महर्षि वेद व्यासजी का जन्म आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को ही हुआ था, इसलिए भारत के सब लोग इस पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं। जैसे ज्ञान सागर के रचयिता व्यास जी जैसे विद्वान् और ज्ञानी कहाँ मिलते हैं। व्यास जी ने उस युग में इन पवित्र वेदों की रचना की जब शिक्षा के नाम पर देश शून्य ही था। गुरु के रूप में उन्होंने संसार को जो ज्ञान दिया वह दिव्य है। उन्होंने ही वेदों का ‘ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद’ के रूप में विधिवत् वर्गीकरण किया। ये वेद हमारी संस्कृति की अमूल्य धरोहर हैं
गुरू पर कुण्डलियां
गुरू कुम्हार एक से,घड़ घड़ काडे खोट।
सुन्दर रचना के लिए,करे चोट पर चोट।
करे चोट पर चोट,शिष्य को खूब तपाये।
नेकी पाठ पढाय ,सत्य की राह बताये।
कहै मदन कविराय,बातपर कर अमल शुरू।
होगा भव से पार, मिल जाये पूरा गुरू।।
मदन सिंह शेखावत ढोढसर