हिन्दी वर्णमाला पर कविता- दुर्गेश मेघवाल
अ से अनार ,आ से आम ,
पढ़ लिख कर करना है नाम।
इ से इमली , ई से ईख ,
ले लो ज्ञान की पहली सीख ।
उ से उल्लू ,ऊ से ऊन,
हम सबको पढ़ने की धुन ।
ऋ से ऋषि की आ गई बारी,
पढ़नी है किताबें सारी।
ए से एडी , ऐ से ऐनक ,
पढ़ने से जीवन में रौनक ।
ओ से ओखली , औ से औरत ,
पढ़ने से मिलती है शोहरत ।
अं से अंगूर , दो बिंदी का अः ,
स्वर हो गए पूरे हः हः ।
क से कबूतर , ख से खरगोश ,
पढ़ लिखकर जीवन में जोश ।
ग से गमला , घ से घड़ी ,
अभ्यास करें हम घड़ी घड़ी ।
ङ खाली आगे अब आए ,
आगे की यह राह दिखाए ।
च से चरखा , छ से छतरी ,
देश के है हम सच्चे प्रहरी ।
ज से जहाज , झ से झंडा ,
ऊँचा रहे सदा तिरंगा ।
ञ खाली आगे अब आता ,
अभी न रुकना हमें सिखाता ।
ट से टमाटर , ठ से ठठेरा ,
देखो समय कभी न ठहरा ।
ड से डमरू , ढ से ढक्कन ,
समय के साथ हम बढ़ाये कदम ।
ण खाली अब हमें सिखाए ,
जीवन खाली नहीँ है भाई।
त से तख्ती , थ से थन ,
शिक्षा ही है सच्चा धन ।
द से दवात , ध से धनुष ,
शिक्षा से हम बनें मनुष ।
न से नल , प से पतंग ,
भारत-जन सब रहें संग-संग ।
फ से फल , ब से बतख ,
ज्ञान-मान से जग को परख ।
भ से भालू , म से मछली ,
शिक्षा है जीवन में भली ।
य से यज्ञ , र से रथ ,
पढ़ लिखकर सब बनों समर्थ ।
ल से लट्टू , व से वकील ,
ज्ञान से सबका जीतो दिल ।
श से शलजम , ष से षट्कोण,
खुलकर बोलो तोड़ो मौन ।
स से सपेरा , ह से हल ,
श्रम से ही मिलता मीठा फल ।
क्ष से क्षत्रिय हमें यही सिखाए ,
दुःख में कभी नहीँ घबराएँ ।
त्र से त्रिशूल , ज्ञ से ज्ञानी ,
बच्चों ‘अजस्र ‘ की यही जुबानी ।
✍✍ *डी कुमार–अजस्र(दुर्गेश मेघवाल,बून्दी/राज.)*
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यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर०दुर्गेश मेघवाल के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .
हिन्दी वर्णमाला पर कविता – दुर्गेश मेघवाल
क्यों करता हूँ कागज काले – डी कुमार–अजस्र
क्यों करता हूँ कागज काले..
क्यों करता हूं कागज काले …??
बैठा एक दिन सोच कर यूं ही ,
शब्दों को बस पकड़े और उछाले ।
आसमान यह कितना विस्तृत ..?
क्या इस पर लिख पाऊंगा ?
जर्रा हूं मैं इस माटी का,
माटी में मिल जाऊंगा।
फिर भी जाने कहां-कहां से ,
कौन्ध उतर सी आती है ..??
अक्षर का लेकर स्वरूप वही ,
कागज पर छा जाती है ।
लिखूं लिखूं मैं किस-किस की छवि को..??
सोच कर मन घबराए ।
वह बैठा है मेरे ही मन में ,
बस वही राह दिखाएं ।
कहता है वह और लिखता मैं हूं ,
क्यों ना समझे ये जग..??
