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  • माँ कुष्माण्डा पर कविता

    माँ कुष्माण्डा पर कविता

    सूर्य मंडल में बसी,अलौकिक कांति भरी,
    शक्ति पूँज माँ कुष्माण्डा,तम हर लीजिए।
    अण्ड रूप में ब्रम्हाण्ड,सृजन कर अखण्ड,
    जग जननी कुष्माण्डा,प्राण दान दीजिए।
    दुष्ट खल संहारिनी,अमृत घट स्वामिनी,
    आरोग्य प्रदान कर, रुग्ण दूर कीजिए।
    शंख चक्र पद्म गदा,स्नेह बरसाती सदा,
    सृष्टि दात्री माता रानी,ईच्छा पूर्ण कीजिए

    ✍ सुकमोती चौहान “रुचि”
    बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.
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  • कटुक वचन है ज़हर सम

    कटुक वचन है ज़हर सम

    वाणी ही है खींचती भला बुरा छवि चित्र
    वाणी से बैरी बने वाणी से ही मित्र
    संयम राखिए वाणी पर वाणी है अनमोल
    निकसत है इक बार तो विष रस देती घोल।


    कटुक वचन है ज़हर सम मीठे हैं अनमोल
    वाणी ही पहचान कराती तोल मोल कर बोल
    कटु वाणी हृदय चुभे जैसे तीर कटार के
    घाव भरे न कटु वाणी के भर जाए तलवार के।


    मृदु वचन से अपना बने कटु वचनों  से  गैर
    मीठी रखिए वाणी भाव कभी न होगा बैर
    वाणी है वरदान इक वाणी से सब दाँव
    मधुर वाणी देती खुशी कर्कश देती घाव।


    कोयल कागा एक से अंतर दोनों के बोल
    वशीकरण है मंत्र इक मृदु वचन अनमोल
    कटु वाणी सुन लोग सब आपा  देते खोय
    बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय।


    मीठी वाणी औषधि मरहम देत लगाय
    कटु वाणी है कंटीली नश्तर देत चुभाय
    जख़्म देती कटु वाणी मन को चैन न आय
    मीठी वाणी हृदय को अमृत सम सुहाय।


    कटु वाणी दुख देत है बिन भानु ज्यों भोर
    मीठी वाणी अनंत सी जिसका न कोई छोर
    कटु वाणी कर्कश सदा ज्यों मेघों का रोर
    सुख जीवन में चाहो तो तज दे वचन कठोर।


    कटु वाणी से जगत में शहद भी नहीं बिक पाता
    मीठी वाणी के आगे नीम नहीं टिक पाता
    कह ”कुसुम” वाणी मधुर कर दे मन झंकार।
    तज दे वाणी कटु सदा संबंधों का आधार।

    कुसुम लता पुंडोरा
    आर के पुरम
    नई दिल्ली

  • बासंतिक नवरात्रि की आई मधुर बहार

    बासंतिक नवरात्रि की आई मधुर बहार

    बासंतिक नवरात्रि की आई मधुर बहार
    आह्वान तेरा है मेरी मां आजा मेरे द्वार
    मंदिर चौकी कलश सज गए
    दर्शन दे माता दुर्गे होकर सिंह सवार।
    नौ दिन हैं नवरात्रि के नवरूप तेरे अपार
    लाल चुनर साड़ी सिंदूर से करुं तेरा श्रृंगार
    संकटहरिणी मंगलकरणी नवदुर्गे
    खुश हो झोली में भर दे तू आशीष हजार।
    हाथ जोड़ विनती करूं करो भक्ति स्वीकार
    धूप दीप नैवेद्य से माँ वंदन है बारम्बार
    शत्रुसंहारिणी अत्याचारविनाशिनी
    महिमा जग में है तेरी शाश्वत अपरंपार।
    शैलपुत्री के रूप में रहती तू ऊँचे पहाड़
    ब्रह्मचारिणी मां चंद्रघंटा रूप तेरा रसताल
    कूष्मांडा स्कंदमाता जगदंबा छविरूप
    कात्यायनी कालरात्रि रूप तेरा विकराल।
    महागौरी सिद्धिदात्री मां तू दयानिधान
    पापनाशिनी मां अम्बे लाती नया विहान
    खड्ग खप्पर संग मुंडमाल गले में
    सब देवों में माँ मेरी तू है श्रेष्ठ महान।
    जब जब  भक्तों पर संकट आता
    मां  धारण करती तू रूप अनेक
    शक्तिस्वरुपा जगतजननी जगदम्बे
    इस धरती की  तू पावन माँ एक।
    नौ दिन तेरा पाठ करूं महके मेरा घरबार
    दुखहारिणी मां खुशी से भर दे मेरा भंडार
    तेरे आवन की खुशी से नैनों में अश्रुधार
    कृपादृष्टि हो मां तेरी सुखी रहे मेरा परिवार।

    कुसुम लता पुंडोरा
    आर के पुरम
    नई दिल्ली
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  • चुनाव का बोलबाला

    चुनाव का बोलबाला

    हर  गली   में   बोलबाला  है।
    अब  वक्त  बदलने  वाला  है।।
    जो चुनाव नजदीक आ गया,
    बहता   दारू  का   नाला  है।।
    उन्हें  वोट  चाहिए  हर  घर  से,
    हर  महिला  इनकी  खाला  है।।
    साम, दाम, दण्ड, भेद अपनाए,
    सच  की  छाती  पर  छाला  है।।
    झुग्गी  में   नेता   रोटी   खाए,
    समझ  लो गड़बड़  झाला  है।।
    कल  चाहे  ये  बलात्कार   करें,
    आज  बहन  हर  एक  बाला है।।
    ये  इतना  मीठा  बोल  रहे   हैं,
    जरूर   दाल   में   काला   है।।
    सिल्ला ऐसा नशा है सियासत,
    नहीं   कोई   बचने   वाला   है।।
    -विनोद सिल्ला
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  • कालचक्र गतिशील निरन्तर होता नहीं विराम

    कालचक्र गतिशील निरन्तर होता नहीं विराम

    कालचक्र गतिशील निरन्तर
                          होता नहीं विराम,
    दुख    के   पर्वत,नदिया,नाले
                   सुख का अल्प विराम।
    अब तक मुझको समझ न आया
                       इस जगती का राग
    रास       न आयी   इसकी  माया
                     कैसे    हो   अनुराग !
    शिथिल हुआ है तन ये जर्जर
                   मन भागे   अविराम
    दुख के पर्वत , नदिया , नाले ,
                 सुख का अल्प विराम।
    छायी है बस ग़म की बदली
                     आँसू का     संवाद
    साँसों    की   सरगम में गूँजे
               धड़कन का  अनुवाद।
    आपाधापी    अन्दर- बाहर
                   तनिक नहीं विश्राम ।
    दुख के पर्वत , नदिया ,नाले,
              सुख का अल्प विराम ।
    कालचक्र गतिशील निरन्तर
                   होता  नहीं विराम
    दुख के पर्वत, नदिया ,नाले
                 सुख का अल्प विराम ।
              नीलम सिंह 
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद