescue related ||कोरोना बचाव सम्बंधित
    Corona rescue related ||कोरोना बचाव सम्बंधित

    कल मैं अपने गाँव के एक मित्र से फोन पर बात कर रहा था तभी उसने मुझे सुझाव दिया कि’मित्र आप केवल कविता लिखते हो कभी गद्य की विधा लेख आदि क्यों नहीं लिखते ? उनकी बातों से मैं जोश में आ गया और ‘कोरोना’ जो कि ज्वलंत मुद्दा बनी हुई है को बिषय बनाकर लिखना शुरू किया।
    अभी देश में परदेश में यानी हर जगह कोरोना काल चल रहा है।कोरोना होम मेड नहीं है बल्कि शुद्ध रूप से आयातित बीमारी है।जैसे इम्पोर्टेड मॉल का अलग क्रेज़ होता वैसे ही इस बीमारी का क्रेज़ भी धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है।जैसे ही हम विदेशी वस्तुओं को इम्पोर्टेड मॉल कहकर भाव देना शुरू करते हैं वैसे ही वह शीघ्रता से पूरे देश में ये फैल जाता है।विदेशी चीजों का प्रयोग उच्च वर्ग से शुरू होकर मध्यम वर्ग होते हुए निम्न वर्ग तक धड़ल्ले से पहुँच जाता है।इम्पोर्टेड माल सोचकर इसके प्रयोग को हम अपने गर्व (प्राइड) की भावना से जोड़ लेते हैं और जब हम इन्हीं विदेशी चीजों की आदि हो जाते हैं फिर “विदेशी भगाओ, स्वदेशी अपनाओ” का नारा लगाते हुए बहिष्कार करते हैं।जैसा की इतिहास रहा है कि विरोध का स्वर हमेशा मध्यम वर्ग से उठता है।उच्च वर्ग तो हमेशा जिसका विरोध करना है उसमें खुद भी शामिल होता है सो विरोध करने का सवाल ही नहीं उठता।जहां तक निम्न वर्ग की बात है ये बड़े संतोषी जीव होते हैं।इन्हें न तो उधौ का लेना है न माधव का देना है।इस वर्ग के लोग जितना ‘प्राप्तियों’ में संतुष्ट होते हैं उतना ही ‘अभावों’ में भी संतुष्ट नज़र आते हैं।लगता है कि इनके जीन्स में विरोध के गुण ही नहीं होते।हाँ, यह वर्ग भीड़ बढ़ाने में ज़रूर काम आते हैं चाहे इनका उपयोग मध्यम वर्ग वाले आंदोलन के लिए करे या फिर उच्च वर्ग वाले इनका प्रयोग अपने काम साधने के लिए करे। इन्हें तो बस पीना-खाना मिल जाए और एक दिन की रोज़ी फिर जिधर चाहे जोत लो इन्हें भीड़ या भीड़ का हिस्सा बनने में कोई परहेज़ नहीं होता।
    ख़ैर,मैं अपनी बात निगोड़ी कोरोना से स्टार्ट किया था और वर्गभेद वर्णन के चक्कर में उलझ गया।सबसे अहम सवाल तो ये है कि देश में कोरोना को हवाई रास्ते से ससम्मान लाने वाले’भद्रजन’ आख़िर कौन थे? उन मेज़बानों का आखिर क्या हुआ जो मेहमान कोरोना को इतने बड़े देश में लाकर रास्ते पर छोड़ दिया है?कोरोना को लाने वाले चालाक लोग तो बच निकले और चंगुल में फंस गई है देश की भोली-भाली जनता।ये कोरोना भी ऐसी ढीठ मेहमान है कि एक बार आने के बाद जाने का नाम नहीं ले रही है।आदरणीय शरद जोशी जी ने शायद कोरोना जैसे निपट चिपकू मेहमान के लिए ही अपना लेख “तुम कब जाओगे अतिथि ! लिखा रहा होगा। कोरोना दुष्टा ने तो हमारे अपनों में ही बड़ी चतुराई से फूट डालने का काम कर रही है। कोई अपने घर का सदस्य ही क्यों न हो यदि एक बार छींक मार दे तो हम उसे बड़ी संदेह भरी नज़रों से देखने लग जाते हैं।भले ही वह बेचारा नाक में मच्छर घुस जाने के कारण छींक मारा हो।हम इस चिपकू मेहमान के डर से दरवाज़े पर कुंडी लगाकर घर में ऐसे घुसे रहते हैं कि कहीं कोरोना हमारे घर में दस्तक़ न दे जाए। दूधवाला भी घर की घंटी बजाता है तो यह शंका होने लगती है कि कहीं यह हरक़त कोरोना का तो नहीं है।कुलमिलाकर हम अपने ही घर में कैदियों की तरह डरे-सहमे जैसे-तैसे दिन काट रहे हैं।