पार तभी तो पाएगा ,
जब वह उतरेगा स्वमग ।
कुछ करने, मानवता के पण में ,
उसने मुझे चुना है ।
सुनो ना सुनो तुम जग वालों ,
मैंने तो यही सुना है ।
अखबारों के पृष्टों पर छा जाना,
मेरा इसमें ध्यान नहीं ।
सम्मान पन्नों के बोझ तले दब जाऊं ,
यह भी मेरा अरमान नहीं ।
कागज पर मैं छा जाना चाहूँ ।
जो दिल में है सब बताना चाहूँ ।
कागज की छोटी नाव बनाकर,
कलम से उसको मैं खेना चाहता हूँ ।
जो आवाजें दबी हुई आसपास में,
मैं उनकी ही बस कहना चाहता हूँ ।
बचपन की भूली हुई भक्ति ने ,
शक्ति ये दिखलाई है ।
उसने जो कुछ मुझे दिया था,
अब लौटाने की रुत आई है ।
तन में , मन में
या इस जग के, जन-जन में
बस रहता विश्वास है उसका ।
सच झूठ के संसार में ,
एक वास्तविक रूप है उसका।
है बहुत कुछ अभी जिंदगी और बन्दगी में उसकी ।
नेमत जो ‘अजस्र’ बनी रहे तो करता रहूं बस खिदमत उसकी ।
✍✍ *डी कुमार–अजस्र(दुर्गेश मेघवाल,बून्दी/राज.)*गणेश विदाई गीत – डी कुमार-अजस्र
गणपति को विघ्ननाशक, बुद्धिदाता माना जाता है। कोई भी कार्य ठीक ढंग से सम्पन्न करने के लिए उसके प्रारम्भ में गणपति का पूजन किया जाता है।
भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का दिन “गणेश चतुर्थी” के नाम से जाना जाता हैं। इसे “विनायक चतुर्थी” भी कहते हैं । महाराष्ट्र में यह उत्सव सर्वाधिक लोक प्रिय हैं। घर-घर में लोग गणपति की मूर्ति लाकर उसकी पूजा करते हैं।
गणेश विदाई गीत – डी कुमार-अजस्र
मूषक सवार हो के चले है गजानन ,
आज अपने भक्तों से विदा हो के ।
नाँचे और गाएँ ये भक्त मतवाले ,
गणपति की भक्ति में मगन हो के ।झांकी है मनुहार , करे मेरा दिल पुकार ।
रह जाऊँ इनमें ही आज खो के …..
मूषक सवार हो के चले है गजानन ,
आज अपने भक्तों से विदा हो के ।
नाँचे और गाएँ ये भक्त मतवाले ,
गणपति की भक्ति में मगन हो के ।डी जे (D J ) का होवे शोर ,देखो-देखो चहुँओर ।
कह दो ये दुनियां से कोई न रोके …..
मूषक सवार हो के चले है गजानन ,
आज अपने भक्तों से विदा हो के ।
नाँचे और गाएँ ये भक्त मतवाले ,
गणपति की भक्ति में मगन हो के ।कर के सब का उद्धार,दे के सबको अपना प्यार ।
देते हैं आशीष ये खुश हो के …..
मूषक सवार हो के चले है गजानन ,
आज अपने भक्तों से विदा हो के ।
नाँचे और गाएँ ये भक्त मतवाले ,
गणपति की भक्ति में मगन हो के ।आएंगे अगली बार ,वादा करते बार बार ।
जाते है गजानन अब विदा हो के ……
मूषक सवार हो के चले हैं गजानन ,
आज अपने भक्तों से विदा हो के ।
नाँचे और गाएँ ये भक्त मतवाले,
गणपति की भक्ति में मगन हो के ।
मूषक सवार हो के …..डी कुमार-अजस्र (दुर्गेश मेघवाल, बून्दी/राज.)
