Tag: 28th जुलाई विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस पर हिंदी कविता

28th जुलाई विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस
हर साल 28 जुलाई को दुनिया भर में विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस मनाया जाता है। विश्व संरक्षण दिवस हर साल प्राकृतिक संसाधनों का संक्षरण करने के लिए सर्वोत्तम प्रयासों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाता है। पृथ्वी हमें सीमित मात्रा में ऐसे चीजों की आपूर्ति करती है, जिन पर हम सभी पूरी तरह निर्भर हैं जैसे पानी, हवा, मिट्टी और पेड़-पौधे।

  • प्रकृति से खिलवाड़ पर्यावरण असंतुलन-तबरेज़ अहमद

    प्रकृति से खिलवाड़ पर्यावरण असंतुलन-तबरेज़ अहमद

    प्रकृति से खिलवाड़ पर्यावरण असंतुलन

    पर्यावरण संकट

    शज़र के शाखो पर परिंदा डरा डरा सा लगता है।
    ऐसी भी क्या तरक्की हुई है मेरे मुल्क में।
    कई शज़र के शाखाओं को काटकर और कई शज़र को उजाड़ कर शहर का शहर बसा लगता है।
    इन पर्यावरण को उजाड़ कर शहर बसा लगता है।
    फिर भी कहा दिल लगता है।
    कभी प्रकृति की गोद में मां के आंचल सा सुकून मिलता था।
    आज जलन और चुभन होती है इस फिज़ा में भी।
    कही ना कही हमने प्रकृति से खेला है।
    जो आज हर चीज़ होने के बावजूद भी फिजाओं में कोई सुकून नही है।
    जो ज़हर हमने इस पर्यावरण में घोला है।
    उसी का आज हमने ओढ़ा आज चोला है।
    जल रही धरती जल रहा आकाश भी
    इसलिए आज हम है निराश भी।
    कभी जो उमड़ते थे बादल।
    दिल हो जाता था पागल।
    ना अब बादल का उमंग है
    और ना ही पहले जैसा फिज़ा में रंग है।
    किया जो अपनी पृथ्वी से ऐसा हमने अपंग है।
    पहले बारिश होती थी तो दिल झूमता था।
    मगर अब निगाहे तरसती है कुछ न कुछ तो किया हमने खिलवाड़ है।
    एक एक जन इसका गुनहगार है।
    गांव को हमने छोड़ा शहर के लिए, के गांव को शहर बनाएंगे।
    हालत ऐसी हुई है के ज़माने से कहते फिर रहे है शहर से अच्छा तो मेरा गांव है।
    तरक्की के दौड़ में हमने जो पेड़ो को काटा है।
    जंगल के जंगल को जो हमने छांटा है।
    हमने अपने भविष्य के लिए बोया कांटा है।
    विकासशील देश लगे है भाग दौड़ में विकसित देशों की बराबरी करने में।
    इस बराबरी करने की होड़ में हमने पृथ्वी पर ज़हर ही ज़हर घोला है
    इसलिए हमने बीमारियों को ओढ़ा चोला है।

    शज़र/पेड़, फिज़ा/पर्यावरण

    तबरेज़ अहमद
    बदरपुर नई दिल्ली

  • मत करो प्रकृति से खिलवाड़-एकता गुप्ता

    मत करो प्रकृति से खिलवाड़-एकता गुप्ता

    विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस पर कविता

    मत करो प्रकृति से खिलवाड़

    मत करो प्रकृति से खिलवाड़-एकता गुप्ता
    हसदेव जंगल

    बदल गया है परिवेश हमारा ।
    दूषित हो रहा है अपना वातावरण ।

    काट काट कर हरे पेड़ों को।
    क्यूं छीन रहे हरियाली का आवरण?

    अनगिनत इमारतें दिन पर दिन बन रही।
    फैक्ट्रियों के काले धुएं का लग रहा ग्रहण।

    चारों ओर फैल रहा है प्रदूषण।
    दूषित हो रहा है अपना वातावरण।

    खतरे में पड़ गया सब का जीवन।
    हो गया अनगिनत सांसो का हरण।

    मत करो प्रकृति से खिलवाड़।
    बिगड़ रहा पर्यावरण संतुलन।

    क्षीण हो गई यदि प्रकृति।
    कैसे हो पाएगा सबका भरण पोषण।

    अभी भी कुछ नहीं है बिगड़ा।
    चलो मिलकर करते हैं वृक्षों का फिर से रोपण।

    स्वच्छ करें मिलकर वातावरण।
    धरती को पहनायें हम फिर से हरा-भरा आवरण।

    ऑक्सीजन और शुद्ध वायु की भी कमी होगी पूरी।
    वसुंधरा का हो जाएगा फिर से हरियाली से अलंकरण।

    हो जायेगा स्वर्णिम जीवन सबका।
    हरियाली से परिपूर्ण हो जाये पर्यावरण
    फिर से स्वच्छ हो जाएगा अपना वातावरण।

