बेपरवाह लोग पर कविता

बेपरवाह लोग पर कविता ये उन लोगों की बातें हैंजो लॉकडाउन,कर्फ़्यू, धारा-144जैसे बंदिशों से बिलकुल बेपरवाह हैं जो हजारों की तादात मेंकभी आनन्द विहार बस स्टेंड दिल्लीमेंयकायक जुट जाते हैंतो…

काम बोलता है पर कविता

काम बोलता है पर कविता वह बचपन से हीकुछ करने से पहलेअपने आसपास के लोगों सेबार-बार पूछता था...यह कर लूं ? ...वह कर लूं ? लोग उन्हें हर बारचुप करा…

मानसिकता पर कविता

मानसिकता पर कविता आज सब कुछ बदल चुका हैमसलन खान-पान,वेषभूषा,रहन-सहन औरकुछ-कुछ भाषा और बोली भी आज समाज की पुरानी विसंगतियां, पुराने अंधविश्वासऔर पुरानी रूढ़ियाँलगभग गुज़रे ज़माने की बात हो गई…

मगर पर कविता

मगर पर कविता जब तक तारीफ़ करता हूँउनका होता हूँयदि विरोध मेंएक शब्द भी कहूँउनके गद्दारों में शुमार होता हूँ साम्राज्यवादी चमचेमुझे समझाते हैंबंदूक की नोक परअबे! तेरे समझ में…

जंगल पर कविता

जंगल पर कविता अब धीरे-धीरे सारा शहरशहर से निकलकर घुसते जा रहा है जंगल मेंआखिर उसे रोकेगा कौन साथी...?शहर पूरे जंगल को निग़ल जाएगा एक दिनआने वाली हमारी पीढ़ी हमसे…

नाम पर कविता

नाम पर कविता अक़्सर मुझेमेरे कानों मेंसुनाई दे जाती हैमेरे नाम से पुकारती हुईमेरी दिवंगत माँ की आवाज़और घर के दूसरे कमरे में सो रहेबाबूजी की पुकार माँ की पुकार…

मित्रों तोड़ो मौन पर कविता

मित्रों तोड़ो मौन पर कविता जब-जब निर्वात-मौनसम्प्रेषणहीन होकरपड़ा होता है लाचारतब-तबवाणी का स्वरमाध्यम बनकरजोड़ता हैदिलों के दो पुलों को जब-जब बर्फ़ीला-मौनजम जाता हैमाइनस डिग्री परतब-तबबर्फ़-सी जमी मौन के कणों कोअपनी ऊष्मा…

थूकना और चाटना पर कविता

थूकना और चाटना पर कविता उसके मुँह के सारे थूंकअब सूख चुके हैं ढूंढ-ढूंढकर वहपहले थूंके हुए जगहों पर जाकरउन थूंको को चाटकरफिर से गीला कर रहा है अपना मुँह…

कितना कुछ बदल गया इन दिनों…

कितना कुछ बदल गया इन दिनों... देशभक्ति कभी इतनी आसान न थीसीमा पर लड़ने की जरूरत नहींघर की चार दीवारी सीमा मेंबाहर जाने से ख़ुद को रोके रहना देशभक्ति हो…

आलसी पर कविता

आलसी पर कविता मेरे अकेले में भी कोई आसपास होता है।तुम नहीं हो पर तुम्हारा आभास  होता है।1। बिखर ही जाता है चाहे कितना भी संवारोबस खेलते  रहो जीवन एक ताश होता है।2। जरूरतमंद…