सर्व शक्ति का रूप है नारी /रचयिता:-डी कुमार–अजस्र
सर्व शक्ति का रूप है नारी /रचयिता:-डी कुमार–अजस्र
(स्त्री संघर्ष की अनन्त गाथा…)
सर्वशक्ति का रूप है नारी
काली तू ,दुर्गा लक्ष्मी भी तू ,शक्ति की रूपा तू पूजित है नारी ।1।
विद्या-वर पाने की चाह में ये जग ,बन गया धंवला का भी पुजारी ।2 ।
सती रूप में पूजी जाये फिर ,अबला क्यों समझे इसे संसारी ।3।
सृष्टि का हित अर्पण यों चित्त में नारी ने लिया जो बीज सुधारी ।4।
नारी ही ले गई नारी (डॉक्टर)के गेह तब, नारी ने नारी पे विपदा यों डारी ।5।
नारी ही नारी की कोख में आई, पीड़ा यह देखो है कितनी भारी ।6।
नारी ही नारी से अब यों कहे है ,मेरी ही कोख तू क्योंकर पधारी ।7।
पग न धरा धरती पर पहले ही, नारी को लगी ये कैसी बीमारी ।8।
कोख से ही उस लोक को भेजन को, कर तो रही ये दुनियां तयारी ।9।
कोख में सुनती है मन ही मन धुनती है ,जाऊँ न जाऊँ यह संशय भारी ।10।
दिन दिन कर यों मास गुजर गए ,आखिर तो होनी थी यह महि भारी ।11।
छायी मायूसी ,पड़ी थी उदासी, नारी की गोद में रोए अब नारी ।12।
नारी के आवन की फैली खबर जब ,आस पड़ोस में दुःख की फैलारी ।13।
आस बंधाये बस लल्ला की ,बन जाओ आज तो धीरनधारी ।14।
पिटती घसीटती हुई बड़ी तब, मन ही मन सोचे विपदा में नारी ।15।
नारी ही नारी से रोकर ये पूछे ,आई जन्म ले जग में क्यों नारी ।16।
नारी भी आखिर करे भी तो क्या ,नारी की दुश्मन हुई आज नारी ।17।
किससे कहे किसको माने अपना ,जननी लगे जननी से भी न्यारी ।18।
बांध रक्षा का सूत्र भाई के लेती है नारी रिश्तों से उधारी ।19।
बाबुल भी देता बस यों आशीष ,प्रीत निभावन,इस जग को तारी।20।
आस बंधाये खुद ही को मन ही मन ,आएगी कब ही तो मेरी भी बारी ।21।
पढ़ी लिखी जस तस करके तब ,नारी सुधारने की की जो तयारी ।22।
लुच्चे के रूप में जब कभी नर ने ,नारी किशोरी पर आँख जो डारी ।23।
लाज बचावन हित नारी के आ गए, बीच सभा में वो ही चक्रधारी ।24।
प्रेमी बने, गोपियाँ भी नचाई ,मीरा के देखो वो कृष्णमुरारी ।25।
ईश भी शक्ति को जान न पाया ,कैसे बचाये नारी से ही नारी ।26।
राह में पर्वत सागर खड़े कर ,जाल बिछा दिए नारी को नारी ।27।
पथ में झुकी न ,राह रुकी न, बढ़ती रही भल बिपदा थी भारी ।28।
किए प्रयास दिन हो भल रात ,आनी ही थी तो सफलता सारी ।29।
भेजा विधाता ने सोच समझ उसे ,तोड़न को इस जग की खुमारी ।30।
ऐंठा था बल बैठा था नर, नारी के बिन था वो बिन आधारी ।31।
आई नारी सम्भला घर निकेतन ,जोड़ी बना दी उसी के नुसारी ।32।
चहका घर आँगन बजे ढोल और घन आस पड़ोस खुसुर पुसुरारी ।33।
गुजरी चांदनी चार दिनन की ,नारी को हत हुई फिर नारी भारी।34।
पद गरिमा का , मान प्रणाम का ,जननी की देखो ये कारगुजारी।35।
पल पल यों गुजरे देते ताने ,जैसे कि घर बैठा हो दुश्मन भारी ।36।
करे षड्यंत्र जीतन को यों जंग, दण्ड और भेद (साम, दाम,दण्ड, भेद)बस बचा उधारी ।37।
सहती भी रहती ,मुख से न कुछ कहती, बाबुल की पग लगती अब भारी ।38।
