सुंदर पावन धरा भारती
सुंदर पावन धरा भारती सुंदर पावन धरा भारती ।आओ उतारें हम आरती ••२ नवचेतना के द्वार खोल अबसुनें कविता सृजन की आवाजखत्म हो हैवानियत की इन्तहांइंसानियत का ही हो आगाजसुंदर पावन धरा भारती ।आओ उतारें हम आरती ••२ नतमस्तक हो…

हिंदी कविता संग्रह

हिंदी कविता संग्रह
सुंदर पावन धरा भारती सुंदर पावन धरा भारती ।आओ उतारें हम आरती ••२ नवचेतना के द्वार खोल अबसुनें कविता सृजन की आवाजखत्म हो हैवानियत की इन्तहांइंसानियत का ही हो आगाजसुंदर पावन धरा भारती ।आओ उतारें हम आरती ••२ नतमस्तक हो…
जब याद तुम्हारी आती है जब याद तुम्हारी आती हैमन आकुल व्याकुल हो जाता हैतुम चांद की शीतल छाया होतुम प्रेम की तपती काया हो। तुम आये भर गये उजालेसफल हुए सपने जो पालेद्वार हंसे, आंगन मुसकायेभाग्य हो गये मधु…
नयनों की भाषा तुमने चाहा थामैं कुछ सीखूँकुछ समझूँकुछ सोचूँपर जब मैंनेकुछ सीखाकुछ समझाकुछ सोचातब तक बहुत देरहो चुकी थी,मेरे जीवन केअनेक फासलेतय हो चुके थेजिन्दगी नये राह पर थी । आजजब तुम अचानकमेरे सामने आईमुझे देखकरधीरे से मुस्कायेथोडी सकुचाईथोडी…
दौलत की भूख आया कैसा नया ज़मानादौलत आज सभी को पानायह एक ऐसी भूख हैरिश्तों की बेल जाती सूखकिसी की परवाह न करे इंसान झूठ बोलने में माहिर हुआकुत्सित काम है बात आमलालच ने यूं अंधा कियाभ्रष्टाचार अंदर तक पनपासारे…
सोच सोच के सोचो नारी ना होती,श्रृंगार करता कौन?हुस्न की बात चले तो,तेरा नाम लेता कौन? नख-शिख चित्रण ,उभारता कौन?गर ना श्रृंगार होता,कविताएँ लिखता कौन?कवि की लेखनी क्या होती मोन?श्रृंगार देख बिन पिये, नशा चढ़ाता कौन? पल-पल क्षण-क्षण,प्रिय मिलन की…
सच्ची मुहब्बत पर गजल भला इस दौर में सच्ची मुहब्बत कौन करता हैबिना मतलब जहाँ भर में इबादत कौन करता हैहसीं रंगीन दुनिया के नजारे छोड़ कर पीछेमुहब्बत के सफीनों की जियारत कौन करता हैयह खुदगर्ज़ी भरी दुनिया यहाँ कोई…
तिरंगा शान हमारी आन~प्राणों से बढ़करतिरंगा शान पूजनीय है~माटी का कण-कणवन्दनीय है भारत माता~बच्चा-बच्चा कुर्बानझुकता माथा पावन माटी~वीरों के लहू सनीहै हल्दीघाटी गौरव गाथा~प्यारे हिंदुस्तान कीविश्व है गाता. निर्मल नीर Post…
झुकेगा सर नहीं अपना झुकेगा सर नहीं अपना, किसी तलवार के आगे।अटल होकर खड़े होंगे, बुरे व्यवहार के आगे। बढ़ायेंगे कदम अपने, न जब तक लक्ष्य हो हासिल।बढ़ेंगे नित्य हम अविचल, भले ही दूर हो मंज़िल।डरेंगे हम नहीं अब तो,…
अंतर्द्वंद्व बड़ा अलबेला द्वंद्वभरी जीवन की राहें,भटक रहे तुम मन अलबेले!संतोषी मग पकड़ बावरे,इस जीवन के बड़े झमेले!! तृप्त हुआ तू नहीं आज तक,मनमर्जी रथ को दौड़ाया!चौराहे पर फिरा भटकता,ज्यों कुंजर वन में बौराया!दृग ऊपर माया का पर्दा,देखे सपने सदा…
रूह की बस्ती में बसा लिया हम तुझे छोड़ भी नहीं पाये, अलविदा कहकरदिल में तुम ही तुम हो, ख्वाबों-ख़यालों में रहकरइब्तिसाम तेरी क़यामत, रह गयी इन आँखों मेंभूलना तो चाहा बहुत, बेवफा है कहकरहम तुझे छोड़ भी…
मिलते हैं हमसफर कैसा भी सफर होसाथ से कट जातासुविधा से व्यक्तिमंजिल तक पहुँचता । अब सफर स्कूल तकसफर खेल मैदान कापनघट तक का होया फिर मंदिर मस्जिदया उत्सव त्यौहार कासब हम सफर रहतेसुख दुख साझा सहते। जीवन के सफर…
आज मैं बोलूंगा आज मैं बोलूंगा…खुलकर रखूंगा अपने विचार…अभिव्यक्ति की आजादी जो हैं…सीधे सपााट, सटीक शब्द रखूंगा…आम जनता के मन मस्तिष्क में ..समाने वाले..मस्तिष्क की गहराईयोंं तक…उतर जायेंगे…मौन शब्द…करेंगे …प्रहार पर प्रहार… छलनी करेेंगे…अन्तर्आत्मा…नहीं कहूूंंगा अनर्गल…कहना भी नहीं चाहिए क्योंकि…अभिव्यक्ति…