दम्भ पर कविता – बाबूलालशर्मा *विज्ञ*

दम्भ पर कविता घाव ढाल बन रहे. स्वप्न साज बह गये।. पीत वर्ण पात हो. चूमते विरह गये।। काल के कपाल पर. बैठ गीत रच रहा. प्राण के अकाल कवि. सुकाल को पच रहा. सुन विनाश गान खगरोम की तरह गये।पीत वर्ण……….।। फूल शूल से लगेमीत भयभीत छंदरुक गये विकास नव. छा रहा प्राण द्वंद. … Read more

दीप पर कविता

दीप पर कविता

ओ दीप ! तुझे मन  टेर रहा है ।

प्यासे  मृग-सी  अँखियाँ  लेकर

पवन-पथिक को चिट्ठियाँ देकर

पथ   भटके   बंजारे   के   ज्यों

पल-पल   रस्ता   हेर   रहा   है ।

ओ दीप ! तुझे  मन  टेर रहा है ।

देख  प्राण  को  निपट अकेला

लगा   झूमने  दुख    का  मेला

बरसूँगा  नित  पलक-धरा  पर

आँसू    माला   फेर    रहा   है ।

ओ दीप ! तुझे  मन  टेर रहा है ।

तुझ बिन प्रियतम  घोर अँधेरा

कारागृह-सा     जीवन    मेरा

थका हुआ यह साँस का पंछी

कर   पर  दीप  उकेर  रहा  है ।

ओ दीप ! तुझे  मन  टेर रहा है ।

०००

अशोक दीप

जयपुर

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नौका पर कविता

नौका पर कविता मँझधारों में माँझी अटका,क्या तुम पार लगाओगी।जर्जर नौका गहन समंदर,सच बोलो कब आओगी। भावि समय संजोता माँझीवर्तमान की तज छाँयाअपनों की उन्नति हित भूलाजो अपनी जर्जर कायाक्या खोया, क्या पाया उसनेतुम ही तो बतलाओगी।जर्जर ………………. ।। भूल धरातल भौतिक सुविधाभूख प्यास निद्रा भूलारही होड़ बस पार उतरनाकल्पित फिर सुख का झूलाआशा रही … Read more

पंछी पर कविता

पंछी पर कविता यह,मन प्यासा,पंछी मेरानील गगन उड़ करे बसेरा ।पल मे देश विदेशों विचरण,कभी रुष्ट,पल मे अभिनंदन,*प्यासा पंछी, उड़ता मन।।* पल में अवध,परिक्रम करता,सरयू जल अंजुलि में भरता।पल में चित्र कूट जा पहुँचे,अनुसुइया के आश्रम पावन,*प्यासा पंछी, उड़ता मन।।* पल में शबरी आश्रम जाए,बेर,गुठलियाँ ढूँ ढे खाए।किष्किन्धा हनुमत से मिलकर,कपि संगत वह करे जतन,*प्यासा … Read more