Category: अन्य काव्य शैली

  • भ्रमर दोहे – बाबूराम सिंह

    भ्रमर दोहे

    आगे-आगे जा करे,जो सुधैर्य से काम।
    बाढे़ चारो ओर से , ढे़रों नेकी नाम।।

    प्यासेको पानी पिला,भूखेको दोभीख।
    वेदों शास्त्रोंका यहीं,लाखों में है सीख।।

    जाने माने लोग भी ,हो जाते हैं फेल।
    पूर्ण यहाँ कोई नहीं,माया का है खेल।।

    गाये धाये नेक पै ,पाये प्यारा नाम।
    छाये भोले भाव पै,भाये साँचा काम।।

    जाना है जागो मना,अंतः आँखे खोल।
    प्यारे ही तो हैं सभी,मीठी वाणी बोल।।

    माँ की सेवा है सदा,मानो चारों धाम।
    खेले माँ की गोद में,भी आके श्रीराम।।

    माता के जैसा नहीं, दूजा कोई प्यार।
    खाया खेला प्यार में,पाया है संसार।।

    जूठे बैरों के लिए ,माँ भावों को भाँप।
    भोरे-भोरे राम जी,आये आपो आप।।

    आधे साधे क्या हुआ,होवे पूरा काम।
    जागोभागो दोष से,त्यागो भी आराम।।

    ज्यादा बाधा भी पडे़,ना हो डा़वाडोल।
    धारो यारों सत्य को,झूठे की ना मोल।।

    ———————————————–
    बाबूराम सिंह कवि
    बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
    गोपालगंज(बिहार)841508
    मो०नं० – 9572105032
    ———————————————–

  • प्रेम के गीत – बाबूलाल शर्मा विज्ञ

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    प्रेम के गीत – बाबूलाल शर्मा

    लिखे प्रेम के गीत सुहाने।
    रीति सनातन मीत निभाने।।
    ‘विज्ञ’ बने मन मीत हमारे।
    प्रीति निभे सद्भभाव विचारे।।१

    कर मात्रा का ज्ञान रचें कवि।
    ‘विज्ञ’ सृजन करते देखे रवि।।
    हो स्थायी लय तान सुहानी।
    सम तुकांत लेते कवि ज्ञानी।। २

    लिखें अंतरे मनहर प्यारे।
    समतुकांत रखिए कवि न्यारे।।
    ‘विज्ञ’ शब्द मन रंग अनोखे।
    लिखें विषय सम्बंधित चोखे।।३

    लिखिए पूरक पंक्ति सलौनी।
    सार अन्तरा सम वह होनी।।
    ‘विज्ञ’ भाव मन शक्ति हमारे।
    हो तुकांत स्थायी सम प्यारे।।४

    आशय भाव विचार करें सब।
    रचें अन्तरे सीमित शुभ अब।।
    तजिए ‘विज्ञ’ विकार संतचित।
    शर्मा बाबू लाल सभी हित।।५


    बाबू लाल शर्मा, बौहरा,’विज्ञ’
    सिकंदरा, दौसा, राजस्थान

  • किसे पता है कल क्या होगा – बाबूराम सिंह

    किसे पता है कल क्या होगा



    निज स्वार्थ में बल क्या होगा?
    कभी किसीका भल क्या होगा?
    वर्तमान का सदुपयोग कर-
    आज नहीं तो कल क्या होगा?

    एकता बिन मनोबल क्या होगा?
    साहस बिन सम्बल क्या होगा?
    पीर पराई बिन दुनीयां में-
    सोचो अश्रु जल क्या होगा?

    प्यार बिना पल-पल क्या होगा?
    शान्ति सुख अचल क्या होगा?
    पल में परलय- लय सब होगा-
    तब तेरा हस्ती बल क्या होगा?

    बिन जगे हलचल क्या होगा?
    जन्म-जीवनअव्वल क्या होगा?
    एक , नेक हो आगे बढना-
    नहीं तो दृढ़ अटल क्या होगा?

    नेक बिना उज्वल क्या होगा?
    मोह,माया अस मल क्या होगा?
    ईश भक्ति सुचिता में रहकर-
    कोई कभी विकल क्या होगा?

