मंजूर नहीं पर कविता
मंजूर नहीं पर कविता संघर्षों में ही काटूंगा मैं अपना सारा जीवन क्योंकि मुझे किसी तरह से भी किसी रूप में भी किसी कारण वश भी कदम दर कदम पर समझौता करना मुझे मंजूर नहीं।। Post Views: 90

हिंदी कविता संग्रह

हिंदी कविता संग्रह
यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर मनोज बाथरे के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .
मंजूर नहीं पर कविता संघर्षों में ही काटूंगा मैं अपना सारा जीवन क्योंकि मुझे किसी तरह से भी किसी रूप में भी किसी कारण वश भी कदम दर कदम पर समझौता करना मुझे मंजूर नहीं।। Post Views: 90
हकीकतों पर कविता परिवर्तन के इसदौर मेंमैं एक ऐसे मोड़पर खड़ा हूंजहां से मुझे एकनिर्णायक निर्णयलेना हैपरंतुकुछ निर्णयलेने के पूर्वउन हकीकतों सेभी मुंह मोड़नामुझे मंजूर नहीं।।। Post Views: 101
आकृति की तलाश पर कविता मुझे कहते हैंजमाने वालेएक निराकारप्राणीपर/मैं क्या करूंमुझे तोमेरीआकृति की तलाश है Post Views: 75
शबनम पर कविता शबनम की चमकहमारे तुम्हारेमधुर रिश्तों की गंधलिए होती हैमानो तोये सच हैगर न मानों तोये ही शबनमपानी का कतरामात्र होती है।।। Post Views: 177
संघर्ष पर कविता -संघर्ष का प्रतिफल मुझे मेरीसंघर्ष गाथा सेबेहद लगाव हैप्यार हैवोइसलिए किमैं वर्तमान मेंजो कुछ भी हूंवोमेरे संघर्ष काही प्रतिफल हैसंघर्ष के कारण हीमुझे समाज मेंशान से जीने काहक प्राप्त हुआ।। मनोज बाथरे Post Views: 112
उम्मीद के दिये पर कविता अपनेपन मेंखोये हुएहम खोजते हैंउम्मीद के दियेजो हमेंआशारूपीउजालेके साथ हमेंएक नई रोशनीदे सकेंअपने सुखदजीवन के लिए Post Views: 87
संबंध पर कविता संबंध सिर्फहमें अपनों सेजोड़ने वालीकड़ी कानाम नहीं हैये तोवो संबंध हैजो सदैवहमारे बीचएक सेतु सा कार्यकरता हैअनेक संबंधों के लिए।। Post Views: 68
उपदेश पर कविता सोच रहें हैं किहम कुछ उपदेशदे सबकोपर कैसेक्या हमारा उपदेशकोई शिरोधार्य करेगाक्योंकि पर उपदेशदेने से पहलेहमें स्वयं उनकोअपनाना होगातब कहीं जाकरउपदेश कीसार्थकता सफल होगी।। Post Views: 101
धीरे धीरे पर कविता बिखरती हुई जिंदगीवीरान सी राहेंसमय गुजर रहा हैधीरे धीरेहम अपने अस्तित्व कीतलाश मेंनिकल पड़े उनराहों परमन विचलित हैउदास हैफिर भी कर रहे हैंमंजिलें तलाश हमधीरे धीरे Post Views: 105
मजबूरी पर कविता मजबूरी इंसान कोक्या से क्याबना देती हैकही ऊपर उठाती हैतो कहीझुका देती हैइन्ही के चलतेइंसान अपनीमजबूरी के चलतेएकदम हताश होजाता हैपर इससे निकलनेके लिएप्रयास बेहद जरूरी हैमनोज बाथरे चीचली Post Views: 94