इस समय लोग डर के मारे न्यूज़ चैनलों को लगभग देखना ही बंद कर दिया है।जो व्यक्ति रोज़ शाम में न्यूज़ चैनल पर डिबेट सुनने का आदी था अब वह उस समय में भी सीरियलों और फिल्मों के चैनल देखकर ही दिन बिता रहा है।मनोरंजन चैनल भी अपने ब्रेक को ‘कोरोना ब्रेक’ कहकर डराने लगे हैं।इसी बीच दूरदर्शन चैनल ने मौका देख ज़ोरदार चौका मारा है।जहाँ एक ओर रामायण-महाभारत दिखाकर डरे -सहमे लोगों में धार्मिकता और आत्मविश्वास को ज़िंदा रखने का काम किया है वहीं दूसरी ओर अपनी लूटी-पीटी टी आर पी को भी पटरी पर ले आया है।
    कवियों और लेखकों को जैसे अचानक नया विषय मिल गया है।वे कोरोना पर कविता ,कहानी, लेख आदि लिखकर खूब कलम चला रहे हैं।पूरा साहित्कार बिरादरी वही पुराने विषयों कश्मीर,अनुच्छेद-370 ,एन आर सी और शाहीन बाग़ पर लिख-लिखकर बड़े बोर हो चुके थे।अभी हालात ऐसे हो गए हैं कि राजनीति में भी नए मुद्दों का टोटा लग गया है।राजनेताओं का मुंह खुजला रहा होगा कि उन्हें आख़िर पैर खींचने और कीचड़ उछालने जैसे शुभ अवसर कब मिलेंगे।वे मन ही मन कोरोना बैरी को यह सोचकर कोस रहे होंगे कि उसने सारे मुद्दों को दबाकर ख़ुद अकेले अहम मुद्दा बने बैठी है।
    कोरोना का दुःसाहस तो इतना बढ़ गया है कि अपने प्रताप से देशव्यापी लॉकडाउन तक करवा दी है फिर भी मानने को तैयार नहीं है।देश में सभी जगह ताले लग चुके हैं।कोर्ट बंद है,दफ़्तर बंद है,दुकानें बंद है,मोटर-गाड़ी बंद है,आना-जाना बंद है यहाँ तक लोगों की बोलती भी बंद हो गई है।रोड पर पुलिस वाले भी बात नहीं कर रहे हैं ज़रूरत के मुताबिक बस डण्डा चमका रहे हैं।अस्पताल में डॉक्टर केवल इशारों से काम चला रहे हैं।अब तो ज़बान की कोई क़ीमत ही नहीं बची है उसकी क़ीमत लगभग माइनस पर जा चुकी है।अब सड़कें भी बिलकुल बेआवाज़-सूनी हो गई हैं जिसके किनारे-किनारे कभी रेहड़ी, गुमटी, खोमचे और ठेलावालों के पास गरमी की शाम में गुपचुप, पिज़्ज़ा, बर्गर, चाउमीन और मंचूरियन का लुफ़्त उठाते लोगों की भीड़ वाली रौनक बनी होती थी वह गायब हो चुकी है।
    कोरोना ने दिल्ली जैसे महानगरों में रोज़ की कमाई कर रोज़ खाने वाले मज़दूरों का जीना हराम कर रखा है।फैक्टरियों के बंद हो जाने पर काम से हकाले गए मजदूर रातोंरात सड़क पर आ गए हैं।दरबदर भटकते इन मजदूरों को जैसे कोरोना से कोई भय ही नहीं है।ये खुलेआम बड़े आराम से सड़कों पर ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ जैसे आयातित शब्द से अंजान और ‘लॉकडाउन’ का मख़ौल उड़ाते हजारों की झुण्ड में दिखाई पड़ते हैं। सच तो यही है कि इन मज़दूरों के लिए पापी पेट के सवाल और भूख रूपी वायरस से लड़ना ही सबसे बड़ी चुनौती है जिसके सामने कोरोना की चुनौती छोटी नज़र आती है।
    दिल्ली के मुख्यमंत्री को एक चीज़ के लिए कोरोना को जरूर धन्यवाद कहना चाहिए वो ये कि दिल्ली के प्रदूषण को दूर करने एवं आसमान पर छाए धूएं के ग़ुबार को कम करने के लिए गाड़ियों को ऑड-इवन चलाने जैसे जतन ख़ूब किए पर पसीने छूट गए लेक़िन धुएं कम नहीं हुए। वहीं कोरोना के आशीर्वाद से मात्र इक्कीस दिन का लॉकडाउन करना पड़ा और देखते ही देखते बीमार पर्यावरण का स्वास्थ्य एकदम से चंगा हो गया है।गंगा और यमुना को अपना साफ पानी देखकर यक़ीन ही नहीं हो रहा है कि यह उसका ही पानी है।दोनों को यह याद नहीं कि आखिरी बार इतना साफ़ पानी कब देखा था।
    जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र की विविधता वाले इस देश को कोरोना से यह तो जरूर सीखना चाहिए कि आदमी सब एक समान होता है।हम बेवज़ह भेदभाव और अलगाव की बेकार बातों में पड़े होते हैं। कोरोना को देखो वह कैसे सभी जाति और धरम वालों को बिलकुल समान भाव से निपटा रही है।हम मान गए कोरोना तुमने साबित कर दिया है कि तुम्ही सच्ची समदर्शी हो”समदर्शी नाम तिहारो।”
    हमारे देश का बाज़ार चीन से बनी हुई चीज़ों से भरी पड़ी है।चायनीज मोबाईल, चायनीज खिलौने, चायनीज इलेक्ट्रॉनिक गुड्ज़, चायनीज लाइट्स-झालरें, चायनीज फटाके-फुलझड़ियां आदि आदि बड़े धड़ल्ले से बेचे और ख़रीदे जाते रहे हैं।इतना ही नहीं चायनीज फूड और चायनीज मसालों के इतने दीवाने हो गए हैं कि हम अपने देशी खानों को भूलते जा रहें हैं।हमें हर चीज में चायनीज माल प्रयोग करते देख वक़्त ने उपहार स्वरूप बीमारी भी चायनीज दे दिया है। यह बताने की जरूरत नहीं कि चीन कितना दगाबाज़ मुल्क़ है जो पूरी दुनियां को कोरोना में झोंक दिया है और खुद स्वान्तः सुखाय में लिप्त हो गया है।
    यूं तो कोरोना ने सारे महाद्वीपों पर अपने पांव जमा लिए हैं फिर भी अमेरिकी और योरोपीय उन देशों के नाक पर दम कर रखी है जिन्होंने विकसित राष्ट्र होने का तमगा पहन रखा था।कोरोना के वार से अमेरिका,इटली, स्पेन, ब्रिटेन जैसे दंभी देशों की हेठी निकलकर बाहर आ गई है।अपने ज्ञान-विज्ञान और आर्थिक विकास पर इतराने वाले सारे शक्तिशाली देश छोटी-सी कोरोना जो ढंग से दिखाई भी नहीं देती के सामने असहाय दिखाई पड़ रहे हैं।
    धार्मिकों ने भी अपने सारे धार्मिक क्रियाकलापों पर कुछ दिन के लिए विराम लगा दिया है।पुजारियों, मालवियों और पादरियों की दुकानें चल नहीं रही है।हालात देखकर उनकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई है उन्हें लग रहा है कि कहीं लोगों के मन से धार्मिकता ही न उठ जाए । कहीं ऐसा हुआ तो उनका तो व्यवसाय ही बंद हो जाएगा।मन ही मन सोच रहे होंगे कि “हम हैं तो निठल्ले कोई काम करने की आदी भी नहीं हैं फिर करेंगे क्या ?
    ऐसे डरे-सहमे,हताश-निराश और उदासी के इस आलम में प्रधानमंत्री जी देश की जनता को बार-बार संदेश का कैप्सूल दे रहें हैं।उन्हें यह विश्वास है कि उनका यह संदेश जनता में एनर्जी सोर्स की तरह ‘सप्लीमेंट्री फ़ूड’ का काम करेगी।जनता बड़ी कृतज्ञता से घंटी-थाली बजाकर और दीये-मोमबत्ती जलाकर अपने एनर्जी लेबल का सबूत भी दे रही है।इस बीच फेसबुकी और वाटसेपी ज्ञानियों द्वारा ख़ूब ज्ञान और उपदेश बांटा जा रहा है।वही-वही मैसेज घूम फिरकर बार-बार पढ़ने और सुनने को मिल रहा है कि “घर में रहिये, सुरक्षित रहिये।” इतने बार याद दिलाने से कभी-कभी ख़ुद पर भी भ्रम हो जाता है कि कहीं मैं सचमुच घर से बाहर तो नहीं आ गया हूँ।
    बहरहाल यह बड़ी कठिन परीक्षा की घड़ी है। इस घड़ी में हमारे संकल्प और संयम दोनों को खरा उतरना होगा। वैसे तो हम भारतीय विपरीत और कठिन परिस्थितियों में भी हास्य निकाल लेने की कला में माहिर होते हैं।बस कुछ दिन और कमरों में रहे ताकि घरवाली की यह शिकायत भी दूर हो जाए कि “आप तो जी हमेशा बाहर रहते हो,घर में रहते ही नहीं।” इस भौतिक संसार में हर चीज़ क्षणभंगुर है,अस्थाई है,परिवर्तनशील है,आनी-जानी है अतः यह तय मानिए जो कोरोना संकट बनकर आई है वह एक दिन जरूर जाएगी भी..। तब तक बस यही दोहराते रहिए–“तुम कब जाओगी कोरोना !?”

    — नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    9755852479

  • हाइकु तृतीय शतक

    हाइकु तृतीय शतक

    हाइकु

    हाइकु शतक


    बुलकड़ियाँ
    रिक्त गौशाला द्वार
    सूखा गोबर।

    चैत्र प्रभात
    विधवा का शृंगार
    दूर्वा टोकरी।

    फाग पूर्णिमा
    डंडे पर जौ बाली
    बालक दौड़ा।

    होली दहन
    चूल्हे पे हंसती माँ
    गेहूँ बालियाँ।

    मदिरालय
    कुतिया को पकोड़े
    नाली में वृद्ध।

    औषधालय
    चारपाई पे वृद्ध
    नीम निम्बोली।

    कैर साँगरी
    बाजरी की रोटियाँ
    हाथ खरोंच।

    चंग का स्वर
    मातृ गोद बालिका
    आँख में आंसू।

    निम्बू का रस
    रंगे हाथ बालिका
    मेंहदी तीली।
    १०
    भंग की गोली
    सिल बट्टे पे पिस्ता
    बादाम गिरी।
    ११
    अजवायन
    अरबी की पत्तियाँ
    बेसन लेप।
    १२
    प्याज की क्यारी
    किसान की बेटियाँ
    छाछ राबड़ी।
    १३
    बेसन गट्टा
    आग पर लिपटे
    आटे की पिंडी।
    १४
    दाल पकौड़ी
    सिल बट्टे पे मिर्च
    बालिका चीख।
    १५
    महा नवमी
    सब्जी में तेज पत्ता
    बाला को सिक्का।
    १६
    पगड़ी रस्म
    खीर जलेबी पूरी
    खूँटी पे चूड़ी।
    १७
    लग्न पत्रिका
    लाल डोर लपेटे
    गुड़ चावल।
    १८
    स्वाति नक्षत्र
    माँझी की टोकरियाँ
    शंख सीपियाँ।
    १९
    धन तेरस
    नव युवा हर्षित
    मंगल सूत्र।
    २०
    मखाना बीज
    कमल पुष्प दल
    तैरता युवा।
    २१
    चैत मध्यान्ह
    थालियों में गुलाब
    फूलों पे चीनी।
    २२
    कमल डंडी
    युवकों की तैराकी
    तरुण शव।
    २३
    सरिस्का वन
    मृग छौना उछले
    लकड़बग्घा।
    २४
    पहाड़ी मार्ग
    अनियंत्रित कार
    रक्त की धार।
    २५
    बासोड़ा भोर
    थाली मे पकवान
    पथ में वृद्धा।
    २६
    शहद छत्ता
    करील की झाड़ियाँ
    भल्लुक मुख।
    २७
    हाथी के दाँत
    चूड़ी पर नगीना
    खुश जौहरी।
    २८
    विधान सभा
    चौपाल पे बुजर्ग
    चंगा पै ताश।
    २९
    सचिवालय
    बाल मेले में चाय
    आबाद हाट।
    ३०
    हैलीकाँप्टर
    खेत में चूहे बिल
    झपटा बाज।
    ३१
    पावस भोर
    चौके में झाड़ती माँ
    उछले टोड।
    (टोड~ मेंढक की एक प्रजाति)
    ३२
    पनडुब्बियाँ
    सिंघाड़े की लताएँ
    जलमुर्गियाँ।
    ३३
    सागर तट
    रेत से भरी ट्राली
