Tag: बाबूराम सिंह की कविता हिंदी में

  • दीपक सा जलता गुरू

    शिक्षक दिवस
    शिक्षक दिवस

    दीपक सा जलता गुरू

    दीपक सा जलता गुरू,सबके हित जग जान।
    गुरू से हीं पाते सभी, सरस विद्या गुण ज्ञान।।

    जग में गुरु सिरमौर है,तम गम हरे गुमान।
    भर आलोक जन-मन सदा ,देते है मुस्कान।।

    निर्झर सा निर्मल गुरू ,मन का होता साफ।
    शुचिता का छोड़े सदा ,सभी के उपर छाप।।

    महिमाअनूठा गुरु की,अग-जग सदा महान।
    चरणों में गुरू के झुकें,आ करके भगवान।।

    आदर सेवा में रखों ,प्रेम श्रध्दा विश्वास।
    सिखो ज्ञान गुरुसे सदा,ले मन उज्वल आश।।

    प्रगति करो आगे बढ़ो ,गढ़ो अपना इतिहास।
    चलो सदा रूको नहीं ,मत हो कभी निराश।।

    गुरू ज्ञान की श्रोत महा ,मोक्ष मंत्र गुरु ज्ञान।
    जो इससे वंचित रहा ,जग में वहीं नादान।।

    जो ज्ञान गुरु गंगा में ,करता सदा नहान।
    गुणी चतुर नागर वहीं ,कहते सभी सुजान।।

    गुरु बिना नहीं हो सका ,कोई भव से पार।
    गुरू चरण लवलीन हो, इसपर करो विचार।।

    गुरु जगतकी शानशुचि,जस शम्भु कृष्णराम।
    नमन करें पद की सदा ,नित कवि बाबूराम।।

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    बाबूराम सिंह कवि,गोपालगंज,बिहार
    मोबाइल नम्बर-9572105032
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  • मंगल मूर्ति गजानना गणेश पर दोहे

    मंगल मूर्ति गजानना गणेश पर दोहे

    गणपति को विघ्ननाशक, बुद्धिदाता माना जाता है। कोई भी कार्य ठीक ढंग से सम्पन्न करने के लिए उसके प्रारम्भ में गणपति का पूजन किया जाता है।

    भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का दिन “गणेश चतुर्थी” के नाम से जाना जाता हैं। इसे “विनायक चतुर्थी” भी कहते हैं । महाराष्ट्र में यह उत्सव सर्वाधिक लोक प्रिय हैं। घर-घर में लोग गणपति की मूर्ति लाकर उसकी पूजा करते हैं।

    गणेश वंदना
    गणेश वंदना

    मंगल मूर्ति गजानना

    मंगल रूप गजानना ,श्रीगणपति भगवान।
    सेवा सिध्द सुमंगलम ,देहु दया गुणगान।।
    मानव धर्म सुकर्म रत ,चलूँ भोर की ओर।
    गिरिजा पुत्र गरिमामय,करहु कृपाकी कोर।।

    अमंगलकर हरण सदा,मंगल करते बरसात।
    वरदहस्त सु-वरदायक,सरपर रख दो हाथ।।
    त्याग बुरा विकर्म सभी ,धरूं धर्म पर पांव।
    भव सागर से किजीए, पार हमारी नाव।।

    नाशक तमअरू विघ्नके ,देहु सरस आलोक।
    भूल भरम मम मेट कर,सदा निवारहु शोक।।
    प्रथम विनायक पूज्य हैं, देवन में अगुआन।
    देहु दयाकर दरस हरि,शुभदा सजग महान।।

    लोभ मोह का कीजिए, हे लम्बोदर नाश।
    देश प्रेम सु- ओत -प्रोत ,बढ़े प्रेम विश्वास।।
    हे गणनायक गजानन ,गणपति गूढ गणेश।
    उर के मध्य विराजिए , देहु दिव्य संदेश।।

    काव्य कला शुचि कौशलम्,मिले हर्ष उत्थान।
    जन जीवन जग जीवका,जिससे हो कल्यान।।
    कृपासिन्धु यशखान हो,सत्य शांति शुभधाम।
    भक्ति शक्ति की चाह है, धुर कवि बाबूराम।।


    बाबूराम सिंह कवि
    बडका खुटहाँ, विजयीपुर
    गोपालगंज (बिहार)841508

  • बदलते रिश्ते पर दोहा

    बदलते रिश्ते पर दोहा

    बदलते रिश्ते

    दिन-दिन होता जा रहा,रिश्तों में बदलाव।
    प्यार रोज ही घट रहा ,दिखता हृदय दुराव।।

    नही लिहाज न शर्म है ,पिता पुत्र के बीच।
    माँ बेटी सम्बन्ध भी , निभे मुट्ठियाँ भींच।।

