यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर ० बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .
मौत का कुछ तो इंतज़ाम करें, नेकियाँ थोड़ी अपने नाम करें। कुछ सलीका दिखा मिलें पहले, बात लोगों से फिर तमाम करें। सर पे औलाद को न इतना चढ़ा, खाना पीना तलक हराम करें। दिल में सच्ची रखें मुहब्बत जो, महफिलों में न इश्क़ आम करें। वक़्त फिर लौट के न आये कभी, चाहे जितना भी ताम झाम करें। या खुदा सरफिरों से तू ही बचा, रोज हड़तालें, चक्का जाम करें। पाँच वर्षों तलक तो सुध ली नहीं, कैसे अब उनको हम सलाम करें। खा गये देश लूट नेताजी, आप अब और कोई काम करें। आज तक जो न कर सका था ‘नमन’, काम वो उसके ये कलाम करें। बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ तिनसुकिया कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद
सद्गुरु-महिमा न्यारी, जग का भेद खोल दे। वाणी है इतनी प्यारी, कानों में रस घोल दे।। गुरु से प्राप्त की शिक्षा, संशय दूर भागते। पाये जो गुरु से दीक्षा, उसके भाग्य जागते।। गुरु-चरण को धोके, करो रोज उपासना। ध्यान में उनके खोकेेे, त्यागो समस्त वासना।। गुरु-द्रोही नहीं होना, गुरु आज्ञा न टालना। गुरु-विश्वास का खोना, जग-सन्ताप पालना।। गुरु की गरिमा भारी, आशीर्वाद प्रताड़ना। हरती विपदा सारी, मीठी मधुर ताड़ना।।
अनुष्टुप् छंद (विधान) यह छन्द अर्धसमवृत्त है । इस के प्रत्येक चरण में आठ वर्ण होते हैं । पहले चार वर्ण किसी भी मात्रा के हो सकते हैं । पाँचवाँ लघु और छठा वर्ण सदैव गुरु होता है । सम चरणों में सातवाँ वर्ण ह्रस्व और विषम चरणों में गुरु होता है। (1) × × × × । ऽ ऽ ऽ, (2) × × × × । ऽ । ऽ (3) × × × × । ऽ ऽ ऽ, (4) × × × × । ऽ । ऽ
उपरोक्त वर्ण विन्यास के अनुसार चार चरणों का एक छंद होता है। सम चरण (2, 4) समतुकांत होने चाहिए। रोचकता बढाने के लिए चाहें तो विषम (1, 3) भी समतुकांत कर सकते हैं पर आवश्यक नहीं।
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ तिनसुकिया कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद
दहके झूम पलाश सब, रतनारे हों आज। मानो खेलन फाग को, आया है ऋतुराज। आया है ऋतुराज, चाव में मोद मनाता। संग खेलने फाग, वधू सी प्रकृति सजाता। लता वृक्ष सब आज, नये पल्लव पा महके। लख बसन्त का साज, हृदय रसिकों के दहके।। शाखा सब कचनार की, लगती कंटक जाल। फागुन की मनुहार में, हुई फूल के लाल। हुई फूल के लाल, बैंगनी और गुलाबी। आया देख बसंत, छटा भी हुई शराबी। ‘बासुदेव’ है मग्न, रूप जिसने यह चाखा। आमों की हर एक, लदी बौरों से शाखा।। हर पतझड़ के बाद में, आती सदा बहार। परिवर्तन पर जग टिका, हँस के कर स्वीकार। हँस के कर स्वीकार, शुष्क पतझड़ की ज्वाला। चाहो सुख-रस-धार, पियो दुख का विष-प्याला। कहे ‘बासु’ समझाय, देत शिक्षा हर तरुवर। सेवा कर निष्काम, जगत में सब के दुख हर।। कागज की सी पंखुड़ी, संख्या बहुल पलास। शोभा सभी दिखावटी, थोड़ी भी न सुवास। थोड़ी भी न सुवास, वृक्ष पे पूरे छाते। झड़ के यूँ ही व्यर्थ, पैर से कुचले जाते। झूठी शोभा ओढ़, बने बैठे हो दिग्गज। करना चाहो नाम, भरो सार्थक लिख कागज।।