    मच्छ टोकरी।
    ३४
    चाँधन ताल
    खेजड़ी पर रंग
    प्रवासी पंछी।
    ३५
    पावस साँझ
    नीम झरी पत्तियाँ
    धुँआ गुबार।
    ३६
    शीत यामिनी
    काँपे किसान हाथ
    टार्च फावड़ा।
    ३७
    ग्रीष्म मध्यान्ह
    वृद्धा बो रही खेत
    मूँगफलियाँ।
    ३८
    रसोई गैस
    चिल्ली में सूखे कण्डे
    चारे का झूंपा।
    ३९
    रसोईघर
    वृद्धा घर जुटाए
    सरसों डाँड ।
    ४०
    तोरई लता
    पत्तों पे खीर पूरी
    वायस भोज।
    ४१
    मातृ दिवस
    शहीद की बेटियाँ
    अर्थी को काँधा।
    ४२
    गौरी पूजन
    खेत में गेहूँ काटे
    गवरी बाला।
    ४३
    ग्रीष्म मध्यान्ह
    मौन विद्युत पंखा
    कपोत जोड़ा।
    ४४
    आम का वृक्ष
    चोंच ठोंके विहग
    कठफोड़वा।
    ४५
    गोंद की बर्फी
    खैर बबूल पेड़
    ग्वाल की जेब।
    ४६
    च्यवनप्राश
    आँवले की गुठली
    कढ़ाई पल्टा।
    ४७
    गेंहू की बोरी
    चढाई पर रिक्शा
    हठी युवक।
    ४८
    दाह संस्कार
    झुका युवक सिर
    नाई के आगे।
    ४९
    फसल बीमा
    खेत में पटवारी
    जेब में भार।
    ५०
    चम्बल तट
    बजरी भरी नौका
    पुलिस थाना।
    ५१
    पाणिग्रहण
    माँ के हाथ में हल्दी
    आँखों में नीर।
    ५२
    यज्ञोपवीत
    पंचगव्य का दोना
    वटुक हँसा ।
    ५३
    मातृ दिवस
    फोटो देखती बेटी
    आँखों में नीर।
    ५४
    ज्येष्ठ अष्टमी
    उबटन कटोरा
    चाची भाभियाँ।
    ५५
    चैत्र की भोर
    दँराती पर हाथ
    माँ बेटी पिता।
    ५६
    चैत्र मध्यान्ह
    बाल्टी लिए बधूटी
    कटोरदान।
    ५७
    चैत्र की साँझ
    सिर पे चारा पोट
    हाथ गौ रस्सी।
    ५८
    जूड़ा मूसल
    दुल्हन को रोकती
    ननद बुआ।
    ५९
    दादी का बक्सा
    साटन की अँगिया
    चाँदी का सिक्का।
    ६०
    मवेशी मेला
    कालबेलिया नृत्य
    पुष्कर ताल।
    ६१
    भादौ चतुर्थी
    चाँद देखे युवक
    गाल पे चाँटा।
    ६२
    आषाढ़ पूनं
    दिन में सोया पूत
    खीझा किसान।
    ६३
    चैत्र नवमीं
    सिर पर पोटली
    मेले में वधू।
    ६४
    सौरूँ का घाट
    सिर मुँडे युवक
    हाथ पे सिक्के।
    ६५
    जेष्ठ मध्यान्ह
    किसान परिवार
    मूँज मोगरी।
    ६६
    सावन वर्षा
    वृद्ध खोलता मूँज
    खाट दावणी।
    ६७
    सावन मेघ
    क्रीडांगण में मोर
    बालिका नृत्य।
    ६८
