हाइकु

हाइकु त्रयी

हाइकु त्रयी hindi haiku || हिंदी हाइकु [१]कोहरा घनाजंगल है दुबका दूर क्षितिज! [२]कोहरा ढांपे न दिखे कुछ पार ओझल ताल [३]हाथ रगड़ कुछ गर्माहट होकांपता हाड़ निमाई प्रधान'क्षितिज'*
क्षितिज सूर्य

धूप की ओट में बैठा क्षितिज / निमाई प्रधान’क्षितिज’

धूप की ओट में बैठा क्षितिज /निमाई प्रधान'क्षितिज' रवि-रश्मियाँ-रजत-धवल पसरीं वर्षान्त की दुपहरी मैना की चिंचिंयाँ-चिंयाँ से शहर न लगता था शहरी वहीं महाविद्यालय-प्रांगण में प्राध्यापकों की बसी सभा थी…

एक कविता हूँ

एक कविता हूँ! उंगलियों में कलम थामेसोचता हूँ…कि कहींहै वह ध्वनिजो उसे ध्वनित करे…!मैं अंतरिक्ष में तैरता..कल्पनाओं मेंछांटता हूँशब्दमीठे -मीठेकोई शब्द मिलता नहीं मुझेजो इंगित करे उसेबस….उंगलियों से ही उसे…

निःशब्द तो नहीं

निःशब्द तो नहीं [१]निःशब्द तो नहीं !किंचित् भी नहीं !!बस…नहीं हैं आजशहद या गुलाबी इत्र मेंडुबोयेसुंदर-सुकोमल-सुगंधित शब्दनहीं हैं आजकर्णप्रिय,रसीले,बांसुरी के तानों संगगुनगुनाते अल्फाज़…सब जल गये !भस्म हो गयेसारे के सारेअंतरिक्ष…

इन गुलमोहरों को देखकर

कविता/निमाई प्रधान'क्षितिज' इन गुलमोहरों को देखकर दिल के तहखाने में बंद कुछ ख़्वाहिशें...आज क्यों अचानक बुदबुदा रही हैं?महानदी की... इन लहरों को देखकर!! कि ननिहाल याद आता है..इन गुलमोहरों को…

छूकर मुझे बसंत कर दो

छूकर मुझे बसंत कर दो - निमाई प्रधान HINDI KAVITA || हिंदी कविता तुम बिन महज़ एक शून्य-सा मैंजीकर मुझे अनंत कर दो ....। पतझर-पतझर जीवन हैछूकर मुझे बसंत कर…
हाइकु

निमाई प्रधान’क्षितिज’ के हाइकु

निमाई प्रधान'क्षितिज' के हाइकु *[1]* *हे रघुवीर!**मन में रावण है* *करो संहार ।* *[2]**सदियाँ बीतीं* *वहीं की वहीं टिकीं* *विद्रूपताएँ ।* *[3]**जाति-जंजाल**पैठा अंदर तक**करो विमर्श ।* *[4]**दुःखी किसान* *सूखे खेत…
हाइकु

एकांत/हाइकु/निमाई प्रधान’क्षितिज’

एकांत/हाइकु/निमाई प्रधान'क्षितिज' kavitabahar logo [१]मेरा एकांत सहचर-सर्जक उर्वर प्रांत! [२]दूर दिनांततरु-तल-पसरा मृदु एकांत! [३]वो एकांतघ्न वातायन-भ्रमर न रहे शांत ! [४]दिव्य-उजासशतदल कमल एकांतवास ! [५]एकांत सखाजागृत कुंडलिनी प्रसृत विभा !…