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ तिनसुकिया कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद
(मुज़तस मुसम्मन मखबून) बना है बोझ ये जीवन कदम थमे थमे से हैं, कमर दी तोड़ गरीबी बदन झुके झुके से हैं। लिखा न एक निवाला नसीब हाय ये कैसा, सहन ये भूख न होती उदर दबे दबे से हैं। पड़े दिखाई नहीं अब कहीं भी आस की किरणें, गगन में आँख गड़ाए नयन थके थके से हैं। मिली सदा हमें नफरत करे जलील जमाना, हथेली कान पे रखते वचन चुभे चुभे से हैं। दिखी कभी न बहारें मिले सदा हमें पतझड़, मगर हमारे मसीहा कमल खिले खिले से हैं। सताए भूख तो निकले कराह दिल से हमारे, नया न कुछ जो सुनें हम कथन सुने सुने से हैं। सदा ही देखते आए ये सब्ज बाग घनेरे, ‘नमन’ तुझे है सियासत सपन बुझे बुझे से हैं।
विश्व जल दिवस 22 मार्च को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य विश्व के सभी देशों में स्वच्छ एवं सुरक्षित जल की उपलब्धता सुनिश्चित करवाना है साथ ही जल संरक्षण के महत्व पर भी ध्यान केंद्रित करना है।
जल संकट पर कविता
पानी मत बर्बाद कर , बूँद – बूँद अनमोल | प्यासे ही जो मर गये , पूँछो उनसे मोल || 1 ||
अगली पीढ़ी चैन से , अगर चाहते आप | शुरू करो जल संचयन , मिट जाये सन्ताप || 2 ||
पानी – पानी हो गया , बोतल पानी देख | रुपयों जैसा मत बहा , अभी सुधारो रेख || 3 ||
जल से कल है दोस्तो , जल से सकल जहान | जल का जग में जलजला , जल से अन्न किसान || 4 ||
वर्षा जल संचय करो , सदन बनाओ हौज | जल स्तर बढ़ता रहे , सभी करें फिर मौज || 5 ||
जल को दूषित गर किया , मर जायें बेमौत | ‘माधव’ वैसा हाल हो , घर लाये ज्यों सौत || 6 ||
जल जीवन आधार है , और जगत का सार | ‘माधव’ पानी के बिना , नहीं तीज – त्योहार || 7 ||
जल से वन – उपवन भले , भ्रमर करें गुलजार | जल बिन सूना ही रहे , धरा हरा श्रंगार || 8 ||
पानी से घोड़ा भला , पानी से इंसान | पानी से नारी चले , पानी से ही पान || 9 ||
नीरद , नीरधि नीर है , नीरज नीर सुजान | ‘माधव’ जन्मा नीर से , जान नीर से जान || 10 ||
#नारी = स्त्री , नाड़ी , हल #जान = प्राण , समझना #रेख = लाइन , कर्म #जलजला – प्रभाव , महत्व
#सन्तोष कुमार प्रजापति माधव
जल बिना कल नहीं
जल से मिले सुख समृद्धि, जल ही जीवन का आधार। जल बिना कल नही, बिना इसके जग हाहाकार।
जल से हरी-भरी ये दुनिया, जल ही है जीवन का द्वार। जल बिना ये जग सूना, वसुंधरा का करे श्रृंगार।
पर्यावरण दुरुस्त करे, विश्व पर करे उपकार। नीर बिना प्राणी का जीवन, चल पड़े मृत्यु के द्वार।
जल,भूख प्यास मिटाए, जीव -जंतु के प्राण बचाए। सूखी धरणी की ताप हरे, प्यासी वसुधा पर प्रेम लुटाए।
