अब्र की उपासना
अब्र की उपासना मेरी यही उपासना, रिश्तों का हो बन्ध।प्रेम जगत व्यापक रहे, कर ऐसा अनुबन्ध।। स्वप्रवंचना मत करिये, करें आत्म सम्मान।दर्प विनाशक है बहुत, ढह जाता अभिमान।। लोक अमंगल ना करें, मंगल करें पुनीत।जन मन भरते भावना, साखी वही सुनीत।। नश्वर इस संसार में, प्रेम बड़े अनमोल।सब कुछ बिक जाता सिवा, प्रीत भरे दो … Read more