जब भी कभी हम खुले आसमाँ बैठते है/दीपक राज़

jivan doha

जब भी कभी हम खुले आसमाँ बैठते है /दीपक राज़ जब भी कभी हम खुले आसमाँ बैठते हैज़मीं से भी होती है ताल्लुक़ात जहाँ बैठते है ये जो फूल खिल रहे है ये जो भौंरे उड़ते हैंअच्छा लगता है जब अपनो से अपने जुड़ते हैं पत्ते झर झर करते हैं हवाए सायं सायं चलती हैमदहोस … Read more

सागर- मनहरण घनाक्षरी

सागर- मनहरण घनाक्षरी पोखर व झील देखो , जिसमें न गहराई ,थोड़ा सा ही जल पाय, मारते उफान हैं I सागर को देखो वहाँ , नदियाँ हैं कई जहाँ ,सबको  समेट   हिय , करे  न  गुमान  है I जिसका न ओर छोर , दिल में अथाँह ठोर ,सबको  ही  एक  रस , देता  सम्मान  है  … Read more

वन दुर्दशा पर हिंदी कविता

वन दुर्दशा पर हिंदी कविता अब ना वो वन हैना वन की स्निग्ध छायाजहाँ बैठकर विक्रांत मनशांत हो जाता थाजहाँ वन्य जीव करती थी अटखेलियाँजहाँ हिरनों का झुण्ड भरती थी चौकड़ियाँवन के नाम पर बचा हैमिलों दूर खड़ा अकेला पेड़कुछ पेड़ों के कटे अवशेषया झाड़ियों का झुरमुटजो अपनी दशा पर है उदासबड़ी चिंतनीय बात हैवनों … Read more

सुरों की मल्लिका लता जी – जगदीश कौर

सुरों की मल्लिका लता जी- जगदीश कौर कहाँ गई वो सुरों की मल्लिकाकहाँ गई वो मधुर सी कोकिलाजिसके सुरों के जादू से सारा हिंदूस्तां था फूलों सा खिला। छेड़ती थी जब सुरों की तान मंद -मुग्ध हो जाता हिन्दूस्तानतेरे गुनगुनाएं गीतों सेऊर्जा से भरता नौजवान।। बस गई थी सभी के दिलों मेंभारत की यह लाडली … Read more

सुविचारित पग आगे बढ़ें

सुविचारित पग आगे बढ़ें मातृभूमि की सेवा करें,दलित शोषित समाज की पीड़ा हरें,निजी स्वार्थों से, ऊपर उठकर,पर हित में भी, ध्यान धरें,नव भारत के लिए, पथ गढ़ें,सुविचारित पग आगे बढ़ें! निर्धनता अभाव से जूझ रहे हैं लोग,अज्ञानता का व्याप्त है, महा रोग!अंध विश्वास, अंध श्रद्धा, सर्वत्र व्याप्त है,आगे बढ़ने के लिए, सब कुछ पर्याप्त है,फ़िर … Read more