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  • नवदेवियों पर हिंदी कविता -डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

    नवदेवियों पर हिंदी कविता -डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    नवरात्रि में सोती आंखों को जगाते हैं।
    माँ के स्वरूपों को आज जान जाते हैं।
    नौ स्वरूपों के हम करते हैं नौ प्रण कि,
    नहीं करेंगे जन्म ग्रहण करती हुई “शैलपुत्री” की भ्रूण हत्या।
    करेंगे “ब्रह्मचारिणी” को शिक्षित।
    खड़ी होगी विवाह पूर्व निर्मल “चंद्रघंटा” अपने पैरों पर।
    नहीं सौपेंगे उसे किसी दहेज के दानव को।
    ना होगी कमी गर्भ धारण की हुई “कूष्मांडा” को पोषक तत्वों की।
    रहेगी खुली आँखों में श्रद्धा जब “स्कन्दमाता” करेगी बच्चे का पालन-पोषण।
    ना करेंगे अधर्म किसी “कात्यायनी” पर।
    ना होंगे क्रोधित “कालरात्रि” के क्रोध के समक्ष,
    और बनाएंगे जीवन को सुखमय।
    रहेंगे मृदुल “महागौरी” के ह्र्दय की तरह ही,
    ना उठाएंगे लाभ उनके भोलेपन का।
    हो महाप्रयाण “सिद्धिदात्री” का, पहले उसके करवाएंगे उनका अच्छा इलाज।
    ये नौ प्रण कर इस बार नवरात्रि मनाते हैं।
    तुम मनाओगे ना?
    -०-

    • डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी
      उदयपुर
  • कन्या पूजन या भ्रूणहत्या -राकेश सक्सेना

    कन्या पूजन या भ्रूणहत्या -राकेश सक्सेना

    कन्या पूजन या भ्रूणहत्या -राकेश सक्सेना

    राम कथा, रामायण जी, सुनकर दिल भर आता है,
    रामराज्य की कल्पना से ही, मन हर्षित हो जाता है।
    काश मर्यादापुरुषोत्तम सी, मर्यादा हर पुरुषों में होती,
    तो हर स्त्री सुरक्षित होती, धरा पवित्र मर्यादित होती।।

    कुछ रावणवंशी मर्दों ने, पुरूषों की इज्जत बिगाड़ी है,
    सुर्पणखां मंथरा सी, महिलाओं की लिस्ट भी भारी है।
    लक्षमण, भरत से भाई जिसके हैं, वो नसीबों वाले हैं,
    हनुमानजी जैसे समर्पित दोस्त, मिलें तो वारे-न्यारे हैं।।

    नवदुर्गा नवरात्रि को हम, व्रत उपवास कर मनाते हैं,
    रामलीला कर देश भर में, राममयी माहौल बनाते हैं।
    कन्यापूजन चरणवंदन से, महिला का मान बढ़ाते हैं,
    वहीं कुछ ना समझ, कन्या भ्रूण हत्या भी करवाते हैं।।

    कब समझेंगे बिना महिला हम, बंजर भूमि समान हैं,
    महिला बिना पुरुष जग में, बिन नाथा बैल समान है।
    आज नवरात्री पर शपथ ले लें, भ्रूणहत्या हम रोकेंगे,
    कन्याजन्म पर उत्सव हो, महिला अपमान भी रोकेंगे।।


    राकेश सक्सेना
    बून्दी, राजस्थान
    9928305806

  • सुहाना मौसम पर कविता -रबीना विश्वकर्मा

    सुहाना मौसम पर कविता -रबीना विश्वकर्मा

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    मौसम कुछ यूँ सुहाना सा है ।।
    अपने आप में ही बेगाना सा है ,
    इन्द्र धनुष में रंगों का सिलसिला सप्त सा है ,
    आसमान में रंग कुछ यूँ चटकाना सा है ,
    बादलों का अपने आप में चमकाना सा है ,
    मौसम कुछ यूँ सुहाना सा है ।।

    हवाओं के झोको का यूँ ही गुनगुना सा है ,
    बारिश कि बूॅदो में अपना ही शर्माना सा है ,
    नदियों के लहरों का यूँ ही मुस्कुराना सा है ,
    पेड़ पौधों का आपस में खेल जाना सा है ,
    मौसम कुछ यूँ सुहाना सा है ।।