    एकता गुप्ता

  • प्रकृति से प्रेम पर कविता

    प्रकृति से प्रेम पर कविता

    नदी

    कितने खूबसूरत होते बादल कितना खूबसूरत ये नीला आसमां मन को भाता है।
    रंग बदलती अपनी हर पल ये प्रकृति अपनी मन मोहित कर जाता है।

    कभी सूरज की लाली है कभी स्वेत चांदनी कभी हरी भरी हरियाली है।
    देख तेरा मन मोहित हो जाता प्रकृति तू प्रेम बरसाने वाली है।

    प्रकृति ही हम सब को मिल कर रहना करना प्रेम सिखाती है।
    हर सुख दुख की साथी होती साथ सदा निभाती है।

    है प्रकृति से प्रेम मुझे इसके हर एक कण से मैने कुछ न कुछ सीखा है।
    प्रकृति तेरी गोद में रहकर ही मैने इस दुनिया को अच्छे से देखा है।

    हम सबको तू जीवन देती है देती जल और ऊर्जा का भंडार।
    परोपकार की सिक्षा देती हमको लुटाती हम पर अपना प्यार।

    फल फूल छाया देती देती हो शीतल मन्द सुगंधित हवा।
    प्रकृति तेरी खूबसूरती जैसे हो कोई पवित्र सी दुआ।

    आओ हम सब प्रकृति से प्रेम करें करें उसका सम्मान।
    सेवा नित नित प्रकृति की करें गाएं उसकी गौरव गान।

    रीता प्रधान
    रायगढ़ छत्तीसगढ़

  • प्रकृति से खिलवाड़ का फल – महदीप जंघेल

    प्रकृति से खिलवाड़ का फल – महदीप जंघेल

    प्रकृति से खिलवाड़ का फल -महदीप जंघेल

    प्रकृति से खिलवाड़ का फल - महदीप जंघेल
    हसदेव जंगल


    विधा -कविता
    (विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस)

    बादल बरस रहा नही,
    जल बिन नयन सून।
    प्रकृति से खिलवाड़ का फल,
    रूठ गया मानसून।

    प्रकृति रूठ गई है हमसे,
    ले रही ब्याज और सूत।
    धरती दहक रही बिन जल,
    सब मानवीय करतूत।

    विकास की चाह में हमने,
    न जाने कितने पर्वत ढहाए ?
    जंगल,पर्वत का विनाश करके,
    न जाने कितने सड़क बनाए ?



    अनेको वृक्ष काटे हमने,
    कई पहाड़ को फोड़ डाले।
    सागर,सरिता,धरणी में दिए दखल,
    प्रकृति के सारे नियम तोड़ डाले।

    जीव-जंतु का नित आदर करें,
    तब पर्यावरण संतुलित हो पाएगा।
    गिरि,जल,वन,धरा का मान न हो ,
    तो जग मिट्टी में मिल जायेगा।

    आज प्यासी है धरती,
    कल जलजला जरूर आएगा।
    न सुधरे तो दुष्परिणाम हमे,
    ईश्वर जरूर दिखलायेगा।


    रचनाकार
    महदीप जंघेल,खैरागढ़
    राजनांदगांव(छग)

  • प्रकृति से खिलवाड़/बिगड़ता संतुलन-अशोक शर्मा

    प्रकृति से खिलवाड़/बिगड़ता संतुलन-अशोक शर्मा

    प्रकृति से खिलवाड़/बिगड़ता संतुलन

    प्रकृति से खिलवाड़/बिगड़ता संतुलन-अशोक शर्मा
    हसदेव जंगल

    बिना भेद भाव देखो,
    सबको गले लागती है।
    धूप छाँव वर्षा नमीं,
    सबको ही पहुँचाती है।

    हम जिसकी आगोश में पलते,
    वह है मेरी जीवनदाती।
    सुखमय स्वस्थ जीवन देने की,
    बस एक ही है यह थाती।

    जैसे जैसे नर बुद्धि बढ़ी,
    जनसंख्या होती गयी भारी।
    शहरीकरण के खातिर हमने,
    चला दी वृक्षों पर आरी।

    नदियों को नहीं छोड़े हम,
    गंदे मल भी बहाया।
    मिला रसायन मिट्टी में भी,
    इसको विषाक्त बनाया।

    छेड़ छाड़ प्रकृति को भाई,
    बुद्धिमता खूब दिखाई।
    नहीं रही अब स्वस्थ धरा,
    और जान जोखिम में आई।

    बिगड़ रहा संतुलन सबका,
    चाहे जल हो मृदा कहीं।
    ऋतु मौसम मानवता बिगड़ी,
    शुद्ध वायु अब नहीं रही।

    ऐसे रहे गर कर्म हमारे,
    भौतिकता की होड़ में।
    भटक जाएंगे एक दिन बिल्कुल,
    कदम तम पथ की मोड़ में।

    हर जीव हो स्वस्थ धरा पर,
    दया प्रेम मानवता लिए।
    करो विकास है जरूरी,
    बिना प्रकृति से खिलवाड़ किये।



    ★★★★★★★★★★★
    अशोक शर्मा, कुशीनगर,उ.प्र.
    ★★★★★★★★★★★