    भादौ के मेघ
    पीपल पर बिल्ली
    मयूर केकी।
    ६९
    चैत्र यामिनी
    खेत में पति पत्नी
    पकी फसल।
    ७०
    बैसाख भोर
    पल्लू पकड़े खड़ी
    तूड़े की पोट।
    ७१
    गेहूँ की ढेरी
    थ्रेसर पर वृद्ध
    हाथ पे रक्त।
    ७२
    शीतगोदाम
    बाबू की मेज भरी
    कृषक पीर।
    ७३
    गुलाब गुच्छ
    क्यारी लगा फव्वारा
    बाला के वस्त्र।
    ७४
    पूस की रात
    सिंचाई संग ओस
    भीगा युगल।
    ७५
    परिचालक
    ट्रेन में मूंगफली
    कटा युवक।
    ७६
    परिचारिका
    चिकित्सालय बेंच
    गिफ्ट पैकेट।
    ७७
    चिकित्सालय
    पौंछे जच्चा के आँसू
    सहयोगिनी।
    ७८
    नीम के पत्ते
    चूल्हे पे तपे माता
    कढ़ी मसाला।
    ७९
    गोखरू पाक
    बालिका के तलुए
    जय जवान।
    ८०.
    चैत्र विभात
    शतावरी की जड़
    अश्व सी गंध।
    ८१.
    अमृता लता
    चौके में माँ तैनात
    काढ़ा कटोरी।
    ८२.
    गिलोय वटी
    बेटी के सिर भाल
    गीला कपड़ा।
    ८३.
    तुलसी पत्ता
    बालिका धोये हाथ
    ब्लेक टी कप।
    ८४.
    चैत्र वासर
    रोटी पे सहजन
    गोभी का फूल।
    ८५.
    गृह वाटिका
    सहजन की फली
    चौके में गंध।
    ८६.
    चैत्र प्रभात
    सर्पगंधा के पुष्प
    भ्रमर दल।
    ८७.
    त्रिफला चूर्ण
    आँवले सुखाए माँ
    बजी खरल।
    ८८.
    ईसबगोल
    बैठक में दादाजी
    दही की लस्सी।
    ८९.
    खेल मैदान
    छात्राओं की टोलियाँ
    पौधारोपण।
    ९०.
    झींगा मछली
    ताल में बालिका
    आटे की गोली।
    ९१.
    बया दिवस
    जागरूक शिक्षक
    नीड़ का चित्र।
    ९२.
    आम्र मंजरी
    पीठ पे लगी टंकी
    कीटनाशक।
    ९३.
    *मातृ दिवस*
    *चिता पे चीरा शव*
    *धात्री उदर*।
    ९४.
    हवन वेदी
    दिव्यांग दुल्हनिया
    गोद में फेरे।
    ९५.
    तोरण द्वार
    दूल्हे की उठी छड़ी
    उड़ी चिड़िया।
    ९६.
    डेयरी बूथ
    किसान की केतली
    छाछ की थैली।
    ९७.
    अशोकारिष्ट
    चूल्हे पर देगची
    पानी में छाल।
    ९८.
    धनुष बाण
    भील बाला के हाथ
    गोदना यंत्र।
    ९९.
    सुहाग सेज
    दुल्हन का शृंगार
    हंँसी बालिका।
    १००.
    पितृ दिवस
    घोड़ी पे बैठा दूल्हा
    नन्ही बालिका।
    °°°°°°°
    ✍©
    बाबू लाल शर्मा बौहरा *विज्ञ*
    वरिष्ठ अध्यापक
    सिकंदरा,दौसा, राजस्थान

  • मेरा परिचय पर कविता-विनोद सिल्ला

    मेरा परिचय पर कविता -विनोद सिल्ला

    चौबीस मई तारीख भई,
    उन्नीस सौ सत्ततर सन।
    सन्तरो देवी की कोख से
    विनोद सिल्ला हुआ उत्पन्न।।

    माणक राम दादा का लाडला,
    उमेद सिंह सिल्ला का पूत।
    भाटोल जाटान में पैदा हुआ,
    क्रियाकलाप नाम अनुरूप।।

    सन् उन्नीस सौ बानवे में ,
    हो गया दसवीं पास।
    सादा भोला स्वभाव है,
    उन्नति करने की आस।।

    कक्षा बारहवीं पास कर,
    जे०बी०टी० में लिया प्रवेश।
    मन में थी उत्कांक्षा,
    कि करूंगा कुछ विशेष।।

    तेईस फरवरी तारीख भई,
    उन्नीस सौ निन्यानवे सन।
    शिक्षक की मिली नौकरी,
    सिल्ला परिवार हुआ प्रसन्न।।

    बाईस मार्च तारीख भई,
    सन था दो हज़ार चार।
    विनोद सिल्ला दुल्हा बना,
    बारात पहुँची हिसार।।

    धर्म सिंह जी की सुपुत्री,
    मीना रानी का मिला साथ।
    जिसने महकाया जीवन वो,
    ले के आई नई प्रभात।।

    इक्कीस जुलाई तारीख भई,
    दो हज़ार पांच था सन।
    पुत्र रत्न के रूप में घर,
    अनमोल सिंह हुआ उत्पन्न।।

    बारह जून दो हज़ार सात को,
    चली हवा बङी सुहानी।
    विनोद सिल्ला के घर में,
    जन्मी बेटी लाक्षा रानी।।

    सात जनवरी तारीख भई,
    दो हजार ग्यारह था सन।
    एस एस मास्टर बन गया,
    महका मन का उपवन।।

    बीस अप्रेल तारीख भई,
    दो हजार ग्यारह था सन।
    मेरी धर्मपत्नी मीना रानी,
    गई गणित अध्यापिका बन।।

    -विनोद सिल्ला

  • जीविनी युवा रचनाकार-आलोक कौशिक की

    जीविनी युवा रचनाकार

    आलोक कौशिक एक युवा रचनाकार एवं पत्रकार हैं। इनका जन्म 20 जून 1989 को एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। इनके पिता का नाम पुण्यानंद ठाकुर एवं माता का नाम सुधा देवी है। मूलतः बिहार राज्य अन्तर्गत अररिया जिले के फतेहपुर गांव निवासी आलोक कौशिक ने स्नातकोत्तर (अंग्रेजी साहित्य) तक की पढाई बेगूसराय (बिहार) से की। तत्पश्चात विभिन्न विभिन्न विद्यालयों में अध्यापन एवं स्वतंत्र पत्रकारिता का कार्य किया। अब तक इनकी सैकड़ों रचनाएं विभिन्न राष्ट्रीय समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। इनका विवाह 24 फरवरी 2016 को बिहार राज्य अन्तर्गत सुपौल जिले के रामपुर गांव की एक शिक्षित सुन्दरी ‘मनीषा कुमारी’ से हुआ। 30 नवंबर 2016 को इन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। इनकी दो पुस्तकें प्रकाशनाधीन हैं, जो शीघ्र ही पाठकों को उपलब्ध करा दी जायेंगी।