    बादलों का यूँ ही बुदबुदाना सा है ,
    मोरो को अपने ताल पर नचाना सा है ,
    बारिश के बौछारो में भीग जाना सा है ,
    प्रकृति का ये नजारा देखना सा है ,
    मौसम कुछ यूँ सुहाना सा है ।।
    मौसम कुछ यूँ सुहाना सा है ।।

    -रबीना विश्वकर्मा

  • वह स्त्री है( स्त्री आधारित कविता)

    वह स्त्री है( स्त्री आधारित कविता)

    वह स्त्री है( स्त्री आधारित कविता)

    वह स्त्री है,
    वह शक्ति है।
    वह जो सीता है,
    चौदह वर्ष तक बंधनों में निर्भीक, आशान्वित,
    घोर दुखों में भी सम,
    पति की विरह में भी स्थिर
    और इस सब के बाद भी परीक्षा!
    अग्नि की तीव्र लपटों में भी,
    उसमें सहनशक्ति है,
    वह स्त्री है।

    वह जो बाई लक्ष्मी है,
    मातृभूमि हेतु समर्पित,
    शैतानी अट्टहास के सम्मुख गर्व से उठा ललाट,
    दासता के प्रस्ताव के विरुद्ध रक्तरंजित नेत्र,
    विशाल शत्रु दल के सम्मुख चमकता खड़ग,
    चहुं ओर के प्रहारों से भी पुत्र की रक्षा,
    रणभूमि में रणचंडी बन शवों के अंबार लगाने वाली,
    उसमें संहारशक्ति है,
    वह स्त्री है।

    वह अपाला, मैत्रेयी, लोपामुद्रा है,
    विदुषी, गुणवती और शास्त्रधारिणी है,
    शास्त्रार्थ में,
    ब्रह्मज्ञाता पुरुष को जीतने वाली गार्गी है,
    उसमें सरस्वती की ज्ञानशक्ति है,
    वह स्त्री है।

    वह माँ और पत्नी है,
    मृत्यु से लड़कर नवजीवन की जननी है,
    संतान में संस्कार की,
    पति के भाग्य की,
    परिवार के सुख सौहार्द की,
    उसमें सृजनशक्ति है,
    वह स्त्री है।

    वह बहन-बेटी है,
    पिता की पगड़ी हेतु पग-पग सजग,
    भाई की सफलता हेतु श्रम झोंकती,
    समाज के रूढ़िवाद को नकारती,
    कुदृष्टि के बाणों को निश्शंकता की ढाल से मर्दित करती,
    स्वतंत्रता और परतंत्रता के बीच जूझती,
    उसमें संघर्षशक्ति है,
    वह स्त्री है।

    कवि:- निशान्त कुमार सक्सेना
    पता -112, मोहल्ला तहवरगंज, पोस्ट मीरानपुर कटरा, तहसील तिलहर, जिला शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश-242301

  • बेटियों पर हिंदी कविता -रबिना विश्वकर्मा

    बेटियों पर हिंदी कविता -रबिना विश्वकर्मा

    बेटियों पर हिंदी कविता -रबिना विश्वकर्मा

    beti

    बेटी को पढाने में लगता है डर,
    पर ये नहीं सोचा बेटियाँ ही
    बनाती हैं सुंदर सा घर ।।

    आज की दुनिया सताती है बेटियाँ को,
    लेकिन फिर भी सारे दुःखो को
    सहती है बेटियाँ ।।

    एक नहीं दो घरो को सॅभालती है बेटियाँ ,
    फिर भी अकेली रह जाती हैं बेटियाँ ।।

    ना जाने कौन से जन्म का पाप भोगती है बेटियाँ,
    अपना सुख दूसरो को दे देती है बेटियाँ ।।

    फिर भी हसती मुस्कराती रहती हैं बेटियाँ,
    ना जाने कौन सी बात है बेटियों में,
    कि सारी बात सह लेती है बेटियाँ ।।

    फिर भी लोग कहते हैं ,
    कि पराई होती है बेटियाँ ,
    पराई होती है बेटियाँ ।।

    रबिना विश्वकर्मा