वर्षा जल का संचय करके, जल का हम सदुपयोग करें। भावी पीढ़ी के लिए बचाकर, अमृत -सा उपभोग करें।
जल ही अमृत जल ही जीवन, दुरुपयोग से होगा अनर्थ। नीर बिना संसार की, कल्पना करना होगा व्यर्थ ।
अतः जल बचाएं,उसका सदुपयोग करें।जल है तो कल है।
रचनाकार -महदीप जंघेल निवास -खमतराई, खैरागढ़
जल संकट बनेगा-आझाद अशरफ माद्रे
गहरा रहा पानी का संकट, अब तो चिंता करनी होगी।
ध्यान अगरचे अब ना दिया, सबको कीमत भरनी होगी।
ये भी जंग ही है अस्तित्व की, जो मिलकर हमें लड़नी होगी।
छोड़ उपभोगी मानसिकता को, डोर समझदारी की धरनी होगी।
आनेवाली पीढ़ी जवाब मांगेगी, उसकी तैयारी हमें करनी होगी।
आज़ाद भी होगा इसमें शामिल, अब ज़िम्मेदारी तय करनी होगी।
आझाद अशरफ माद्रे गांव – चिपळूण, महाराष्ट्र
जल संकट पर रचना
सरिता दूषित हो रही, व्यथा जीव की अनकही, संकट की भारी घड़ी।
नीर-स्रोत कम हो रहे, कैसे खेती ये सहे, आज समस्या ये बड़ी।
तरसै सब प्राणी नमी, पानी की भारी कमी, मुँह बाये है अब खड़ी।
पर्यावरण उदास है, वन का भारी ह्रास है, भावी विपदा की झड़ी।
जल-संचय पर नीति नहिं, इससे कुछ भी प्रीति नहिं, सबको अपनी ही पड़ी।
चेते यदि हम अब नहीं, ठौर हमें ना तब कहीं, दुःखों की आगे कड़ी।
नहीं भरोसा अब करें, जल-संरक्षण सब करें, सरकारें सारी सड़ी।
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ तिनसुकिया
जल संकट
संकट होगा नीर बिन, बसते इसमें प्राण । बूंद बूंद की त्रासदी , देंगे खुद को त्राण ॥ देंगे खुद को त्राण , चिंतन अभी से करना । सबसे बड़ा विधान, नीर का मूल्य समझना ॥ बिन जल के मधु मान,बने जीवन का झंझट। जतन करें फिर लाख,मिटाने जल का संकट॥
मधु सिंघी नागपुर ( महाराष्ट्र )
जल ही जीवन पर कविता
जीवन दायिनी जल, घट रहा पल पल, जल अमूल्य सम्पदा, सलिल बचाइए। सूखा पड़ा कूप ताल, गर्मी से सब बेहाल, कीमती है बूँद बूँद, व्यर्थ न बहाइए। वर्षा जल संचयन, अपनाएं जन जन, जल स्तर बढ़ाकर, संकट मिटाइए। जागरुक हो जाइए, कर्तव्य से न भागिए, पश्चाताप से पहले, विद्वता दिखाइए।
सुकमोती चौहान रुचि बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.
जल है तो है कल
धरती सुख गई ,आसमां सूख जाएगा। जीने के लिए जल, फिर कहां आएगा ? संकट छा जाए ,इससे पहले बदल जल है तो है कल जल है तो है कल बूंद बूंद जल होता है, मोती सा कीमती “ये रक्त है मेरी’, सदा से धरती माँ कहती हीरा मोती पैसे जीने के लिए नहीं जरूरी जल के बिना हर दौलत हो जाती अधुरी आने वाले कल के लिए , जा तू संभल जल है तो है कल जल है तो है कल “पेड़ लगाओ-जीवन पाओ” ये ध्येय हमारा हो। जल बचाने के लिए, हरियाली नदी किनारा हो। विनाश की शोर सुनो, “विकास विकास” ना चिल्लाओ। स्वार्थी इतना मत बनो कि कुल्हाड़ी अपने पैर चलाओ। जन को जगाने के लिए ,बना लो दल। जल है तो है कल जल है तो है कल
मनीभाई नवरत्न छत्तीसगढ़
पानी की मनमानी
पानी की क्या कहे कहानी जित देखो उत पानी पानी पानी करता है मनमानी ।।
