धन्य वही धन जो करे आत्म-जगत् कल्याण

धन्य वही धन जो करे आत्म-जगत् कल्याण धन्य वही धन जो करे, आत्म-जगत् कल्याण।करे कामना धर्म की,मिले मधुर निर्वाण। संग्रह केवल वस्तु का,विग्रह से अनुबंध।सुविचारों की संपदा,से संभव संबंध।। धन-दौलत के साथ ही,बढ़ता क्यों अपराध।कठिन दंड भी शांति को,कहाँ सका है साध।। शिक्षा,जब माना गया,केवल भौतिक ज्ञान।मानव-मूल्यों के बिना,दुखद भ्राँत उत्थान।। निधन हुआ धन से … Read more

मूर्ख कहते हैं सभी

मूर्ख कहते हैं सभी मूर्ख कहते हैं सभी,उसका सरल व्यवहार है,ज्ञान वालों से जटिल सा हो गया संसार है। शब्द-शिल्पी,छंद-ज्ञाता,अलंकारों के प्रभो!क्या जटिल संवाद से ही काव्य का श्रृंगार है? जो नपुंसक हैं प्रलय का शोर करते फिर रहे,नव सृजन तो नित्य ही पुरुषत्व का उद्गार है। द्वेष रूपी खड्ग से क्या द्वेष का वध हो … Read more

दर्द के रूप कविता

दर्द के रूप कविता स्वयं के दर्द से रोना,अधिकतर शोक होता है।परायी-पीर परआँसू,बहे तो श्लोक होता है। निकलती आदि कवि की आह से प्रत्यक्ष भासित है,हृदय करुणार्द्र हो,तब अश्रु पर आलोक होता है। धरा की,धेनुओं की,साधुओं की प्रीति-पीड़ा से,हैं धरते देह ईश्वर,पाप-मुञ्चित लोक होता है।   —– R.R.Sahu

तेरे लिए पर कविता- R R SAHU

तेरे लिए पर कविता दिन की उजली बातों के संग,मधुर सलोनी शाम लिखूँ।रातें तेरी लगें चमकने,तारों का पैगाम लिखूँ।। पढ़ने की कोशिश ही समझो,जो कुछ लिखता जाता हूँ।गहरे जीवन के अक्षर की थाह कहाँ मैं पाता हूँ।। है विराट अस्तित्व मगर मेरी छोटी मर्यादा है।इसको ही सुंदर कर पाना समझो नेक इरादा है।। मेरी बातों … Read more

अपराधी इंसान पर कविता- R R Sahu

अपराधी इंसान पर कविता सभी चाहते प्यार हैं,राह मगर हैं भिन्न।एक झपटकर,दूसरा तप करके अविछिन्न।। आशय चाल-चरित्र का,हमने माना रूढ़।इसीलिए हम हो गए,किं कर्तव्य विमूढ़।। स्वाभाविक गुण-दोष से,बना हुआ इंसान।वही आग दीपक कहीं,फूँके कहीं मकान।। जन्मजात होता नहीं,अपराधी इंसान।हालातों से देवता या बनता हैवान।। भय से ही संभव नहीं,हम कर सकें सुधार।होता है धिक्कार से,अधिक … Read more