पी का भी तो पपीहा ना बोले ‘श्रवण’ को भी तो बाण (बातों या तानों के)है मारी ।39।
वचन थे सात ,लिये भी थे संग संग ,लेकिन निबाहन को थी बस नारी ।40।
दिन दिन गुजरे इसी ऊहापोह में ,कर्मकांड अनवरत रहे जारी ।41।
पहुँची खबर बाबुल के घर भी तब, किया प्रयास गृहस्थ सुधारी ।42।
विपदा बढ़ी देखी जब बाबुल ने तो, राह दिखाई उसे तब सारी ।43।
लोपा ,गार्गी (भारत के इतिहास की विदुषी महिलाएँ)बन कर ही तू ,जग जीतन की कर सकती तयारी ।44।
झांसी की रानी और रजिया ने, जीता था जग, अब तेरी है बारी ।45।
नारी को नारी से ही लड़ना है फिर क्यों न जीतेगी आखिर को नारी ।46।
नर तो तब भी संग था नारी के नर तो अब भी संग ही है नारी ।47।
उठ जाग ,सम्भल ,हथियारन से काट, कुप्रथाओं की है बेड़ी सारी ।48।
बढ़ आगे थाम इंदिरा (प्रियदर्शिनी/नुई)कल्पना को, सुनीता (अंतरिक्ष यात्री )जोहे है बाट तिहारी ।49।
जीत तेरी भी आखिर है पक्की ,ठान लिया जो कर ली तयारी ।50।
खुद को खुद ही से लड़ना है री ,क्योंकर न जीतेगी तू तो प्यारी ।51।
मन से मिटा द्वेष नारी के प्रति ,लगा ले हिय तू नारी को नारी ।52।
बन इस जगरथ का दूसरा पहिया शक्तिरूपा तू ही तो है नारी ।53।
नारी ही नारी से यदि ना बढ़ेगी सृष्टि बढ़ेगी ये कैसे अगाड़ी ।54।
नारी को नारी ,दे यदि सम्बल, शक्ति महिला (महिला सशक्तिकरण)की हो जाये भारी।55।
नर भी जो पूरक है नारी का ,उस ही ईश्वर का है अवतारी ।56।
शक्ति के मग बल भक्ति के जग में ,वह क्यों रहे तेरे ही पिछारी ।57।
याद हमेशा अर्धांग (अर्धनारीश्वर शिव)को रखना, मंजिल आएगी पास तुम्हारी ।58।
बाग तू है बागबान है वो ,इस जग में देखो सब दिश हरयाली ।59।
घर परिवार महकेगा तेरा भी जब ,खुश्बू उड़ेगी सब दिशरारी ।60।
✍✍ *डी कुमार–अजस्र(दुर्गेश मेघवाल, बून्दी/राज)*
एक कदम चल -डी कुमार अजस्र(अमात्रिक काव्य)
एक कदम चल -डी कुमार अजस्र(अमात्रिक काव्य)
चल, एक कदम, एक कदम, एक कदम चल।
जम-जम कर , रख कदम , कर अब पहल।
रतन बन चम-चम , चमक कर उजल ।
नकल अब तजन कर , कर सब असल ।
रत जब करम पथ, पथ सब नवल ।
थक कर शयन , सब फल गए गल ।
चल, एक कदम,एक कदम,एक कदम चल ।
जम-जम कर रख कदम , कर अब पहल ।कण-कण खनन , जब कर-कर खरल ।
कर-कर गहन जतन , तब बन सफल ।
नयन भर सपन , कर फतह महल ।
श्रमकण* बरसत , तब उपजत फसल ।
*(*श्रमकण—पसीना)*
चल, एक कदम,एक कदम,एक कदम चल ।
जम-जम कर रख कदम , कर अब पहल ।भर-भर जब जल बहत जय जय तब कल*।
*(*कल—झरना)*
जलद घन बरसन , नदयन भर पल ।
अचरज सब कर सकत , नजरन बदल ।
नजर भर दरशन , यह सब जग मचल ।
चल, एक कदम,एक कदम,एक कदम चल ।
जम-जम कर रख कदम , कर अब पहल ।श्रमकण चमकत, तब भगवन सरल ।
जतन जब करतन , करतल* सब फल।
*(*करतल–हाथ)*
अमर पद पकड़न , हजम कर गरल*।
*(*गरल–जहर)*
दम पर करम *(कर्म)* , अब करम *(भाग्य)* बदल ।
चल, एक कदम,एक कदम,एक कदम चल ।
जम-जम कर रख कदम , कर अब पहल ।✍✍ *डी कुमार–अजस्र(दुर्गेश मेघवाल,बून्दी/राज.)*