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यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर ० मदन सिंह शेखावत के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • गुरू पर कुण्डलियां -मदन सिंह शेखावत

    महर्षि वेद व्यासजी का जन्म आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को ही हुआ था, इसलिए भारत के सब लोग इस पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं। जैसे ज्ञान सागर के रचयिता व्यास जी जैसे विद्वान् और ज्ञानी कहाँ मिलते हैं। व्यास जी ने उस युग में इन पवित्र वेदों की रचना की जब शिक्षा के नाम पर देश शून्य ही था। गुरु के रूप में उन्होंने संसार को जो ज्ञान दिया वह दिव्य है। उन्होंने ही वेदों का ‘ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद’ के रूप में विधिवत् वर्गीकरण किया। ये वेद हमारी संस्कृति की अमूल्य धरोहर हैं

    गुरू पर कुण्डलियां

    गुरु शिष्य
    आषाढ़ शुक्ल गुरु पूर्णिमा Ashadh Shukla Guru Poornima

    गुरू कुम्हार एक से,घड़ घड़ काडे खोट।
    सुन्दर रचना के लिए,करे चोट पर चोट।
    करे चोट पर चोट,शिष्य को खूब तपाये।
    नेकी पाठ पढाय ,सत्य की राह बताये।
    कहै मदन कविराय,बातपर कर अमल शुरू।
    होगा भव से पार, मिल जाये पूरा गुरू।।

    मदन सिंह शेखावत ढोढसर

  • गंगा की गरिमा रखे – मदन सिंह शेखावत

    गंगा की गरिमा रखे

    गंगा की गरिमा रखे,
                      रखना इसका मान।
    यही पावन पवित्र है,
                      विश्व  करे  सम्मान।

    गंगा  है  भागीरथी, 
                      करती   है  उद्धार ।
    मत इसको गन्दा करे,
                      भव से  लगाय पार।

    मत डाले तू गन्दगी, 
                      गंगा की रख  शान।
    भव से है यह तारती,
                      रख ले मन मे मान।

    गंगा हरसी पाप को,
                     करले  अब  उद्धार।
    गंगा के गुणगान कर,
                    महिमा   अपरम्पार ।

    गंगा अमृत समान है,
                    जन जन मे  विश्वास।
    पर्यावरण बिगाङ के,
                    क्यो खोये यह आस।

    गंगा जीवन दायनी,
                  अन्न धन भरे भण्डार।
    पीने को जल देय कर,
                   जीवन   देय   उभार।।

    मदन सिंह शेखावत ढोढसर 

  • हाथ जोड़कर विनय करू माँ

    हाथ जोड़कर विनय करू माँ

    मंगल करनी भव दुख हरणी।
    माता मम् भव   सागर तरणी।

    हाथ जोड़कर विनय करू माँ।
    अर्ज दास की भी सुन लो माॅ  ।

    निस दिन ध्यान करू मै मैया।
    तुम  हो  मेरी  नाव  खिवैया।

    तुम बिन कौन सुने अब मैया।
    मँझधारों    मे  फसती    नैया।

    गहरा  सागर  नाव    पुरानी।
    इसको  मैया   पार  लगानी।

    मदन सिंह शेखावत