अभाव-गुरु
अभाव-गुरु “उस वस्तु का नहीं होना” मैं,जरूरत सभी जन को जिसकी।प्रेरक वरदान विधाता का,सीढ़ी मैं सहज सफलता की।।1अभिशाप नहीं मैं सुन मानव,तेरी हत सोंच गिराती है।बस सोंच फ़तह करना हिमगिरि,यह सोंच सदैव जिताती है।।2वरदान और अभिशाप मुझेतेरे ही कर्म बनाते हैं।असफल हताश,औ’ कर्मविमुखमिथ्या आरोप लगाते हैं।।3तीनों लोकों में सभी जगह,मैंने ही पंख पसारे हैं।सब जूझ … Read more