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  • मैं उड़ता पतंग मुझे खींचे कोई डोर

    मैं उड़ता पतंग मुझे खींचे कोई डोर

    मैं उड़ता पतंग ….मुझे खींचे कोई डोर।
    तेरी ही ओर।।
    मेरा टूट न जाए धागा।
    भागा ….भागा…भागा ….मैं खुद से भागा।
    जागा.. जागा….जागा.. कभी सोया कभी जागा ।
    कुछ ख्वाहिशें हैं ,कुछ बंदिशें हैं।
    पग-पग में देखो साजिशें है ।
    जिसने जो चाहा है कब वो पाया है ।
    पल पल में तो मुश्किलें है ।
    यह किस्मत का कोई धनी ,तो कोई अभागा।
    भागा… भागा… भागा.. मैं खुद से भागा ।
    जागा …जागा ..जागा. कभी सोया कभी जागा ।
    कभी धूप सी तो कभी छांव है ।
    जिंदगी खेलें यहां हर दांव है ।
    दिल तो चाहे शहर ,पर छूटे ना गांव है।
    कशमकश में पड़े यहां मेरे पांव है।
    फिर समझा लूं ,तपे सोना ,पाकर सुहागा।
    भागा …भागा …भागा …मैं खुद से भागा ।
    जागा ..जागा ..जागा ..कभी सोया कभी जागा।।

    • मनीभाई नवरत्न
  • सिमटी हुई कली/मनीभाई नवरत्न

    सिमटी हुई कली/मनीभाई नवरत्न

    सिमटी हुई कली/मनीभाई नवरत्न

    beti

    सिमटी हुई कली ,मेरे आंगन में खिली।
    शाम मेरी ढली,तब वह मोती सी मिली।
    रोशनी छुपाए जुगनू सा
    सारी सारी रात मेरे घर में जली ।

    चंचलता ऐसी जैसे कोई पंछी
    ओढ़े हुए आसमां की चिर मखमली।
    खुशबू फैल जाए जहां वह मुस्कुराए
    कदम पड़े उसकी गली गली।

    सिमटी हुई कली , मेरे आंगन में खिली।

    • मनीभाई नवरत्न
  • संस्कार नही मिलता दुकानों में-परमानंद निषाद “प्रिय”

    संस्कार नही मिलता दुकानों में – परमानंद निषाद “प्रिय”

    माता-पिता से मिले उपहार।
    हिंद देश का है यह संस्कार।
    बुजुर्गो का दर्द समझते नहीं
    नहीं जानते संस्कृति- संस्कार।


    संस्कार दिये नहीं जाते है।
    समाज के भ्रष्टाचारों से।
    संस्कार हमको मिलता है।
    माता-पिता,घर-परिवार से।


    बुजुर्गो का सम्मान धर्म हमारा।
    उनकी सेवा करना कर्म हमारा।
    संस्कार नही मिलता दुकानों में
    यह मिलता अच्छे संस्कारों में।


    बुजुर्गो के सही हो रहे हैँ जुबानी।
    संस्कृति-संस्कारों की सच्ची कहानी।
    मोबाइल,टी.वी. में सब डूब गये।
    संस्कृति-संस्कारों को सब भूल गये।


    संस्कारों से मिले माँ-बाप को सम्मान।
    सभी करते जिनका सदा गुणगान।
    हमारे पास जितने गुण आते।
    संस्कारों से ही सदा मिलते जाते।


    हमारे जीवन में , संस्कार ही कुंजी।
    जिससे हमें मिले सफलता की पुंजी।
    जिस किसी के पास संस्कृति संस्कार।
    उसका जीवन हो सदा सुखमय सार।

    परमानंद निषाद “प्रिय”
    ग्राम- निठोरा,पो.- थरगांव
    तह.- कसडोल,जिला- बलौदा बाजार (छ.ग.) पिन 492112
    मोब.- 7974389033
    8435298085
    ईमेल- [email protected]

  • अंकुर-रामनाथ साहू ” ननकी “

    अंकुर


    अंकुर आया बीज में , लेता नव आकार ।
    एक वृक्ष की पूर्णता , देखे सब संसार ।।
    देखे सब संसार , समाहित ऊर्जा भारी ।
    अर्ध खुले हैं नैन , प्रकृति अनुकूलन सारी ।।
    कह ननकी कवि तुच्छ , प्रगट होने को आतुर ।
    नई सृष्टि आभास , बीज को देता अंकुर ।

    अंकुर होते हैं खुशी , सपने लिए हजार ।
    नई कई संभावना , होते अंगीकार ।।
    होते अंगीकार , योजना सुखद बनाते ।
    आपस में विश्वास , लक्ष्य को साध दिखाते ।
    कह ननकी कवि तुच्छ ,प्रीत बढ़ता प्रति अंगुर ।
    नित्यकर्म आनंद , मनुज मन होता अंकुर ।।

    अंकुर देखे जब कृषक , सपना पले हजार ।
    होगी फसलें जब खड़ी , अच्छा हो व्यापार ।।
    अच्छी हो व्यापार ,कर्ज सब चुकता होता ।
    खुशियों की बरसात , श्रमिक मन लेता गोता ।।
    कह ननकी कवि तुच्छ ,लगे जीवन क्षण भंगुर ।
    फिर भी दिखते रोज ,स्वप्न के अनगिन अंकुर ।।


    —– रामनाथ साहू ” ननकी “
    ….मुरलीडीह

  • बिछोह पर कविता- मनीभाई

    बिछोह पर कविता – मनीभाई”

    रात भर मैं
    सावन की झड़ी में
    सुनता रहा
    टपटप की आवाज
    पानी की बूंदें।
    बस खयाल रहा
    अंतिम विदा
    पिया के बिछोह में
    गिरते अश्रु
    गीले नैनों को मूंदे
    पवन झोकें
    सरसराहट सी
    लगती मुझे
    जैसे हो सिसकियां।
    झरोखे तले
    सारी घड़ियां चलें।
    जल फुहारें
    कंपकपी बिखेरे
    भय दिखाती
    अशुभ की कामना
    मैं व मेरी कल्पना ।।

    ✍मनीभाई”नवरत्न”
    ७/८/२०१८ मंगल