सुकमोती चौहान रुचि की ग़ज़ल
गज़ल बहर 1212 1212 1212 1212
दबा के दुखती नस को लाया जलज़ला अभी -अभी
च़रागे दिल जला गया वो हमनवा अभी – अभी
दुआ करो कि बुझ न पाये आग ये जुनून की
मुझे दिखा मुकाम वो चला गया अभी – अभी
न जी रहे न मर रहे मिला ये इश्क़ में
सिला ये दिल जो बन गया है तेरा महकमा अभी- अभी
चले न साथ हमसफर भी अब यहाँ यकीन कर
बढ़ा जहां में बेवफा का काफिला अभी – अभी
चला मिटाने बेसबब ही हस्तियाँ तू गैर की
कि खुद भी रेत के महल में है खड़ा अभी – अभी
खामोश है हवा नजारे चाँद गुमसुदा लगे कि
गुजरा है यहाँ से कोई दिलजला अभी – अभी
उड़ा परिंदा उड़ता ही रहा जी भर गगन में
“रुचि” कि तोड़ आया पिंजरे का दायरा अभी – अभी