    पती- पत्नी सम्बन्ध भी ,रहते डाँवाडोल।
    आँखों में आँसू सदा , कहे कहानी बोल।।

    सास-बहू सम्बन्ध तो ,दो जोड़ो की सौत।
    छल कपट बस चाह रहे,इक दूजे की मौत।।

    हित-मित बन्धुभाव सभी,का बदला है रूप।
    रिश्तों के बदलाव से ,जीवन में भव कूप।।

    रिश्तों के बदलाव ही , देता कष्ट अपार।
    जिससे दुःखित हो रहा,देश गाँव परिवार।।

    प्रभु प्रदत रिश्ते जगमें ,हैं अतिशय अनमोल।
    रिश्तोंमध्य मिठासरखो,मधुरवचन नितबोल।

    आपस में मिलकर सभी,इसपर करो विचार।
    भेद मिटे सम्बन्ध के , बढ़े परस्पर प्यार।।

    जन मानस निर्मल बनें , बढ़े प्रेम सद्भाव।
    दुश्मन भी आदर करें ,सुखद बनें स्वभाव।।

    निज सुधार जन-जन करें,धरें धर्म पर पांव।
    बाबुराम कवि दे रहे ,अपने नेक सुझाव।।

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    बाबूराम सिंह कवि
    बडका खुटहाँ,विजयीपुर
    गोपालगंज (बिहार)841508

  • सनातन धर्म पर कविता

    सनातन धर्म पर कविता

    राम
    राम

    देश को देखकर आगे बढ़े

    सनातनधर्म हिन्दी भारतवर्ष महानके लिये।
    देश को देखकर आगे बढ़े उत्थान के लिये।

    स्वदेश की रक्षा में जन-जन रहे तत्पर।
    सदभाव विश्वबंधुत्व का हो भाव परस्पर।
    काम क्रोध मोह लोभ मिटे दम्भ व मत्सर।
    रहे सब कोई एकत्व समता में अग्रशर।
    उद्धत रहे पल-पल प्रभु गुणगान के लिये।
    देश को देखकर आगे बढ़े उत्थान के लिये।

    बाल विवाह बन्द युवा विधवा विवाह हो।
    दहेज दुष्परिणाम का विध्वंस आह हो।
    मिल-बांटकर खानेकी जन मन में चाह हो।
    सर्वत्र मानव धर्म मानवता की राह हो।
    जागरूक रहें नेकी धर्म दान के लिये।
    देश को देखकर आगे बढ़े उत्थान के लिये।

    गोबध शराब नशा अविलम्ब बन्द हो।
    महंगाई बेरोजगारी का रफ्तार मंद हो।
    देश द्रोही दुराचारी नहीं स्वछन्द हो।
    परोपकार प्यारका सफल वसुधापर गंध हो।
    अबला अनाथ दीन दुखी मुस्कान के लिये।
    देश को देखकर आगे बढ़े उत्थान के लिये।

    चोरी घूसखोरी भ्रष्ट नेताओं का नाश हो।
    सुख शान्ति सफलतका सर्वत्र विकास हो।
    साक्षरता सुशिक्षा का घर-घर प्रकाश हो।
    परोपकार प्रभु भक्ति की तीव्र प्यास हो।
    कवि बाबूराम सत्य शुभ अभियान के लिये।
    देश को देखकर आगे बढ़े उत्थान के लिये।


    बाबूराम सिंह कवि,गोपालगंज,बिहार

  • बाबूराम सिंह की कुण्डलियां

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    बाबूराम सिंह की कुण्डलियां

    मानुष तनअनमोल अति,मधुरवचन नितबोल।
    रहो परस्पर प्यार से ,जन -मन मधुरस घोल।।
    जन-मन मधुरस घोल,जीवन सुज्योति जलेगा।
    होगा कर्म अकर्म , हृदय में पुण्य फलेगा।।
    कह बाबू कविराय ,कुचलो पाप अधर्म फन।
    पुनः मिले ना मिले,सोच लो यह मानुष तन।।
    *

    देना सुख से प्यार को ,यही परम सौभाग्य।
    क्षणभंगुर जीवन अहा ,जाग सके तो जाग।।
    जाग सके तो जाग, अन्त पछतावा होगा।
    तन निरोग का राज ,कर व्यायाम नित योगा।
    कह बाबू कविराय, सृष्टि की यह है सेना।
    भव से होगा पार ,प्यार सबको ही देना।।
    *

    सुधरेगा अग-जग तभी,मन जब निर्मल होय।
    भला -बुरा के फेर में, जात अकारथ दोय।।
    जात अकारथ दोय, जग जंजाल हो जाता।
    करता जैसा कर्म, जीव फल उसका पाता।।
    कह बाबू कविराय , दुराव से ही डरेगा।
    जग में निश्चित मान ,वही मानव सुधरेगा।
    *

    सर्वोपरि परमार्थ है, सरस सुखद जग जान।
    यही स्वर्ग सोपान सुचि ,अग-जग में पहचान।
    अग -जग में पहचान, मनुष्य परमार्थ करना।
    जीवन लक्ष्य महान,ध्यान प्रभु जी का धरना।।
    कह बाबू कविराय, करो कुछ भी तज स्वार्थ।
    हर पल जप हरि नाम, तभी होगा परमार्थ।।

    बाबूराम सिंह कवि
    बडका खुटहाँ, विजयीपुर
    गोपालगंज(बिहार)841508
    मो॰ नं॰ – 9572105032