    करूणा बिना कोमल क्या होगा?
    बिन सदभाव सरल क्या होगा?
    सत्य , अहिंसा , प्रेम ,दया बिन-
    नर जीवन भूतल क्या होगा?

    सुमनों बिन परिमल क्या होगा?
    बिना प्रेमाश्रु तरल क्या होगा?
    शर्म , सभ्यता ,अनुसासन बिन-
    कुछ भी कभी अमल क्या होगा?

    प्रश्न बहुत पर हल क्या होगा?
    छल-कपटों का फल क्या होगा?
    आज धरा पर जो बैठें हैं-
    किसे पता है कल क्या होगा?

    पाप में पावन पल क्या होगा?
    सत्य में झूठ गरल क्या होगा?
    प्रेम , श्रध्दा , विश्वास बिना-
    कवि बाबूराम विमल क्या होगा?

    ———————————————–
    बाबूराम सिंह कवि,गोपालगंज,बिहार
    मोबाइल नम्बर-9572105033
    ———————————————–

  • नये तराने – माधुरी मुस्कान ग़ज़ल

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    नये तराने – माधुरी मुस्कान ग़ज़ल

    करीब आओ न दूर जाओ मुझे गले से सनम लगा लो।
    न जी सकेंगे न मर सकेंगे जहाँ भी हो तुम हमे बुला लो ।।

    अभी अभी तो बहार देखी नये तराने मचल रहे हैं
    अभी उजालों ने आँख खोली चलो न खुशियों को भी मना लो ।

    मुझे नज़र से निहाल कर दो मैं ख्वाब में भी तुम्हें सवारूँ
    जिधर चलोगे मैं साथ दूँगी मेरी वफ़ा को भी तुम भुना लो ।।

    ये आशिकी बन्दगी तुम्हारी सिवाय तेरे न मैंने चाहा
    तुम्हारे कदमो में जिंदगी है मुझे मिटा तो या तुम सजा लो

    ये जो खुमारी चढ़ी हुई है इसी में सारे फ़िज़ा समाई
    मेरी मुहब्बत जवां रहेगी कि दिल में अपने मुझे समा लो ।

    रहे सलामत ये प्यार मेरा यही दुआ है हमारे दिल की
    जहाँ भी जाओ बहार झूमें ये जिंदगी का सही मज़ा लो ।

    गुमान मुदिता के तुम बने हो हरेक ज़र्रा गवाह देती
    अँधेरे घर में शमा जली है गजल तुम्हारी मुझे बना लो । ---- *माधुरी डड़सेना " मुदिता "*

  • तुम ही तुम हो – माधुरी डड़सेना मुदिता

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    तुम ही तुम हो

    भावना में बसे हो कामना में तुम्हीं हो ।
    जिंदगी बन गये हो साधना में तुम्हीं हो ।।

    वादियाँ खूबसूरत हर नजारा हंसी है
    ईश की बंदगी में प्रार्थना में तुम्हीं हो ।

    हर गजल में भरे हो गीत की बंदिशों में
    शक्ल आता नजर है आइना में तुम्हीं हो ।

    इक तुम्हीं याद आते क्या करें तुम बताओ
    बेखुदी छा गई है इस अना में तुम्हीं हो ।
     
    हर जनम में मिले हैं नाम अपने जुदा थे
    हीर मैं ही बनी थी राँझना में तुम्हीं हो ।

    तुम ही हो ग्रंथ मेरे मंत्र तुम मंत्रणा भी
    तुम ही विश्वास दिल के हर वफा में तुम्हीं हो ।

    चाँद की चाँदनी में सूर्य की रोशनी में
    इन हवाओं में घुलते हर सदा में तुम्हीं हो ।

    और क्या चाहिए अब हमने सब पा लिया है
    तुम जुनूँ जिंदगी की आशना में तुम्हीं हो ।

    तुम ही भावों की सरिता तुम ही प्रण के हिमालय
    तुम ही मुदिता की मंजिल चाहना में तुम्हीं हो ।


    —- *माधुरी डड़सेना ” मुदिता “*