Tag: #राजेश पाण्डेय अब्र

यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर0 राजेश पाण्डेय अब्र के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • अब्र की उपासना

    अब्र की उपासना

    मेरी यही उपासना, रिश्तों का हो बन्ध।
    प्रेम जगत व्यापक रहे, कर ऐसा अनुबन्ध।।

    स्वप्रवंचना मत करिये, करें आत्म सम्मान।
    दर्प विनाशक है बहुत, ढह जाता अभिमान।।

    लोक अमंगल ना करें, मंगल करें पुनीत।
    जन मन भरते भावना, साखी वही सुनीत।।

    नश्वर इस संसार में, प्रेम बड़े अनमोल।
    सब कुछ बिक जाता सिवा, प्रीत भरे दो बोल।।

    मजहब राह अनेक हैं, हासिल उनके नैन।
    कायनात सुंदर लगे, अपने अपने नैन।।

    साधु प्रेम जो दीजिये, छलके घट दिन रैन।
    कंकर भी अब हो गये, शंकर जी के नैन।।

    प्रेम न ऐसा कीजिये, कर जाये जो अधीर।
    प्रेम रतन पायो पुलक, जन मन होत सुधीर।।

    ईश्वर के अधिकार में, जग संचालन काम।
    भेदभाव वह ना करे, पालक उसका नाम।।

    प्रात ईश सुमिरन करो, अन्य करो फिर काम।
    शांत चित्त ही मूल है, हुआ सफल हर याम।।

    प्रात स्मरण प्रभु का करो, बन जाओगे खास।
    जीव जगत में अमर हो, आये दिन मधुमास।।

    • राजेश पाण्डेय अब्र

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  • निशा गई दे करके ज्योति

    निशा गई दे करके ज्योति

    निशा गई दे करके ज्योति,
    नये दिवस की नयी हलचल!
    उठ जा साथी नींद छोड़कर,
    बीत न जाये ये जगमग पल!!
    भोर-किरन की हवा है चलती,
    स्वस्थ रहे हाथ  और  पैर!!
    लाख रूपये की दवा एक ही
    सुबह शाम की मीठी सैर!!
    अधरों पर मुस्कान सजाकर!!
    नयन लक्ष्य पर हो अपना!!
    पंछी बन जा छू ले अम्बर
    रात को देखा जो सपना!!
    दुख की छाँह पास न आवे
    शुभ प्रभात कहिये!!
    जेहि विधि राखे राम
    तेहि विधि रहिये!!!
    -राजेश पान्डेय”वत्स”
    पूर्वी छत्तीसगढ़!!
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • करना हो तो काम बहुत हैं

    करना हो तो काम बहुत हैं

    नेकी के तो धाम बहुत हैं
    करना हो तो काम बहुत हैं।
    सोच समझ रखे जो बेहतर
    उनके अपने नाम बहुत हैं।
    प्रेम रंग गहरा होता है
    रंगों के आयाम बहुत हैं।
    गुण सम्पन्न बहुत होते हैं
    वैसे तो बदनाम बहुत हैं।
    इश्क़ खुदा से सीधी बातें
    मन हल्का आराम बहुत है।
    लक्ष्य एक पर पंथ अलग हैं
    सभी में ताम झाम बहुत हैं।
    ✒कलम से
    राजेश पाण्डेय अब्र
      अम्बिकापुर
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  • मौन बोलता है

    मौन बोलता है


    हाँ !
    मैं ठहर गया हूँ
    तुम्हारी परिधि में आकर
    सुन सको तो
    मेरी आवाज सुनना
    “मौन” हूँ मैं,
    मैं बोलता हूँ
    पर सुनता कौन है
    अनसुनी सी बात मेरी
    तुम्हारी “चर्या” के दरमियाँ
    मेरी    “चर्चा”  कहाँ ,
    काल के द्वार पर
    मुझे सब सुनते हैं
    जीवन संगीत संग
    मुझे सुन लिया होता
    रंगीन से जब
    हुए जा रहे थे
    संगीत जीवन का
    बज रहा था तब,
    व्योम
    कुछ धुंधलका समेटे है
    निराशा के बादल
    छाए हुए लगते हैं
    पर यह सच नहीं
    अतीत साक्षी है
    पलट कर देख लो तुम
    जिन्होंने सत्य को
    पा लिया जीवन में
    मौन को सुना और
    साध लिया उन्होनें.

    राजेश पाण्डेय अब्र
         अम्बिकापुर
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  • प्यार का पहला खत पढ़ने को

    प्यार का पहला खत पढ़ने को

    प्यार का पहला खत पढ़ने को* तड़पी है यारी आँखें,
    पिया मिलन की* चाह में अक्सर रोती है सारी आँखें।

    सुधबुध खोकर जीता जिसने प्रीत का* रास्ता अपनाया
    प्रेम संदेशा पहुँचाये* वो जन – जन तक प्यारी आँखें।

    कठिन डगर पनघट की जिसने समझा अक्सर दूर रहा
    है* लक्ष्य भेदने में सक्षम अवचेतन वह तारी आँखें।

    कलयुग में हो जायें आओ हम द्वापर सा कृष्ण प्रिये
    वही बनेगा श्याम यहाँ अब है जिसकी न्यारी आँखें।

    मौन की* भाषा बड़ी सहज है जो पढ़ना इसको जाने
    ज्ञान सरोवर से अंतर्मन भरती महतारी आँखें।

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    ✒कलम से
    राजेश पाण्डेय अब्र
        अम्बिकापुर

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