भीतर पानी बाहर पानी सड़को पर भी पानी पानी दरिया उछल कूदते धावें तटबन्धों तक पानी पानी ।।
याद आ गयी सबको नानी पानी की क्या कहे कहानी पानी करता है मनमानी ।।
न सेतु न पेड़ रोकते न मानव न पशु टोकते प्राणी भागे राह खोजते पानी मे सब जान झोंकते
अपनी जिद अड़ गया पानी पानी की क्या कहे कहानी पानी करता है मनमानी ।।
उछल कूदती नदिया धावें लहरों पर लहरें हैं जावे एक दूजे से होड़ लगावे सागर से मिलने को धावें
नदिया झरने कहे कहानी पानी की क्या कहे कहानी पानी करता है मनमानी ।।
सुशीला जोशी मुजफ्फरनगर
जल पर दोहे
अब अविरल सरिता बही , निर्मल इसके धार । मूक अविचल बनी रही, सहती रहती वार ।।
वसुधा हरी-भरी रहे, बहता स्वच्छ जलधार । जल की शुद्धता बनी रहे, यही अच्छे आसार ।।
नदियाँ है संजीवनी, रखे सब उसे साफ । जो करे गंदगी वहाँ, नहीं करें अब माफ ।।
जल प्रदूषित नहीं करो, जीवन का है अंग । स्वच्छ निर्मल पावन रहे, बदले नाही रंग ।।
अनिता मंदिलवार सपना
जल ही जीवन है - अकिल खान ( जल संरक्षण कविता)
जल में मत डालो मल, फिर कैसे खिलेगा कमल। वृक्षों की बंद करो कटाई, यही शुद्ध जल का हल। जल है प्रलय, जल से होता निर्मल धरा गगन है । करेंगे अब जल संरक्षण ,क्योंकि जल ही जीवन है।
कल – कारखानों के अपद्रव्य , मानव की मनमानी, करते परीक्षण – सागर में, होती पर्यावरण को हानि। जल से हैं खेत – खलिहान – वन, मुस्कुराते चमन है, करेंगे अब जल संरक्षण ,क्योंकि जल ही जीवन है।
बढ़ती आबादी से निर्मित हो गये विषैले नदी नाला, कट गए कई वन बगीचे,हो गया जल का मुँह काला। उठो जल बचाना अभियान है, कहता अकिल मन है, करेंगे अब जल संरक्षण ,क्योंकि जल ही जीवन है।
भरेंगे तालाब-कुँआ,और करेंगे बाँध में एकत्र पानी, हटाकर अपशिष्ट, खत्म करेंगे जल संकट की कहानी। नदी झरने झील तालाब सुखे, बने मरुस्थल निर्जन है, करेंगे अब जल संरक्षण ,क्योंकि जल ही जीवन है।
मानव अपना भविष्य बचा लो कहता है अब ये जल, जल संकट होगी भयावह ,जानो आज नहीं तो कल। विश्व एकता सुलझाएगी इसको, कहता अकिल मन है, करेंगे अब जल संरक्षण ,क्योंकि जल ही जीवन है।
अकिल खान रायगढ़
विश्व जल दिवस की कविता
जल है जीवन का आधार, करता सबका है बंटाधार। जल से धरती परती सजती, मिले ना जल हो जन लाचार।
जल जीवों की काया है, दो तिहाई भाग में छाया है। मृदु,खारे, रंगीन कहीं बन, अनेक रूपों में पाया है।
जल बिन तरु सूखे डगरी का, छाया मिटती उस नगरी का। बनकर गंगाजल है धोता, मैल पुरानी सब गगरी का।
अंतिम जब जीवन की बेला, खत्म हो रही जीवन मेला। तब दो बूंद पिलाकर जल ही, मौत से करते ठेलम ठेला।
जल इतना अहम है भाई, सब कहते हैं गंगा माई। समझ ना पाये होके अंधे, जल में इतनी मैल गिराई।
दूषित जलाशय फाँसी केफंदे, हमारे विकास ने किये हैं गंदे। खूब फलते फूलते हैं देखो, इस धारा पर पानी के धंधे।
जल की बूंद बूँद का संचय करना होगा, हो ना जाये कहीं जल संकट डरना होगा। यदि नहीं सम्भला धरा का हर जीव जन, तो जल बिन मछली जैसे मरना होगा।