Tag: #सुकमोती चौहान ‘रूचि’

यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर० सुकमोती चौहान ‘रूचि’ के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • सुकमोती चौहान रुचि की ग़ज़ल

    सुकमोती चौहान रुचि की ग़ज़ल

    गज़ल बहर 1212  1212   1212   1212

    दबा के दुखती नस को लाया जलज़ला अभी -अभी
    च़रागे दिल जला गया वो हमनवा अभी – अभी
    दुआ करो कि बुझ न पाये आग ये जुनून की
    मुझे दिखा मुकाम वो चला गया अभी – अभी
    न जी रहे न मर रहे मिला ये इश्क़ में
    सिला ये दिल जो बन गया है तेरा महकमा अभी- अभी
    चले न साथ हमसफर भी अब यहाँ यकीन कर
    बढ़ा जहां में बेवफा का काफिला अभी – अभी
    चला मिटाने बेसबब ही हस्तियाँ तू गैर की
    कि खुद भी रेत के महल में है खड़ा अभी – अभी
    खामोश है हवा नजारे चाँद गुमसुदा लगे कि
    गुजरा है यहाँ से कोई दिलजला अभी – अभी
    उड़ा परिंदा उड़ता ही रहा जी भर गगन में
    “रुचि” कि तोड़ आया पिंजरे का दायरा अभी – अभी


  • शादी पर कविता- सुकमोती चौहान

    शादी पर कविता- सुकमोती चौहान

    शादी
    shadi



    दीदी की है आज , बराती द्वारे आई ।
    देखो बाजे बैण्ड , फटाखे फोड़े भाई ।।
    देखो बेटा बाप , साथ नाचे संगाती ।
    मस्ती में हो चूर , नाचते दादा नाती ।
    दूल्हा राजा साथ में , जीजा बैठा पास में ।
    सारी रश्मों को निभा , रिश्ता विश्वास में ।

    तीखी मिर्ची डाल , पकौड़े साली लाई ।
    चिल्लाते हैं खूब , देख दूल्हा के भाई ।
    छोटी छोटी रश्म , भरे शादी में मस्ती ।
    मीठी छूरी जान , प्रेम की देखो हस्ती ।
    रिश्तेदारों से भरा , शादी की वेदी सजी ।
    शादी भी सम्पन्न ये , ताली ही ताली बजी ।

    शादी की ये रीत , खुशी की हैं बौछारें ।
    जन्मों का संबंध , लगे हैं प्यारे प्यारे ।
    दो राही हैं साथ , सात लेते हैं फेरे ।
    देते हैं आशीष , नये जोड़े को घेरे ।
    हाथों में है मेंहदी , दो आँखों में ख्वाब है ।
    देते आशीर्वाद ये , रिश्ता ये नायाब है ।


    *सुकमोती चौहान “रुचि”*
    *बिछिया,महासमुन्द*

  • हिन्दी दोहा – वायु पर दोहे

    हिन्दी दोहा – वायु पर दोहे

    बहती रहती है सदा , होकर वायु अधीर ।
    सकल सृष्टि पर व्याप्त है ,और घुँसे प्राचीर ।

    होता संभव वायु से , शब्दों का संचार ।
    कहते मन की भावना , फिर करते व्यवहार ।।

    निर्मल करते वायु को , हरे भरे ये पेड़ ।
    मिट जायेगी ये धरा , यूँ न प्रकृति को छेड़ ।।

    लेते हैं हम साँस में , इसी प्रकृति से वायु ।
    जो नित करते सैर हैं , बढ़ती उनकी आयु ।।

    ठोस नहीं आकार है ,फिर भी होता भार ।
    रंग गंध से मुक्त ये , जीवन का आधार ।।

    गोरी का आँचल उड़ा , पवन बना बलवीर ।
    करे आकर्षित मेघ को , बरसाने को नीर ।।

    रंग बिरंगे उड़ रहे , नभ में कई पतंग ।
    हिचकोले खाती फिरैं , मन में जगी उमंग ।।

    मिलती धरती के तले , घुली नीर के संग ।
    बहती बनकर शक्ति ये , जीवों के हर अंग ।।

    जीते सब हैं जिंदगी , हवा प्रमुख आधार ।
    बिन इसकी संसार मृत , जीवन जाते हार ।।

    देख प्रदूषण नित बढ़े , जहर घुले अब वायु।
    धूल धुँआ इसमें सना , घटती सबकी आयु ।।

    *सुकमोती चौहान "रुचि"* *बिछिया,महासमुन्द*

  • धरती तुझे प्रणाम

    धरती तुझे प्रणाम

    माथ नवाकर नित करूँ , धरती तुझे प्रणाम ।
    जीव जंतु का भूमि ही , होता पावन धाम ।।

    खेले कूदे गोद में , सबकी माँ हो आप ।
    दुष्ट मनुज को भी सदा , देती ममता थाप ।।

    धरती माँ जैसी नहीं , कोई पालन हार ।
    सबका सहती भार ये , महिमा अपरंपार ।।

    वसुंधरा के गर्भ में , रत्नों का भंडार ।
    हीरा सोना कोयला , अमृत कुंड जलधार ।।

    जब – जब असुरों ने किया , भू पर अत्याचार ।
    कष्ट मिटाने भूमि पर , विष्णु लिए अवतार ।।

    खेती करके भूमि पर , सेवा करे किसान ।
    भूख शांत सबका करे , धरती का भगवान ।।

    वन औषधि के रूप में , करती रोग निदान ।
    धरती माँ पीड़ा हरे , और बचाये जान ।।

    धरती के उपकार को , गिन न सकेंगे लोग ।
    दाता बनकर सिर्फ दे , मानव करता भोग ।

    सरहद पर तैनात हैं , सैनिक वीर सुजान ।
    धरती की रक्षा करे , चौकस रहे जवान ।।

    सुकमोती चौहान "रुचि" बिछिया,महासमुन्द

  • हरे यादों के पन्ने-सुकमोती चौहान “रुचि”

    हरे यादों के पन्ने

    किया याद है कौन , हिचकियाँ मुझको आई ।
    गुजरे अरसे बाद , कसक हिचकोले खाई ।
    जिल्द पुराने झाड़ , हरे यादों के पन्ने ।
    अधर खिला मुस्कान , नेत्र जल मीठे गन्ने ।
    कुछ यादें जीवन के अमर , अनायास ही उभरते ।
    निराकार अव्यक्त ये , मानस पट पर विचरते ।

    आया बचपन याद , सहेली मिली पुरानी ।
    बड़े दिनों के बाद , हुई बातें रूहानी ।
    इमली जामुन बेर , आम पर वो चढ़ जाना ।
    फुगड़ी हो या दौड़ , शर्त में तर्क लगाना ।
    तैराकी तालाब की ,सारी बातें याद में ।
    फिर से बचपन आ गया , दोनों के संवाद में ।

    मीठी सारी याद , सँजोये रखती मन में ।
    बिखेरते सतरंग , यही मेरे जीवन में ।
    अब भी हँसी फुँहार , फुटे जीवन में मेरे ।
    जब जब छिड़े प्रसंग , उमड़ते भाव घनेरे ।
    जीवन की थाती यही , अनुभव की पाती यही ।
    योदों की बारात में , कुछ बातें हैं अनकही ।



    *सुकमोती चौहान “रुचि”*
    *बिछिया,महासमुन्द*