नवरात्रि हिंदुओं का एक प्रमुख पर्व है। नवरात्रि शब्द एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘नौ रातें’। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दसवाँ दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है। माता पर कविता बहार की छोटी सी सुन्दर कुंडलियाँ –
माता के नवराते पर कुंडलियाँ
माँ शक्ति की उपासना , होते है नवरात।
मात भवानी-भक्ति में , करते हैं जगरात।।
करते हैं जगरात , कृपा कर मात भवानी।
होती जय जयकार , सुनो हे माता रानी।।
कहता कवि करजोरि,करें सब माँ कीभक्ति।
करो सदा उपकार, दयामयी हे माँ शक्ति।।1।।
माता है ममतामयी , करती भव से पार।
भक्तों पर करती कृपा,करे असुर संहार।।
करे असुर संहार , माता अपनी शक्ति से।
होती सदा प्रसन्न,माता सच्ची भक्ति से।।
कहता कवि नवनीत,माँ की कृपा वो पाता।
करता मन से याद,सुने सबउसकी माता।।2।।
विषय-ब्रह्मचारिणी
विधा-कुंडलियाँ
हे मात ब्रह्मचारिणी , संकट से कर पार।
रूप दूसरा शक्ति का ,कर सबका उद्धार।।
कर सबका उद्धार , मिट जाय सब बाधाएँ।
रोग शोक हो दूर , संकट सभी मिट जाएँ।।
कहता कवि करजोरि,माँउज्ज्वल तेरा गात।
सभी रहें खुशहाल , विनय सुनो हे मात।।1।।
माता है ममतामयी , करता है जो ध्यान।
तीनो ताप निवारती , करे दुष्ट संधान।।
करे दुष्ट संधान , है माता शक्तिशाली।
लिये कमंडलु हाथ, मात हे शेरावाली।।
कहता कवि नवनीत,माँ की शरण जोआता।
देती भव से मुक्ति , शक्ति स्वरूपा माता।।2।।
विषय-चन्द्रघंटा
विधा-कुंडलियाँ
न्यारा ही ये रूप है , चन्द्रघंट है नाम।
रूप तीसरा शक्ति का,लोकोत्तरअभिराम।।
लोकोत्तर अभिराम,दसभुज शस्त्र ये धारे।
चन्द्रघंट है भाल , माता दुष्ट संहारे।।
कहता कवि करजोरि,माँ कोभक्त है प्यारा।
करती है भयमुक्त, माँ का रूप है न्यारा।।1।।
करती है कल्याण माँ , रूप सुवर्ण समान।
दुखभंजन सबका करे ,देती है वरदान।।
देती है वरदान , हे शिव शंकर भामिनी।
कर कष्टों से मुक्त, माँ भुक्ति मुक्तिदायिनी।।
कहता कवि नवनीत,सभी की झोलीभरती।
करो साधना मात,सबको भव पार करती।।2।।
माँ कूष्मांडा(कुंडलियाँ)
आदिशक्ति प्रभा युक्ता , चौथा दुर्गा रूप।
माँ कूष्मांडा नाम है, इनकी शक्ति अनूप।।
इनकी शक्ति अनूप , मात है बड़ी निराली।
अष्ट भुजा संयुक्त है , मात है शेरावाली।।
कहताकवि करजोरि,सब करेंअम्ब कीभक्ति।
दूर करो सब रोग , हे माता आद्या शक्ति।।1।।
धारे कर में अमृत घट ,पद्म धनुष अरु बाण।
गदा कमंडलु चक्र है , करते भय से त्राण।।
भय से करते त्राण , देते हैं आरोग्यता।
मिटे सब आधि व्याधि , दूर हो जाय अज्ञता।।
कहता कवि नवनीत , मात सब कष्ट निवारे।
अष्टम भुज में मात,सिद्धिअरु निधि को धारे।।2।।
स्कंदमाता(कुंडलियाँ)
मात भवानी शैलजा , पंचम दुर्गा रूप।
कार्तिकेय की मात है , अद्भुत और अनूप।।
अद्भुत और अनूप , रूप है सबको भाता।
रखती अंक स्कन्द , कहलाती स्कंदमाता।।
कहता कवि करजोरि,माँ करेशक्ति बरसात।
रोग शोक सब दूर हो , हे गौर भवानी मात।।1।।
माता मुक्ति प्रदायिनी , ममता का भंडार ।
शुभ्रवर्णा चतुर्भुजा , करे दुष्ट संहार।।
करे दुष्ट संहार , माँ है विद्यादायिनी।
पूजे माँ भक्त वृन्द , अम्ब शांति प्रदायिनी।।
कहत नवल करजोरि,शरण जो माँ कीआता।
करे कष्ट से पार , यशस्विनी शक्ति माता।।2।।
©डॉ एन के सेठी